समाजखेल बड़े खेल आयोजनों का बढ़ता कार्बन फुटप्रिंट और जलवायु संकट

बड़े खेल आयोजनों का बढ़ता कार्बन फुटप्रिंट और जलवायु संकट

जब खेलों के बड़े आयोजन होते हैं जैसे ओलंपिक, फिफा वर्ल्ड कप, आईपीएल आदि तो बहुत से लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं, गौरतलब है कि इससे अर्थव्यवस्था तो मजबूत होती है लेकिन इसके साथ ही इन आयोजनों के कारण बहुत ज्यादा ऊर्जा की खपत होती है, लाखों टन कार्बन उत्सर्जन होता है और बहुत ज्यादा कचरा भी उत्पन्न हो जाता है, जो कि जलवायु परिवर्तन का एक कारण बन कर सामने आ रहा है ।

खेलें हमेशा एकता और सम्मान का प्रतीक रही हैं जिन्होंने हमेशा एक इंसान को दूसरे इंसान या एक देश को दूसरे देश से जोड़ने में सहयोग किया है। जब किसी देश की एक टीम दूसरे देश की टीम के साथ खेल प्रतियोगिता में भाग लेती है। तब उस टीम को केवल एक टीम की तरह देखा जाता है न कि किसी खिलाड़ी की जाति और धर्म के आधार पर। इसलिए यह कहा जा सकता है कि खेलों ने एकता बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन खेलों की यह दुनिया जाने – अनजाने में आज पर्यावरणीय संकट को बढ़ावा दे रही है और खुद भी इसका सामना कर रही है। 

क्योंकि जब खेलों के बड़े – बड़े आयोजन होते हैं जैसे ओलंपिक, फिफा वर्ल्ड कप, आईपीएल आदि तो बहुत से लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं, गौरतलब है कि इससे अर्थव्यवस्था तो मजबूत होती है लेकिन इसके साथ ही इन आयोजनों के कारण बहुत ज्यादा ऊर्जा की खपत होती है, लाखों टन कार्बन उत्सर्जन होता है और बहुत ज्यादा कचरा भी उत्पन्न हो जाता है, जो कि जलवायु परिवर्तन का एक कारण बन कर सामने आ रहा है । इससे केबल खिलाड़ी ही नहीं बल्कि आम जनता भी प्रभावित हो रही है। 

जब खेलों के बड़े – बड़े आयोजन होते हैं जैसे ओलंपिक, फिफा वर्ल्ड कप, आईपीएल आदि तो बहुत से लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं, गौरतलब है कि इससे अर्थव्यवस्था तो मजबूत होती है लेकिन इसके साथ ही इन आयोजनों के कारण बहुत ज्यादा ऊर्जा की खपत होती है, लाखों टन कार्बन उत्सर्जन होता है और बहुत ज्यादा कचरा भी उत्पन्न हो जाता है।

बड़े खेल आयोजनों का पर्यावरणीय प्रभाव

द हिन्दू में छपे इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के बारे में किए गए अध्ययनों के अनुसार, सिर्फ एक मैच के दौरान लगभग 10,000 से 14,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन होता है। अगर पूरे सीज़न की बात करें, तो यह आंकड़ा 7.5 लाख से 9 लाख टन कार्बन उत्सर्जन तक पहुंच सकता है। जो कि पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है। पर्यावरणीय प्लेटफ़ॉर्म अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, एक क्रिकेट स्टेडियम को स्वस्थ और सुरक्षित स्थिति में रखने के लिए हर हफ्ते  2,70,000 से 3,00,000 लीटर पानी की जरूरत होती है। गर्मियों के महीनों में, यह मात्रा काफी अधिक होती है। यह समस्या जनक है, क्योंकि भारत में उच्च तापमान अक्सर जल स्रोतों पर दबाव डालता है। इसी के साथ एक मैच के लिए बहुत ज़्यादा ऊर्जा की ज़रूरत होती है। सिर्फ़ बैंगलोर के चिन्नास्वामी स्टेडियम में ही हर साल लगभग 1.6 लाख यूनिट बिजली खर्च होती है, जिस पर करीब 1,44000 अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है। भले ही ऊर्जा से होने वाला उत्सर्जन ज़्यादा दिखाई देता है, लेकिन असल में कार्बन उत्सर्जन का सबसे बड़ा हिस्सा परिवहन और रसद (लॉजिस्टिक्स) से आता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, परिवहन क्षेत्र वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 13.7 फीसदी के लिए जिम्मेदार है, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इसमें परिवर्तन जरूरी हो गया है।

डी डब्ल्यू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग सभी बड़े खेल आयोजनों का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है, रूस में साल 2018 के विश्व कप में 20 लाख टन से ज़्यादा CO2 उत्सर्जित हुई और रियो में साल 2016 के ओलंपिक में 45 लाख टन, हालांकि अलग-अलग आयोजनों की तुलना करना बहुत मुश्किल है। इसी तरह फुटबॉल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल है, और फीफा विश्व कप इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख आयोजन है। द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक,  बढ़ती पर्यावरणीय चिंताओं के जवाब में, फीफा ने पहली बार साल 2021 में अपनी जलवायु रणनीति रिपोर्ट पेश की थी, और उसी साल संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अपनी पहल की शुरुआत की थी। इस योजना में, फीफा ने साल  2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 50 फीसदी की कमी लाने और 2040 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया था। हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि कार्बन ऑफसेटिंग पर फीफा की निर्भरता में पारदर्शिता की कमी है और यह अपने विस्तारित टूर्नामेंट के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में प्रभावी नहीं हो सकता है। मेजबान देशों की संयुक्त बोली, ने अनुमान लगाया है कि इस आयोजन से लगभग 3.7 लाख टन कार्बन उत्सर्जन होगा, जो अब तक का सबसे अधिक विश्व कप कार्बन उत्सर्जन है। इस रिपोर्ट के अनुसार, यात्रा से होने वाले उत्सर्जन में लगभग 85 फीसदी  की बढ़ोतरी होगी, जिसमें 51 फीसदी अंतरराष्ट्रीय यात्रा और 34 फीसदी घरेलू या शहर के भीतर की यात्रा से होगा। इससे यह साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरह बड़े आयोजन पर्यावरण को प्रभावित कर रहे हैं । 

द हिन्दू में छपे इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के बारे में किए गए अध्ययनों के अनुसार, सिर्फ एक मैच के दौरान लगभग 10,000 से 14,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन होता है। अगर पूरे सीज़न की बात करें, तो यह आंकड़ा 7.5 लाख से 9 लाख टन कार्बन उत्सर्जन तक पहुंच सकता है। जो कि पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है।

खिलाड़ियों पर प्रभाव

विश्व एथलेटिक्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक,  89 देशों के खिलाड़ियों का एक सर्वेक्षण किया गया जिसमें लगभग 80 फीसदी खिलाड़ी जलवायु संकट को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं और आधे से ज्यादा खिलाड़ियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन ने उन्हें पहले ही प्रभावित कर दिया है। द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक,  प्रज्ञा मोहन जो कि एक भारतीय खिलाड़ी है। वह भारत में अत्यधिक गर्मी होने के कारण यूनाइटेड किंगडम में प्रशिक्षण लेने गई, लेकिन उन्होंने उस दिन के लिए चिंता व्यक्त की जब बढ़ती गर्मी उनके खेल को पूरी तरह से खत्म कर देगी। प्रज्ञा ने एक पैनल चर्चा में कहा, भविष्य में, अगर  जलवायु परिवर्तन पर ध्यान नहीं दिया गया और इसे सोच-समझकर नहीं संभाला गया, तो ट्रायथलॉन का अस्तित्व खत्म हो सकता है। वहीं दुनिया भर की महिला फुटबॉल खिलाड़ियों ने एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर करके फीफा से इस समझौते को खत्म करने का आग्रह किया, जिसमें महिलाओं और एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के लोगों के अधिकारों पर देश के रिकॉर्ड और जलवायु परिवर्तन पर जीवाश्म ईंधन उत्पादन के प्रभाव का हवाला दिया गया था।

द वायर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, क्रिकेट आज फुटबॉल के बाद दुनिया का दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल है और यह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और वेस्टइंडीज में बहुत लोकप्रिय है।लगभग ये सभी देश जलवायु संकट के कुछ सबसे बुरे प्रभावों, जैसे अत्यधिक गर्मी की घटनाएं, जंगल की आग, तूफान और सूखे, का सामना कर रहे हैं। वहीं टेस्ट क्रिकेट लगातार पांच दिनों तक खेला जाता है, जिसमें खिलाड़ी मोटे पैड, दस्ताने और हेलमेट पहनते हैं जो वेंटिलेशन में बाधा डालते हैं। क्रिकेट और जलवायु परिवर्तन पर साल 2019 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि एक पेशेवर बल्लेबाज एक दिन के खेल में उतनी ही गर्मी पैदा कर सकता है जितनी एक पूर्ण मैराथन दौड़ने वाले व्यक्ति ने पैदा की हो। इसलिए, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि खिलाड़ियों को खेल की कठोरता के कारण गर्मी से थकावट, तनाव, बेहोशी, उल्टी, दस्त और सांस लेने की समस्याओं जैसे कई स्वास्थ्य प्रभावों का सामना करना पड़ा है। वहीं साल 2023 में, चेन्नई सुपर किंग्स और गुजरात टाइटन्स के बीच होने वाला अंतिम आईपीएल  मैच भारी बारिश और खराब मौसम के कारण दो बार स्थगित करना पड़ा।

फीफा ने साल  2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 50 फीसदी की कमी लाने और 2040 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया था। हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि कार्बन ऑफसेटिंग पर फीफा की निर्भरता में पारदर्शिता की कमी है। और यह अपने विस्तारित टूर्नामेंट के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में प्रभावी नहीं हो सकता है।

भारत में खेल और स्थिरता

स्पोर्ट एंड डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में, खेलों में जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली नीतियां अभी भी विकसित हो रही हैं। हालांकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड  (बीसीसीआई) से लेकर बेंगलुरु एफसी तक, सभी प्रमुख हितधारकों या संगठनों ने स्थायी प्रथाओं को एकीकृत करने की दिशा में कदम उठाए हैं, फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में जलवायु परिवर्तन को शामिल करने वाला एक व्यापक ढांचा अभी तक तैयार नहीं हुआ है।

 आईपीएल ने कचरा प्रबंधन और ऊर्जा की बचत से जुडी पहलों को इकट्ठा  करना शुरू कर दिया है, लेकिन बड़े पैमाने पर स्थिरता योजना अभी भी आयोजन का मूलभूत हिस्सा नहीं है। उदाहरण के लिए  लद्दाख फुटबॉल क्लब का क्लाइमेट कप को देखा जा सकता है, कि कैसे भारतीय खेल की प्रतिस्पर्धा और जलवायु संरक्षण को एक साथ जोड़ा जा सकता है, लेकिन ऐसे कदम ज़्यादातर स्थानीय स्तर पर ही सीमित हो गए हैं। देश के कई क्रिकेट मैदानों में अब वर्षा के पानी को इकट्ठा करना, सोलर पैनल और खेल के मैदान की घास और मिट्टी की देखभाल ऐसे तरीके से करना जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो। इस तरह के उपाय अपनाने शुरू किए हैं। 

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड  (बीसीसीआई) से लेकर बेंगलुरु एफसी तक, सभी प्रमुख हितधारकों या संगठनों ने स्थायी प्रथाओं को एकीकृत करने की दिशा में कदम उठाए हैं, फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में जलवायु परिवर्तन को शामिल करने वाला एक व्यापक ढांचा अभी तक तैयार नहीं हुआ है।

आगे की राह और सुधार के लिए उपाय 

पर्यावरणीय प्लेटफ़ॉर्म अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, खेल दुनिया भर के लोगों के बीच जलवायु संकट के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है, चाहे उनकी भौगोलिक स्थिति और सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। यह पर्यावरण के बारे में महत्वपूर्ण संदेश उन अरबों व्यक्तियों के साथ साझा कर सकता है जो दर्शकों, अभ्यासकर्ताओं  के रूप में खेलों में शामिल होते हैं। सेंटर फॉर स्पोर्ट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी नीतियां, कॉर्पोरेट पहल, आर्थिक प्रोत्साहन और पर्यावरण के प्रति बढ़ती सार्वजनिक जागरूकता इसमें शामिल की जा सकती है। वहीं खिलाड़ी भी पानी बचाना, कचरे के प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग और ऊर्जा की बचत जैसे ज़रूरी स्थिरता मुद्दों पर लोगों में जागरूकता फैला सकते हैं। अगर खेलों में लोग दोबारा इस्तेमाल होने वाली पानी की बोतलें और सार्वजनिक वाहन इस्तेमाल करें,  ऐसे छोटे-छोटे कदम भी जब लाखों लोग अपनाएंगे, तो बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। 

खेल केवल मनोरंजन माध्यम नहीं है। बल्कि समाज में जागरूकता और ज़िमेदारी का प्रतीक भी हैं। पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना कर रही है। ऐसे में यह बहुत ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि खेल जगत अपनी भूमिका को केवल खेल के मैदान तक ही सिमित न रखे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी कदम उठाए। बड़े आयोजनों की चमक के पीछे छिपे कार्बन उत्सर्जन, ऊर्जा की बर्बादी और संसाधनों की ज़्यादा खपत जैसे मुद्दों पर आवाज़ उठाना बहुत ज़रूरी है। साथ ही रिसाइक्लिंग या इस्तेमाल की गई चीजों का दोबारा इस्तेमाल भी पर्यावरण संकट को रोकने में अच्छा  साबित हो सकता है। यह हर एक इंसान की साझा जिम्मेदारी है कि खेलों को पर्यावरण के लिए अनुकूल और सुरक्षित बनाए। क्योंकि पर्यावरण साफ़ और सुरक्षित होगा तब खेलों का महत्व और भी ज़्यादा बढ़ जाएगा। 

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