जब भी हम भारत के पूर्वोत्तर हिस्से का जिक्र करते हैं, हम स्वाभाविक ही 7 सिस्टर्स यानि 7 राज्यों के एक समूह की परिकल्पना कर लेते हैं। एक आउट्लाइन बना लेते हैं लोगों का, जिनकी कुछ विशेष शारीरिक संरचना है। वेशभूषा, फूड, आचार-आचरण, जो देश के दूसरे इलाकों से भिन्न हैं। नागालैंड की कवयित्री, एथनोग्राफर और लेखिका तेमसुला आओ इस होमोजेनाइजेसन (एकरूपीकरण) के खिलाफ़ थीं। उनका मानना था कि हर क्षेत्र, हर समुदाय और नस्ल की अलग विशेषताएं हैं, अलग संस्कृति और इतिहास है। उनको स्टेरीओटाइप करके उनका एकरूपीकरण सही नहीं है। इस एकरूपीकरण की बुनियाद पूंजीवाद है, जो सभी जनजातियों के एक समूह में ले आएगा जिससे उनकी वास्तविक पहचान और अस्तित्व मिटने लगेगी और उनके अन्यिकरण (otherization) को बढ़ावा मिलेगा।
तेमसुला आओ का जन्म और शिक्षा

तेमसुला आओ का जन्म असम के जोरहाट में साल 1945 में हुआ था। कम उम्र में ही माता-पिता के गुज़र जाने के बाद उनका और उनके 5 भाई बहनों का बचपन काफी कठिनाइयों में गुजरा। अपनी संस्मरण, “वन्स अपोन अ लाइफ: बर्न्ट करी एण्ड ब्लडी रैग्स” में अपने बचपन को वो एक ‘फ्रेक्चर्ड चाईल्डहुड’ कहती हैं। उनकी 10वीं तक की पढ़ाई गोलाघाट मिशन बोर्डिंग स्कूल से हुई। मैट्रिक के परिणाम आने के पहले ही उनका विवाह उनसे उम्र में काफी बड़े व्यक्ति से हो गया। उनकी आगे की शिक्षा उनके बच्चों के जन्म के बाद हुई। उन्होंने अपना स्नातक फ़ज़्ल अली कॉलेज, नागालैंड से, और स्नातकोत्तर की डिग्री गुवाहाटी यूनिवर्सिटी असम से पूरा किया। उन्होंने सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ इंगलिश एंड फॉरेन लैंग्वेजेस (वर्तमान में इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेजेस यूनिवर्सिटी) से डिप्लोमा इन टीचिंग इन इंग्लिश किया।
आओ की कहानियां महिलाओं द्वारा महिलाओं की कहानी का एक बेहतरीन उदाहरण है जो बहुत ही भावनात्मक और निजी लगते हैं। उनकी कहानियों, कविताओं और लेखों में हम नागालैंड के विभिन्न जनजाति के लोगों, जिनमें महिलाओं की कहानियां जो आधुनिकता, विकास और विद्रोह के बीच अपना अस्तित्व तलाश रही हैं, प्रमुखता से दिखते हैं।
वे 1975 में शिलांग के नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी में प्राध्यापिका के तौर पर काम शुरू की और साल 2010 तक अपनी सेवाएं दीं। नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी शिलांग, से पीएचडी करके वह नागालैंड की पीएचडी करने वाली पहली महिला भी बनीं। आओ साल 1985-86 यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा में फुलब्राइट फ़ेलो बनीं। वहां अन्य अमेरिकी मूलवासियों से विचार-विमर्शों के दौरान उन्हें संस्कृति और विरासत के बारे में सीखने को मिला। इससे प्रभावित होकर उन्होंने वापस भारत आकर अपने आओ-नागा समुदाय के रीति-रिवाजों, लोक-गीतों और कथाओं, मिथक और मान्यताओं का गहन अध्ययन किया और साल 1999 में ‘द आओ-नागा ओरल ट्रेडिशन’ लिखा जो अबतक का इस समुदाय पर किया गया सबसे विश्वसनीय एथ्नोग्रैफिक (ethnographic) दस्तावेज़ीकरण था।
उनकी कहानी और कविता संग्रह

बतौर एक कहानीकार आओ ने अपने पूर्वजों के कहानियों द्वारा समाज, संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के मौखिक परंपरा को आगे बढ़ाया और उन कहानियों को पन्नों में उतारा। उनकी पहली कविता संग्रह साल 1988 में ‘सॉन्ग्स दैट टेल’ प्रकाशित हुई। इसके बाद उनकी ‘सोंग्स दैट ट्राइ टू से’, ‘सोंग्स ऑफ मेनी मूड्स’, ‘सोंग्स फ्रॉम हियर ऐंड देयर’, ‘सोंग्स फ्रॉम द अदर लाइफ’ शीर्षक से कविता संग्रह प्रकाशित हुए। साल 2006 में ‘दिज हिल्स कॉल्ड होम: स्टोरीज फ्रॉम वार जोन’ उनकी सबसे पहली कहानी संग्रह है। ये कहानियां दशकों के नागा लोगों के अस्तित्व और स्वतंत्र नागालैंड के संघर्ष के बीच हुई हिंसा के बारे में है। ये कहानियां वहां के युवाओं, वृद्धों, स्त्रियों, बच्चों की है जो सरकार, सेनाओं और विद्रोही संगठनों के बीच हो रही अमानवीय हिंसा के बीच एक सामान्य जीवन की उम्मीद कर रहे हैं।
साल 2006 में ‘दिज हिल्स कॉल्ड होम: स्टोरीज फ्रॉम वार जोन’ उनकी सबसे पहली कहानी संग्रह है। ये कहानियां दशकों के नागा लोगों के अस्तित्व और स्वतंत्र नागालैंड के संघर्ष के बीच हुई हिंसा के बारे में है।
ये कहानियां संवेदनशील, भावनात्मक और व्यक्तिगत होने के साथ साथ वास्तविकता से भरी हैं। उनकी दूसरी कहानी संग्रह साल 2009 में ‘लबरनम फॉर माई हेड’ प्रकाशित हुई। इन कहानियों में भी उन्होंने नागा विद्रोह से प्रभवित आम लोगों की कहानियां लिखी। पुस्तक की शीर्षक कहानी ‘लबरनम फॉर माई हेड’, एक विधवा औरत की आकांक्षा के बारे में है कि उनके मरने पर पारंपरिक मार्बल या ग्रेनाइट की स्मारक की जगह अमलतास का पेड़ लगा हो। वह अमलतास को स्त्रीत्व और विनम्रता का प्रतीक मानती हैं। ‘द टूमस्टोन इन माई गार्डन’ उनकी आखिरी कहानी संग्रह है। इसके अलावा उन्होंने एक उपन्यास ‘आओसेनलाज स्टोरी’ और संस्मरण ‘वन्स अपोन ए लाइफ: बर्न्ट कर्री एंड ब्लडी रैग्स: ए मेमोयर’ भी लिखा है।
उनका काम और पुरस्कार

एक शिक्षिका के साथ-साथ वे साल साल 1992-97 तक पूर्वोत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र दीमापुर की निदेशक रही हैं। साल 2012 से 2019 तक वो नागालैंड के राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष भी रही। अंग्रेजी साहित्य में उनके योगदान के लिए साल 2007 में पद्मश्री, साल 2009 में नागालैंड गवर्नर अवॉर्ड फॉर डिस्टिंक्शन इन लिटरेचर और साल 2015 में कुसुमाग्रज राष्ट्रीय साहित्य सम्मान से भी नवाज़ा गया। उनकी कहानी संग्रह ‘लबरनम फॉर माई हेड’ के लिए उन्हें 2013 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिया गया। एक सवाल के जवाब में वो कहती हैं कि उनकी पहली कविता संग्रह के आने में इसलिए वक़्त लगा क्योंकि एक सिंगल पैरेंट के रूप में 4 बच्चों की परवरिश और यूनिवर्सिटी के पूर्णकालिक शिक्षण कार्य के बीच उनके पास समय का अभाव था। वो ये भी कहती हैं कि क्योंकि वो एक पितृसत्तातमक समाज से आती हैं। उन्हें वो प्रतिष्ठा काफी समय बाद तब मिली, जब उन्हें पद्मश्री पुरस्कार मिला। ये उपलब्धियां अगर किसी पुरुष की होती तो लोग उसका गुणगान कर रहे होते।
साल 2012 से 2019 तक वो नागालैंड के राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष भी रही। अंग्रेजी साहित्य में उनके योगदान के लिए साल 2007 में पद्मश्री, साल 2009 में नागालैंड गवर्नर अवॉर्ड फॉर डिस्टिंक्शन इन लिटरेचर और साल 2015 में कुसुमाग्रज राष्ट्रीय साहित्य सम्मान से भी नवाज़ा गया।
आओ की कहानियां महिलाओं द्वारा महिलाओं की कहानी का एक बेहतरीन उदाहरण है जो बहुत ही भावनात्मक और निजी लगते हैं। उनकी कहानियों, कविताओं और लेखों में हम नागालैंड के विभिन्न जनजाति के लोगों, जिनमें महिलाओं की कहानियां जो आधुनिकता, विकास और विद्रोह के बीच अपना अस्तित्व तलाश रही हैं, प्रमुखता से दिखते हैं। ये कहानियां उनके आम जीवन में घटित हिंसा और उदासी को बयां करती है। इन सबके बीच आओ गांव की वृद्ध कहानीकार बनकर आती हैं, जिसका मकसद उनकी कहानियों को संरक्षित कर भूत, वर्तमान और भविष्य के बीच पुल बनकर भावी पीढ़ी को अपने पूर्वजों से जुड़ा रखना है। उनके अनुसार इन कहानियों के बिना हम अपने अस्तित्व को खो देंगे।
वो लिखती हैं,
“Grandfather constantly warned
That forgetting the stories
Would be catastrophic:
We would lose our history,
Territory, and most certainly
Our intrinsic identity.
So I told stories…”
(Temsula Ao; “The Old Story Teller”, 2017)
9 अक्टूबर, 2022 को 76 वर्ष की उम्र में तेमसुला आओ का निधन हो गया। एक लेखिका, शिक्षविद, कवि और कहानीकार के रूप में उनका योगदान अभूतपूर्व है। उनका जीवन और उनका लेखन हमेशा हमें लिखने-पढ़ने और संघर्ष करने की प्रेरणा देता रहेगा।