समाजख़बर जेंडर इक्वलिटी की दौड़ में क्यों पिछड़ रहा है भारत?

जेंडर इक्वलिटी की दौड़ में क्यों पिछड़ रहा है भारत?

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2025 की इस जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार भारत को 64.4 फीसद स्कोर के साथ 148 देशों में से 131वां स्थान मिला है, जो साल 2024 के 129वें स्थान की तुलना में 2 स्थान नीचे खिसक गया है।

लैंगिक समानता आज भी दुनिया के सबसे अहम सामाजिक और राजनीतिक सवालों में से एक है। सरकारें, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और नागरिक समाज इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत अक्सर दावों से अलग दिखती है। इसी अंतर को समझने और मापने के लिए हर साल वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट जारी करता है। यह रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक भागीदारी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे अहम क्षेत्रों में महिलाएं और पुरुष किस हद तक बराबरी की ओर बढ़ पाए हैं।

बीते दिनों वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने अपनी 19वीं ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में दुनिया के 148 देशों में लैंगिक समानता की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर जेंडर गैप अब 68.8 प्रतिशत तक कम हो चुका है। कोरोना महामारी के बाद यह अब तक का सबसे बेहतर सालाना सुधार माना जा रहा है। हालांकि, रिपोर्ट एक गंभीर चिंता भी सामने रखती है। अगर लैंगिक समानता में सुधार की रफ्तार इसी तरह बनी रही, तो दुनिया को जेंडर इक्वलिटी हासिल करने में अभी भी लगभग 123 साल और लगेंगे। यह दिखाता है कि प्रगति के बावजूद राह अब भी लंबी और चुनौतीपूर्ण है। भारत के संदर्भ में यह रिपोर्ट खास महत्व रखती है।

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सबसे बड़े लोकतंत्र होने के बावजूद, भारत में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है। कई मामलों में भारत अपने पड़ोसी देशों से भी पीछे है। एक ओर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर एक महिला मौजूद हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। भारत में महिलाएं शिक्षा, विज्ञान, खेल और राजनीति जैसे क्षेत्रों में ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कर रही हैं। इसके बावजूद, वर्कफोर्स में उनकी भागीदारी, आय में समानता और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दों पर अब भी गंभीर चुनौतियां बनी हुई हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 भारत में मौजूद इन्हीं जटिल और विरोधाभासी सच्चाइयों को सामने लाती है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2025 की इस जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार भारत को 64.4 फीसद स्कोर के साथ 148 देशों में से 131वां स्थान मिला है, जो साल 2024 के 129वें स्थान की तुलना में 2 स्थान नीचे खिसक गया है।

भारत की रैंकिंग और स्कोर

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2025 की इस जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार भारत को 64.4 फीसद स्कोर के साथ 148 देशों में से 131वां स्थान मिला है, जो साल 2024 के 129वें स्थान की तुलना में 2 स्थान नीचे खिसक गया है। जहां दूसरे देश यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश भी सुधार की ओर बढ़ रहे हैं वहीं भारत की रैंकिंग में आई यह गिरावट बेहद चिंताजनक है। ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश (24), चीन (103), भूटान (119), नेपाल (125) और श्रीलंका (130) भारत से काफ़ी बेहतर स्थिति में हैं। इस मामले में सिर्फ़ एक पड़ोसी देश पाकिस्तान 148वें स्थान के साथ भारत से नीचे है। भारत में विकास दर काफ़ी असमान बनी हुई है, जहां शिक्षा के क्षेत्र में भारत का स्कोर 97.1 है, वहीं आर्थिक भागीदारी में यह सिर्फ़ 40.7 है।

इससे पता चलता है कि यहां उच्च शिक्षित महिलाओं को अपनी योग्यता के अनुसार आर्थिक भागीदारी का अवसर नहीं मिल पाता है। इनकम इक्वलिटी में 29.9 फीसद का स्कोर दिखाता है कि देश में महिलाओं की औसत आमदनी पुरुषों की तुलना में काफ़ी कम है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ज़्यादातर महिलाएं अवैतनिक या कम वेतन वाली, असुरक्षित और असंगठित क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। हालांकि स्वास्थ्य के क्षेत्र में जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार देखा गया है। लेकिन राजनीतिक सशक्तीकरण के क्षेत्र में देश की महिलाएं अभी भी काफ़ी पीछे हैं। संसद में महिलाओं की भागीदारी 14.7 फीसद से घटकर 13.8 पर पहुंच गई है, जबकि मंत्री पदों पर यह 6.5 फीसद से घटकर 5.6 फीसद तक सीमित हो गई है। 

इनकम इक्वलिटी में 29.9 फीसद का स्कोर दिखाता है कि देश में महिलाओं की औसत आमदनी पुरुषों की तुलना में काफ़ी कम है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ज़्यादातर महिलाएं अवैतनिक या कम वेतन वाली, असुरक्षित और असंगठित क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।

देश में जेंडर गैप के पीछे की वजहें

भारत में जेंडर गैप की सबसे बड़ी वजह इसकी पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना है। लंबे समय से भारत में आर्थिक, राजनीतिक और नीति निर्माण में पुरुषों का एकाधिकार रहा है, जबकि महिलाओं को घरेलू कामों में सीमित कर दिया गया है। इसका सीधा असर महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, संपत्ति और सार्वजनिक क्षेत्रों में भागीदारी पर पड़ रहा है। रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार देखा गया है लेकिन अब भी उच्च, तकनीकी और प्रोफेशनल कोर्सेज में महिलाओं की भागीदारी कम पाई गई है। परिवार में सीमित संसाधन होने पर अक्सर लोग लड़कियों की तुलना में लड़कों की पढ़ाई को ज़्यादा प्राथमिकता देते हैं। वहीं कम उम्र में शादी, घरेलू ज़िम्मेदारियों और सुरक्षित माहौल न मिलने की वजह से लड़कियों का स्कूल ड्रॉपआउट रेट भी ज़्यादा है। 

महिलाओं पर अवैतनिक कामों का बोझ, शादी, बच्चे, वर्कप्लेस पर असुरक्षित माहौल और वेतन में भेदभाव की वजह से बहुत सी महिलाओं को अपने कॅरियर से समझौता करना पड़ता है। इस वजह से आर्थिक असमानता और बढ़ जाती है। इसके साथ-साथ परिवार में होने वाले भेदभाव की वजह से महिलाओं का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है जिससे कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं बढ़ जाती है। इसके अलावा राजनीतिक स्तर पर भी जेंडर गैप साफ दिखाई देता है। संसद और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी कम होने की वजह से नीतियां बनाने में महिलाओं की ज़रूरतों और सुविधाओं को ध्यान में नहीं रखा जाता। लैंगिक समानता के लिए बने संवैधानिक और क़ानूनी प्रावधानों के बावजूद समाज की रूढ़िवादी सोच की वजह से अभी भी ज़मीनी स्तर पर लैंगिक समानता हासिल नहीं हो पाई है।

महिलाओं पर अवैतनिक कामों का बोझ, शादी, बच्चे, वर्कप्लेस पर असुरक्षित माहौल और वेतन में भेदभाव की वजह से बहुत सी महिलाओं को अपने कॅरियर से समझौता करना पड़ता है। इस वजह से आर्थिक असमानता और बढ़ जाती है।

जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 के वैश्विक मायने 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 दुनिया की 148 देशों पर आधारित है। इस साल के लिए जेंडर गैप स्कोर 68.8 फीसद पाया गया, जो कि 2024 के 68.4 की तुलना में मामूली सुधार को दिखा रहा है। जेंडर गैप स्कोर 68.8 फीसद का मतलब है कि दुनिया ने अब तक जेंडर गैप का 68.8 फीसद कम किया है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि अब तक किसी भी देश ने पूरी तरह से जेंडर इक्वलिटी हासिल नहीं की है। 92.6 फीसद स्कोर के साथ सूचकांक में लगातार 16 सालों से पहले स्थान पर बना हुआ आइसलैंड 2022 से जेंडर गैप को 90 फीसद से ज़्यादा कम करने वाला इकलौता देश है। जेंडर गैप को कम करने में दुनिया के टॉप 10 देशों में से 8 यूरोप से हैं। इसमें 87.9 फीसद स्कोर के साथ फिनलैंड दूसरे स्थान पर है जबकि 86.3 फीसद स्कोर के साथ नॉर्वे को तीसरा स्थान मिला हुआ है। यूरोपीय देशों के अलावा न्यूजीलैंड को 82.7 फीसद स्कोर के साथ 5वां स्थान मिला है जबकि 81.1 फीसद स्कोर के साथ अफ्रीकी देश नामीबिया 8वें स्थान पर है।

यूरोपीय देशों में पाया गया कि राजनीतिक और आर्थिक सशक्तीकरण में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है जबकि वैश्विक स्तर पर राजनीतिक सशक्तीकरण में सबसे ज़्यादा सुधार देखा गया है। इसके बावजूद यह अभी भी सबसे बड़ा अंतर वाला क्षेत्र है, जहां केवल जेंडर गैप में सिर्फ़ 22.9 फीसद का सुधार हुआ है। सूचकांक में शामिल 148 देशों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में जेंडर गैप 96.02 फीसद तक कम हुआ है। जबकि शिक्षा में जेंडर गैप में 95.01 फीसद की कमी आई है, वहीं आर्थिक भागीदारी में 61 फीसद की कमी पाई गई है। अलग-अलग क्षेत्रों की बात करें तो उत्तरी अमेरिका ने जेंडर गैप कम करने में सबसे तेजी दिखाई है, इसने 75 फीसद तक कम कर लिया है। जबकि दक्षिण एशिया जेंडर गैप कम करने के मामले में 64.6 फीसद स्कोर के साथ 7वें स्थान पर है। दक्षिण एशिया का इकलौता देश बांग्लादेश 24वें स्थान के साथ टॉप के 50 देश में जगह बना पाया है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 दुनिया की 148 देशों पर आधारित है। इस साल के लिए जेंडर गैप स्कोर 68.8 फीसद पाया गया, जो कि 2024 के 68.4 की तुलना में मामूली सुधार को दिखा रहा है।

क्या हो सकती है आगे की राह

भारत में लैंगिक समानता को हासिल करने के लिए कई स्तरों पर काम करने की ज़रूरत है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार जेंडर गैप के मामले में भारत में राजनीति में भागीदारी सबसे कमज़ोर पहलू है। साल 2023 में लोकसभा और राज्यसभा में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने वाला नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित होने के बावजूद अगली जनगणना के बाद होने वाले परिसीमन की शर्त की वजह से इस अभी तक लागू नहीं हो पाया है, जिसे जल्द से जल्द किए जाने की ज़रूरत है। इसके साथ ही सभी राजनीतिक दलों को अपने स्तर पर अपनी पार्टी के अंदर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की ज़रूरत है। यह भी ज़रूरी है कि चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह बनाया जाए जो किसी भी तरह के धनबल, बाहुबल और भ्रष्टाचार से परे हो, जिससे राजनीति में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बने।

बचपन से ही परिवार में लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मोर्चे पर महिलाएं समान रूप से आगे आ सकें। इसके लिए समाज की सोच बदलनी होगी और सभी जेंडर्स को एक समान मौके देने होंगे। उच्च, तकनीकी शिक्षा और प्रोफेशनल कोर्सेज में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की भी ज़रूरत है, जिससे उनकी आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। वर्कप्लेस पर सभी को सुरक्षित और समावेशी माहौल मुहैया कराने की भी ज़रूरत है। साथ ही घरेलू और अवैतनिक कामों का बोझ महिलाओं के ऊपर से ख़त्म करके परिवार के सभी सदस्यों में बांटना होगा, जिससे महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त बनाने वाले कामों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकें। जेंडर इक्वलिटी न केवल सामाजिक न्याय का सवाल है बल्कि सतत और समावेशी विकास की नींव भी है। जब तक शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और राजनीति में महिलाओं को बराबरी का अवसर नहीं मिलेगा, तब तक समावेशी विकास का लक्ष्य अधूरा ही रहेगा।

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