समाजकैंपस क्या शैक्षिक सेटिंग में बच्चियों के खिलाफ़ यौन हिंसा को रोका जा सकता है?

क्या शैक्षिक सेटिंग में बच्चियों के खिलाफ़ यौन हिंसा को रोका जा सकता है?

ऑब्जेक्टिव चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज (सीएसए) एक गंभीर मानवाधिकार मुद्दा और सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। दुनिया भर में, यह अनुमान लगाया गया है कि 20 वर्ष से कम आयु की लगभग 120 मिलियन महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के जबरन यौन संपर्क (सेक्शुअल कान्टैक्ट) का अनुभव किया है।

स्कूल। जब हम इस शब्द को सुनते हैं, तो सबसे पहले सामने आती है बच्चों के लिए सीखने, समझने और आगे बढ़ने के लिए एक सुरक्षित जगह। लेकिन, आज के दौर में विशेष कर महिलाएं और हाशिये पर रह रही महिलाएं यौन हिंसा से कहीं भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। संयुक्त राष्ट्र का मूल रूप से उच्च और मध्यम आय वाले 24 देशों के उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि बचपन में यौन हिंसा लड़कियों के लिए 8 फीसद से 31 फीसद और लड़कों के लिए 3 फीसद से 17 फीसद तक है। द प्रिन्ट में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के 200 शहरों के 1,635 स्कूलों से विद्यार्थियों में 36 फीसद स्कूलों ने निश्चित रूप से उन्हें पॉस्को  अधिनियम के बारे में बताया है और 33.9 फीसद स्कूलों ने यौन शोषण पर कार्यशालाएं आयोजित की हैं। इसके अलावा, 13.4 फीसद स्कूलों में यौन उत्पीड़न समिति मौजूद है और 17.4 फीसद स्कूलों में वार्षिक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी होते हैं।

लेकिन, आए दिन अखबारों में किशोरियों और बच्चियों के खिलाफ़ यौन हिंसा की खबरें आम हो चुकी है। ये समस्या गंभीर बनती जा रही है क्योंकि इसे हम किसी भी घटना को एकलौती घटना की तरह नहीं ले सकते। साल 2013-2023 तक के युवा जोखिम व्यवहार सर्वेक्षण डेटा सारांश और रुझान रिपोर्ट के विश्लेषण के अनुसार, अमेरिका में हाई स्कूल की 17 फीसद लड़कियों को स्कूल में यौन हिंसा का सामना करना पड़ा। लड़कों के लिए यह 6 प्रतिशत और एलजीबीटीक्यूआई+ बच्चों के लिए बढ़कर 20 फीसद हो जाता है। चार महाद्वीपों के 20 देशों के डेटा से पता चलता है कि बचपन में यौन हिंसा एक बड़ा मुद्दा है, जिसमें लड़कियों के लिए आजीवन प्रचलन दर 4.4 फीसद से 37.2 फीसद और लड़कों के लिए 1.1 फीसद से 21.2 फीसद है। एलजीबीटीक्यूआई+ विद्यार्थी, विकलांग लड़कियां और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदायों, धार्मिक अल्पसंख्यक और स्वदेशी समुदाय से आने वाले बच्चों को यौन हिंसा सहित लिंग आधारित हिंसा का अधिक सामना करना पड़ता है।

ऑब्जेक्टिव चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज (सीएसए) एक गंभीर मानवाधिकार मुद्दा और सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। दुनिया भर में, यह अनुमान लगाया गया है कि 20 वर्ष से कम आयु की लगभग 120 मिलियन महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के जबरन यौन संपर्क (सेक्शुअल कान्टैक्ट) का अनुभव किया है।

बच्चों के साथ यौन हिंसा मानवाधिकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य का विषय   

यौन हिंसा, हिंसा का एक क्रूर तरीका है, जहां बच्चों, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों के एजेंसी को नजरन्दाज़ और ‘कॉन्सेंट’ की अहमियत को दरकिनार किया जाता है। इसलिए, इसकी गहराइयों को समझने के लिए जरूरी है कि लैंगिक हिंसा को महज ‘हिंसा’ के खांचे के बाहर जातीय, धार्मिक, सामुदायिक और सामाजिक समस्या की तरह समझने की कोशिश की जाए। ऑब्जेक्टिव चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज (सीएसए) एक गंभीर मानवाधिकार मुद्दा और सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। दुनिया भर में, यह अनुमान लगाया गया है कि 20 वर्ष से कम आयु की लगभग 120 मिलियन महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के जबरन यौन संपर्क (सेक्शुअल कान्टैक्ट) का अनुभव किया है।

तस्वीर साभार: Canva

हालांकि लड़कों के खिलाफ़ यौन हिंसा के लिए कोई वैश्विक अनुमान उपलब्ध नहीं है, लेकिन, मुख्य रूप से 24 उच्च और मध्यम आय वाले देशों के डेटा से पता चलता है कि लड़कियों में इसका प्रसार 8 फीसद से 31 फीसद और 18 वर्ष से कम उम्र के लड़कों में 3 फीसद से 17 फीसद तक है। सीएसए की प्रकृति और प्रकार को समझना जरूरी है क्योंकि यौन हिंसा के प्रभाव की गंभीरता न सिर्फ हिंसा  के प्रकार पर निर्भर करती है बल्कि हिंसा कितने समय तक की गई, पर भी निर्भर करती है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यौन हिंसा करने वाला कोई विश्वसनीय जाना-पहचाना व्यक्ति है या कोई अजनबी।

नासर के खिलाफ़ 265 से भी अधिक महिलाओं ने कहा कि उन्होंने चिकित्सा उपचार करने के बहाने उनका यौन शोषण किया, जिनमें यूएसएजी की कई पूर्व राष्ट्रीय टीम के सदस्य भी शामिल थीं। लेकिन, सोचने वाली बात है कि कैसे एक व्यक्ति ने सालों; लड़कियों का यौन शोषण, उन्हें यह कहकर किया कि वे उनकी चिकित्सा और सामान्य जांच कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि जिन वयस्कों ने शारीरिक, यौन और भावनात्मक दुर्व्यवहार सहित 4 या चार से ज्यादा बार बचपन में ऐसा अनुभव किया है, उनमें सर्वाइवर या अपराधी के रूप में पारस्परिक हिंसा में शामिल होने की संभावना 7 गुना अधिक है और आत्महत्या से मौत का प्रयास करने की संभावना 30 गुना अधिक है। वहीं, 20 में से 1 पुरुष ने 12 साल से कम उम्र के बच्चों के प्रति ऑनलाइन सेक्सुअलाइस्ड व्यवहार की बात स्वीकार की। बच्चों के खिलाफ़ यौन हिंसा दुनिया के कई हिस्सों में एक व्यापक मुद्दा है। हालांकि यह सभी बच्चों को प्रभावित करता है, साइंस डायरेक्ट में छपे एक शोध मुताबिक यह मुख्य रूप से जेंडर आधारित है, जिसमें लगभग 90 फीसद सर्वाइवर महिलाएं हैं।

शैक्षिक संस्थानों में यौन हिंसा बंद करना जटिल क्यों है

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

बच्चों के खिलाफ़ यौन हिंसा को समाप्त करना एक जटिल मुद्दा है। इसका मूल कारण न सिर्फ काम्प्रीहेन्सिव सेक्शुअल एजुकेशन की कमी है, बल्कि अक्सर कानून और सांस्कृतिक मानदंडों में रूढ़िवाद और पूर्वाग्रह मौजूद है, जिसे आमतौर पर बदलना ही चुनौती है। छोटे बच्चों में, यौन हिंसा या उत्पीड़न के तरीकों में प्रलोभन और लालच, जबरदस्ती और धमकी शामिल होना आम हैं। बच्चों का सेक्शुअल एजुकेशन की कमी में ये समझना मुश्किल है कि उसके खिलाफ़ यौन हिंसा की जा रही है, खासकर तब उन्हें प्यार, स्नेह और यौन शोषण के बीच अंतर न पता हो। इसे अमेरिका जिमनास्टिक्स यौन शोषण घटना से समझा जा सकता है। ये 1990 के दशक की घटना है जहां अमेरिका में दो दशकों में हजारों जिमनास्टों, मुख्य रूप से नाबालिगों के साथ यौन शोषण किया गया। यूएसए जिमनास्टिक्स और मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी ने दशकों तक लैरी नासर को नियुक्त रखा। उनके पूर्व रोगियों के अनुसार, जब उनके बारे में शिकायतें की गईं तो उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।

बच्चों के खिलाफ़ यौन हिंसा दुनिया के कई हिस्सों में एक व्यापक मुद्दा है। हालांकि यह सभी बच्चों को प्रभावित करता है, साइंस डायरेक्ट में छपे एक शोध मुताबिक यह मुख्य रूप से जेंडर आधारित है, जिसमें लगभग 90 फीसद सर्वाइवर महिलाएं हैं।

युवा जिमनास्ट के अनुसार नासर एक अद्भुत डॉक्टर थे। नासर के खिलाफ़ 265 से भी अधिक महिलाओं ने कहा कि उन्होंने चिकित्सा उपचार करने के बहाने उनका यौन शोषण किया, जिनमें यूएसएजी की कई पूर्व राष्ट्रीय टीम के सदस्य भी शामिल थीं। लेकिन, सोचने वाली बात है कि कैसे एक व्यक्ति ने सालों; लड़कियों का यौन शोषण, उन्हें यह कहकर किया कि वे उनकी चिकित्सा और सामान्य जांच कर रहे हैं। इसलिए, सेक्शुअल एजुकेशन के साथ-साथ बच्चों, विशेषकर लड़कियों को ये विश्वास होना जरूरी है कि वो खुलकर अपने परिवार या करीबी व्यक्ति को यौन हिंसा के बारे में न सिर्फ बता सकती हैं बल्कि उसपर विश्वास भी किया जाएगा। इसके लिए उन्हें शर्मिंदा या उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा। कई बार सर्वाइवर शर्म और झिझक के कारण भी यौन हिंसा का खुलासा नहीं कर पाते और न्याय, पुनर्वास या सहायता की मांग नहीं करते। कई सर्वाइवरों के लिए, उनके बाल शोषण का अनुभव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करता है, और कभी-कभी इसके परिणाम आजीवन भी देखे जा सकते हैं।

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भारत में कई मामलों में स्कूलों में या स्कूल के आस-पास लड़कियों के खिलाफ़ यौन हिंसा की घटना होती है। अनेक कारणों में एक प्रमुख कारण स्कूलों में पर्याप्त शौचालयों की कमी है, जिससे लड़कियां एकांत स्थानों में शौच के लिए जाने को मजबूर होती हैं। इससे यौन हिंसा का जोखिम बढ़ जाता है। अलग शौचालय बनने से  लड़कियों को खुले में शौच से जुड़ा खतरा कम होगा और साथ ही लड़कियां मिश्रित-जेंडर शौचालयों में यौन उत्पीड़न के डर से बच सकेंगी। कुछ रिपोर्ट अनुसार देश में एक-चौथाई छात्राएं पीरियड्स के दौरान जेंडर नूट्रल शौचालयों की कमी के कारण स्कूल नहीं जाती हैं। वहीं, 22 फीसद स्कूलों में अभी भी लड़कियों के लिए उपयुक्त सुविधाएं नहीं हैं। इसके अलावा, साल 2018 में दर्ज बलात्कार के 30 फीसद मामले 18 साल से कम उम्र की सर्वाइवरों से जुड़े थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में बाल शोषण के मामलों में 8.7 फीसद की वृद्धि देखी गई। साल 2022 में, बाल बलात्कार और पेनेट्रेटिव यौन हिंसा के दर्ज मामले साल 2021 में 36,381 से 38,911 तक पहुंच गए।

हालांकि लड़कों के खिलाफ़ यौन हिंसा के लिए कोई वैश्विक अनुमान उपलब्ध नहीं है, लेकिन, मुख्य रूप से 24 उच्च और मध्यम आय वाले देशों के डेटा से पता चलता है कि लड़कियों में इसका प्रसार 8 फीसद से 31 फीसद और 18 वर्ष से कम उम्र के लड़कों में 3 फीसद से 17 फीसद तक है।   

पॉस्को अधिनियम और कानूनन व्यवस्था

बाल यौन अपराध निवारण अधिनियम पॉस्को 2012 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति (जिसमें बच्चा भी शामिल है), जिसे इस अधिनियम के तहत अपराध किए जाने की आशंका है या उसे पता है कि ऐसा अपराध किया गया है, उसे ऐसी जानकारी विशेष किशोर इकाई; या स्थानीय पुलिस को देनी चाहिए। लेकिन, कई सर्वाइवर न सिर्फ नासमझी और शर्म के कारण कभी भी इसका खुलासा नहीं करते और/या न्याय, पुनर्वास या सहायता की मांग नहीं करते। कई पीड़ितों और उत्तरजीवियों के लिए, उनके बाल दुर्व्यवहार का अनुभव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करता है, और कभी-कभी इसके आजीवन परिणाम होते हैं। माता-पिता और देखभाल करने वाले अक्सर यौन शोषण से जुड़े कलंक और भेदभाव से लेकर कानूनी प्रक्रियाओं और प्रणालियों के डर तक कई कारणों से सीएसए की रिपोर्ट करने में झिझकते हैं।

यौन शोषण की रोकथाम पर स्कूल-आधारित शिक्षा कार्यक्रम बच्चों के ज्ञान और सुरक्षात्मक व्यवहार को बढ़ा सकते हैं, लेकिन इससे हिंसा की घटनाओं की संख्या में पूरी तरह कमी नहीं आती है। इन कार्यक्रमों को बाल यौन शोषण को रोकने के लिए सामुदायिक दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए। ये भी जरूरी है कि न सिर्फ हम कानून का सख्ती से पालन पर ज़ोर दें बल्कि घरों और स्कूलों में सेक्शुअल एजुकेशन को शुरू करें। साथ ही, ये सुनिश्चित करना होगा कि हम यौन हिंसा के मामलों में इसकी जवाबदेही सर्वाइवर पर न डालें।

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