समाजपर्यावरण डॉ. सीता कोलमैनः व्यवसाय पर्यावरण टिकॉऊ मॉडल की दिशा में काम करने वाली पर्यावरणविद्

डॉ. सीता कोलमैनः व्यवसाय पर्यावरण टिकॉऊ मॉडल की दिशा में काम करने वाली पर्यावरणविद्

डॉ. कोलमैन विशेषतौर पर "इंडस्टियल इकोलॉजी" को बढ़ावा देती हैं और सुझाव देती हैं कि कॉर्पोरेट संस्थाएं उत्पादों के जीवन चक्र के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करें। डॉ. सीता का मानना है कि इससे उत्पादों के मूल्य में वृद्धि और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव में कमी हो सकती है।

बात जब-जब प्रकृति के संरक्षण की आती है तो महिलाओं की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि स्त्री हमेशा पृथ्वी को बचाने वाली और समाधानों में अधिक सहयोग करने वाली भूमिका निभाती आई हैं। दैनिक जीवन हो या आंदोलन हर तरह से इतिहास से लेकर वर्तमान में महिलाएं प्राकृतिक संरक्षण की मुहिम में शामिल है। उद्यम हो या घर-परिवार अपने काम में महिलाओं का व्यवहार और तौर-तरीके प्रकृति को कम नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। देश और दुनिया में अपने स्तर पर महिलाएं प्रकृति संरक्षण की दिशा में नये स्तर पर आगे आकर काम कर रही हैं। इन्हीं में से एक नाम सीता कोलमैन का भी हैं। वह एक रसायनशास्त्री, पर्यावरणविद् और उद्यमी हैं। उनका काम विशेष तौर पर प्लास्टिक के प्रभाव को कम करने और उसके विकल्प की दिशा में है। 

सीता कोलमैन का जन्म दक्षिण भारत में हुआ था। इनका पूरा नाम सीता कोलमैन-कम्मुला हैं। इन्होंने स्नातक की पढ़ाई उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद से पूरी की। इसके बाद उन्होंने ऑबर्न, अलबामा स्थित ऑबर्न यूनिवर्सिटी से ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में पीएचडी की और फिर प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में पोस्ट-ग्रेजुएट शोध किया। डॉ. सीता नाटो फेलोशिप भी हासिल कर चुकी हैं और उन्होंने एम्स्टर्डम यूनिवर्सिटी में अतिरिक्त अध्ययन कार्य पूरा किया। साल 1978 में, उन्हें एम्स्टर्डम स्थित रॉयल डच शेल में एक शोधकर्ता के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने 1988 तक काम किया। दस वर्षों के बाद, उन्होंने शेल के साथ इंग्लैंड में काम किया और वहां एक बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर के तौर पर काम किया। इसके बाद कोलमैन का बेल्जियम और ह्यूस्टन, टेक्सास ट्रांसफर हो गया, वहां उन्होंने एपॉक्सी रेजिन यूनिट का नेतृत्व किया और प्लास्टिक विकसित की। 

अब वह कंपनियों को यह सलाह देती हैं कि वे अपने उत्पादों में क्या है और उन्हें कैसे अलग किया जाए, इसकी जानकारी उपलब्ध कराएं। सीता कोलमैन ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कचरे के निपटान और रिसाइकलिंग पर विशेष तौर पर ध्यान दिया।

डॉ. सीता कोलमैन ने प्लास्टिक के इस्तेमाल से पर्यावरण पर पड़ते बुरे प्रभावों को देखा जिसके बाद उन्होंने पर्यावरण को कैसे बचाया जाए इस दिशा में काम करना शुरू किया। वह कंपनियों के साथ विचार-विमर्श कर, ज़रूरी जानकारी इकट्ठा कर आंकलन करती हैं कि किसी प्रॉडक्ट के उत्पादन से कितना पर्यावरण पर असर होता है और उस नकारात्मक प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है। वह रोजगार किस तरह से पर्यावरण हितैषी हो सकते है इस विषय पर काम कर रही हैं। साल 2000 में, उन्होंने शेल छोड़ दिया और बासेल पॉलीओलीफिन्स में सीनियर वाइस प्रेसीडेंट के तौर पर जुड़ीं। जहां उन्होंने एसेस्ट मैनेजमेंट, इनोवेशन और मार्किट स्ट्रेटजी पर ध्यान दिया। साथ ही, उन्होंने मैक्सिको में बासेल और अल्फा के संयुक्त उपक्रम इंडेलप्रो के निदेशक मंडल में भी सेवा दी।

सिम्पली संस्टेन की स्थापना

तस्वीर साभारः DPM

डॉ. सीता कोलमैन ने व्यापार क्षेत्र में सस्टेनबिलिटी की दिशा में काम करते हुए साल 2005 में बासेल को छोड़कर सिम्पली सस्टेन नामक एक परामर्श फर्म की स्थापना की। इस कंपनी में इनके पति भी शामिल हैं। इस कंपनी का उद्देश्य व्यवसायों को अधिक टिकाऊ मॉडल अपनाने के लिए परामर्श देना है। इसकी कॉर्पोरेट फिलॉसफी के अनुसार, यह एक अत्याधुनिक प्रबंधन परामर्श फर्म है, जो कंपनियों को उत्पाद बनाने में बेहतर और अपशिष्ट कम करने में कुशल बनाने के लिए काम करती है। सिम्पली सस्टेन तीन-आयामी कॉर्पोरेट रणनीति को अपनाती है, जिसका उद्देश्य लोगों, पर्यावरण और लाभकारी आर्थिक विकास के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।

उसी समय भारत की यात्रा के दौरान उन्होंने महसूस किया कि जिन प्लास्टिकों को उन्होंने विकसित किया था, वे पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे थे, क्योंकि एक आविष्कारक और डिज़ाइनर के रूप में उन्होंने यह नहीं सोचा था कि उत्पाद अनुपयोगी होने के बाद उनका क्या होगा और वे कचरा बन जाएंगे। अब वह कंपनियों को यह सलाह देती हैं कि वे अपने उत्पादों में क्या है और उन्हें कैसे अलग किया जाए, इसकी जानकारी उपलब्ध कराएं। सीता कोलमैन ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कचरे के निपटान और रिसाइकलिंग पर विशेष तौर पर ध्यान दिया। उनका मानना है कि यह न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए बल्कि निपटान और पुनर्चक्रण में रोजगार प्रदान करने के लिए भी सहायक है।

डॉ. सीता कोलमैन ने प्लास्टिक के इस्तेमाल से पर्यावरण पर पड़ते बुरे प्रभावों को देखा जिसके बाद उन्होंने पर्यावरण को कैसे बचाया जाए इस दिशा में काम करना शुरू किया। वह कंपनियों के साथ विचार-विमर्श कर, ज़रूरी जानकारी इकट्ठा कर आंकलन करती हैं कि किसी प्रॉडक्ट के उत्पादन से कितना पर्यावरण पर असर होता है और उस नकारात्मक प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है।

डॉ. कोलमैन विशेषतौर पर “इंडस्टियल इकोलॉजी” को बढ़ावा देती हैं और सुझाव देती हैं कि कॉर्पोरेट संस्थाएं उत्पादों के जीवन चक्र के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करें। डॉ. सीता का मानना है कि इससे उत्पादों के मूल्य में वृद्धि और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव में कमी हो सकती है। वह डाउ केमिकल कंपनी की सस्टेनेबिलिटी एक्सटर्नल एडवाइजरी काउंसिल और अन्य कॉर्पोरेट संस्थाओं के साथ काम करती हैं। डॉ. सीता कोलमैन एक उद्यमी, नवोन्मेषक और रासायनिक उद्योग की अनुभवी कार्यकारी हैं। उन्होंने इस दिशा में दुनिया के अलग-अलग देशों में काम किया है। वह नीदरलैंड, बेल्जियम, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में अपना शोध कार्य और व्यवसाय प्रबंधन में सेवा दे चुकी हैं।

वर्तमान में, वह साइंस, टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ डेलावेयर (STRIDE) की अध्यक्ष हैं, जिसे उन्होंने ड्यूपॉन्ट के अनुभवी वैज्ञानिकों के साथ और लॉन्गवुड फाउंडेशन से प्राप्त ग्रांट की मदद से सह-स्थापित किया है। साल 2019 में, STRIDE को सेंटर फॉर पीएपएएस (PFAS) सॉल्यूशंस लॉन्च करने के लिए दूसरा अनुदान प्राप्त हुआ, जो PFAS (पॉलीफ्लुओरोएल्काइल सब्सटांस जैसे PFOA, PFOS) का विश्लेषण प्रदान करता है और नए परीक्षण विधियों, उत्पादों और समाधानों को विकसित करने के लिए शोध करता है। डॉ. कोलमैन की कार्यशैली और उनके द्वारा किए गए योगदान ने उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है। विशेष रूप से उन्होंने पर्यावरणीय स्थिरता और नवाचार के क्षेत्र महत्वपूर्ण काम किया है। वह अपने उद्योग में एक प्रेरणा स्त्रोत मानी जाती हैं।

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