स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा पुरुषों की भूमिका को ज्यादा महत्व दिया जाता है। लेकिन यह सिर्फ पुरुष नेताओं तक सीमित नहीं था। इसमें महिलाओं ने भी अपने साहस, त्याग और नेतृत्व से बहुत बड़ा योगदान दिया। कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ़ अली और सुचेता कृपलानी जैसी कई महान महिलाओं के साथ-साथ एक नाम और भी है, जो आज भी प्रेरणा देता है मणिबेन पटेल जो कि एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कार्यकर्ता और भारतीय संसद की सदस्य थीं । इन्होंने आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लिया और भारत में राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में लगातार जुटी रहीं। उन्होंने महिलाओं को आगे बढ़ाने और ग्रामीण समाज को मज़बूत करने के लिए निरंतर काम किया।
जब भी हम स्वतंत्रता आंदोलन और उसमें महिलाओं की भागीदारी को याद करते हैं, तो उनका नाम उन महान हस्तियों में आता है, जिन्होंने देश और समाज की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा और राजनीति में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, ग्रामीण विकास के कार्यों में हिस्सा लिया और साधारण जीवन जीते हुए लोगों की समस्याओं को हल करने की कोशिश की। मणिबेन के लिए राजनीति सत्ता प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि सेवा का मार्ग थी। वे उन गिनी-चुनी नेताओं में से थीं, जिन्होंने अपने जीवन में व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं की बजाय जनसेवा को प्राथमिकता दी।
मणिबेन पटेल जो कि एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कार्यकर्ता और भारतीय संसद की सदस्य थीं । इन्होंने आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लिया और भारत में राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में लगातार जुटी रहीं। उन्होंने महिलाओं को आगे बढ़ाने और ग्रामीण समाज को मज़बूत करने के लिए निरंतर काम किया।
शुरुआती जीवन

मणिबेन पटेल का जन्म 3 अप्रैल 1903 को ब्रिटिश भारत के बॉम्बे प्रेसीडेंसी के करमसाद में हुआ था । उनके पिता का नाम सरदार वल्लभभाई पटेल था । जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । उनको देशभक्ति का जज्बा अपने पिता से विरासत में मिला था । जब वह 6 साल की थी तो उनकी माता की मृत्यु हो गई । उनके चाचा विट्ठलभाई पटेल ने उनके पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी ली। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे (मुंबई) के क्वीन मैरी हाई स्कूल से पूरी की। साल 1920 में वे अहमदाबाद चली गईं और महात्मा गांधी के राष्ट्रीय विद्यापीठ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। उन्होंने कम उम्र में ही महात्मा गांधी के आश्रम में जाना शुरू कर दिया था।
साल 1918 के आस-पास गांधीजी की शिक्षाओं को अपनाया और चरखा कातना, खादी पहनना और सादगीपूर्ण जीवन जीना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। आश्रम के कामों में सक्रिय भागीदारी ने उनमें सेवा, त्याग और सामूहिक नेतृत्व की भावना को मजबूत किया। साल 1925 में स्नातक होने के बाद, वह अपने पिता की सहायता करने लगीं। साल 1925 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपने पिता की सहायता करना शुरू किया। वे उनके राजनीतिक अभियानों, बैठकों और सत्याग्रहों में शामिल होकर कार्यकर्ताओं और महिलाओं को संगठित करती थीं। इसी दौरान उन्होंने यह संकल्प लिया कि उनका जीवन केवल परिवार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वह देश और समाज की सेवा के लिए काम करेंगी ।
साल 1925 में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपने पिता की सहायता करना शुरू किया। वे उनके राजनीतिक अभियानों, बैठकों और सत्याग्रहों में शामिल होकर कार्यकर्ताओं और महिलाओं को संगठित करती थीं।
सामाजिक कार्यों में योगदान और संघर्ष

साल 1923-24 में ब्रिटिश सरकार ने आम लोगों पर बहुत ज़्यादा कर लगा दिए। इन करों की वसूली के लिए सरकार ने किसानों की ज़मीन, पशु और संपत्ति तक ज़ब्त करनी शुरू कर दी। इस अन्याय और हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए वह आगे आईं। उन्होंने महिलाओं को संगठित किया और उन्हें गांधीजी और सरदार पटेल के नेतृत्व में चल रहे कर-मुक्ति आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। साल 1928 में ब्रिटिश अधिकारियों ने बारडोली के किसानों पर बहुत ज़्यादा कर लगा दिया। इससे किसानों को वैसा ही कष्ट सहना पड़ा जैसा कुछ साल पहले बोरसाद के किसानों को हुआ था। शुरुआत में महिलाएं इस आंदोलन में शामिल होने से झिझक रही थीं, लेकिन पटेल ने मिथुबेन पेटिट और भक्तिबा देसाई के साथ मिलकर उन्हें समझाया और प्रेरित किया। धीरे-धीरे इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं आंदोलन में जुड़ गईं कि उनकी संख्या पुरुषों से भी ज़्यादा हो गई। आंदोलन के दौरान, मणिबेन और अन्य महिलाएं सरकार द्वारा ज़ब्त की गई ज़मीन पर बनी झोपड़ियों में रहीं और किसानों का मनोबल बढ़ाती रहीं।
महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में, मणिबेन ने असहयोग आंदोलन के साथ-साथ नमक सत्याग्रह में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और साल 1942 से 1945 तक उन्हें पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में रखा गया। साल 1950 में उनके पिता की मृत्यु हो गई । उन्होंने सरदार पटेल के व्यक्तित्व, उनके राजनीतिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका पर गहन लेखन किया। उनकी लिखी गई किताबें स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को समझने के लिए आज भी एक महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती हैं। राजनीति और आंदोलनकारी जीवन के साथ-साथ उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सुधार को भी अपना कार्यक्षेत्र बनाया। वे मानती थीं कि आजाद भारत में महिलाओं को केवल राजनीतिक अधिकार ही नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में भी बराबरी का अवसर मिलना चाहिए।
साल 1923-24 में ब्रिटिश सरकार ने आम लोगों पर बहुत ज़्यादा कर लगा दिए। इन करों की वसूली के लिए सरकार ने किसानों की ज़मीन, पशु और संपत्ति तक ज़ब्त करनी शुरू कर दी। इस अन्याय और हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए वह आगे आईं।
राजनीति के क्षेत्र में योगदान

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्य के रूप में साल 1952 से 1957 की पहली लोकसभा में दक्षिण कैरा क्षेत्र से और दूसरी लोकसभा में साल 1957-62 तक आनंद क्षेत्र से सांसद चुनी गईं। इसके बाद वे गुजरात राज्य में कांग्रेस की सचिव और फिर साल 1957 -1964 तक उपाध्यक्ष भी रहीं। आगे चलकर उन्हें 1964 में राज्यसभा का सदस्य चुना गया, जहां वे साल 1970 तक सक्रिय रहीं।साल 1976 में उनको गिरफ्तार कर लिया गया। कारण यह था कि उन्होंने आपातकाल, प्रेस सेंसरशिप और नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ नारे लगाए थे जिस कारण हिरासत में ले लिया गया। उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी लोगों में जागरूकता और साहस जगाने के लिए उन्होंने उसी साल एक और दांडी मार्च किया। गुजरात विद्यापीठ, वल्लभ विद्यानगर, बारडोली स्वराज आश्रम और सरदार पटेल मेमोरियल ट्रस्ट सहित कई संगठनों के साथ काम किया। साल 1990 में उनकी मृत्यु हो गई । लेकिन उनके संघर्ष, त्याग और सेवा की विरासत आज भी हमें प्रेरणा देती है।
मणिबेन पटेल का जीवन हमें सिखाता है कि आज़ादी की लड़ाई केवल सत्ता पाने के लिए नहीं, बल्कि सेवा, त्याग और लोगों की भलाई के लिए थी। गांधीजी और सरदार पटेल के विचारों को अपनाकर उन्होंने हर आंदोलन में साहस से हिस्सा लिया और अन्याय के खिलाफ डटकर खड़ी रहीं। आज़ादी के बाद भी उन्होनें राजनीति को सत्ता का साधन नहीं, बल्कि समाजसेवा का रास्ता बनाया। शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास में उनका योगदान यादगार है। सादगी से जीवन जीते हुए उन्होंने दिखाया कि असली नेता वही होता है, जो त्याग और सेवा के साथ जनता के लिए काम करे। आज जब हम महिलाओं की बराबरी और भागीदारी की बात करते हैं, तो मणिबेन पटेल जैसी शख्सियतें हमें याद दिलाती हैं कि संघर्ष और सेवा से ही असली बदलाव संभव है। वे सिर्फ़ सरदार पटेल की बेटी नहीं थीं, बल्कि अपने आप में एक मज़बूत नेता और प्रेरणा देने वाली स्वतंत्रता सेनानी थीं। जिनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा मार्गदर्शन और हौसला देती रहेगी।

