आज के डिजिटल युग में गिग वर्कर्स शहरी जीवन का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। आम शहरी फूड और ग्रॉसरी डिलीवरी, ऑनलाइन कैब से लेकर रोज़मर्रा के जीवन में काम आने वाली दूसरी सेवाओं जैसे प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, सैलॉन और मेकअप के लिए भी ऐप आधारित ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर निर्भर होता जा रहा है। ये न सिर्फ़ सुविधाजनक होते हैं बल्कि इससे समय की भी बचत होती है। इसमें काम करने वाले कर्मचारी अपने समय और सुविधा के हिसाब से काम करके पैसे कमाते हैं और अपनी आमदनी बढ़ाते हैं। लेकिन, इस लचीले काम के पीछे आर्थिक असुरक्षा और श्रम अधिकारों की अनदेखी एक चुनौती बन चुकी है। ऐसे में तेलंगाना सरकार ने गिग और ऑनलाइन प्लेटफार्म वर्कर्स के लिए कल्याणकारी बोर्ड बनाने के लिए जिस बिल की घोषणा की है, वह राज्य के 4.5 लाख से ज़्यादा गिग वर्कर्स के लिए उम्मीद बढ़ाने का काम करता है।
तेलंगाना का वेलफेयर बोर्ड: सुधार की दिशा में एक पहल
जून 2025 में तेलंगाना के श्रम मंत्री जी. विवेक वेंकटस्वामी ने तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स (रजिस्ट्रेशन, सोशल सिक्योरिटी और वेलफेयर) बिल, 2025 की घोषणा की, जिसे आने वाले सत्र में विधानसभा में पेश किया जाना है। यह बिल तेलंगाना के लगभग 4.5 लाख गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इसके तहत सरकार गिग वर्कर्स के लिए वेलफेयर बोर्ड का गठन करेगी, जिसमें सरकार, गिग वर्कर्स और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों सहित सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इसके अलावा सभी गिग वर्कर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रूप से करना होगा।

सभी गिग वर्कर्स को यूनिक आईडी मिलेगी जिससे उनका रिकॉर्ड रखा जा सके। इन सबके लिए एक वेलफेयर फंड बनाया जाएगा जो कि प्लेटफ़ॉर्म ट्रांजैक्शन पर 1-2 फीसद सेस के द्वारा जुटाया जाएगा। इसके साथ ही गिग वर्कर्स के लिए दुर्घटना बीमा, पेंशन और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाएं भी सुनिश्चित की जाएंगी। तकनीकी अल्गोरिदम का इस्तेमाल करके ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स पर काम और भुगतान के साथ ही अकाउंट डिएक्टिवेशन या डिलीशन में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी। इसके अलावा न्यूनतम वेतन और शिकायत निवारण के लिए भी अलग से प्रावधान किया जाना है।
जून 2025 में तेलंगाना के श्रम मंत्री जी. विवेक वेंकटस्वामी ने तेलंगाना गिग एंड प्लेटफॉर्म वर्कर्स (रजिस्ट्रेशन, सोशल सिक्योरिटी और वेलफेयर) बिल, 2025 की घोषणा की, जिसे आने वाले सत्र में विधानसभा में पेश किया जाना है। यह बिल तेलंगाना के लगभग 4.5 लाख गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
क्या है गिग इकोनॉमी?
गिग इकोनॉमी ऐसी व्यवस्था है जिसमें लोग फ्रीलांसिंग यानी स्वतंत्र रूप से शॉर्ट टर्म या प्रोजेक्ट पर आधारित काम करते हैं और अपनी सेवाओं के बदले भुगतान प्राप्त करते हैं। इसमें काम करने वाले कर्मचारियों को गिग वर्कर्स कहा जाता है। इसमें ऐप के माध्यम से कंपनियां सेवा प्रदाताओं और ग्राहकों के बीच मध्यस्थता का काम करती हैं। इसमें ऑनलाइन कैब सर्विसेज, फूड और ग्रॉसरी डिलीवरी सर्विसेज, ऐप आधारित तरह-तरह की फ्रीलांसिंग सर्विसेज शामिल हैं, जो रोज़मर्रा की ज़रूरतों में काम आती हैं। इसमें पारंपरिक नौकरियों की तुलना में काम के लचीले घंटे और आज़ादी होती है।
गिग वर्कर्स अपनी सुविधा के हिसाब से समय और जगह चुनकर काम करते हैं, जैसे ड्राइवर, डिलीवरी एजेंट या डिजिटल मार्केटर जब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से प्रोजेक्ट या फिर काम लेते हैं और उसको तय समय पर डिलीवर करते हैं। गिग इकोनामी तकनीक और डिजिटल प्लेटफॉर्म के विकास का एक उदाहरण है, जो नई पीढ़ी के लिए आमदनी का एक अच्छा ज़रिया बन चुकी है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के अनुसार, साल 2024 में पूरी दुनिया में गिग इकोनॉमी का बाज़ार 556.7 बिलियन डॉलर था और साल 2032 तक इसके बढ़कर 1,847 बिलियन डॉलर होने की संभावना है, जो 2024 की तुलना में तीन गुना ज़्यादा होगी।
ग़ौरतलब है कि भारत में गिग वर्कर्स 1948 के न्यूनतम मजदूरी अधिनियम जैसे प्रमुख श्रम कानूनों के अंतर्गत नहीं आते हैं, जो औपचारिक कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी देता है। ऐसे में यह बिल गिग वर्कर्स के अधिकारों को सुनिश्चित करने और शोषण को रोकने के लिए बेहद ज़रूरी और अहम कदम साबित हो सकता है।
भारत में गिग इकोनॉमी का बढ़ता जाल
भारत में गिग इकोनॉमी ख़ासतौर पर शहरों में तेजी से बढ़ रही है जो युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान कर रही है। अलग-अलग तरह के डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने लाखों लोगों को इससे जोड़ने का काम किया है। इससे फ्रीलांसिंग, डिलीवरी और ऑनलाइन सर्विसेज के क्षेत्र में युवा और कुशल कामगारों की भागीदारी बढ़ रही है। गिग इकोनॉमी स्वतंत्रता और अतिरिक्त आय का एक ज़रिया बन रही है। नीति आयोग के अनुसार साल 2020-21 में भारत में कुल 77 लाख गिग वर्कर्स थे, जो 2029-30 तक बढ़कर 2.35 करोड़ होने का अनुमान है। इस समय लगभग 47 फीसद गिग वर्कर्स मध्यम कौशल नौकरियों में, लगभग 22 फीसद उच्च कौशल और लगभग 31 फीसद कम कौशल वाली नौकरियों में हैं। यह काम ख़ासतौर पर शहरी युवाओं में लोकप्रिय है जो अपने समय और सुविधा के अनुसार कमाई के मौके चाहते हैं। कुछ लोग तो इसे फुल टाइम प्रोफ़ेशन के तौर पर भी अपना रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही इससे जुड़ी कई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं।

गिग वर्कर्स के साथ असुरक्षित कार्यस्थल, कम आमदनी के साथ ही पेंशन, बीमा और हेल्थ इंश्योरेंस जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की कमी जैसे मुद्दे उभर कर सामने आ रहे हैं। ग़ौरतलब है कि भारत में गिग वर्कर्स 1948 के न्यूनतम मजदूरी अधिनियम जैसे प्रमुख श्रम कानूनों के अंतर्गत नहीं आते हैं, जो औपचारिक कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी देता है। ऐसे में यह बिल गिग वर्कर्स के अधिकारों को सुनिश्चित करने और शोषण को रोकने के लिए बेहद ज़रूरी और अहम कदम साबित हो सकता है। इस तरह के प्रयास राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों में पहले भी हो चुके हैं लेकिन तेलंगाना का यह बिल इसलिए और भी ख़ास है क्योंकि इसमें सभी हितधारकों की भागीदारी और पारदर्शिता पर ज़ोर दिया गया है।
पारंपरिक नौकरियों में सुरक्षा का मतलब है- स्थिर रोजगार, निश्चित वेतन, बीमा और सवैतनिक छुट्टी जैसे क़ानूनी अधिकार। जबकि गिग इकोनॉमी में काम के हिसाब से भुगतान, निश्चित काम के घंटे या कमाई की कोई गारंटी नहीं होती है।
गिग इकोनॉमी में नौकरी की सुरक्षा
देश में गिग वर्कर्स की संख्या लाखों में पहुंच गई है। इसके बावजूद इनकी नौकरी सुरक्षित नहीं है। इन्हें अब तक वे बुनियादी अधिकार नहीं मिल रहे हैं जो पारंपरिक नौकरियों में काम करने वाले कामगारों को सुनिश्चित किए गए हैं। पारंपरिक नौकरियों में सुरक्षा का मतलब है- स्थिर रोजगार, निश्चित वेतन, बीमा और सवैतनिक छुट्टी जैसे क़ानूनी अधिकार। जबकि गिग इकोनॉमी में काम के हिसाब से भुगतान, निश्चित काम के घंटे या कमाई की कोई गारंटी नहीं होती है। इसके अलावा काम का कोई तय शेड्यूल भी नहीं होता है। इसमें कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध भी नहीं होता है जिससे श्रम क़ानूनों को लागू करना भी मुश्किल हो जाता है। इसमें एल्गोरिदम इसका प्रबंधन करता है कि कब किसे कितना काम और भुगतान मिलेगा।
काम के दौरान किसी भी तरह की दुर्घटना या बीमारी होने पर भी इन्हें कोई सुविधा नहीं मिलती। इसके अलावा गिग वर्कर्स की कोई यूनियन भी नहीं जो उनकी समस्याओं के लिए आवाज़ उठाए। ऐसे में गिग वर्कर्स के लिए सुरक्षा के दायरे में सिर्फ़ नौकरी की सुरक्षा और आमदनी की निश्चितता ही नहीं बल्कि वर्कर्स की शारीरिक और मानसिक देखभाल भी शामिल है। सरकार और मध्यस्थ कंपनियों को गिग वर्कर्स के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए नीतियां बनाने की ज़रूरत है जिससे गिग इकोनॉमी सुरक्षित, समावेशी और मानवीय बन सके।
तेलंगाना सरकार का मौजूदा बिल गिग वर्कर्स को रजिस्ट्रेशन के माध्यम से क़ानूनी पहचान देने में सक्षम होगा। रजिस्ट्रेशन से गिग वर्कर्स की पहचान करके डाटा इकट्ठा करने में भी मदद मिलेगी, जिससे इनसे जुड़ी नीतियां बनाना आसान होगा।
चुनौतियां और संभावनाएं

तेलंगाना सरकार का मौजूदा बिल गिग वर्कर्स को रजिस्ट्रेशन के माध्यम से क़ानूनी पहचान देने में सक्षम होगा। रजिस्ट्रेशन से गिग वर्कर्स की पहचान करके डाटा इकट्ठा करने में भी मदद मिलेगी, जिससे इनसे जुड़ी नीतियां बनाना आसान होगा। न्यूनतम वेतन तय करके आमदनी में स्थिरता लाने में मददगार साबित हो सकता है। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स की ज़िम्मेदारी तय करके पारदर्शिता लाई जा सकती है, जिससे डिजिटल शोषण को रोकने में सहायता मिलेगी। साथ ही हेल्थ इंश्योरेंस, बीमा और पेंशन जैसी सुविधाएं सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से अहम भूमिका निभा सकती हैं। बोर्ड में गिग वर्कर्स की भागीदारी मिलने से उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिलेगा, जिससे बेहतर नीतियां बनाने में सफलता मिलेगी। इसके साथ ही सेस से जुटाया गया फंड ज़रूरत पड़ने पर गिग वर्कर्स के काम आ सकेगा।
इन सबके लिए ज़रूरी यह है कि इसे सही और सटीक तरीके से लागू किया जाए वरना यह सिर्फ़ कागजों तक सीमित होकर रह जाएगा। इसकी ठीक तरीके से निगरानी और फीडबैक का उपाय करना भी बेहद ज़रूरी है जिससे वास्तविक स्थिति की सटीक जानकारी मिल सके। इसके अलावा महिला गिग वर्कर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करना ख़ासतौर पर ज़रूरी है, जो इस क्षेत्र में भी ज्यादा कमज़ोर स्थिति में है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स को इस के दायरे में कैसे लाया जा सकता है, इसके लिए भी सरकार को उपाय करने पड़ेंगे। डिजिटल जागरूकता भी ज़रूरी है जिससे वर्कर्स अपने अधिकारों को समझ कर इसका इस्तेमाल कर सकें। यूके और स्पेन जैसे देशों की तरह भारत में भी गिग वर्कर्स को कर्मचारी का दर्ज़ा देने पर विचार किया जा सकता है। तेलंगाना सरकार का पहल श्रमिक अधिकारों के साथ ही मानवाधिकारों के लिए भी मायने रखती है। जरूरी है कि दूसरे राज्य और केंद्र सरकार भी इस पर गौर करें।

