शायद मैं यह कहने में गलत नहीं रहूँगी कि समाज और कई महिलाओं के लिए भी नारीवाद का मतलब घरेलू हिंसा, रेप और अन्य हिंसाओं से इंसाफ़ दिलाने तक ही सीमित है। ये सच है कि ऐसे मुद्दों का हम खुलकर विरोध करते हैं और इन पर काम करने वालों का समर्थन भी करते हैं। लेकिन, मेरा मानना है कि नारीवादी सोच और विचार केवल यहीं तक सीमित नहीं है। नारीवाद की सोच का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को उनकी आज़ादी और आत्मसम्मान से परिचित कराना है। उन्हें स्वतंत्रता से जीने देना और उनके अधिकारों पर किसी का ज़ोर न होना चाहिए। नारीवादी विचारों का यह भी मानना है कि सभी जेंडर को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए।
यह सोच पितृसत्ता को खत्म कर मातृसत्तात्मक समाज स्थापित करने का प्रयास नहीं करती, बल्कि समानता पर आधारित समाज बनाने की दिशा में काम करती है। चाहे फ़ैक्टरी में वेतन की बात हो, रसोई में रोटी बेलने की बात हो, या अपनी पहचान बताने की—हर जगह बराबरी होनी चाहिए। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं होगी कि मैं भी एक समय नारीवादी सोच से दूर थी। मैं भी समाज की कई अन्य महिलाओं की तरह यही सोचती थी कि एक महिला को कैसे होना चाहिए और कैसे नहीं। हालांकि समय के साथ मैंने खुद में कई बदलाव किए। इन बदलावों के साथ मैंने नारीवाद को समझने की कोशिश जारी रखी है।
मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं होगी कि मैं भी एक समय नारीवादी सोच से दूर थी। मैं भी समाज की कई अन्य महिलाओं की तरह यही सोचती थी कि एक महिला को कैसे होना चाहिए और कैसे नहीं।
संगठन और मेरे जीवन का सफर
बचपन से ही मैंने खुद को एक जन संगठन के बीच पाया, जहां मज़दूरों के शोषण, किसानों के अधिकार, और महिलाओं के हक़ के लिए आवाज़ उठाई जाती थी। मेरा परिवार—माता-पिता दोनों—कई वर्षों से इस संगठन में काम कर रहे हैं। शायद इसी वजह से मुझ पर कभी किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं रही, चाहे वह पढ़ाई को लेकर हो या शादी जैसी रूढ़िवादी सोच को लेकर। लेकिन अपने दोस्तों को देखकर अक्सर यह सवाल मन में उठता था कि क्यों उनके घरवाले बताते हैं कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। आर्थिक स्थिति में फर्क होने के बावजूद, मैंने संगठन के स्कूल में पढ़ाई की, जो रायपुर, छत्तीसगढ़ में मज़दूर और गरीब तबके के बच्चों के लिए चलाया जाता था।
भले ही आर्थिक दिक्कतें थीं, लेकिन विचार और शिक्षा बचपन से ही मेरी पूंजी रहे। संगठन के विचारों के सहारे मैंने मज़दूर स्कूल से अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र तक पढ़ाई का सफर तय किया। यह सफर मुश्किलों से भरा था। सामाजिक रोक-टोक का सामना तो नहीं करना पड़ा, लेकिन आर्थिक और मानसिक चुनौतियों से लड़ते हुए मैंने अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीखा। यह एक ऐसा अनुभव था, जिसे किसी स्कूल या कॉलेज में सिखाया नहीं जा सकता।
बचपन से ही मैंने खुद को एक जन संगठन के बीच पाया, जहां मज़दूरों के शोषण, किसानों के अधिकार, और महिलाओं के हक़ के लिए आवाज़ उठाई जाती थी। मेरा परिवार—माता-पिता दोनों—कई वर्षों से इस संगठन में काम कर रहे हैं। शायद इसी वजह से मुझ पर कभी किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं रही, चाहे वह पढ़ाई को लेकर हो या शादी जैसी रूढ़िवादी सोच को लेकर।
नारीवादी सोच से परिचय
कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ मैं संगठन में महिलाओं के मुद्दों पर काम करने लगी। स्कूल के दिनों में मैं संगठन के सांस्कृतिक समूह का हिस्सा थी, जहां जनता के लिए गीत गाती और ज्वलंत मुद्दों पर नुक्कड़ नाटक करती थी। तब यह कभी नहीं सोचा था कि मैं बाहर जाकर पढ़ाई कर पाऊंगी या पत्रकार बनूँगी। मेरे जीवन में नारीवादी सोच का पहला परिचय उन साथियों के ज़रिए हुआ, जो संगठन में नए थे। उनके विचारों से मुझे नारीवाद का अर्थ समझने का मौका मिला। उनके साथ मैंने भोपाल में वर्कशॉप में भाग लिया, जहां अलग-अलग जगहों से आए लोगों के विचार सुनने और समझने का अवसर मिला। वहां मैंने जाना कि नारीवाद केवल महिला मुद्दों तक सीमित नहीं है।
नारीवाद का वास्तविक अर्थ
नारीवादी विचार मेरे लिए प्रेरणादायक रहे। इस सोच ने मुझे खुद से सवाल पूछने पर मजबूर किया—क्यों गाड़ी चलाना केवल पुरुषों का काम माना जाता है? क्यों महिलाएं रात में स्वतंत्र रूप से घूम नहीं सकतीं? क्यों किसी संगठन में महिलाओं की नेतृत्व क्षमता को लोग सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते? मेरे शांत स्वभाव और धीमी आवाज़ के कारण मुझसे सवाल किया गया कि मैं पत्रकारिता कैसे करूंगी। लेकिन ‘खबर लहरिया’ के मंच पर काम शुरू करते ही मेरे अंदर आत्मविश्वास जागा। ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान मुझे समझ आया कि पत्रकार बनने के लिए केवल तेज़ आवाज़ या बेबाक व्यक्तित्व की जरूरत नहीं होती, बल्कि सही विचार और मेहनत से भी आप अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
आगे का सफर
‘खबर लहरिया’ और ‘फेमिनिज़म इन इंडिया’ जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने मुझे नारीवादी विचारधारा को समझने में मदद की। अब नारीवाद मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है। मेरा मानना है कि नारीवाद का मतलब मातृसत्ता स्थापित करना नहीं है, बल्कि समाज में समानता लाने और अपने अनुभवों को साझा करने से है। अभी मुझे बहुत कुछ सीखना और समझना बाकी है। लेकिन, मैं यह जरूर चाहती हूं कि अपने अनुभवों के ज़रिए लोगों को यह समझा सकूं कि नारीवाद सिर्फ़ एक विचार नहीं, बल्कि एक बदलाव की शुरुआत है।