ग्राउंड ज़ीरो से दिल्ली के वायु प्रदूषण में जूझते दिहाड़ी मजदूरों का संघर्ष

दिल्ली के वायु प्रदूषण में जूझते दिहाड़ी मजदूरों का संघर्ष

दिल्ली में स्थित सराय काले खां में कबाड़ी चुनने से लेकर उसे बेचने और अलग-अलग छांटने का काम किया जाता है। 49 वर्षीय ज़रीना हर दिन तीन सौ रुपये कमाने की आस में बारह किलोमीटर की दूरी तय करके वहां काम करने आती है। अभी दिल्ली की हवा बेहद जहरीली हो गई है।

दिल्ली की बदलती वायु प्रदूषण ने लोगों का जीवन गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इसकी वजह से लोगों को तरह-तरह के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। हालांकि प्रदूषण से सभी प्रभावित होते हैं लेकिन, अगर वायु प्रदूषण की बात करें, तो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित ‘डेली वेज वर्कर’ यानी दिहाड़ी मजदूर होते हैं। दिल्ली में हर साल सर्दी की शुरुआत होते ही आंखों में जलन और सांस फूलने की समस्या आम हो जाती है। एक समय ऐसा भी आता है जब दिल्ली धुंध के चेम्बर में तब्दील होती नजर आती है। साल दर साल बढ़ता प्रदूषण और जहरीली हवा लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। इस बीच दिहाड़ी मजदूरों की चुनौतियों और समस्याओं को समझने के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने कुछ लोगों से बातचीत की।

सराय काले खां में दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी

दिल्ली में स्थित सराय काले खां में कबाड़ी चुनने से लेकर उसे बेचने और अलग-अलग छांटने का काम किया जाता है। 49 वर्षीय ज़रीना हर दिन तीन सौ रुपये कमाने की आस में बारह किलोमीटर की दूरी तय करके वहां काम करने आती है। अभी दिल्ली की हवा बेहद जहरीली हो गई है। यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली में प्रदूषण फैला हुआ है। लगभग हर साल का यही हाल रहता है। नवंबर महीने से दिल्ली की हवा बेहद जहरीली हो जाती है। जब दिल्ली की हालत इतनी खराब हो, तब घर से निकलना तक मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय में भी ज़रीना के लिए खुले आसमान के नीचे बैठकर काम करना और सांस लेना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसके बावजूद उन्हें हर रोज काम पर आना पड़ता है ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके। उनके परिवार में पति के साथ एक लड़का और एक लड़की भी है। लड़का अभी छोटा है और पढ़ाई नहीं करना चाहता, इसलिए छोटा-मोटा काम करता है। उनकी लड़की खेल में अपना करियर बनाना चाहती है और रोज प्रैक्टिस करने जाती है।

जब दिल्ली की हालत इतनी खराब हो, तब घर से निकलना तक मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय में भी ज़रीना के लिए खुले आसमान के नीचे बैठकर काम करना और सांस लेना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसके बावजूद उन्हें हर रोज काम पर आना पड़ता है ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके।

कैसे प्रदूषण से दिहाड़ी मजदूर हो रहे हैं प्रभावित

तस्वीर साभार: Reddif

दिल्ली की खराब हवा की बात करें तो भले ही प्रदूषण में कुछ गिरावट आई हो, लेकिन वायु गुणवत्ता अभी भी बेहद खराब बनी हुई है। ऐसे में सबसे ज्यादा प्रभावित दिहाड़ी मजदूर हैं। जब भी मौसम में बदलाव होता है, तब सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं ‘डेली वेज वर्कर्स’ को होता है। इस विषय पर ज़रीना कहती हैं, “कोई भी मौसम हो, सुबह 6 बजे घर से निकलना ही होता है। अगर न निकलूँ तो उस दिन का पैसा नहीं मिलता। जिस दिन पैसा न हो, उस दिन खाने को लेकर बहुत सोचना पड़ता है। अभी दिल्ली की हवा इतनी भयावह है कि घर से निकलते ही आंखों में जलन शुरू हो जाती है। लगता है कुछ आंखों में चुभ रहा है और सारा दिन सिर में दर्द बना रहता है। कभी-कभी तो जोड़ों में भी दर्द होता है। हमेशा मेडिकल स्टोर से दवा लेकर रखती हूं क्योंकि इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। अस्पताल जाने पर एक दिन का काम छूट जाएगा और जिस दिन काम पर न जाऊं, उस दिन खाना शायद ही नसीब हो पाए।”

वायु प्रदूषण बन चुका है ‘साइलेंट किलर’

जब दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की बात करते हैं, तब पाते हैं कि हर साल अखबारों में बड़े-बड़े अक्षरों में खबरें छापी जाती हैं। लेकिन फिर भी इतनी चर्चाओं और प्रयासों के बावजूद, इस समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। पूरे भारत के लिए वायु प्रदूषण एक ‘साइलेंट किलर’ बन चुका है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण के कारण साल 2021 में वैश्विक स्तर पर 8.1 मिलियन लोगों की मौत हुई, जो मृत्यु का दूसरा प्रमुख जोखिम कारक बन गया है। इसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं। कुल मौतों में से, हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह, फेफड़ों के कैंसर और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी बीमारियां लगभग 90 फीसद हैं।

तस्वीर में ज़रीना, साभार: ज्योति कुमारी

वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली ही नहीं, भारत के कई अन्य क्षेत्र भी प्रभावित होते हैं। सवाल उठता है कि आखिर क्यों सर्दियों की शुरुआत होते ही प्रदूषण और बढ़ जाता है? दरअसल, पूरे साल उत्सर्जन का स्तर खराब बना रहता है। लेकिन सर्दियों में विशेष रूप से उत्तरी भारत में यह खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। सर्दियों के महीने अपने साथ तापमान में बदलाव जैसी परिस्थितियां लाते हैं। ठंडी हवा जमीन के पास बनी रहती है और हवा की गति धीमी हो जाती है, जिससे प्रदूषक कण वातावरण में ऊपर नहीं उठ पाते। इसके अलावा, पराली जलाने की समस्या भी प्रदूषण को बढ़ाती है।

कोई भी मौसम हो, सुबह 6 बजे घर से निकलना ही होता है। अगर न निकलूँ तो उस दिन का पैसा नहीं मिलता। जिस दिन पैसा न हो, उस दिन खाने को लेकर बहुत सोचना पड़ता है। अभी दिल्ली की हवा इतनी भयावह है कि घर से निकलते ही आंखों में जलन शुरू हो जाती है। लगता है कुछ आंखों में चुभ रहा है और सारा दिन सिर में दर्द बना रहता है।

प्रदूषण में काम करते मजदूरों का भविष्य

हरियाणा के रहने वाले 45 वर्षीय साहिल यमुना किनारे एक बस्ती में रहते हैं और कचरे से प्लास्टिक छांटने का काम करते हैं। वे कहते हैं, “हर साल दिल्ली का यही हाल होता है। सरकारें आती-जाती रहती हैं, लेकिन बदलाव नहीं होता। मैं दस साल से यहां रहकर कचरे से प्लास्टिक छांटने का काम करता हूं। दिल्ली की खराब हवा में रह पाना बहुत कठिन है। जब सर्दी की शुरुआत होती है, तो आंखों की रोशनी कम होने लगती है। जलन के कारण धुंधला दिखता है, घबराहट होती है और सांस लेने में परेशानी होती है। कभी-कभी अस्थमा जैसा महसूस होता है, लेकिन इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।” ग्लोबल अस्थमा 2022 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अस्थमा से पीड़ित एक कम आय वाले व्यक्ति को अपनी बचत का 80 प्रतिशत हिस्सा दवाइयों पर खर्च करना पड़ सकता है।

चुनावी वादे और हकीकत

तस्वीर साभार: ज्योति कुमारी

हर साल जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और हाशिये के समुदायों को होता है। उनके लिए इलाज कराना आसान नहीं होता। साथ ही, वे ऐसे परिस्थिति में रहते हैं जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन का ज्यादा मार झेलता है। चुनाव के दौरान सरकारें वादा करती हैं कि दिल्ली को साफ-सुथरा बना दिया जाएगा। लेकिन असल में ऐसा हो नहीं पाता। हालांकि इसका एक कारण ये भी है कि एक महानगर और देश की राजधानी होने के बावजूद लोगों में पर्यावरण के संबंध में सीमित जानकारी और जागरूकता है या बिल्कुल नहीं है।

प्रदूषण के विषय पर साहिल कहते हैं, ‘दस साल पहले जब मैं हरियाणा से दिल्ली काम करने आया था, तब मुझे रोज के 400 रुपये मिलते थे। दस साल बाद अब मुझे 500 रुपये मिलते हैं। इतने में क्या ही बचत कर पाऊं? जिसके पास ढेरों जिम्मेदारियां हो और कमाई न हो, उसके लिए इलाज कराना ही मुश्किल है। सरकारी अस्पताल में जाओ तो कोई पूछता तक नहीं। चार-पांच दिन लाइन में लगने के बाद कहीं नंबर आता है। ऐसे में चाहे हवा कितनी भी जहरीली हो जाए, हम तो यही चाहेंगे कि काम न रुके। इसलिए बीमार होकर भी काम पर जाना पड़ता है।”

दिल्ली की खराब हवा में रह पाना बहुत कठिन है। जब सर्दी की शुरुआत होती है, तो आंखों की रोशनी कम होने लगती है। जलन के कारण धुंधला दिखता है, घबराहट होती है और सांस लेने में परेशानी होती है। कभी-कभी अस्थमा जैसा महसूस होता है, लेकिन इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।

क्या हो सकता है आगे का रास्ता

दिल्ली में प्रदूषण की समस्या पिछले कुछ सालों से गहरी चिंता का विषय बनी हुई है। सर्दियों के मौसम में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) गंभीर श्रेणी में पहुंच जाता है। 2024 के अंत में भी प्रदूषण स्तर चिंताजनक रहा, जब कई इलाकों में AQI 400 के पार दर्ज किया गया। विशेषज्ञों के अनुसार, वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्यों की धूल, औद्योगिक उत्सर्जन और पराली जलाने की घटनाएं इस स्थिति के प्रमुख कारण हैं। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में PM2.5 और PM10 कणों का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के मानकों से कई गुना अधिक है।

सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) लागू किया है और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने की दिशा में कदम उठाए हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण से निपटने के लिए दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है, जिसमें लोगों की भागीदारी भी महत्वपूर्ण होगी। लेकिन, दिल्ली में बढ़ता वायु प्रदूषण एक जटिल समस्या है। जब भी जलवायु परिवर्तन होता है या प्रदूषण बढ़ता है, तब सबसे ज्यादा नुकसान दिहाड़ी मजदूरों को होता है। उन्हें काम मिलना बंद हो जाता है और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। जीने का कोई और साधन न होने के कारण वे हर परिस्थिति में काम करने के लिए मजबूर होते हैं।

दिल्ली के बदलते मौसम का सही हाल उन्हीं लोगों से समझा जा सकता है जिनके पास जीवन जीने के लिए बेहद सीमित साधन हैं। दिल्ली में बढ़ता वायु प्रदूषण न केवल पर्यावरणीय संकट है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को भी बढ़ा रहा है। खासतौर पर दिहाड़ी मजदूर जैसे समुदाय, जो पहले से ही आर्थिक तंगी और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, प्रदूषण के इस कहर से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। सरकार को प्रदूषण नियंत्रण के उपायों के साथ-साथ इन समुदायों की स्वास्थ्य सुरक्षा और आजीविका के संरक्षण के लिए भी दीर्घकालिक नीतियां बनानी होंगी। इसके अलावा, समाज के हर वर्ग को पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भागीदारी निभानी होगी ताकि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण मिल सके।

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