समाजख़बर सफाई कर्मचारियों की मौतें: सिस्टम की नाकामी का ख़ामियाज़ा भरते हाशिये के समुदाय

सफाई कर्मचारियों की मौतें: सिस्टम की नाकामी का ख़ामियाज़ा भरते हाशिये के समुदाय

मई 2023 में, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण चिंताजनक संख्या में मौतें दर्ज की गईं। एक ही महीने में 12 लोगों की जान चली गई, जिनमें आठ मौतें उत्तर प्रदेश में और चार मौतें दिल्ली में हुईं। 3 मई, 2023 को उत्तर प्रदेश के नोएडा में दो दिहाड़ी मजदूर की एक निजी आवास पर सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मौत हो गई।

पिछले दिनों नवंबर 2024 में दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) में काम कर रहे 24 वर्षीय सुरक्षा गार्ड और सह-सफ़ाई कर्मचारी को दिल्ली जल बोर्ड के 21 फुट गहरे इंटरसेप्टर चैंबर में बेहोश पाया गया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरण या पर्यवेक्षण के अकेले एक नाली कक्ष को साफ करने के लिए मजबूर किया गया था। जब वे घर नहीं पहुंचे तो उनके पिता, भाई, पत्नी और एक पड़ोसी ने मोबाइल फोन की रोशनी में अंधेरे में उसे खोजना शुरू किया। उन्होंने उसे 21 फुट गहरे नाले के चैंबर में खून से लथपथ और बेहोश पाया। वहीं, अस्पताल पहुंचने पर उन्हें ‘मृत’ घोषित कर दिया गया। 

मीडिया में आई परिवार के सदस्यों के बयानों के अनुसार, जहरीले धुएं के कारण उनका दम घुट गया होगा। अकेले दिल्ली में, अक्टूबर 2024 में ही नाले में उतर कर साफ़ करने के कारण तीन सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई। वहीं पूरे भारत में लगभग हर महीने ऐसी कितनी ही मौतें दर्ज की जाती हैं। मृत युवक के परिवार को अबतक दिल्ली जल बोर्ड या किसी सरकारी प्राधिकरण से मुआवजा या सहायता नहीं मिली है। हालांकि ये मौत कोई नया मामला नहीं है। देश में भारत में मैनुअल स्केवेंजिंग की प्रथा पर प्रतिबंध साल 2013 से है। लेकिन यह प्रथा अभी भी आम है। जातिवादी व्यवस्था और आजीविका के अन्य विकल्पों की कमी के कारण लोगों को इसे करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। उन्हें स्थानीय निगमों और निजी घरों या ठेकेदारों द्वारा मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए काम पर रखा जाता है।

मीडिया में आई परिवार के सदस्यों के बयानों के अनुसार, जहरीले धुएं के कारण उनका दम घुट गया होगा। अकेले दिल्ली में, अक्टूबर 2024 में ही नाले में उतर कर साफ़ करने के कारण तीन सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई।

मई 2023 में, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण चिंताजनक संख्या में मौतें दर्ज की गईं। एक ही महीने में 12 लोगों की जान चली गई, जिनमें आठ मौतें उत्तर प्रदेश में और चार मौतें दिल्ली में हुईं। 3 मई, 2023 को उत्तर प्रदेश के नोएडा में दो दिहाड़ी मजदूर की एक निजी आवास पर सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मौत हो गई। दिल्ली में मौत हुए युवक को ठेकेदार के अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था, जो इंटरसेप्टर चैंबर में स्वच्छता कार्य की देख-रेख के लिए जिम्मेदार था। आधिकारिक तौर पर एक सुरक्षा गार्ड के रूप में नियुक्त किए जाने के बावजूद, उसे नियमित रूप से नाली की सफाई करने का अमानवीय काम सौंपा गया था। यह एक ऐसी भूमिका थी जिसके लिए उसके पास कोई प्रशिक्षण, उपकरण या पर्याप्त पर्यवेक्षण नहीं था।

मैनुअल स्कैवेंजर्स का जीवन और चुनौतियां

तस्वीर साभार: Frontline

इन मजदूरों के निर्धारित वेतन पर भी कोई स्पष्टता नहीं है। सफाई कर्मचारियों को केवल 7,000 या 8,000 का भुगतान किया जाता है जोकि काग़ज़ पर लिखे वेतन से कम ही है। 9 मई 2023 को चंदौली के मुगलसराय में एक घर के सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय जहरीली गैस की चपेट में आने से चार लोगों की मौत हो गई थी। मौत हो चुके लोगों में से तीन अनौपचारिक सफाई कर्मचारी थे, जबकि चौथा घर के मालिक का बेटा था, जो श्रमिकों को बचाने की कोशिश के दौरान मारा गया। अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मैनुअल स्केवेंजिंग करते हुए मृत लोगों के परिवारों को 30 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया था, जो अबतक किसी भी पीड़ित के परिवारों तक नहीं पहुंचा है। जिला प्रशासन ने कथित तौर पर चंदौली की घटना में प्रत्येक मृतक को केवल ₹4 लाख अनुग्रह राशि देने का वादा किया था।

मई 2023 में, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मैनुअल स्केवेंजिंग के कारण चिंताजनक संख्या में मौतें दर्ज की गईं। एक ही महीने में 12 लोगों की जान चली गई, जिनमें आठ मौतें उत्तर प्रदेश में और चार मौतें दिल्ली में हुईं। 3 मई, 2023 को उत्तर प्रदेश के नोएडा में दो दिहाड़ी मजदूर की एक निजी आवास पर सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मौत हो गई।

भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग निषेध अधिनियम

भारत ने पहली बार 1993 में मैनुअल स्कैवेंजिंग और शुष्क शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम द्वारा मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था। 2013 में, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम (पीईएमएसआर) पारित किया गया था, जिसमें उनकी मुक्ति और पुनर्वास के लिए मैनुअल स्कैवेंजिंग में लगे व्यक्तियों की पहचान को अनिवार्य किया गया था। एक साल बाद 2014 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मैनुअल स्कैवेंजिंग अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन है, जो सम्मान के साथ जीने के अधिकार की गारंटी देता है। इसके बावजूद आज भी देश में लाखों की तादाद में मैनुअल स्कैवेंजर्स मौजूद हैं।

मैनुअल स्कैवेंजर्स के आंकड़ें   

तस्वीर साभार: IDR

वरिष्ठ वकील इंदिरा उन्नीनायर कहती हैं कि मैनुअल स्कैवेंजिंग की संख्या पर कोई उचित डेटा नहीं है और सरकार मैनुअल स्कैवेंजिंग की मौतों की संख्या को बड़े पैमाने पर दबाती है। सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन का आरोप है कि सरकार की मैनुअल स्कैवेंजर्स की सही संख्या गिनने की ‘इच्छा की कमी’ है। साथ ही खुद मैनुअल स्कैवेंजर्स अपने आपको गिनवाने से बचते हैं। सरकार ने कॉलोनियों में जाने और श्रमिकों की संख्या गिनने के लिए पुलिस अधिकारियों को नियुक्त किया है। लेकिन बहुत से लोग कलंक के कारण खुद को मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में पहचानने से बचते हैं, जिससे गिनती कम हो जाती है।

साल 2017 में डेलबर्ग एसोसिएट्स ने पूरे भारत में स्वच्छता कार्यकर्ताओं पर अध्ययन में कहा कि शहरी भारत में अनुमानित 5 मिलियन स्वच्छता कर्मचारी हैं।

साल 2017 में डेलबर्ग एसोसिएट्स ने पूरे भारत में स्वच्छता कार्यकर्ताओं पर अध्ययन में कहा कि शहरी भारत में अनुमानित 5 मिलियन स्वच्छता कर्मचारी हैं। स्वच्छता मूल्य श्रृंखला में स्वच्छता कार्यकर्ताओं की 9 श्रेणियां पहचानी गईं, जिनमें सीवर की सफाई, शौचालयों की सफाई, मल कीचड़ प्रबंधन, रेलवे की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों में काम, सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय की सफाई, स्कूल शौचालय की सफाई, सफाई, नाली की सफाई में लगे लोग और घरेलू काम शामिल हैं।

मैनुअल स्कैवेंजिंग और जाति आधारित भेदभाव

भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग के संदर्भ में जाति-आधारित भेदभाव के मुद्दे को संबोधित करने के लिए, मौजूद आंकड़ों को देखना महत्वपूर्ण है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में हाथ से मैला ढोने वालों में से 97 फीसद दलित हैं, जो जाति और वर्ग के बीच मजबूत संबंध को उजागर करता है। विशेष रूप से, लगभग 42,594 मैनुअल स्कैवेंजर अनुसूचित जाति (एससी), 421 अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 431 अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित हैं। यह मैनुअल स्कैवेंजिंग की जाति-आधारित प्रकृति को स्पष्ट रूप से बताता है और इस मुद्दे को जाति-आधारित हिंसा और भेदभाव के रूप में पहचानने और संबोधित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। हमारे देश में अमूमन इन श्रमिकों का जीवन सस्ता और गैर जरूरी माना जाता है। ये श्रमिक सिर्फ संघीकरण के माध्यम से ही अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। अक्सर विभिन्न घटनाओं में, मरने वाले कर्मचारी अनौपचारिक मजदूर या संविदा सफाई कर्मचारी होते हैं और उनकी बिना किसी पर्यवेक्षण के सीवर/सेप्टिक टैंक साफ करने की मजबूरी दिखाई देती है। नतीजन उन्हें अपनी ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ता है।

साल 2014 से लेकर 2020 के बीच हाशिए पर रहने वाले समुदायों के 400 से अधिक लोग बिना अत्याधुनिक उपकरण या सुरक्षा गियर के सीवर की सफाई करते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं।

कानूनी प्रावधान के तहत क्या हो रही है मैनुअल स्कैवेंजर के नियोक्ताओं पर कार्रवाई

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तस्वीर साभार: Mint

तमाम कानून के बावजूद, आँकड़े बताते हैं कि चुनिंदा समुदाय समाज के हाशिए पर हैं, मैनुअल स्कैवेंजिंग करने पर मजबूर हैं और मारे जा रहे हैं। लेकिन, मौत के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिलता। साल 2014 से लेकर 2020 के बीच हाशिए पर रहने वाले समुदायों के 400 से अधिक लोग बिना अत्याधुनिक उपकरण या सुरक्षा गियर के सीवर की सफाई करते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन देश भर की सरकारें और पुलिस कानून के तहत उन लोगों के खिलाफ़ कार्रवाई नहीं कर पाई है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने साल 2020 में संसद में दिए गए रिकार्ड में स्पष्ट कहा कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार के निषेध के तहत ‘किसी को दोषी नहीं ठहराया गया’ है। 

यहां तक ​​कि उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी, 2014 के बाद से रिपोर्ट किए गए ऐसे बड़ी संख्या में मामले और मौतें जांच के अधीन हैं, अदालतों में लंबित हैं और उनमें से किसी में भी सजा नहीं हुई है। इसका एक मुख्य कारण अधिकारियों का जातिगत वर्चस्व एक प्रमुख कारक है। 2019 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता सचिव नीलम साहनी ने 2022 तक मैनुअल स्कैवेंजिंग को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना के मसौदे पर विस्तार से बताया और इस तथ्य को स्वीकार किया कि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 776 मौतें हुईं, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट किया गया था। उन्होंने कहा कि इतनी मौतों में एक भी व्यक्ति दोषी नहीं ठहराया गया। 

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के समक्ष दायर एक आरटीआई में, यह पाया गया कि साल 1993 से 2019 तक आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट किए गए 814 मामलों में, सिर्फ 455 मामलों में पूर्ण मुआवजा दिया गया था, यानी केवल 50 फीसद मामलों में सीवर साफ करते हुए मृत मजदूर के परिजनों को 10 लाख रूपये मिले हैं।

मुआवजा और पुनर्वास की कमी

तस्वीर साभार; Indian Express

2014 में सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि सीवर सफाई की प्रक्रिया में मरने वाले सभी श्रमिकों के परिवारों को 10 लाख रुपये मुआवजे दिया जाएगा। इसमें पुनर्वास के लिए भी प्रावधान किया गया है। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के समक्ष दायर एक आरटीआई में, यह पाया गया कि साल 1993 से 2019 तक आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट किए गए 814 मामलों में, सिर्फ 455 मामलों में पूर्ण मुआवजा दिया गया था, यानी केवल 50 फीसद मामलों में सीवर साफ करते हुए मृत मजदूर के परिजनों को 10 लाख रूपये मिले हैं। कई मामलों में भुगतान किया गया मुआवजा 2 लाख से 5 लाख रूपये के बीच था। रिपोर्ट में राज्यवार मुआवजे के मामलों की संख्या पर चर्चा करते हुए सबसे चौंकाने वाला डेटा यह सामने आया कि महाराष्ट्र में सीवर से हुई 25 मौतों में से किसी को भी वास्तव में मुआवजा नहीं मिला।

सफाई कर्मियों की मौतें हमारी सामाजिक और प्रशासनिक खामियों को उजागर करती हैं। मैनुअल स्कैवेंजिंग न केवल एक कानूनी अपराध है, बल्कि यह जाति आधारित भेदभाव और मानवाधिकारों के उल्लंघन का प्रतीक भी है। सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है कि वे इस प्रथा को खत्म करें, श्रमिकों के लिए सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करें और उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार दें। सुप्रीम कोर्ट के मुआवजे के आदेश को सख्ती से लागू करना और दोषियों को सजा दिलाना इस दिशा में पहला कदम हो सकता है।

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