इंटरसेक्शनलजेंडर हिमाचल प्रदेश में मानसून का कहर महिलाओं पर बढ़ता काम का दोहरा बोझ

हिमाचल प्रदेश में मानसून का कहर महिलाओं पर बढ़ता काम का दोहरा बोझ

हिमाचल प्रदेश इन दिनों लगातार हो रही भारी बारिश से जूझ रहा है। जगह-जगह भूस्खलन, घरों को नुकसान, बंद स्कूल और रोजगार न होने के कारण आम लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इससे कोई भी इंसान अछूता नहीं है, लेकिन सबसे ज़्यादा समस्या  दिहाड़ी मजदूरों और गरीब परिवारों को हो रही है, जिनकी रोज़ी-रोटी पूरी तरह छिन गई है। इस संकट का सबसे कठिन पहलू यह है कि इसका बोझ महिलाओं पर और भी भारी पड़ रहा है । घर संभालने की ज़िम्मेदारी, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल और सीमित संसाधनों के बीच परिवार को संभालना बहुत ही मुश्किल हो गया है । 

पिछले कुछ सालों से मौसम का असामान्य रूप साफ़ दिखाई दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी इलाकों में जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का पैटर्न बदल गया है। कभी अचानक तेज़ बारिश तो कभी लंबे समय तक सूखा ये दोनों हालात लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। द प्रिन्ट के मुताबिक,मौसम कार्यालय के आंकड़ों से पता चला है कि भारत के हिमालयी राज्यों हिमाचल प्रदेश (एचपी) और पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में हर दशक बहुत भारी से लेकर अत्यंत भारी वर्षा वाले दिनों की संख्या साल 2011 और 2020 के बीच बढ़कर 118 हो गई है, जो पिछले दशक में 74 थी। भारी बारिश और लगातार होने वाले भूस्खलन न केवल प्राकृतिक आपदाएं  ला रहे हैं, बल्कि लोगों की ज़िंदगी और रोज़ी-रोटी को भी गहरे संकट में डाल रहे हैं।

पिछले कुछ सालों से मौसम का असामान्य रूप साफ़ दिखाई दे रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी इलाकों में जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश का पैटर्न बदल गया है। कभी अचानक तेज़ बारिश तो कभी लंबे समय तक सूखा ये दोनों हालात लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश और नुकसान

तस्वीर साभार : सविता

हिमाचल प्रदेश, बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन के कारण भारी तबाही से जूझ रहा है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक, बुधवार को राजमार्गों सहित कुल 1,155 सड़कें बंद रहीं। राज्य के कई हिस्सों में बिजली नहीं है, क्योंकि कुल 2,477 ट्रांसफार्मर काम नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि पीने का पानी भी नहीं मिल पा रहा है। राज्य में  कुल 720 पानी की सप्लाई योजनाएं बंद हो गई है । इस मानसून में अब तक 341 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र (एसईओ ) के अनुसार, सबसे ज्यादा मौतें मंडी जिले में हुईं जिसकी संख्या 51 है । इसके बाद कांगड़ा में 50, चंबा में 42, शिमला में 36, कुल्लू में 29, किन्नौर में 28, सोलन में 24 और ऊना में 20 लोगों की जान गई।

बहुत से लोग बेघर हो गए हैं, 100 से ज़्यादा घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं, लगभग 200 घर रहने लायक नहीं बचे हैं ।  कांगड़ा की रहने वाली संतोष कुमारी बताती हैं,  “हमारा एक कमरा रात को क्षतिग्रस्त हो गया । हमें सामान निकालने तक का मौका नहीं मिल पाया । उस कमरे का सारा सामान दब गया है । बारिश अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही है, पता नहीं और कितना नुकसान झेलना पड़ेगा ।”  बहुत से लोगों को अपने घर छोड़कर किसी दूसरी जगह में जाकर रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । 

हमारा एक कमरा रात को क्षतिग्रस्त हो गया । हमें सामान निकालने तक का मौका नहीं मिल पाया । उस कमरे का सारा सामान दब गया है । बारिश अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही है, पता नहीं और कितना नुकसान झेलना पड़ेगा ।

बच्चों की शिक्षा पर असर

तस्वीर साभार : Unicef

लगातार भारी बारिश और भूस्खलन होने के कारण कई दिनों से स्कूल और कॉलेज बंद पड़े हैं और 7 सितंबर तक बंद रहेंगे । ऐसे में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है, लेकिन  ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई करना मुश्किल है, क्योंकि यहां बिजली की कमी, इंटरनेट और स्मार्टफोन तक लोगों की पहुंच कम हैं। कांगड़ा की रहने वाली नीलम बताती हैं, “ मेरी तीन बेटियां हैं और तीनों को स्कूल का अलग – अलग काम मिल रहा है। हमारे पास केवल एक ही फोन है जिसे एक टाइम पर एक ही बेटी इस्तेमाल कर सकती है । बहुत मुश्किल हो गई है समझ नहीं आ रहा बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए मैं फोन कहां से लाऊं। ऐसे हालात में पैसे भी नहीं हैं कि फोन खरीद लूं ।”

खासकर लड़कियों की पढ़ाई पर इसका गहरा असर देखने को मिल रहा है। क्योंकि हमारे पितृसत्तात्मक समाज में अभी भी बेटे को ही ज़्यादा महत्व दिया जाता है।  कांगड़ा की रहने वाली रंजना (बदला हुआ नाम ) कहती हैं, “ मेरे दो बच्चे हैं, हमारे पास पैसों की कमी थी, इसलिए हमने बेटे को प्राइवेट स्कूल में डाला है और बेटी सरकारी स्कूल में पढ़ती है। बच्चों के स्कूल बंद हैं, तो आजकल ऑनलाइन काम दे रहे हैं स्कूल वाले।  हमारे पास एक ही फोन है, तो वो हमें बेटे को देना पड़ रहा है क्योंकि उसकी पढ़ाई में बहुत खर्चा आता है। अगर उसकी पढ़ाई छूट गई तो मुश्किल हो जायेगी।”  

मेरी तीन बेटियां हैं और तीनों को स्कूल का अलग – अलग काम मिल रहा है। हमारे पास केवल एक ही फोन है जिसे एक टाइम पर एक ही बेटी इस्तेमाल कर सकती है । बहुत मुश्किल हो गई है समझ नहीं आ रहा बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए मैं फोन कहां से लाऊं। ऐसे हालात में पैसे भी नहीं हैं कि फोन खरीद लूं ।

महिलाओं पर काम का दोहरा भार 

तस्वीर साभार : सविता

भारी बारिश के कारण दिहाड़ी मजदूरों का काम पूरी तरह रुक गया है। रोज़ कमाने और खाने वाले परिवारों की आर्थिक हालत बिगड़ रही है।  कई बार महिलाएं मज़दूरी या छोटे-मोटे काम करके परिवार की मदद करने की कोशिश करती हैं, लेकिन लगातार बारिश और रास्तों के बंद होने से उनके लिए बाहर निकलना भी जोखिम भरा हो गया है। महिलाओं के लिए यह स्थिति और भी कठिन है क्योंकि उन पर पारिवारिक खर्च, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल जैसे जिम्मेदारियां पहले से ही अधिक होती हैं। आपदा के समय यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है । कांगड़ा की रहने वाली रीता बताती हैं, “ आजकल सब घर में हैं तो काम भी बहुत बढ़ गया है। सुबह से लेकर रात तक खाना बनाना, साफ-सफाई करना, बच्चों को संभालना सब कुछ अकेले मेरे ही जिम्मे है। पहले जब बच्चे स्कूल जाते थे तो मुझे थोड़ी राहत रहती थी, लेकिन अब स्कूल बंद हैं तो पूरा दिन बच्चे घर में रहते हैं। उनका काम करवाना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। ऊपर से पति का काम बंद है, तो खर्चे पूरे करना भी चुनौती बन गया है।”  

कांगड़ा की रहने वाली कांता बताती हैं कि, “पशुओं की देखभाल करना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि बारिश में घास लाना बहुत कठिन काम है। घास काटते वक्त पूरे कपड़े भीग जाते हैं जिससे मैं भी बीमार हो गई हूं । लेकिन क्या करूं ये काम करना ही पड़ता है । दूध बेचकर में घर का खर्च चला रही हूं । अगर गाय को चारा नहीं मिलेगा तो वो दूध नहीं देगी ।” आगे वह बताती हैं, “ भारी बारिश होने के कारण मेरी गौशाला की दीवार में दरार आ गई है । मुझे हमेशा यह चिंता लगी रहती है कि अगर बारिश ऐसी ही रही तो किसी दिन मेरी गाय उसमें दब जाएगी । ” संयुक्त राष्ट्र वुमन की एक रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण साल 2050 तक 158 मिलियन से अधिक महिलाएं और लड़कियां गरीबी में चली जाएंगी और 232 मिलियन महिलाओं और लड़कियों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है। 

पशुओं की देखभाल करना बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि बारिश में घास लाना बहुत कठिन काम है। घास काटते वक्त पूरे कपड़े भीग जाते हैं जिससे मैं भी बीमार हो गई हूं । लेकिन क्या करूं ये काम करना ही पड़ता है । दूध बेचकर में घर का खर्च चला रही हूं । अगर गाय को चारा नहीं मिलेगा तो वो दूध नहीं देगी ।

नीतियों और समाधान की ज़रूरत

हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले से ही साफ तौर पर देखा जा सकता है और महिलाओं पर इसके दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा महसूस हो रहे हैं। इससे निपटने के लिए महिलाओं को आपदा तैयारी की योजना में शामिल किया जाना चाहिए। क्योंकि उनके अनुभव और स्थानीय ज्ञान का इस्तेमाल भूस्खलन, बाढ़ और भारी बारिश के दौरान बचाव और राहत गतिविधियों को अधिक प्रभावी बनाने में किया जा सकता है। महिलाओं और गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति सबसे अधिक प्रभावित होती है। इसके लिए नियमित मजदूरी, छोटे व्यापार या घरेलू उद्योग को समर्थन देने वाले उपायों की ज़रूरत है। स्कूलों और बच्चों के लिए डिजिटल शिक्षा के साधनों की पहुंच बढ़ाना बहुत जरूरी है।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

 ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में इंटरनेट, स्मार्टफोन और लैपटॉप तक पहुंच  सुनिश्चित करने के लिए सरकार को योजनाएं बनानी चाहिए । खासकर लड़कियों के लिए विशेष शिक्षा योजनाएं बनाई जानी चाहिए ताकि आर्थिक और सामाजिक असमानताओं के कारण उनकी पढ़ाई प्रभावित न हो। स्थानीय स्तर से लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक, नीति निर्माण में महिलाओं की जरूरतों और अनुभवों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र वुमन की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण महिलाओं और लड़कियों पर असमान बोझ बढ़ सकता है। इसलिए नीतियों में महिलाओं के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना बहुत जरूरी  है।

हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रही भारी बारिश और भूस्खलन से आम लोगों की ज़िंदगी मुश्किल हो गई है, लेकिन सबसे ज़्यादा असर महिलाओं पर पड़ा है। उन्हें घर संभालना, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करना और परिवार के खर्च पूरे करना कठिन हो गया है। स्कूल बंद होने और ऑनलाइन पढ़ाई के सीमित साधनों की वजह से लड़कियों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए महिलाओं को राहत और आपदा योजनाओं में शामिल करना, आर्थिक मदद देना और डिजिटल शिक्षा तक पहुंच  सुनिश्चित करना ज़रूरी है। स्थानीय प्रशासन और समाज को मिलकर यह देखना होगा कि आपदा में सबसे ज्यादा प्रभावित महिलाएं सुरक्षित रहें और उनके अधिकार सुरक्षित रहें। केवल तुरंत मदद देना ही काफी नहीं है, बल्कि लंबी अवधि की योजना और जरूरी संसाधन भी उपलब्ध कराने से महिलाओं और बच्चों पर पड़ने वाला अतिरिक्त बोझ कम किया जा सकता है।

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