सवित्रीबाई फुले आधुनिक भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, कवयित्री, लेखिका और भारतीय नारीवाद की जननी है। उनके जन्म दिवस को हम शिक्षक दिवस, महिला दिवस और विद्रोही दिवस के रूप में भी मनाते हैं। माली समुदाय की एक दलित महिला सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव गांव में हुआ था। कहा जाता है कि 10 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी। उनके पति ज्योतिराव फुले ने उन्हें घर पर ही शिक्षा दी थी। बाद में ज्योतिराव ने सावित्रीबाई को पुणे के एक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान में भर्ती कराया।
एक छोटी लड़की के रूप में, सावित्रीबाई ने जिज्ञासा और महत्वाकांक्षा की एक मजबूत भावना दिखाई। सावित्रीबाई फुले लड़कियों और समाज के बहिष्कृत वर्ग और हाशिये के समुदायों को शिक्षा प्रदान करने की इच्छा रखती थी। वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं और लड़कियों के लिए एक स्कूल भी खोला। उनके जीवन को भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में जाना जाता है। उन्हें अक्सर भारतीय नारीवाद की जननी के रूप में जाना जाता है।
सवित्रीबाई फुले ने महिलाओं के अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया और समाज में शिक्षा और जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण काम किया। लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो इस तथ्य से परिचित होंगे कि वे आधुनिक भारत की पहली विद्रोही महिला कवयित्री और लेखिका थीं। उनकी कविताओं का पहला संग्रह, ‘काव्य फुले‘ 1854 में प्रकाशित हुआ था।
तब वे महज 23 वर्ष की थीं। इसका मतलब है कि उन्होंने 19-20 वर्ष की उम्र से ही कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। उनका दूसरा कविता संग्रह ‘बावनकशी सुबोध रत्नाकर‘ नाम से 1891 में आया। सावित्रीबाई फुले अपनी रचनाओं में एक ऐसे समाज और जीवन का सपना देखती थीं, जिसमें किसी तरह का कोई अन्याय न हो और हर इंसान मानवीय गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करे।
उठो, अरे अतिशूद्र तुम
यह गुलामी की परंपरा की
मनुवादी पेशवा मर-मिट चुके
खबरदार मत लेना, मनु विद्या तुम
सावित्रीबाई फुले यहां शूद्रों और अतिशूद्रों से आह्वान करती हैं कि वे अपने अधिकारों के लिए जागरूक हों। वे उन्हें मनुवादी शिक्षा से दूर रहने की चेतावनी देती हैं, जिसे उन्होंने गुलामी की परंपरा से जोड़ा है। वह इसे अपमानजनक और शोषणकारी मानती थीं।
बिना ज्ञान के व्यर्थ सभी कुछ हो जाता
बुद्धि बिना तो इंसान भी पशु कहलाता
सावित्रीबाई फुले इस पंक्ति में यह बताती हैं कि बिना ज्ञान और बुद्धि के जीवन का कोई मूल्य नहीं है। जब व्यक्ति के पास ज्ञान नहीं होता, तो वह अपनी असल पहचान और उद्देश्य से दूर हो जाता है और बस एक पशु की तरह जीता है, जो केवल अस्तित्व में होता है, लेकिन उसे कोई दिशा या उद्देश्य नहीं होता।
नारी जाग, उठ खड़ी हो,
तू स्वाभिमान की शक्ति है।
ज्ञान तेरी मुक्ति है,
अज्ञान तेरा दुश्मन।
इस कविता में सावित्रीबाई ने नारी को जागरूक होने का संदेश दिया है। उन्होंने स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनने और शिक्षा के माध्यम से अपनी जंजीरों को तोड़ने का आह्वान किया। उनके शब्द न केवल प्रेरणा देते हैं बल्कि उस समय की सामाजिक परिस्थितियों को चुनौती भी देते हैं।
नारी तू क्या रोती है,
अपने भाग्य को खोती है।
ज्ञान तेरा अधिकार है,
इससे तू क्यों डरती है?
यह कविता उस समय लिखी गई जब सावित्रीबाई ने अपने स्कूल में महिलाओं को शिक्षा देने की शुरुआत की। वह उन महिलाओं को प्रेरित करना चाहती थीं, जो अपने अधिकारों से वंचित थीं। इस कविता के जरिए उन्होंने महिलाओं को अपनी शक्ति पहचानने का संदेश दिया।
जात-पात का तोड़ दे पहरा,
ज्ञान का कर दान।
सबको जोड़, सबको पढ़ा,
यही है सत्य का प्रमाण।
सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने समाज में जाति प्रथा के खिलाफ़ निरंतर संघर्ष किया। उनकी कविताओं ने यह संदेश दिया कि शिक्षा ही असली समानता का रास्ता है। यह कविता उस दौर में लिखी गई, जब उन्होंने ‘सत्यशोधक समाज’ के माध्यम से जातिवाद का विरोध किया।
धरती पर सबका हक है,
ना कोई बड़ा, ना कोई छोटा।
जितना सूरज सबको चमकता,
उतना ही हर जीव है अनमोल।
यह कविता दलित समुदाय के लिए सावित्रीबाई के स्नेह और समर्थन का प्रतीक है। जब समाज तथाकथित ऊंची जाति ने दलितों को दबाया, सावित्रीबाई ने हमेशा उनके लिए आवाज उठाई। यह कविता उनके आत्मसम्मान को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने लिखी।
शिक्षा का दीप जलाओ,
अंधकार को दूर भगाओ।
हर लड़की, हर बेटे को,
ज्ञान का आकाश दिखाओ।
उस दौर में यह कविता बहुत बड़ी बात थी। उस समय की है जब सावित्रीबाई ने बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्कूल स्थापित किया। उन्होंने बालिकाओं के अधिकारों को प्राथमिकता दी और समाज को यह संदेश दिया कि शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है।
ज्योतिबा है क्रांति का सूरज,
अज्ञान के तम को चीरता।
शूद्र और महार को देता,
अधिकार का नया सवेरा।
यह कविता सावित्रीबाई के जीवन के उस दौर को चित्रित करती है जब उन्होंने ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर समाज में व्याप्त अंधकार को दूर करने का संकल्प लिया। यह उनके द्वारा शुरू किए गए सत्यशोधक समाज को समर्पित है।
छोड़ो घूंघट, तोड़ो जंजीर,
पढ़ने का लो अब जमीर।
ज्ञान का दीप जलाओ तुम,
अंधकार को दूर भगाओ तुम।
जब सावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए स्कूल खोला, तो समाज ने उनका पुरजोर विरोध किया। देश में महिलाओं की स्थिति बदलने के लिए संकल्प लिए सावित्रीबाई ने ज्योतिराव के साथ मिलकर 1848 में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला था। वह भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं। उनकी यात्रा आसान नहीं थी।
स्कूल जाते समय उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था और उनपर गोबर फेंका जाता था। वह रोज़ाना अतिरिक्त साड़ी रखती और साड़ी बदलकर अपनी यात्रा जारी रखती। यह कविता महिलाओं को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिए लिखी गई थी। सावित्रीबाई ने खुद अज्ञान के अंधकार से निकलकर समाज को रोशनी दी।
तोड़ दो ये बंधन सारे,
जगाओ हक के विचार।
सबको जीने का अधिकार दो,
सिर्फ इंसान हो, न कोई जाति आधार।
जिनके हिस्से थे केवल जख्म,
जिनके हिस्से थे बस आंसू।
उनके लिए ज्योतिबा ने,
लाया क्रांति का उजाला।
जाति प्रथा के खिलाफ़ ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने जो आंदोलन चलाया, वह इस कविता में झलकता है। सावित्रीबाई ने समाज के निचले वर्गों के लिए शिक्षा और समानता की वकालत की। कविता ने दलितों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया और उन्हें समाज में अपनी जगह बनाने की प्रेरणा दी।
चौका-बर्तन जरूरी है पढ़ाई,
क्या तुम्हें मेरी बात समझ में आई?
चलो चले पाठशाला हमें है पढ़ना,
नहीं अब वक्त गंवाना है।
यह कविता सावित्रीबाई के स्कूल में पढ़ाई के दौरान बच्चों को प्रेरित करने के उद्देश्य से लिखी गई थी। यह लघु नाटिका की शैली में है, जो बाल मन को आसानी से प्रभावित करती है। सावित्रीबाई फुले केवल कवयित्री नहीं थीं, वे एक क्रांतिकारी विचारक थीं, जिन्होंने महिलाओं की अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
जागो बहनों, उठो अब,
मत सहो अन्याय का भार।
तोड़ दो बेड़ियाँ ये सब,
जीवन को दो नया आकार।
सावित्रीबाई फुले का जीवन और उनके साहित्य ने भारतीय समाज में शिक्षा, समानता और सामाजिक सुधार की दिशा में एक नई क्रांति की नींव रखी। उनकी कविताएं न केवल स्त्री शिक्षा और दलितों के अधिकारों की वकालत करती हैं, बल्कि वे समाज में मौजूद जातिवाद, पाखंड और अज्ञानता के खिलाफ भी एक स्पष्ट आह्वान हैं। सावित्रीबाई की रचनाएं आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, क्योंकि उनका उद्देश्य केवल साहित्यिक सौंदर्य नहीं था, बल्कि उन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, उत्पीड़न और असमानता के खिलाफ संघर्ष किया।
उनकी कविताएं समाज को समानता, शिक्षा और मानवाधिकारों की ओर मार्गदर्शन करती हैं। यह उनके समर्पण और संघर्ष का प्रतीक है कि उन्होंने शिक्षा के माध्यम से महिलाओं और दलितों को स्वतंत्रता, सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया। सावित्रीबाई के कार्यों और विचारों ने न केवल उनके समय में बल्कि आज भी समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा दी है। उनका साहित्य, उनके संघर्ष और उनके विचार, आज भी सामाजिक चेतना जगाने और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने वाले लोगों के लिए एक मार्गदर्शक बनकर सामने आता है।
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