इतिहास पद्मजा नायडू: स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल की पहली महिला गवर्नर| #IndianWomenInHistory

पद्मजा नायडू: स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल की पहली महिला गवर्नर| #IndianWomenInHistory

पद्मजा नायडू देश की आज़ादी से लेकर आज़ाद भारत की राजनीति में एक बहुत ही चर्चित नाम थीं। वह भारतीय स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ -साथ एक राजनीतिज्ञ भी थीं। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक आज़ादी के लिए किए गए संघर्षों, आंदोलनों, सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

पद्मजा नायडू देश की आज़ादी से लेकर आज़ाद भारत की राजनीति में एक बहुत ही चर्चित नाम थीं। वह भारतीय स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ -साथ एक राजनीतिज्ञ भी थीं। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक आज़ादी के लिए किए गए संघर्षों, आंदोलनों, सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालांकि आज लोग उनको अलग-अलग पहचान के साथ जानते हैं। अपने हुनर और मजबूत कार्यों से उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई, यह एक दम साफ कहा जा सकता कि उनकी प्रसिद्धि सरोजिनी नायडू की बेटी मात्र होने भर से नहीं थीं। क्योंकि पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क उनकी अपनी एक अलग पहचान का जीता जागता उदाहरण है। जिसे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके सम्मान और देश की आज़ादी के लिए उनके योगदान के प्रतीक के रूप में स्थापित किया था।

शुरुआती जीवन 

पद्मजा नायडू का जन्म साल 1900 में ब्रिटिश भारत के हैदराबाद रियासत में हुआ था। उनकी मां प्रसिद्ध बंगाली कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू थीं और उनके पिता मुत्याला गोविंदराजुलु नायडू एक चिकित्सक थे। उनके अलावा, परिवार में उनके चार भाई-बहन भी थे। अपनी माँ की तरह राजनीति में उनकी बहुत खास रुचि थी। इसके चलते वह महज़ 21 साल की उम्र में ही हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गई और सक्रिय रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। 

अपनी माँ की तरह राजनीति में उनकी बहुत खास रुचि थी। इसके चलते वह महज़ 21 साल की उम्र में ही हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गई और सक्रिय रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। 

वह अपनी युवावस्था में ही एक मजबूत और सफल महिला थीं। उन्होंने उस उम्र में क्रांतिकारी काम किए जिस उम्र में अक्सर महिलाएं वैवाहिक जीवन में बंध जाती थीं। यह उनके नारीवादी विचारों को भी दिखाता है। वह एक सशक्त नारीवादी महिला थी, क्योंकि उन्होंने उस दौर में जवाहरलाल नेहरू से अपने विवादास्पद संबंधों को लेकर कभी भी उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आने दी। जब महिलाओं को अक्सर प्रेम-संबंध रखने के लिए समाज में ‘बदनाम’ किया जाता था। उनके जीवन ने यह साबित किया कि एक महिला अपने विचारों, प्रेम और संघर्ष तीनों में आज़ाद हो सकती है और समाज की रूढ़िवादी सोच से परे अपनी पहचान बना सकती है।

पद्मजा नायडू और उनके साथ जुड़े भारतीय इतिहास के बहुचर्चित नाम

उनकी मां भारत कोकिला सरोजिनी नायडू के अलावा उनके साथ भारतीय आधुनिक इतिहास के बहुत ही चर्चित नामों को उनके साथ जोड़ कर देखा और पढ़ा जाता है। अपने जीवन के शुरुआती सालों से ही उनकी रूटी पेटिट से गहरी दोस्ती थी, जो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बीवी थीं। वह और रुटी पेटिट के पत्र व्यवहार और दोस्ती को लेकर मिस्टर एंड मिसेज जिन्ना: द मैरिज दैट शुक इंडिया की लेखिका शीला रेड्डी अपनी किताब में लिखती हैं कि पद्मजा  को रुटी पेटिट ने अपनी शादी और मोहम्मद जिन्ना के राजनीतिक कार्यक्रम और विधानमंडल के ग्रीष्मकालीन या मानसून सत्र के लिए दिल्ली या शिमला जाने के समय और उसके बारे में बहुत सारी  बातें अपने पत्रों में लिखीं थीं । इससे उनकी गहरी दोस्ती का पता चल सकता है। इसके अलावा वह जवाहरलाल नेहरू और उनकी बहन, विजया लक्ष्मी पंडित, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष थीं, उनसे भी काफी करीब थीं। 

साल 1942 में महात्मा गांधी ने भारत से ब्रिटिश हुकूमत को खत्म करने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की जिसमें इन्होंने बढ़ – चढ़ कर भाग लिया। जिसके चलते उन्हें जेल में डाल दिया गया था। इनको भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी भागीदारी के लिए काफी प्रसिद्धि मिली।

देश की आजादी में योगदान और अन्य सराहनीय कार्य 

पद्मजा नायडू 21 साल की उम्र से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में काफी सक्रिय राजनीतिक युवा महिला कार्यकर्ता थीं। इसके साथ ही उन्होंने महात्मा गांधी जी के खादी और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग के संदेश को पूरे हिंदुस्तान में प्रचार और प्रसार में पूरा सहयोग किया और लोगों को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने देश की आजादी के लिए किए गए राष्ट्रीय आंदोलनों में अपना पूरा योगदान दिया। साल 1942 में महात्मा गांधी ने भारत से ब्रिटिश हुकूमत को खत्म करने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की जिसमें इन्होंने बढ़ – चढ़ कर भाग लिया। जिसके चलते उन्हें जेल में डाल दिया गया था। इनको भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी भागीदारी के लिए काफी प्रसिद्धि मिली। इसके अलावा उन्होंने आजादी के लिए पंडित नरेंद्रजी, हरिश्चंद्र हेड़ा, ज्ञानकुमारी हेड़ा, विमलाबाई मेलकोटे, जी.एस. मेलकोटे आदि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ हैदराबाद में संघर्ष का नेतृत्व किया। उन्होंने आजादी के इस संघर्ष अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए रेजीडेंसी भवन पर कांग्रेस का झंडा फहराया। जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।

एक मजबूत राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता 

देश की आज़ादी के बाद वह संसद सदस्य के तौर पर चुनी गई। लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने अपनी सदस्यता पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 3 नवंबर, 1956 को, इनकों पश्चिम बंगाल का गवर्नर यानी राज्यपाल नियुक्त किया गया और वे साल 1967 तक इस पद पर रहीं। वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला गवर्नर थी। इसके साथ ही काफी लंबे समय तक बंगाल के गवर्नर के तौर पर काम करने वाली गवर्नर भी रही। एक मजबूत राजनेत्री और स्वतंत्रता सेनानी के अलावा वह अपनी अनोखी हास्य-भावना के लिए भी प्रसिद्ध थीं। इसके साथ ही वह जीवन भर कई सामाजिक कल्याण के कामों से भी जुड़ी रहीं।

3 नवंबर, 1956 को, इनकों पश्चिम बंगाल का गवर्नर यानी राज्यपाल नियुक्त किया गया और वे साल 1967 तक इस पद पर रहीं। वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला गवर्नर थी। इसके साथ ही काफी लंबे समय तक बंगाल के गवर्नर के तौर पर काम करने वाली गवर्नर भी रही।

 बांग्लादेश शरणार्थी अभियान के दौरान उन्होंने भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। वह साल 1971 से साल 1972 तक  भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी की अध्यक्ष रहीं। उन्होंने भारत सेवक समाज, अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड और नेहरू स्मारक निधि के साथ काम किया। उनके सम्मान और देश की आजादी से लेकर और आजादी के बाद तक उनके साहसिक काम और योगदान को ध्यान में रखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दार्जिलिंग में पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क को उनके नाम पर बनवाया।

पद्मजा नायडू ने 2 मई, 1975 को इस दुनिया को 75 साल की उम्र में अलविदा कह दिया। लेकिन उनके देश प्रेम और सहयोग के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि एक महिला न केवल स्वतंत्रता संग्राम में बल्कि स्वतंत्र भारत के निर्माण में भी केंद्रीय भूमिका निभा सकती है। उन्होंने यह साबित किया कि संघर्ष और करुणा, राजनीति और समाज सेवा ये सभी एक साथ संभव हैं। आज भी उनका जीवन महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो यह सिखाता है कि अपने विचारों, प्रेम और काम के माध्यम से हर एक क्षेत्र में अपनी जगह बनाई जा सकती है।

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