संस्कृतिकिताबें “मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी”: लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अस्तित्व और अधिकारों की लड़ाई की दास्तान

“मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी”: लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अस्तित्व और अधिकारों की लड़ाई की दास्तान

वाणी प्रकाशन से प्रकाशित यह किताब इसलिए विशेष है क्योंकि यह ट्रांसजेंडर समुदाय की किसी व्यक्ति की आत्मकथा पर आधारित पहली ऐसी रचना है, जो तीन भाषाओं में उपलब्ध है। इस किताब में लक्ष्मी के जीवन की वे पीड़ाएं और संघर्ष दर्ज हैं, जिनसे उन्हें अपने ही परिवार द्वारा अस्वीकार किए जाने और समाज से बहिष्कृत होने के बाद गुज़रना पड़ा।

‘मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की आत्मकथा है, जो एक प्रसिद्ध ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट, नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इस किताब में उन्होंने न सिर्फ़ अपने व्यक्तिगत जीवन और संघर्षों को सामने रखा है, बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय की पीड़ा, अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई को भी आवाज़ दी है। लक्ष्मी ने समाज की रूढ़िवादिता और भेदभाव के बीच अपनी पहचान बनाने की कहानी साझा करते हुए यह दिखाया है कि किस तरह ट्रांस समुदाय भी सम्मान, बराबरी और मानवीय गरिमा का हकदार है। यह आत्मकथा ट्रांसजेंडर जीवन के अनुभवों को समझने और संवेदनशील दृष्टि से देखने की एक महत्वपूर्ण कोशिश है। ‘मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी’ लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की आत्मकथा है, जिसे मूल रूप से वैशाली रोडे ने मराठी में लिखा और बाद में राज राव तथा पी.जी. जोशी ने अंग्रेज़ी में और डॉ. शशिकला राय और सुरेखा बनकर ने हिंदी में अनुवाद किया।

वाणी प्रकाशन से प्रकाशित यह किताब इसलिए विशेष है क्योंकि यह ट्रांसजेंडर समुदाय की किसी व्यक्ति की आत्मकथा पर आधारित पहली ऐसी रचना है, जो तीन भाषाओं में उपलब्ध है। इस किताब में लक्ष्मी के जीवन की वे पीड़ाएं और संघर्ष दर्ज हैं, जिनसे उन्हें अपने ही परिवार द्वारा अस्वीकार किए जाने और समाज से बहिष्कृत होने के बाद गुज़रना पड़ा। लेकिन यही आत्मकथा लक्ष्मी की उस जिजीविषा और हिम्मत को भी सामने लाती है, जिसने उन्हें अपने अस्तित्व और पहचान के लिए लड़ने की ताक़त दी। यह किताब न सिर्फ़ लक्ष्मी के निजी अनुभवों को दर्ज करती है, बल्कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लंबे समय से चले आ रहे हाशियाकरण और उनके अधिकारों की लड़ाई को भी संवेदनशीलता से उजागर करती है।

लक्ष्मी ने समाज की रूढ़िवादिता और भेदभाव के बीच अपनी पहचान बनाने की कहानी साझा करते हुए यह दिखाया है कि किस तरह ट्रांस समुदाय भी सम्मान, बराबरी और मानवीय गरिमा का हकदार है।

शोषण, हिंसा और सामाजिक भेदभाव की बात

उन्होंने अपनी किताब में ट्रांस समुदाय की कठिनाइयों जैसे शोषण, हिंसा और सामाजिक भेदभाव को बेहद संवेदनशील और गहराई से प्रस्तुत किया है। इसमें समुदाय के रीति–रिवाजों और परंपराओं से जुड़ी कहानियाँ भी शामिल हैं, जो न केवल पाठकों को जानकारी देती हैं बल्कि लंबे समय से जुड़े कई मिथकों को भी तोड़ती हैं। किताब का सबसे प्रभावशाली पक्ष यह है कि उन्होंने अपने बचपन से लेकर किशोरावस्था और फिर ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़ने तक की यात्रा में अपनी पहचान को लेकर हुए आंतरिक संघर्ष को बहुत ही खुले और साहसिक शब्दों में साझा किया है। लक्ष्मी ने तमाम संघर्षों और सामाजिक तिरस्कार के बावजूद अपने जीवन को सशक्त बनाने का रास्ता चुना।

तस्वीर साभार: Trans World Features

वे न सिर्फ़ एक जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता बनीं, बल्कि टीवी पर्सनैलिटी और संयुक्त राष्ट्र में ट्रांसजेंडर समुदाय की प्रतिनिधि के रूप में भी अपनी पहचान दर्ज कराईं। उनकी कहानी बताती है कि आत्म-स्वीकृति और आत्म-सम्मान की लड़ाई कितनी कठिन होती है, लेकिन हिम्मत और जज़्बे से इसे जीता जा सकता है। पुस्तक का केंद्रीय संदेश यही है कि हर इंसान, चाहे उसका लिंग या यौनिक पहचान कुछ भी हो, उसे समाज में बराबरी, सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए। इसमें ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति सहानुभूति और समझ विकसित करने की कोशिश की गई है और यह दिखाया गया है कि कैसे भेदभाव और सामाजिक तिरस्कार के बीच भी अपने अस्तित्व और अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

पुस्तक का केंद्रीय संदेश यही है कि हर इंसान, चाहे उसका लिंग या यौनिक पहचान कुछ भी हो, उसे समाज में बराबरी, सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए। इसमें ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति सहानुभूति और समझ विकसित करने की कोशिश की गई है और यह दिखाया गया है कि कैसे भेदभाव और सामाजिक तिरस्कार के बीच भी अपने अस्तित्व और अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

क्या हिजड़ा अपमानजनक शब्द है?

इस किताब में एक बेहद खूबसूरत विचार सामने आता है, जो ‘हिजड़ा’ शब्द के असली अर्थ को समझाता है। यह कोई गाली, बहिष्कार या तिरस्कार का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ है। उर्दू भाषा से लिया गया यह शब्द ‘हिज्र’ से निकला है, जिसका मतलब होता है- बिछड़ना या अलग होना। यानी जो व्यक्ति अपने कुनबे से अलग होकर ईश्वर की राह पर निकल पड़ता है, उसे हिजड़ा कहा जाता है। इस तरह यह शब्द किसी की लैंगिक पहचान नहीं, बल्कि आत्मिक यात्रा और ईश्वर की ओर बढ़ने के रास्ते को दिखाता है। किताब यह भी बताती है कि हमारे समाज में पुरुष अक्सर स्त्रीत्व को कमज़ोरी समझते हैं, और जैसे ही उन्हें किसी भी रूप में स्त्रीत्व का आभास होता है, वे उसे अपने वर्चस्व और नियंत्रण के नीचे लाने की पूरी ताक़त लगा देते हैं।

लक्ष्मी का सहज स्वभाव और समुदाय के साथ अनुभव

तस्वीर साभार: Starclinch

लेखिका एक घटना का उल्लेख करती हैं जब लक्ष्मी के पिता गुड़गांव गए हुए थे। उस दौरान वे दोनों किसी काम से रेमंड शोरूम के पास स्थित डाकघर पहुंचे। वहां के क्लर्क ने लक्ष्मी को देखते ही कहा – “मैडम, हम आपको रोज़ देखते हैं, चिंता मत कीजिए, आपका काम हो जाएगा, आप बस हस्ताक्षर कर दीजिए।” यह सहज व्यवहार ऐसा था मानो वह उन्हें पहले से जानता हो। दरअसल, लक्ष्मी का स्वभाव ही ऐसा था। वह अपने हमउम्र लड़कों से उसी सहजता और सामान्य तरीके से बात करती जैसे दो दोस्त आपस में करते हैं। उसमें किसी तरह का दिखावा या बनावटीपन नहीं था। उन्होंने हमेशा अपनी गरिमा और मान बनाए रखा, और यही कारण था कि लोग भी उसके साथ सम्मानजनक व्यवहार करते थे। उसके व्यक्तित्व में यह आत्मसम्मान और सादगी साफ़ झलकती थी।

क्लर्क ने लक्ष्मी को देखते ही कहा – “मैडम, हम आपको रोज़ देखते हैं, चिंता मत कीजिए, आपका काम हो जाएगा, आप बस हस्ताक्षर कर दीजिए।” यह सहज व्यवहार ऐसा था मानो वह उन्हें पहले से जानता हो। दरअसल, लक्ष्मी का स्वभाव ही ऐसा था।

लेखिका बताती हैं कि पासपोर्ट ऑफिस का उनका लक्ष्मी के साथ अनुभव उनके लिए बेहद यादगार रहा। जब वह वहां गईं, तो महिला कर्मचारी लक्ष्मी को देखते ही अपने वार्ड में ले गईं और सहेलियों की तरह उससे बातें करने लगीं। वे हंसते-हंसते उन्हें अपने जीवन की बातें बतातीं कि पुरुष उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं और मज़ाक में यह तक कहतीं कि, “हम एक महिला संगठन बनाएंगे और उसकी लीडर तुम बनना।” इतना ही नहीं, जब वे घर पर अपने बच्चों को बतातीं कि “लक्ष्मी हमारे ऑफिस आई थी”, तो बच्चे विश्वास नहीं करते। इसी कारण वे लक्ष्मी के साथ तस्वीरें खिंचवाने लगीं। लेखिका बताती हैं कि यह दृश्य उनके लिए बहुत भावुक कर देने वाला था। जहां समाज का बड़ा हिस्सा ट्रांस समुदाय के लोगों से दूरी बनाता है या डरता है, वहीं लक्ष्मी के व्यक्तित्व की गर्मजोशी और अपनापन ऐसा था कि लोग न केवल उसे स्वीकार कर रहे थे बल्कि गर्व से उसके साथ खड़े भी हो रहे थे। यह उस बदलाव की झलक थी जिसकी उन्हें उम्मीद है।

कौन हैं लेखिका वैशाली रोडे

वैशाली रोडे एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखिका हैं, जिन्होंने मराठी प्रिंट मीडिया के प्रतिष्ठित संस्थान सकाल पेपर्स लिमिटेड में काम किया है। सत्ये (पार्ले) कॉलेज से स्नातक कर चुकी वैशाली अपने संवेदनशील और सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन के लिए जानी जाती हैं। वे विशेष रूप से उन मुद्दों को अपनी लेखनी का विषय बनाती हैं, जिनपर समाज में कम चर्चा होती है और जिनकी आवाज़ अक्सर दबा दी जाती है। उनकी चर्चित कृति “मैं हिजड़ा: मैं लक्ष्मी” ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के जीवन पर आधारित है, जिसमें लक्ष्मी के संघर्ष और प्रेरणादायक अनुभवों को बेहद ईमानदारी और संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया गया है। अपने लेखन के माध्यम से वह न केवल ट्रांसजेंडर समुदाय बल्कि अन्य हाशिए पर खड़े समूहों की आवाज़ समाज तक पहुंचाने का काम करती हैं। उनकी रचनाएं मराठी साहित्य को एक नई दिशा देती हैं और समाज के उन पहलुओं को सामने लाती हैं जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

लेखिका बताती हैं कि पासपोर्ट ऑफिस का उनका लक्ष्मी के साथ अनुभव उनके लिए बेहद यादगार रहा। जब वह वहां गईं, तो महिला कर्मचारी लक्ष्मी को देखते ही अपने वार्ड में ले गईं और सहेलियों की तरह उससे बातें करने लगीं।

लक्ष्मी नारायण का जन्म और काम

तस्वीर साभार: Wikipedia

लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का जन्म 13 दिसंबर 1978 को ठाणे के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। मूल रूप से वे गोरखपुर, उत्तर प्रदेश के भीटा गाँव की निवासी हैं। बचपन में अस्थमा जैसी बीमारी और कई प्रतिबंधों के बावजूद, परिवार की सबसे बड़ी संतान होने के नाते उन्हें भरपूर स्नेह और देखभाल मिली। लक्ष्मी ने ठाणे के सुलोचनादेवी सिंघानिया स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और मुंबई के मीठीबाई कॉलेज से कला में स्नातक और भरतनाट्यम में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। नृत्य उनके जीवन का आधार बना, जिसने न केवल उन्हें स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से उबरने में मदद की बल्कि कला की दुनिया में एक विशिष्ट पहचान भी दिलाई। उन्होंने भारत और विदेशों में नृत्य की शिक्षा ग्रहण की और बाद में सामाजिक सेवा में भी सक्रिय भूमिका निभाई। एक डांस टीचर और बार डांसर के रूप में करियर शुरू करने के बाद, उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए कई संगठनों के साथ काम किया।

यह उस समुदाय की गाथा है जिसे समाज ने सदियों तक तिरस्कार और उपेक्षा की अंधेरी खाई में धकेला। यह कहानी है लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की, एक ऐसी शख़्सियत जिन्होंने पिता की मृत्यु, प्रेम में बिछोह और गंभीर बीमारियों जैसी कठिनाइयों की आंधियों को पार कर अपने अस्तित्व को नया आकार दिया।

साल 2007 में उन्होंने अपना संगठन ‘अस्तित्वा’ स्थापित किया और 2008 मेंदाई वेलफेयर सोसाइटी’ के साथ काम किया, जो दक्षिण एशिया में ट्रांस समुदाय का पहला पंजीकृत संगठन है। वे साल 2008 में संयुक्त राष्ट्र में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति बनीं। सामाजिक कामों के अलावा लक्ष्मी ने लोकप्रिय रियलिटी शो बिग बॉस (2011) और अन्य कई टीवी कार्यक्रमों में भाग लिया और टेडएक्स और जॉश टॉक्स जैसे मंचों पर अपनी बात रखी। हाल ही में उन्होंने शार्क टैंक इंडिया में अपने बिजनेस ब्रांड को प्रस्तुत कर यह साबित किया कि वे कला, सामाजिक कार्य और उद्यमिता तीनों क्षेत्रों में प्रेरणा का स्रोत हैं।

इस किताब को हर किसी को पढ़ना चाहिए, क्योंकि यह उस समुदाय की गाथा है जिसे समाज ने सदियों तक तिरस्कार और उपेक्षा की अंधेरी खाई में धकेला। यह कहानी है लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की, एक ऐसी शख़्सियत जिन्होंने पिता की मृत्यु, प्रेम में बिछोह और गंभीर बीमारियों जैसी कठिनाइयों की आंधियों को पार कर अपने अस्तित्व को नया आकार दिया। आज वे सिर्फ़ ‘डॉक्टर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी’ ही नहीं, बल्कि किन्नर अखाड़ा की आचार्य महामंडलेश्वर हैं और पूरे समुदाय की आवाज़ भी हैं। उनका सफ़र केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों का नहीं, बल्कि ट्रांस समुदाय की अस्मिता, अधिकार और सम्मान के लिए लड़ी गई एक लंबी और निर्णायक लड़ाई का प्रतीक है। लक्ष्मी ने सिनेमा, कला, समाजकार्य, फैशन, स्वास्थ्य, शिक्षा और अध्यात्म जैसे हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी है और अब भी बेख़ौफ़ होकर नए आयाम गढ़ रही हैं। यह यात्रा तिरस्कार से गौरव तक, परछाइयों से प्रकाश तक का सफ़र है, जो हमें सिखाती है कि हाशिए की आवाज़ जब दृढ़ संकल्प के साथ उठती है तो वह समाज की मुख्यधारा को झकझोर सकती हैं।

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