भारतीय सिनेमा जगत में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। जिसमें महिलाओं को अपनी जगह बनाने के लिए काफी जद्दोजहद का सामना करना पड़ा। जहां महिलाओं के लिए घर की चारदीवारी से बाहर निकलना आसान नहीं था । वहीं कुछ महिलाएं ऐसी रही हैं जिन्होंने न केवल पितृसत्तात्मक रूढ़िवादी नियमों को तोड़ा बल्कि घर की चारदीवारी से निकलर सिनेमा के बड़े पर्दे पर अपनी पहचान बनाई । उन्हीं में से एक थीं आर सुब्बालक्ष्मी जिन्होंने अपनी अदाकारी के माध्यम से कई लोगों के दिलों को जीता और कई फिल्मों में काम किया । केवल अभिनय ही नहीं बल्कि संगीत के क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी ।
साथ ही उन सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बनी जो महिलाएं अपने जीवन में कुछ अलग करना चाहती हैं । हमारे पितृसत्तात्मक समाज में बहुत सी महिलाओं को अक्सर यह सुनने को मिलता है कि अब उम्र निकल चुकी है। अपने लिए कुछ करने की या कुछ कर दिखाने की। ऐसे में सुब्बालक्ष्मी का जीवन उन सब महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है, जो सिखाता है कि अपने लिए कुछ करने के लिए उम्र की सीमा मायने रखती बल्कि हुनर और जज़्बा मायने रखता है ।
आर सुब्बालक्ष्मी जिन्होंने अपनी अदाकारी के माध्यम से कई लोगों के दिलों को जीता और कई फिल्मों में काम किया । केवल अभिनय ही नहीं बल्कि संगीत के क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी ।
संगीत से सिनेमा तक बहुमुखी कलात्मक यात्रा
आर. सुब्बालक्ष्मी का जन्म 21 अप्रैल 1936 में मद्रास में हुआ था। बचपन से ही उनका रुझान संगीत की तरफ था। उन्होंने कर्नाटक संगीत की बारीकियों को सीखा ही नहीं बल्कि उसे अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। साथ ही वह जवाहर बालभवन में संगीत और नृत्य की प्रशिक्षक के तौर पर काम किया करती थीं। इसके बाद साल 1951 में वह ऑल इंडिया रेडियो में गायन का काम करने लगी । यही नहीं वह दक्षिण भारत से ऑल इंडिया रेडियो की पहली महिला संगीतकार के रूप में लोकप्रिय थीं। यह उस दौर में एक बड़ी उपलब्धि थी, जब महिला कलाकारों के लिए विकल्प सीमित थे।उन्होंने प्ले बैक सिंगर के तौर पर कई फिल्मों में गायन किया जिनमे, साल 2010 में फिल्म मैरीकुंडोरु कुंजाडु का एंटाडुके वन्नादुक्कम , साल 2012 में फिल्म ओझिमुरी, साल 2015 में फिल्म रुद्र सिंहासनम , साल 2016 अम्मानी और साल 2019 में जिमी ई वेदिंते ऐश्वर्याम आदि फिल्मों के गानों में पार्श्व गायिका के तौर पर काम किया।
गायन ही नहीं बल्कि उन्होंने एक डबिंग कलाकार के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और कई किरदारों को अपनी आवाज़ दी। साल 2007 की एक फिल्म रॉक एन रोल में उन्होंने चंद्रमौली की माँ वनिता कृष्णचंद्रन का किरदार के लिए आवाज़ दी ।ओझिमुरी फिल्म में भी उन्होंने आवाज़ कलाकार के रूप में काम किया और साल 2019 में फिल्म जैक एंड डैनियल में एक बूढ़ी महिला के किरदार की आवाज के लिए डबिंग की। उन्होंने टीवी विज्ञापनों, धारावाहिकों और शो में अभिनय करके टेलीविजन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रभाव डाला। जहां उन्होंने कई भूमिकाएं निभाईं और अपने काम से कई दर्शकों के में मन में अपनी अमिट छाप छोड़ी। वह कई विज्ञापनों में देखी गई जिनमें, सर्फ एक्सेल क्विक वॉश, कोलगेट,नेरोलैक पेंट्स, कल्याण ज्वैलर्स, हॉर्लिक्स आदि के ऐड प्रमुख हैं जिससे उन्हें एक अलग पहचान मिली। साथ ही उन्होंने लगभग 65 से अधिक टीवी धारावाहिकों में अभिनय किया। उनके टेलीविजन योगदानों के माध्यम से दूरदर्शन धारावाहिक वलयम, गंधर्वयम और रामेत्तन आदि में काम करके खूब सुर्खियां बटोरीं। इसके अलावा उन्होंने कुछ टेलीफिल्मों और एल्बमों में भी अभिनय किया।
साल 1951 में वह ऑल इंडिया रेडियो में गायन का काम करने लगी । यही नहीं वह दक्षिण भारत से ऑल इंडिया रेडियो की पहली महिला संगीतकार के रूप में लोकप्रिय थीं। यह उस दौर में एक बड़ी उपलब्धि थी, जब महिला कलाकारों के लिए विकल्प सीमित थे।
सिनेमा और फ़िल्मी करियर
केवल मलयालम में ही नहीं, बल्कि उन्होंने तेलुगु, हिंदी, तमिल, कन्नड़ और संस्कृत फिल्मों में भी अभिनय किया। उन्होंने अंग्रेजी फिल्म ‘इन द नेम ऑफ गॉड’ में भी अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने साल 1980 में एक मलयालम फिल्म आरोहणम से डेब्यू किया था। लेकिन इससे उन्हें ज़्यादा प्रसिद्धि नहीं मिली। इसके कई साल बाद फिल्म उद्योग में उनका प्रवेश एक टेलीविजन धारावाहिक की शूटिंग के दौरान हुआ, जहां उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता सिद्दीकी से हुई, उनके साथ उनकी बेटी, भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना और अभिनेत्री थारा कल्याण भी थीं।
उस मुलाकात ने उनके लिए सिनेमा के द्वार खोल दिए, इसके बाद उन्होंने रंजीत की निर्देशित और सिद्दीकी की निर्मित साल 2002 की ब्लॉकबस्टर फिल्म नंदनम में एक घरेलू सहायिका की दादी के किरदार के रूप में अपनी शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने लगातार कई मलयालम फिल्मों में दादी की भूमिका निभाई। इस किरदार ने उन्हें एक अलग पहचान दी। कई बार लोग उन्हें उनके असली नाम की जगह दादी कहकर भी बुला देते थे। कम स्क्रीन समय के बावजूद अपने अनोखे अभिनय से उन्होंने कई लोगों का दिल जीता। साल 2002 में फिल्म कल्याणरमन’ में कार्तय्यायनी के रूप में उनकी भूमिका आज भी हर मलयाली चेहरे पर सुब्बालक्ष्मी की प्रेम कहानी के लिए मुस्कान ला देती है।
उन्होंने निर्देशक रंजीत की निर्देशित और फिल्म निर्माता सिद्दीकी की निर्मित की हुई साल 2002 की ब्लॉकबस्टर फिल्म नंदनम में एक घरेलू सहायिका की दादी के किरदार के रूप में अपनी शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने लगातार कई मलयालम फिल्मों में दादी की भूमिका निभाई।
इसके अलावा उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया, जिसमें साल 2005 में पांडिप्पाडा, क्लासमेटस,रोमियो ,कुथारा, अवरुदे विदु, चिरकोडिंजा किनावुकल, रानी पद्मिनी , बूमरैंग आदि मलयालम फिल्मों में काम किया। इसके अलावा उन्होंने तेलुगु में फिल्म कल्याण रामुडु और ये मैया चेसावे में भी अभिनय किया। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी सिनेमा में साल 2012 में फिल्म एक दीवाना था में जेसी की दादी के रूप में भूमिका निभाई, साल 2020 में दिल बेचारा फिल्म में भी एक दादी का किरदार निभाया और साल 2023 की एक फिल्म द केरला स्टोरी में भी उन्होंने अपने अभिनय से सबका दिल जीता। इस तरह अपने जीवन के अंतिम साल तक वो सिनेमा में अपनी भूमिका अदा करती रहीं। उसी दौरान साल 30 नवंबर 2023 को उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन अपने गायन और अभिनय के माध्यम से वो हमेशा के लिए सबके दिलों में रहेंगी और याद की जाती रहेंगी।
आर सुब्बालक्ष्मी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कला के लिए उम्र की सीमाओं और बंधनों से बढ़कर इंसान का जुनून मायने रखता है। उनके संगीत और अभिनय ने केवल उन्हें दक्षिण भारत में बल्कि पुरे भारत में एक जानी मानी शख्सियत बना दिया। दादी के किरदार को उन्होंने हर एक फिल्म में बखूबी निभाया और दर्शकों के दिलों में कभी न भुलाई जाने वाली अमिट छाप छोड़ी। संगीत से लेकर बड़े पर्दे तक उनकी यात्रा आज भी उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने जीवन में किसी भी उम्र में नया रास्ता चुनना चाहती हैं। उनकी बहुमुखी प्रतिभा से यह भी सीखा जा सकता है, कि कला कभी उम्र की मोहताज नहीं होती है।

