पृथ्वी की अपनी भौगोलिक स्थिति है लेकिन इंसानी सुख-सुविधाएं इसके लिए सबसे बड़ा खतरा है। आज दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी पक्के घरों में रहती है। लेकिन इंसान का पक्का घर इस धरती के लिए कैसा है क्या ये कभी सोचा है? दरअसल रेत-सीमेंट से बनीं इमारतों का निर्माण पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इमारत निर्माण की वजह से बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है जो जलवायु परिवर्तन के संकट को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। विश्व आर्थिक मंच में छपी जानकारी के मुताबिक़ भवन मूल्य श्रृंखला वैश्विक स्तर पर कुल कार्बन उत्सर्जन में 37 फीसदी जिम्मेदार है। जिस तरह से दुनिया में शहरों के आकार बढ़ रहे हैं, लोग ग्रामीण क्षेत्र से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं उससे यह दर तेजी से बढ़ सकती है।
एक अनुमान के मुताबिक़ साल 2050 तक दुनिया की लगभग 70 फीसदी आबादी शहरों में रहेगी। वर्तमान में शहर 70 फीसदी ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। उत्सर्जन को सीमित करने के लिए शहरों की वास्तुकला को हरित (ग्रीन) और टिकाऊ होना ज़रूरी है। जलवायु संकट के लिए भवन निर्माण सेक्टर को हरित करना वक्त की ज़रूरत है। हमें ऐसी इमारतों की ज़रूरत है जो पर्यावरण के अनुकूल हो। इस समाधान के लिए ग्रीन बिल्डिंग्स (हरित इमारत) को बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जाता है। ग्रीन बिल्डिंग्स के निर्माण को अधिक प्रचलित करने की और इससे सबंधित कुशल नीतियों को बनाने की आवश्यकता है।
ग्रीन बिल्डिंग्स निर्माण तकनीक के आधार पर बनी इमारतों और भवनों में पर्यावरण के अनुकूल टिकाऊ कंक्रीट का उपयोग बढ़ने का चलन है। यह पारंपरिक कंक्रीट की तुलना में कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को 60 फीसदी तक घटाता है।
ग्रीन बिल्डिंग्स क्या है?
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ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। इन इमारतों को बनाने की योजना, डिज़ाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव इस प्रकार किया जाता है कि यह प्राकृतिक दक्षताओं का अधिकतम उपयोग हो और उन्हें नवीकरणीय एवं निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकृत करे। यह न केवल इमारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि एक स्वस्थ निर्मित वातावरण भी सुनिश्चित करता है। ग्रीन बिल्डिंग्स के निर्माण का मुख्य लक्ष्य-
- पानी और ऊर्जा की खपत को कम करना
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को न्यूनतम करना
- पर्यावरण-अनुकूल निर्माण सामग्रियों का उपयोग
- लैंडफिल कचरे को कम करना
- नवीकरणीय परिवहन के उपयोग को प्रोत्साहित करना
उच्च प्रदर्शन वाली ग्रीन बिल्डिंग्स, विशेष रूप से एलईईडी (LEED) प्रमाणित इमारतें और उनके निवासियों द्वारा जलवायु पर पड़ने वाले नकारात्मक असर को कम करने के प्रभावी साधन प्रदान करती हैं। एलईईडी (लीडरशिप इन एनर्जी एंड एनवॉयरमेंटल डिजाइन) दुनिया का सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम है। साल 2014 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के एक अध्ययन के अनुसार, एलईईडी मानकों पर निर्मित इमारतों ने पारंपरिक रूप से निर्मित इमारतों की तुलना में निम्नलिखित योगदान किया है। जिसकी वजह से पानी की खपत के कारण 50 प्रतिशत कम, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, ठोस अपशिष्ट के कारण 48 फीसदी कम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन और परिवहन के कारण पांच फीसदी कम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन देखने को मिला है।
ग्रीन बिल्डिंग का निर्माण पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। इन इमारतों को बनाने की योजना, डिज़ाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव इस प्रकार किया जाता है कि यह प्राकृतिक दक्षताओं का अधिकतम उपयोग हो और उन्हें नवीकरणीय एवं निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकृत करे।
ग्रीन बिल्डिंग का इतिहास
1960 के दशक में ग्रीन आर्किटेक्चर की अवधारणा को पेश किया गया। 1970 के दशक में ऊर्जा संकट ने सौर, भू-तापीय और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के विकास और ऊर्जा-कुशल इमारतों को बढ़ावा दिया। इसके बाद 1980 के दशक में “सतत विकास” की अवधारणा ने जोर पकड़ा। कुछ विकसित देशों ने ऊर्जा बचाने वाली इमारतों की प्रणालियों को बड़े पैमाने पर लागू करना शुरू कर दिया। 1990 में, यूनाइटेड किंगडम ने दुनिया का पहला ग्रीन बिल्डिंग मानक पेश किया। इसके बाद, 1993 में यू.एस. ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (USGBC) की स्थापना हुई। 1990 के दशक के अंत में, USGBC ने एलईईडी, ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम को विकसित किया। 1990 के दशक के बाद से, दुनिया भर में विभिन्न एजेंसियों और देशों ने अपने ग्रीन बिल्डिंग कार्यक्रम और मानक अपनाए हैं। ग्रीन बिल्डिंग्स का विचार एक सार्वभौमिक अवधारणा बन चुका है। यह भवन क्षेत्र का एक आवश्यक स्तंभ और वैश्विक ऊर्जा चुनौतियों से निपटने के लिए अकादमिक और औद्योगिक अनुसंधान का मुख्य विषय बन गया है।
ग्रीन बिल्डिंग की पहल और जलवायु परिवर्तन
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ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण से कई स्तर पर प्रकृति के लिए फायदेमंद साबित होते हैं। यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ग्रीन बिल्डिंग कार्बन उत्सर्जन में कमी, प्राकृतिक संसाधनों का कुशल इस्तेमाल, अपशिष्ट प्रबंधन के आधार पर निर्मित की जाती है। ये इमारतें जल संरक्षण और प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती है। जिसमें बारिश के पानी का संचयन मुख्य विशेषता होती है। यह तरीका नगरपालिका जल आपूर्ति पर निर्भरता को कम करने और जल स्तर पुनर्भरण (ग्राउंड वॉटर रिचार्ज) में मदद करता है। साथ ही इनमें ग्रे वॉटर रिसाइकलिंग यानी सिंक और शॉवर के पानी को दोबारा इस्तेमाल करने का प्रबंधन होता है। इस तरह से जल संरक्षण का प्रबंधन इन इमारतों के निर्माण के समय ही लागू कर दिया जाता है।
ग्रीन बिल्डिंग्स निर्माण तकनीक के आधार पर बनी इमारतों और भवनों में पर्यावरण के अनुकूल टिकाऊ कंक्रीट का उपयोग बढ़ने का चलन है। यह पारंपरिक कंक्रीट की तुलना में कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को 60 फीसदी तक घटाता है। इनकी छतों में रूफटॉप सोलर पैनल की स्थापना एक सामान्य विशेषता है, जो साफ, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करने में मदद करता है। इससे इन इमारतों की ग्रिड बिजली पर निर्भरता को कम किया जाता है और कार्बन उत्सर्जन को घटाती है। सौर ऊर्जा के अलावा, ग्रीन बिल्डिंग्स में उपयुक्त क्षेत्रों में पवन टर्बाइन और भू-तापीय प्रणालियां भी शामिल की जा रही हैं। ये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत पारंपरिक ऊर्जा की तुलना में टिकाऊ विकल्प प्रदान करते हैं।
1990 के दशक के बाद से, दुनिया भर में विभिन्न एजेंसियों और देशों ने अपने ग्रीन बिल्डिंग कार्यक्रम और मानक अपनाए हैं। ग्रीन बिल्डिंग्स का विचार एक सार्वभौमिक अवधारणा बन चुका है।
पारंपरिक निर्माण प्रथाएं अक्सर अधिक अपशिष्ट उत्पन्न करती हैं, जिसमें निर्माण सामग्रियों का अधिक प्रयोग, पैकेजिंग और मलबा शामिल हैं। ग्रीन बिल्डिंग पहलों का लक्ष्य इन अपशिष्टों को टिकाऊ प्रथाओं और सामग्रियों का उपयोग करके कम करना है। प्रिफैब्रिकेटेड घटक, जिन्हें साइट से बाहर निर्मित किया जाता है और साइट पर इकट्ठा किया जाता है, निर्माण सामग्री की बर्बादी और समय को महत्वपूर्ण रूप से कम कर सकते हैं। यह विधि भारतीय निर्माण उद्योग में बढ़ती जा रही है, जिससे निर्माण संबंधी अपशिष्ट में कमी आती है। ग्रीन बिल्डिंग्स में पुनर्नवीनीकरण और स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्रियों के उपयोग को प्राथमिकता दी जाती हैं। यह प्रथा नई संसाधनों की मांग को घटाती है और सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देती है। इस तरह की पहल से न केवल पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है, बल्कि निर्माण प्रक्रिया भी अधिक कुशल और टिकाऊ बनती है।
पेरिस समझौते में वैश्विक औसत तापमान को प्रौद्योगिकी-पूर्व स्तरों के मुकाबले दो डिग्री सेल्सियस से कम बढ़ाने की प्रतिबद्धता को लागू करना होगा, और इसके लिए चुनौतियां और समाधान हमारे चारों ओर हैं। वैश्विक स्तर पर, निर्माण और भवन 30 प्रतिशत से अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। अगर हम इसी तरह से चलते रहे, तो यह क्षेत्र वैश्विक तापमान में छह डिग्री सेल्सियल का योगदान देगा। जलवायु संकट की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सामान्य तरीके से काम नहीं कर सकते। इसके लिए हमें व्यापक स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाने होंगे। ग्रीन बिल्डिंग्स सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। यह अधिक सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देती है। सरकारों को विभिन्न नीतियों और योजनाओं के माध्यम से ग्रीन बिल्डिंग के निर्माण को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। सरकारी पहल के तौर पर शहरी विकास में ग्रीन बिल्डिंग प्रैक्टिसेज को शामिल करके सतत शहरी विकास को बढ़ावा देना होगा। ये योजनाएं शहरों की योजना और अवसंरचना परियोजनाओं में ग्रीन बिल्डिंग प्रथाओं को शामिल करके पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा दे सकती हैं।
स्रोतः