हाल ही में द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट अनुसार देश की राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर समय से व्हीलचेयर न मिल पाने की वजह से एक 82 वर्षीय महिला बेहोश हो गई। इस दुर्घटना में उन्हें चोटें भी आईं और अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। हालांकि एयर इंडिया ने इसका खंडन करते हुए दावा किया कि यात्री निर्धारित समय से देरी से पहुंचे और पीक डिमांड होने की वजह से उन्हें इंतज़ार करना पड़ा। परिवार ने नागरिक उड्डयन विभाग और एयर इंडिया में शिकायत दर्ज़ करते हुए जवाबदेही की मांग की है, जिससे ज़रूरतमंद व्यक्तियों को सही समय पर सुविधाएं सुनिश्चित की जा सकें। इससे देश के सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की समावेशिता और उपलब्धता को लेकर व्यापक विमर्श शुरू हो गया है।
भारत सरकार के अंतर्गत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में विकलांग सशक्तीकरण विभाग का उद्देश्य विकलांगों के सशक्तीकरण, समावेशन और समान अवसर की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। इसके लिए मंत्रालय समय-समय पर अनेक नीतियां और योजनाएं चलाता रहता है। साल 2011 की जनगणना के हिसाब से देश में विकलांग व्यक्तियों की कुल संख्या 2.68 करोड़ है, जो देश की कुल आबादी का 2.21 फीसद है। हालांकि 2025 में यह संख्या निश्चित तौर पर काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई होगी। विकलांग व्यक्तियों को मुख्यधारा में लाने और इनके सशक्तीकरण के लिए 1995 में विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम बनाया गया था।
मुझे नहीं पता सरकार ने हमारी सुविधा के लिए कौन सी योजनाएं चलाई हैं। असुविधा से बचने के लिए मैं ज़्यादातर घर में ही रहती हूं और अगर कहीं जाना भी होता है तो परिवार में से किसी को साथ लेकर ही जा पाती हूं। वैसे सरकारी ऑफिसेज में कुछेक में अलग से व्यवस्था देखने को मिलती है लेकिन स्कूलों और कॉलेजों में अभी बहुत सुधार किया जाना बाकी है।
अब इसकी जगह 2016 में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम पारित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित करना है। इसी के तहत पिछले कुछ वर्षों में भारत में विकलांग व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को सुलभ कराने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं। सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign – AIC) जैसे कार्यक्रम ख़ास तौर पर सार्वजनिक जगहों पर विकलांग व्यक्तियों की पहुंच और सुविधाएं सुलभ कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसके बावजूद अभी ये सुविधाएं देश के सभी हिस्सों तक नहीं पहुंच पाई हैं, जिसकी वजह से इस दिशा में बड़े पैमाने पर प्रयास किया जाना ज़रूरी है।
क्या है मौजूदा योजनाएं और विकलांग लोगों की चुनौतियां

साल 2015 में शुरू किया गया सुगम्य भारत अभियान भारत सरकार की एक पहल है, जिसका मकसद विकलांग व्यक्तियों के लिए तीन प्रमुख क्षेत्रों में सुधार करना है। इसमें सार्वजनिक भवन और बुनियादी ढांचा, यातायात व्यवस्था और सूचना और प्रौद्योगिकी शामिल हैं। इसके तहत सार्वजनिक भवनों, कार्यालयों, बस, ट्रेन और हवाई यात्रा जैसे परिवहन और डिजिटल प्लेटफॉर्म को विकलांगों के लिए सुलभ और सुविधाजनक बनाना था। इसके लिए कुछ मानक निर्धारित किए गए, जिसके आधार पर देश में मौजूद विकलांग व्यक्तियों के लिए समावेशी माहौल बनाया जा सके।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट अनुसार देश की राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर समय से व्हीलचेयर न मिल पाने की वजह से एक 82 वर्षीय महिला बेहोश हो गई। इस दुर्घटना में उन्हें चोटें भी आईं और अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
मुम्बई की रहने वाली 33 वर्षीय व्हीलचेयर उपयोगकर्ता सीमा बताती हैं, “मुझे नहीं पता सरकार ने हमारी सुविधा के लिए कौन सी योजनाएं चलाई हैं। असुविधा से बचने के लिए मैं ज़्यादातर घर में ही रहती हूं और अगर कहीं जाना भी होता है तो परिवार में से किसी को साथ लेकर ही जा पाती हूं। वैसे सरकारी ऑफिसेज में कुछेक में अलग से व्यवस्था देखने को मिलती है लेकिन स्कूलों और कॉलेजों में अभी बहुत सुधार किया जाना बाकी है। मुंबई लोकल ट्रेनों में जाने का तो हम सोच ही नहीं सकते, बस और ट्रेनों में भी कोई खास सुविधा नहीं मिल पाती। इन सब के कंपैरिजन में मेट्रो की सुविधाएं फिर भी बेहतर लगती हैं मुझे पर इसमें दिक्कत यह है कि मेट्रो की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं है।”
सरकार के दावे और वास्तविकता
सुगम्य भारत अभियान के तहत पिछले वर्षों में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, परिवहन और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म में सुधार और बदलाव किए गए। सरकारी इमारतों का नवीनीकरण और सांकेतिक भाषा विकसित करने, विकलांग व्यक्तियों के अनुकूल रैंप और व्हीलचेयर की सुविधा सुनिश्चित करने की दिशा में भी बदलाव देखने को मिले। प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की दिसम्बर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 50 शहरों में 1671 सरकारी इमारतों में विकलांगों के लिए सुगमता का ऑडिट किया गया और इनमें से 1,314 इमारतों के नवीनीकरण के लिए 562 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई। इसके साथ ही सभी 35 अंतर्राष्ट्रीय और 55 घरेलू हवाई अड्डों में ब्रेल और श्रवण प्रणाली के साथ रैम्प, दिव्यांगों के लिए विशेष सुलभ शौचालय, हेल्पडेस्क और लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध है।

इसके अलावा 709 रेलवे स्टेशनों को पूरी तरह से जबकि 4,068 को आंशिक रूप विकलांगों के अनुकूल बनाया जा चुका है। इसी तरह 1,45,747 में से 8,695 बसों को पूरी तरह और 42,348 आंशिक रूप से विकलांगों के अनुकूल बनाया जा चुका है। साथ ही देश में मौजूद 3,533 बस स्टेशनों में से 3,120 को सुगम्य बनाया जा चुका है। आंकड़ों को देखते हुए यह लगता है कि देश में विकलांग व्यक्तियों के लिए बड़े पैमाने पर काम किया जा चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद ज़मीनी स्तर पर इन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सार्वजनिक जगहों पर कुछ हद तक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध भी हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों और कस्बों में आज भी इनकी कमी दिखती है। स्कूल, अस्पताल या सरकारी दफ़्तर हों या फिर बस और ट्रेनों के स्टेशन, गांवों और दूर दराज के इलाकों में अभी भी विकलांगों के अनुकूल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
सार्वजनिक जगहों पर कुछ हद तक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध भी हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों और कस्बों में आज भी इनकी कमी दिखती है। स्कूल, अस्पताल या सरकारी दफ़्तर हों या फिर बस और ट्रेनों के स्टेशन, गांवों और दूर दराज के इलाकों में अभी भी विकलांगों के अनुकूल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
इसके अलावा, जिन सार्वजनिक जगहों पर लिफ्ट और रैंप की सुविधा उपलब्ध है वहां पर भी इनकी संख्या सीमित होती है या फिर ये ठीक से काम नहीं कर रहे होते हैं। बस और रेलवे स्टेशनों पर तो दृष्टि और श्रवण बाधितों के लिए अलग से संकेतक भी मौजूद नहीं होते हैं। रेलवे स्टेशनों पर अचानक से प्लेटफ़ार्म बदल दिए जाने या फिर पहले से अनाउंसमेंट न होने और तय जगह पर गाड़ी के डिब्बे न पहुंचने की वजह से बहुत बार विकलांग व्यक्तियों के लिए समस्या खड़ी हो जाती है। इस तरह, तमाम योजनाएं बनती तो हैं पर उनके लागू करने में बहुत बार राजनीति, बजट की कमी, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता जैसी बाधाएं सामने आती हैं।
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के हाथ की सीमित कार्यक्षमता वाले दीपक कुमार (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ जैसे रेलवे स्टेशन पर अक्सर ट्रेनों के रुकने का समय 2 मिनट होता है। इसके साथ ही अचानक से प्लेटफ़ॉर्म बदल देना या गाड़ी की बोगी की जगह पहले से डिस्प्ले बोर्ड पर न दिखाना बेहद तनावपूर्ण होता है। ऐसे में ट्रेन पकड़ पाना एक बड़ी उपलब्धि की तरह होता है। इसी तरह बसों में भी विकलांगों के चढ़ने के लिए कोई अलग व्यवस्था नहीं होती, जिससे कहीं भी आना-जाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।”
सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ जैसे रेलवे स्टेशन पर अक्सर ट्रेनों के रुकने का समय 2 मिनट होता है। इसके साथ ही अचानक से प्लेटफ़ॉर्म बदल देना या गाड़ी की बोगी की जगह पहले से डिस्प्ले बोर्ड पर न दिखाना बेहद तनावपूर्ण होता है।
सार्वजनिक बुनियादी ढांचे हो विकलांग लोगों के अनुरूप
सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को विकलांगों के अनुकूल बनाने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा। इसके अलावा ग़ैर सरकारी संगठनों और नागरिक समाज की भागीदारी बढ़ाने से इन्हें ठीक से लागू कर पाना तुलनात्मक रूप से आसान हो सकता है। सही ढंग से नीतियां बनाने के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी की ज़रूरत को अनदेखा नहीं किया जा सकता। नीतियों और योजनाओं के कुशल प्रबंधन और लागू करने के लिए समय सीमा तय की जानी चाहिए, जिससे समय समय पर समीक्षा कर उनमें जरूरी सुधार किये जा सकें। राज्यों में इनकी निगरानी के लिए स्वतंत्र संस्थाएं बनाई जानी चाहिए, जो समय-समय पर रिपोर्टिंग करती रहें।

इसके साथ ही संबंधित समुदाय और आम जनता से भी फीडबैक लेना अच्छा कदम साबित हो सकता है, जिससे सरकार को ज़मीनी हक़ीक़त की सटीक जानकारी मिल सके। सरकारी इमारतों और सार्वजनिक स्थानों के साथ ही निजी कार्यालयों, स्कूल, कॉलेजों में भी रैंप, लिफ्ट, ऑडियो संकेतक और ब्रेल साइन जैसी सुविधाओं को अनिवार्य किए जाने की ज़रूरत है। ग्लोबल डिसेबिलिटी इनोवेशन हब ने 11 भागीदारों के साथ 2020 से दुनिया के 6 विकासशील शहरों पर एक समावेशी शोध किया, जिसमें भारत का वाराणसी भी शामिल है। शोध में पाया गया कि एशिया प्रशांत महासागर में लगभग 650 मिलियन विकलांग व्यक्ति हैं, भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण ने भेदभाव को और बढ़ाने का काम किया है।
ग्लोबल डिसेबिलिटी इनोवेशन हब ने 11 भागीदारों के साथ 2020 से दुनिया के 6 विकासशील शहरों पर एक समावेशी शोध किया, जिसमें भारत का वाराणसी भी शामिल है। शोध में पाया गया कि एशिया प्रशांत महासागर में लगभग 650 मिलियन विकलांग व्यक्ति हैं, भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण ने भेदभाव को और बढ़ाने का काम किया है।
हालांकि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत टियर-2 शहर वाराणसी को समावेशी शहर बनाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन यहां के घाट और सांस्कृतिक स्थल विकलांग व्यक्तियों के लिए पहुंच योग्य नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार यहां की प्रमुख चुनौतियों में जल, स्वच्छता सेवाओं की कमी और यातायात व्यवस्था का विकलांगों के अनुकूल न होना है। इसे बेहतर बनाने के लिए समावेशी डिजाइन, डिजिटल टूल्स और इंटरैक्टिव मैप के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का सुझाव दिया गया। इसके अलावा नीतियां बनाने में विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी और स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए भी सिफ़ारिश की गई है।
इसके साथ ही न सिर्फ़ बड़े शहरों बल्कि देश के छोटे शहरों, कस्बों और गांवों तक हर जगह इन सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए, जिससे विकलांग समुदाय के सभी व्यक्तियों को उसका लाभ मिल सके। सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता अभियान भी इस दिशा में काफ़ी अहम भूमिका निभा सकते हैं। सरकारी इमारतों, कार्यालयों, सार्वजनिक जगहों और परिवहन को डिजिटलाइज करते समय विकलांगों की विशेष ज़रूरतों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। भारत, स्वीडन, यूएसए और जापान जैसे देशों से भी सीख सकता है, जहां तकनीक का इस्तेमाल कर विकलांग व्यक्तियों के अनुकूल सार्वजनिक जगहों और यातायात को डिजाइन किया गया है। स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से समाधान अपनाए जा सकते हैं। इन प्रयासों से भारत एक ऐसा समावेशी समाज बन सकता है, जहां सभी नागरिक बिना किसी भेदभाव के समान अवसर और सुविधाओं का लाभ ले सकें।