हाल ही में एक रिपोर्ट में पाया गया है कि फरवरी 2025 भारत में पिछले 125 वर्षों की सबसे गर्म फरवरी रहा है। वर्तमान समय में पर्यावरणीय क्षरण और जलवायु परिवर्तन भारतीय समाज में श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। अत्यधिक गर्मी के कारण काम करने की क्षमता और उत्पादकता प्रभावित हो रही है, जिसके भयावह परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि मौसम के प्रभाव से काम और स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होते हैं। मौसम की मार सबसे ज्यादा उन लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण है जो हाशिये पर रह रहे हैं और उनके लिए आरामदायक स्थिति में रहना संभव नहीं। घरेलू और दिहाड़ी मजदूर जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। लेकिन, आर्थिक मजबूरियों के कारण उन्हें कठिन और अमानवीय स्थिति में भी काम पर जाना पड़ता है। अत्यधिक गर्मी के तनाव से श्रमिकों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें हीट स्ट्रोक, हीट क्रैम्प, हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियां भी शामिल हैं।
इस चुनौती से निपटने के लिए श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और नीतिगत उपायों की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार,सामान्य शारीरिक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए शरीर का तापमान लगभग 37°C बनाए रखना आवश्यक होता है। यदि तापमान 38°C से अधिक हो जाए, तो यह व्यक्ति की संज्ञानात्मक और शारीरिक क्षमताओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। आमतौर पर बच्चे, महिलाएं और श्रमिक वर्ग पर्यावरणीय बदलावों से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। विशेष रूप से, जो महिलाएं श्रमिक हैं और गर्म क्षेत्रों में काम करती हैं, वे विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करती हैं। इस विषय को समझने और अधिक जानकारी के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने कुछ महिलाओं से बातचीत की और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास किया।
घर से बाहर निकलते ही चिलचिलाती धूप से चेहरा झुलसने लगता है, मानो मार्च में ही मई-जून की गर्मी पड़ रही हो। काम एक ही स्थान पर आसानी से नहीं मिलता, इसलिए अलग-अलग जगह जाना पड़ता है। इसके बाद लगातार गैस के पास खड़े रहने से भीषण गर्मी महसूस होती है, लेकिन दूसरा कोई विकल्प नहीं है, इसलिए यह करना ही पड़ता है।
घरेलू काम करते हुए चुनौतियां
उतर प्रदेश की रहने वाली तीस वर्षीय ज्योति दिल्ली में घरेलू कामगार हैं। वो कहती हैं, “मैं दिल्ली में तेरह साल से रह रही हूं। लेकिन पहली बार मार्च के महीने में जून जैसी गर्मी महसूस हुई। जब मैं दिल्ली आई, तब मेरे पास कोई और काम करने का विकल्प नहीं था। पढ़ाई-लिखाई का अवसर न मिलने के कारण मैं किसी नौकरी के योग्य नहीं थी। हालांकि, मैं खाना बनाना जानती थी। इसलिए मैंने इसे ही अपना पेशा बना लिया ताकि इससे कुछ पैसे कमा सकूं और अपने परिवार की आर्थिक मदद कर सकूं। मेरे परिवार में सभी लोग छोटी-मोटी नौकरियां करते हैं, जिससे पारिवारिक खर्च में सबका योगदान रहता है।”

वह आगे बताती हैं, “वर्तमान समय में मेरे लिए बच्चों की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि अशिक्षा का दुख मैं खुद समझती हूं। मुझे सुबह छह बजे घर से निकलना पड़ता है और दोपहर बारह बजे लौटती हूं। दिल्ली का मौसम अभी से ही बहुत खराब हो रहा है। घर से बाहर निकलते ही चिलचिलाती धूप से चेहरा झुलसने लगता है, मानो मार्च में ही मई-जून की गर्मी पड़ रही हो। काम एक ही स्थान पर आसानी से नहीं मिलता, इसलिए अलग-अलग जगह जाना पड़ता है। इसके बाद लगातार गैस के पास खड़े रहने से भीषण गर्मी महसूस होती है, लेकिन दूसरा कोई विकल्प नहीं है, इसलिए यह करना ही पड़ता है।”
खेती करना आसान काम नहीं है। पूरे दिन खुले आसमान के नीचे बैठकर फसलों की देखभाल करनी पड़ती है ताकि कोई जानवर आकर उन्हें बर्बाद न कर दे। इस कारण हर समय निगरानी रखना जरूरी होता है। साथ ही, खेत की सफाई, खाद डालना और सिंचाई करना भी आवश्यक होता है। बढ़ती गर्मी के कारण यह काम और कठिन हो गया है।
भारत उन देशों में से एक है, जो गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित और संवेदनशील हैं। गर्म दिनों और रातों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। एक अध्ययन के अनुसार, 2050 तक इनकी संख्या दो से चार गुना बढ़ने की संभावना है। समय से पहले हीट वेव के आने, लंबे समय तक बने रहने और बार-बार होने का भी अनुमान लगाया जा रहा है। इसका सबसे अधिक प्रभाव घरेलू कामगारों और श्रमिकों पर पड़ेगा, जो पहले से ही कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। दिल्ली की रहने वाली चालीस वर्षीय प्रियंवदा दिहाड़ी मजदूर हैं। वो ईंट उठाकर ब्लीडिंग तक पहुंचाने का काम करती हैं। वह कहती हैं, “गर्मी तो है, लेकिन काम न करने का कोई बहाना नहीं है। अगर काम नहीं करूंगी तो घर कैसे चलेगा?”
वह आगे कहती हैं, “इसलिए जहां भी काम मिलता है, वहीं करती हूं। दिल्ली में रहते हुए लगभग बीस वर्ष हो गए, लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है जैसे गर्मी जल्दी आ गई है। अभी से ही काम के दौरान ऐसा महसूस होता है कि चक्कर खाकर गिर जाऊँगी। इतना काम करने के बावजूद भी इतने पैसे नहीं हैं कि एक कमरा लेकर गुजारा कर सकूं। इसलिए, झुग्गी में रहना पड़ता है। पंखा चलाने पर भी गर्म हवा निकलती है और कई बार बिजली चली जाती है। लेकिन क्या करें, वैसे ही रह रहे हैं। कई बार तो बिना सोए ही रात बीत जाती है। परिवार में किसी के पास स्थायी नौकरी नहीं है, जिससे नियमित आय हो सके। इस भीषण गर्मी में काम करना बहुत मुश्किल है। लेकिन मजबूरी में करना पड़ रहा है। इस बार तो मार्च से ही गर्मी अपने चरम पर है। आगे न जाने क्या होगा।”
गर्मी तो है, लेकिन काम न करने का कोई बहाना नहीं है। अगर काम नहीं करूंगी तो घर कैसे चलेगा? इसलिए जहां भी काम मिलता है, वहीं करती हूं। दिल्ली में रहते हुए लगभग बीस वर्ष हो गए, लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है जैसे गर्मी जल्दी आ गई है। अभी से ही काम के दौरान ऐसा महसूस होता है कि चक्कर खाकर गिर जाऊँगी।
कैसे गर्मी कर रही है श्रम बाजार का नुकसान
एक रिपोर्ट के अनुसार, गर्मी की चपेट में आने से साल 2021 में भारत में 167.2 बिलियन संभावित श्रम घंटे का नुकसान हुआ, जिससे देश के जीडीपी का लगभग 5.4 प्रतिशत आय प्रभावित हुआ। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की नवीनतम वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार बदलती जलवायु के कारण विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिहाज से नाजुक स्थिति में हैं। खासतौर पर कृषि, श्रमिक और गर्म जलवायु में भारी श्रम करने वाले अन्य बाहरी श्रमिक अधिक जोखिम में हैं। लगातार बढ़ती गर्मी उनके काम को और कठिन बना रही है, जिससे उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है। इस विषय पर राजस्थान की रहने वाली पचास वर्षीय सुल्ताना जो दिल्ली में रैगपिकर का काम करती हैं, कहती हैं, “बढ़ती गर्मी को देखते हुए काम करना आसान नहीं है, लेकिन मजबूरी में करना पड़ता है। नहीं तो एक दिन की मजदूरी काट ली जाएगी।”

वह आगे बताती हैं, “मेरे परिवार में मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। इसलिए हर दिन कोशिश रहती है कि कुछ पैसे कमा सकूं। जिस दिन कमाई नहीं होती, उस दिन खाना भी मुश्किल हो जाता है। काम की वजह से हमेशा खुले स्थानों पर रहना पड़ता है, जिससे दिक्कतें और बढ़ जाती हैं। पहले गर्मी थोड़ी देर से आती थी, लेकिन इस बार फरवरी से ही महसूस होने लगी है। लगातार तेज धूप और गर्मी में काम करना बेहद कठिन होता जा रहा है। कई बार काम ढूँढने बहुत दूर-दूर तक जाना पड़ता है। मन करता है कि कहीं छांव में बैठ जाऊं। लेकिन दिल्ली में छांव मिलना बहुत मुश्किल है। कई बार तो चक्कर खाकर गिर जाते हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की नौबत तक आ जाती है। तेज धूप और भीषण गर्मी में काम करना मुश्किल होता जा रहा है।”
कई बार काम ढूँढने बहुत दूर-दूर तक जाना पड़ता है। मन करता है कि कहीं छांव में बैठ जाऊं। लेकिन दिल्ली में छांव मिलना बहुत मुश्किल है। कई बार तो चक्कर खाकर गिर जाते हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की नौबत तक आ जाती है। तेज धूप और भीषण गर्मी में काम करना मुश्किल होता जा रहा है।
हीट वेव से झुलसते और मरते लोग
एक अध्ययन के अनुसार, साल 2024 में, भारत ने अपनी सबसे लंबी हीटवेव का सामना किया। उत्तर प्रदेश में 1 मार्च से 9 जून के बीच 20 दिन हीटवेव दर्ज की गई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 1 मार्च से 18 जून के बीच लगभग 110 लोगों की मौत हीट स्ट्रोक से हुई, जबकि 40,000 से अधिक संदिग्ध मामले सामने आए। हालांकि, काम से जुड़ी बीमारियों या गर्मी के कारण होने वाली मौतों का आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है। फिर भी, रिपोर्टों से पता चलता है कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में कई लोगों की जान गई। लगातार बढ़ती गर्मी और लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव से श्रमिकों और कमजोर तबके के लोगों के लिए हालात और कठिन होते जा रहे हैं। विश्व बैंक की 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल2030 तक पूरे भारत में हर साल 16 से 20 करोड़ से अधिक लोगों के घातक गर्मी की चपेट में आने की संभावना है, जिससे स्वास्थ्य और जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
इस विषय पर उतरप्रदेश की चालीस वर्षीय नैना जो दिल्ली में यमुना किनारे रहकर खेती करती हैं वो कहती हैं, “दस साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आई थी। लेकिन यहां आने के बाद काम मिलना आसान नहीं रहा। मजबूरी में यमुना किनारे झुग्गी में रहकर खेती करने लगी, जो अब आय का मुख्य स्रोत बन गया है। परिवार में पति और दो बच्चे हैं, जिनकी पढ़ाई से लेकर देखभाल की जिम्मेदारी मुझ पर ही है। बदलते मौसम का प्रभाव न केवल हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है, बल्कि खेती को भी उतना ही प्रभावित करता है। अत्यधिक गर्मी, अनियमित बारिश और बदले हुए मौसम के कारण फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जिससे आमदनी पर असर पड़ता है। बढ़ती गर्मी के साथ काम करना और भी मुश्किल हो रहा है, लेकिन परिवार के लिए यह सब करना जरूरी है।”
एक अध्ययन के अनुसार, साल 2024 में, भारत ने अपनी सबसे लंबी हीटवेव का सामना किया। उत्तर प्रदेश में 1 मार्च से 9 जून के बीच 20 दिन हीटवेव दर्ज की गई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 1 मार्च से 18 जून के बीच लगभग 110 लोगों की मौत हीट स्ट्रोक से हुई, जबकि 40,000 से अधिक संदिग्ध मामले सामने आए।
खेतिहर मजदूर की दिक्कतें
वह आगे कहती हैं, “खेती करना आसान काम नहीं है। पूरे दिन खुले आसमान के नीचे बैठकर फसलों की देखभाल करनी पड़ती है ताकि कोई जानवर आकर उन्हें बर्बाद न कर दे। इस कारण हर समय निगरानी रखना जरूरी होता है। साथ ही, खेत की सफाई, खाद डालना और सिंचाई करना भी आवश्यक होता है। बढ़ती गर्मी के कारण यह काम और कठिन हो गया है। कई बार अत्यधिक गर्मी के कारण फसलें झुलस जाती हैं, जिससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है।” भारत में बढ़ती गर्मी का गंभीर प्रभाव घरेलू और दिहाड़ी महिला श्रमिकों पर पड़ रहा है। वे असुरक्षित और असंगठित जगहों पर बहुत ज्यादा तापमान में काम करने को मजबूर हैं। हालांकि कुछ शहरों में हीट एक्शन प्लान बनाए गए हैं।

लेकिन ये योजनाएं हाशिए पर मौजूद महिलाओं तक प्रभावी रूप से नहीं पहुंच पा रही हैं। देश को बढ़ती गर्मी से निपटने के लिए समावेशी नीतियां अपनाने की जरूरत है। कार्यस्थलों पर छाया, पीने के पानी और आराम की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। स्वास्थ्य बीमा और आपातकालीन चिकित्सा सहायता भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ ही, जलवायु अनुकूलन नीतियों को अधिक प्रभावी बनाया जाए ताकि देश गर्मी के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए तैयार हो सके। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो कमजोर वर्गों के लिए जीवनयापन और कठिन हो जाएगा।