इंटरसेक्शनलधर्म अंतरधार्मिक जोड़ों के खिलाफ़ हिंसा: लव जिहाद का नैरेटिव और बढ़ता इस्लामोफोबिया

अंतरधार्मिक जोड़ों के खिलाफ़ हिंसा: लव जिहाद का नैरेटिव और बढ़ता इस्लामोफोबिया

घटना में, दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्यों ने भोपाल की एक जिला अदालत के अंदर एक मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई की, जब वह विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत अपनी हिंदू प्रेमिका के साथ अपनी शादी का पंजीकरण कराने गया था। घटना कैमरे में कैद होने के बावजूद एकमात्र गिरफ्तारी ‘जबरन धर्म परिवर्तन’ के आरोप में खुद सर्वाइवर युवक की ही हुई।

हाल ही में मध्य प्रदेश के भोपाल में और उत्तराखंड के उधम सिंह नगर में दो अंतरधार्मिक जोड़ों के साथ उनके संबंध को लेकर घटनाएं हुई। उन युवाओं की कहानी बताती है कि आज भी हमारे समाज में जो अपने दिल की सुनते हैं और जब सामाजिक पूर्वाग्रह को चुनैती देते हैं, समाज उनके खिलाफ इकट्ठा हो कर खड़ा हो जाता है।  पहली घटना में, दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्यों ने भोपाल की एक जिला अदालत के अंदर एक मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई की, जब वह विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत अपनी हिंदू प्रेमिका के साथ अपनी शादी का पंजीकरण कराने गया था। घटना कैमरे में कैद होने के बावजूद एकमात्र गिरफ्तारी ‘जबरन धर्म परिवर्तन’ के आरोप में खुद सर्वाइवर युवक की ही हुई। दूसरे मामले में, अंतर्धार्मिक विवाह के आवेदन करने के बाद जोड़े के व्यक्तिगत विवरण ऑनलाइन डाल दिए गए, जिसके कारण न केवल लड़की के परिवार से बल्कि रूढ़िवादी समूहों द्वारा भी जोड़े का उत्पीड़न किया गया और विरोध हुआ। 

ये घटनाएं ‘लव जिहाद’ के उस सोच को दर्शाती हैं, जिसे उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की धारा 378 जैसे प्रावधानों के माध्यम से नागरिकों के निजी जीवन में राज्य की बढ़ती घुसपैठ द्वारा जीवित रखा गया है जो लिव-इन रिश्तों को विनियमित करने का प्रयास करता है, और वैचारिक एजेंडे को लागू करने के लिए गैर-राज्य लोगों/कार्यकर्ताओं द्वारा किये गए उनके कार्यों को मौन समर्थन द्वारा जीवित रखा गया है। लव जिहाद शब्द को 2000 के दशक के अंत और 2010 की शुरुआत में प्रमुखता मिलनी शुरू हुई, खासकर भारतीय राज्यों केरल और कर्नाटक में। आउटलुक मैगज़ीन के अनुसार, इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार 2007 में एक उग्र हिंदू राष्ट्रवादी समूह, हिंदू जनजागृति समिति (एचजेएस) के सदस्यों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर अंतरधार्मिक जोड़ों पर ‘पोलिसिंग’ करते समय किया गया था।

पहली घटना में, दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्यों ने भोपाल की एक जिला अदालत के अंदर एक मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई की, जब वह विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत अपनी हिंदू प्रेमिका के साथ अपनी शादी का पंजीकरण कराने गया था। घटना कैमरे में कैद होने के बावजूद एकमात्र गिरफ्तारी ‘जबरन धर्म परिवर्तन’ के आरोप में खुद सर्वाइवर युवक की ही हुई।

इससे संबंधित पहला मामला दक्षिणी भारत के राज्य केरल का था। केरल में 2009 में, दो युवतियां- एक हिंदू, दूसरी ईसाई, अपने मुस्लिम साथी के साथ चली गईं, जो कॉलेज में उनके दोस्त थे। लड़कियों के परिवारों ने लड़कों के खिलाफ़ अपहरण की शिकायत दर्ज कराई और दोनों जोड़ों को स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बाद में सुनवाई के दौरान, अदालत में युवतियां सहमति से जाने वाली बात पर मुकर गयीं और दोनों व्यक्तियों पर जबरन अपहरण करने और उनका धर्म परिवर्तन करने का प्रयास करने का आरोप लगाया। केरल उच्च न्यायालय ने दोनों को इस मामले में सजा सुनाई। यह मामला ‘लव जिहाद’ को संदर्भित करने वाला पहला कानूनी निर्णय था।

लव जिहाद का नैरेटिव

साल 2009 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पुलिस को एक अंतरधार्मिक विवाह मामले से संबंधित ‘लव जिहाद’ के आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया। गहन जांच के बाद, पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में प्रथम दृष्टया ‘लव जिहाद’ का कोई सबूत नहीं मिलता है। 2017 में, केरल में एक हिंदू होम्योपैथी छात्रा की शादी के कारण ‘लव जिहाद’ की अवधारणा ने पूरे भारत में महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया, जिसने इस्लाम धर्म में परिवर्तित होने के बाद हादिया नाम अपनाया था और बाद में शफीन जहां नामक एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी की थी। हादिया के पिता केएम अशोकन ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष इस शादी का विरोध किया और आरोप लगाया कि उसे इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया गया था।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

अदालत ने हादिया को उसके माता-पिता को वापस देते हुए शादी को अमान्य करने का निर्णय दिया था। लेकिन, शफीन ने इस फैसले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। मार्च 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने हादिया के पक्ष में फैसला सुनाया, और अपना धर्म और जीवनसाथी चुनने के उसके अधिकार की पुष्टि की। कानूनी कार्यवाही के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने भारत की प्रमुख आतंकवाद विरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी को मामले के कथित ‘लव जिहाद’ पहलू की जांच करने का भी निर्देश दिया। अक्टूबर 2018 में, एनआईए की जांच ने निष्कर्ष निकाला कि अन्य धर्मों की लड़कियों को इस्लाम में परिवर्तित करने की कोई समन्वित साजिश नहीं थी। 

कानूनी कार्यवाही के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने भारत की प्रमुख आतंकवाद विरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी को मामले के कथित ‘लव जिहाद’ पहलू की जांच करने का भी निर्देश दिया। अक्टूबर 2018 में, एनआईए की जांच ने निष्कर्ष निकाला कि अन्य धर्मों की लड़कियों को इस्लाम में परिवर्तित करने की कोई समन्वित साजिश नहीं थी। 

इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने के लिए ‘लव-जिहाद’ का हथियार

हाल के सालों में, हिंदू फार-राइट समूहों और वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने मुसलमानों के खिलाफ भय और नफरत को बढ़ावा देने के लिए ‘लव जिहाद’ को बड़े पैमाने पर प्रचारित किया और इसे मुसलमानों के खिलाफ एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है। चूंकि भारत हिन्दू बहुल राष्ट्र है, इसीलिए हिन्दुओं के वोट बटोरने के लिए भी राजनेताओं ने लव-जिहाद का भरपूर उपयोग किया। कई राज्यों ने, मुख्य रूप से भाजपा शासित राज्यों ने, ‘लव जिहाद’ को कम करने के उद्देश्य से धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किए।

द वायर में छपी रिपोर्ट अनुसार जनवरी 2023 तक, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सहित 28 भारतीय राज्यों में से कुल 11 ने ऐसे कानून बनाए हैं। ये कानून कथित तौर पर धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए अंतरधार्मिक विवाह को अमान्य कर सकते हैं और इसके लिए 5-10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। द गार्डीअन में छपे एक लेख में कहा गया कि अकेले उत्तर प्रदेश में, नवंबर 2020 और अगस्त 2021 के बीच, पुलिस ने नए धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत 208 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया, जिनमें से सभी मुस्लिम थे।

 ‘लव जिहाद’ नैरेटिव को बढ़ावा देने में सिनेमा और सरकार की भूमिका  

सुदूर-दक्षिणपंथी समूहों ने भी ‘लव जिहाद’ को सामान्य बनाने के लिए सिनेमा का उपयोग किया है। मई 2023 में, फिल्म निर्माता सुदीप्तो सेन ने एक इस्लामोफोबिक फिल्म, ‘द केरल स्टोरी’ रिलीज़ की, जिसमें निराधार दावे का प्रचार किया गया कि हिंदू और ईसाई महिलाओं को इस्लामिक स्टेट (आईएस) में शामिल होने के लिए मुसलमानों द्वारा फंसाया गया था। फिल्म के ट्रेलर ने इस मुद्दे को सनसनीखेज बना दिया, जिसमें दावा किया गया कि 32,000 महिलाओं को कथित तौर पर इस्लाम में परिवर्तित किया गया और उन्हें आईएसआईएस (ISIS) में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया था। तथ्य जाँच वेबसाइट AltNews ने विभिन्न रिपोर्टों का हवाला देते हुए इस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें अमेरिका के विदेश विभाग की एक रिपोर्ट भी शामिल है। इसमें कहा गया था कि नवंबर 2020 तक, आईएसआईएस से जुड़े 66 ज्ञात भारतीय मूल के लड़के थे। मामला केरल उच्च न्यायालय के समक्ष लाया गया, जिससे फिल्म निर्माता को ट्रेलर हटाने और आंकड़े को ‘तीन’ में संशोधित करना पड़ा।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

इस्लामोफोबिक सामग्री के बावजूद, फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को प्रधान मंत्री मोदी सहित भाजपा से पर्याप्त प्रचार मिला, और कई राज्यों में ‘कर’ माफ कर दी गई। इस फिल्म के कारण सांप्रदायिक हिंसा भी हुई। नवंबर 2023 में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा जिले में एक चुनावी रैली में दावा किया कि यह क्षेत्र ‘लव जिहाद’ का केंद्र बन गया है। वरिष्ठ भाजपा नेता और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी लगातार ‘लव जिहाद’ सिद्धांत को बढ़ावा दिया है। धामी ने लव जिहाद मामलों में वृद्धि का आरोप लगाते हुए राज्य पुलिस को मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है। इसके अतिरिक्त, तेलंगाना के विधायक टी राजा सिंह जैसे भाजपा नेताओं ने खुले तौर पर हिंसा और ‘लव जिहाद’ में शामिल व्यक्तियों की हत्या का आह्वान किया है।

द वायर में छपी रिपोर्ट अनुसार जनवरी 2023 तक, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सहित 28 भारतीय राज्यों में से कुल 11 ने ऐसे कानून बनाए हैं। ये कानून कथित तौर पर धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए अंतरधार्मिक विवाह को अमान्य कर सकते हैं और इसके लिए 5-10 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।

धर्मांतरण विरोधी कानून और अंतरधार्मिक विवाहों पर उनका प्रभाव

हाल के सालों में, कई भारतीय राज्यों, मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शासित राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए या प्रस्तावित किए हैं, जिन्हें अक्सर ‘लव जिहाद’ कानून के रूप में जाना जाता है। इन कानूनों का उद्देश्य विवाह के लिए धर्मांतरण सहित धोखाधड़ी या जबरदस्ती के तरीकों से धर्मांतरण को रोकना है। इन कानूनों ने अंतरधार्मिक विवाहों में जटिलता की एक नई परत जोड़ दी है। इन कानून के मुताबिक जो व्यक्ति विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं, उन्हें जिला मजिस्ट्रेट को धर्म परिवर्तन के अपने इरादे के बारे में सूचित करना होगा। इसके बाद मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने के लिए जांच करने की आवश्यकता होती है कि धर्मांतरण धोखाधड़ी वाले तरीकों से मजबूर या प्रेरित नहीं किया गया है।

तस्वीर साभार: Canva

इन प्रावधानों का अनुपालन करने में विफलता के कारण विवाह रद्द हो सकता है और इसमें शामिल व्यक्तियों के लिए आपराधिक दंड हो सकता है। इन कानूनों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करने और अंतरधार्मिक जोड़ों, विशेष रूप से हिंदू महिलाओं से शादी करने वाले मुस्लिम पुरुषों को लक्षित करने के लिए आलोचना की गई है। कानून अक्सर परिवार के सदस्यों या तीसरे पक्ष को शिकायत दर्ज करने का अधिकार देते हैं, जिससे जोड़े के खिलाफ उत्पीड़न, धमकी और यहां तक ​​कि आपराधिक आरोप भी लगाए जाते हैं।

‘लव जिहाद’ का नैरेटिव धार्मिक भेदभाव और इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देता है, जिससे अंतरधार्मिक प्रेम और विवाह अपराध की तरह दिखाया जाता है। धर्मांतरण विरोधी कानूनों और सामाजिक पूर्वाग्रहों के कारण कई जोड़ों को उत्पीड़न और कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर न्यायिक प्रतिक्रिया

भारतीय न्यायपालिका की धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर मिली-जुली प्रतिक्रिया रही है। 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कई मामलों में व्यक्तिगत गोपनीयता और साथी चुनने के अधिकार को प्राथमिकता दी। भारतीय न्यायपालिका ने सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने और अंतरधार्मिक जोड़ों के अधिकारों की पुष्टि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। न्यायालयों ने प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाते हुए विवाह का अधिकार व्यक्तियों पर छोड़ दिया है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता व संवैधानिक सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। कुछ मामलों में न्यायालयों ने राज्यों की संकीर्ण नीतियों की आलोचना भी की है।

‘लव जिहाद’ का नैरेटिव धार्मिक भेदभाव और इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देता है, जिससे अंतरधार्मिक प्रेम और विवाह अपराध की तरह दिखाया जाता है। धर्मांतरण विरोधी कानूनों और सामाजिक पूर्वाग्रहों के कारण कई जोड़ों को उत्पीड़न और कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, न्यायपालिका ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और साथी चुनने के अधिकार को प्राथमिकता दी है। समाज और सरकार को संविधान के मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए, न कि धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना चाहिए। अंतरधार्मिक विवाहों को सहज बनाने के लिए कानूनी सुधारों और जनजागरूकता की आवश्यकता है।

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