समाज में यौन विकृति शुरू से है और जिसका सबसे वीभत्स रूप बाल यौन शोषण हैं| लेकिन अपनी वीभत्सता के बावजूद इसके दर्द की आवाज़ हमेशा ही मौन रही| यही कारण है कि जब महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं तो हम एक लम्बी खामोशी ओढ़ लेते हैं या एक-दूसरे पर दोषारोपण का खेल शुरू कर देते हैं जिसकी समाप्ति पीड़िता के परिधान या उस मनहूस घड़ी या उसके अनुसार जगह के चुनाव पर ठीकरा फोड़ देने से होती है| लेकिन अब समय है इस बात पर गौर करने का कि आखिर हमारे समाज में ऐसे कौन से तत्व हैं जिसके चलते हमारे समाज में यौन शोषण के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं|
पीडोफीलिया : बाल यौन शोषण का रोग
‘बाल यौन शोषण’ शोषण का एक प्रकार है जिसमें एक वयस्क या बड़ा किशोर अपने आनंद के लिये एक बच्चें का यौन शोषण करता है, जितना घृणित ये परिभाषा से लग रहा है| वास्तविकता में भी इतना ही शर्मनाक है कि भारत भी उन कुख्यात देशों में आता है जहाँ मासूम बच्चों के साथ दुराचार होता है। बाल यौन शोषण को बच्चों के साथ छेड़छाड़ के रुप में भी परिभाषित किया जाता है।
पीडोफ़ीलिया एक ऐसी स्थिति है जिसे समाज घृणित मानता है लेकिन साथ ही साथ उससे जुड़े मामलों से आकर्षित भी होता है| सामान्यतः पीडोफ़ाइल ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जिसे बच्चों के संपर्क से यौन आनंद मिलता है। पीडोफ़ीलिया की स्थिति उत्पन्न होने के लिए एक वयस्क, एक बच्चा और असहमति से बनाए गए यौन संबंध का होना ज़रूरी होता है|
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अब तक पीडोफ़ीलिया की कोई एक वजह पता नहीं चली है और पीडोफ़ीलिक प्रवृत्ति विकसित होने के लिए कई कारण एक साथ काम करते हैं|
दिमाग़ पर हुए तंत्रिका संबंधी आघात (जिनमें न्यूरोटॉक्सिन, जेनेटिक गड़बड़ी और सिर पर लगी चोट शामिल हैं) को पीडोफ़ीलिया की संभावित वजहें बताया जाता है| लेकिन इस वक्त तो यकीन के साथ यही कहा जा सकता है कि बच्चों के साथ किसी वयस्क का यौन संपर्क दिमाग़ी गड़बड़ी का ही परिणाम हो सकता है|
पीडोफ़ाइल ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जिसे बच्चों के संपर्क से यौन आनंद मिलता है।
बाल यौन शोषण के लक्षण
ऐसी दुर्घटना के बाद बच्चे डर या शर्म से चुप्पी साध लेते है, इसीलिए उनके पैरेंट्स को इसके लक्षणों को समझना चाहिए जैसे कि –
1) नींद आने में समस्या होना या डरावने सपने आना |
2) नहाते समय या उचित समय पर अपने कपडे उतारने से डरना या हिचकिचाना |
3) अचानक से भाव बदल जाना या गुस्सा आ जाना |
4) यौन शोषण के बारे में बात करना या संकेत देना |
5) किसी पहचान के बड़े या बच्चे की मौजूदगी में जाने से डरना या छिपना |
6) एकदम से नए खिलोने या अन्य गिफ्ट्स मिलना |
7) खिलौनों के साथ यौन सम्बन्धी चीज़ों की नक़ल करना|
8) अपने आप में सीमित रहना या एकदम से बड़ों से नजदीकी बढ़ाना l
9) अपने आप को नुक्सान पहुँचानाl
10) बड़ों की भाषा का इस्तेमाल करना|
ये कुछ ऐसी बातें है जो ऐसे हादसे से जुड़ी हुई है ये कुछ ऐसे लक्षण है जिनको परिजन भांप ले तो बड़ी मुसीबत से बचा जा सकता है । समय बीतने के साथ बचपन की घटना भयंकर रूप ले सकती है| जैसे – हेल्थ प्रोब्लेम्स, डिप्रेशन,एंग्जायटी, रिलेशन शिप और सेक्सुअल प्रोब्लेम्स, ओबेसिटी, स्ट्रेस और पर्सनालिटी डिसऑर्डर आदि।
समय बीतने के साथ बचपन की घटना भयंकर रूप ले सकती है|
घटना किस उम्र में हुई, टाइप ऑफ़ ट्रामा, एब्यूज चाहे सेक्सुअल, फिजिकल और इमोशनल हों, इसका असर लंबे समय तक उसके दिमाग और शरीर पर रहता है किसी भी तरह की अनदेखी या लापरवाही बच्चे का विकास रोक सकती है| साथ ही बच्चों को इस हिंसा से कुछ इस तरह बचाया जा सकता है –
1) अंगों के बारे में बताना – इस जानकारी से बच्चों को पता होता है कि उन्हें कोई उनके शरीर (खासकर गुप्तांगों) को नहीं छू सकता है|
2) यह बताना कि कई अंग निजी होते है – बच्चों को यह बताना ज़रूरी है कि टांगों के बीच में, पीछे और छाती में उनके माता-पिता के अलावा कोई और उन्हें बिना कपड़ो के नहीं देख सकता या उनकी निगरानी के बिना वह छू नहीं सकता|
3) बच्चों को यह भी बताना ज़रूरी है कि अपने बदन के बारे में संकोच महसूस करना सही नहीं है|
5) बच्चों को बताएं कि कोई भी उनके निजी-अंगों की फोटोग्राफ नहीं ले सकता और न ही कोई उनको यह फोटो दिखा सकता है |
6) बच्चों को ये भी समझाना ज़रूरी है कि इसतरह से अंग छूने से गुदगुदी हो सकती है या हो सकता है कि दर्द न हो, इसका यह मतलब नहीं की यह छूना जायज है|
ये सभी कुछ ऐसी बातें हैं जिससे हम अपने बच्चे को बाल यौन शोषण का शिकार होने से बचा सकते हैं| हालाँकि शारीरिक निशान आम बात नहीं है| फिर भी निशान जैसे की गुप्तांगों पर लाली, खरोंच, सूजन, अगर बच्चे को हों तो इनके होने के कारणों के तह तक जाएँ।
अगर आप का बच्चा बड़ों की तरह बर्ताव करने लगे जो उसके उम्र के अनुरूप ना हों तो भी सतर्क हो जायें। पर एक बात यह भी ध्यान रखें कि कुछ बच्चों में आपको यौन शोषण से सम्बंधित कोई भी लक्षण नहीं मिलेंगे।
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