भारतीय सामाजिक व्यवस्था में लैंगिक भेदभाव के चलते महिलाओं और लड़कियों के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों पर खुलकर बात करना एक बड़ी चुनौती है। परिवार नियोजन का सारा भार महिलाओं पर डाल दिया जाता है लेकिन भारत की मशहूर चिकित्सा वैज्ञानिक बानू जहांगीर कोयाजी ने इस दिशा में समय से आगे की सोच के साथ काम किया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में सामुदियक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किए। बानू जहांगीर कोयाजी एक भारतीय चिकित्सक और परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में काम करने वाली सक्रिय कार्यकर्ता थीं। वह पुणे के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल की निदेशक थीं। वह केंद्र सरकार की सलाहकार भी बनीं और अपने प्रयासों की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञ के तौर पर ख्याति हासिल की।
शुरुआती जीवन
बानू पेश्तोंजी कपाड़िया का जन्म 7 सितंबर 1917 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता पेश्तोंजी कपाड़िया एक प्रसिद्ध सिविल इंजीनियर थे। कम उम्र में ही वह पुणे में अपने दादा-दादी के साथ रहने के लिए चली गई थी। माता-पिता की लगातार यात्राओं और अपने दादा-दादी के साथ अधिक समय गुजारा। उनका जीवन सुविधा और विलासिता के बीच गुजरा। अपने दादा-दादी के साथ रहते हुए, बानू सेंट विंसेंट स्कूल, जो कि एक लड़कों का स्कूल था, से मैट्रिक करने वाली पहली लड़की बनीं। इसके बाद उन्होंने कॉन्क्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी में पढ़ाई की, वह अक्सर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती थीं। कॉन्क्वेंट स्कूल की शिक्षा के बाद, उन्होंने सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा दी और पांच विषयों में डिस्टिंक्शन हासिल की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज से प्री-मेडिकल कोर्स किया और फिर ग्रांट मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा (एम.डी.) की डिग्री प्राप्त की, जहां से वह 1940 में स्नातक हुईं।
साल 1972 में, डॉ. बानू जहांगीर कोयाजी ने वादु में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया, जो बाद में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की सेवा करने वाला एक बड़ा अस्पताल बन गया। 1977 में, उन्होंने ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य को सुधारने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम शुरू किया।
डॉ. बानू ने अपनी रेजिडेंसी के दौरान प्रसिद्ध डॉ. वी.एन. शिरोधकर के मार्गदर्शन में स्त्री रोग विशेषज्ञ बनने का प्रशिक्षण लिया, लेकिन जब वह 1943 में पुणे लौटीं, तो उन्होंने डॉ. एडुलजी कोयाजी के साथ जनरल प्रैक्टिस करनी शुरू की। साल 1937 में उनकी महाबलेश्वर में मुलाकात जहांगीर कोयाजी से हुई। जहांगीर पेशे से इंजीनियर थे और उन्होंने पर्ड्यू यूनिवर्सिटी से अपनी डिग्री पूरी की थी। साल 1941 में बानू और जहांगीर की शादी हुई थीं। 7 अगस्त 1942 को दंपति के घर पहले बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम कुरुस रखा गया। 1943 में, उन्होंने पुणे में एक घर बनाया और वहीं बस गए।
अपने मेडिकल करियर की शुरुआत उन्होंने प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में की थीं। अप्रैल 1944 में, सरदार मूडलियार ने डॉ. एडुलजी कोयाजी से अनुरोध किया कि वह एक उच्च प्रशिक्षित डॉक्टर की सिफारिश करें, जो पुणे में स्थित एक छोटे मातृ देखभाल अस्पताल, किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल का कार्यभार संभाल सके। डॉ. एडुलजी कोयाजी ने इस पद के लिए डॉ. बानू जहांगीर कोयाजी का नाम सुझाया और छह महीने बाद, उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी का पद संभाल लिया। लगभग 55 वर्षों तक इस भूमिका में रहते हुए, बानू के मार्गदर्शन में अस्पताल 1944 में 40 बिस्तरों से बढ़कर 1999 तक 550 बिस्तरों तक विस्तारित कर दिया। उन्होंने किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल को एक शिक्षण अस्पताल और शोध संस्थान में बदल दिया और इसे बी. जे. मेडिकल कॉलेज से एफिलिटिड कराया।
ग्रामीण स्वास्थ्य और सार्वजनिक सेवा में योगदान
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साल 1972 में, डॉ. बानू जहांगीर कोयाजी ने वादु में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया, जो बाद में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की सेवा करने वाला एक बड़ा अस्पताल बन गया। 1977 में, उन्होंने ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य को सुधारने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम शुरू किया। इस पहल के तहत, उन्होंने लगभग 600 लड़कियों को स्वच्छता, परिवार नियोजन और पोषण के विषय में प्रशिक्षित किया, ताकि वे अपने समुदायों की सहायता कर सकें। समय के साथ, बानू का यह स्वास्थ्य मॉडल पूरे देश में अपनाया गया।
डॉ. बानू ने यह भी महसूस किया कि कई युवा महिलाओं और माताओं के पास शिक्षा और रोज़गार के लिए आवश्यक कौशल की कमी है। इस समस्या के समाधान के लिए, उन्होंने 1988 में ‘यंग विमेन्स हेल्थ एंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ की स्थापना की। इस परियोजना का उद्देश्य युवा महिलाओं को पढ़ाई और कढ़ाई जैसी आवश्यक कौशल सिखाना था, साथ ही जाति और लैंगिक भूमिकाओं पर संवाद के माध्यम से उन्हें जागरूक बनाना था।
डॉ. बानू ने यह भी महसूस किया कि कई युवा महिलाओं और माताओं के पास शिक्षा और रोज़गार के लिए आवश्यक कौशल की कमी है। इस समस्या के समाधान के लिए, उन्होंने 1988 में ‘यंग विमेन्स हेल्थ एंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ की स्थापना की।
डॉ. बानू को केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य सलाहकार भी बनाया है। इसके अलावा उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानव प्रजनन के वैज्ञानिक और तकनीकी समूह की सदस्यता के रूप में भी काम किया। डॉ. कोयाजी कई प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़ी रहीं। वह विश्व स्वास्थ्य संगठन की महिला स्वास्थ्य और विकास समिति की सदस्य भी रहीं। इनका महत्वपूर्ण योगदान परिवार नियोजन, बाल स्वास्थ्य और जनसंख्या नियंत्रण के लिए रहा। डॉ. बानो जहांगीर परिवार नियोजन की पक्षधर थीं और इसलिए वह इसकी विशेषज्ञ भी बनीं। हालांकि, उन्होंने इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा चलाए जाने के इस फैसले पर असहमति भी जाहिर की। जब इंदिरा गांधी ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया तो उन्होंने परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण पर अपना नजरिया स्पष्ट रूप से उनके सामने रखा था।
डॉ. बानू जहांगीर कोयाजी ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई संस्थाओं में सलाहकार के रूप में योगदान दिया, जैसे- महाराष्ट्र सरकार, भारत सरकार, विश्व बैंक, फोर्ड फाउंडेशन, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष। डॉ. बानो पुणे विश्वविद्यालय की प्रबंधन परिषद की सदस्य और प्रोफेसर एमेरिटस भी थीं। 7 सितंबर 1917 को मुंबई एक पारसी परिवार में जन्मीं चिकित्सा वैज्ञानिक बानू जहांगीर कोयाजी को मेडिकल के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण (1989), पुण्यभूषण पुरस्कार (1992) और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1993) से सम्मानित किया गया। डॉ. बानो जहांगीर कोयाजी ने 15 जुलाई 2004 को हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान परिवार नियोजन, शहरी और ग्रामीण स्वास्थ्य तथा बाल स्वास्थ्य के क्षेत्रों में रहा। डॉ. बानू जहांगीर कोयाजी के दूरदर्शी प्रयासों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और महिलाओं के सशक्तिकरण में अमिट छाप छोड़ी है।