इतिहास ऊदा देवी : एक दलित वीरांगना जिनकी कहानी हमेशा इतिहास में अमर रहेगी | #IndianWomenInHistory

ऊदा देवी : एक दलित वीरांगना जिनकी कहानी हमेशा इतिहास में अमर रहेगी | #IndianWomenInHistory

कहते हैं जब ऊदा देवी के पति अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के दस्ते में शामिल हो गए, वहीं से ऊदा को सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिली।

ऊदा देवी की वीरता पर कई लोकगीत गाए गए हैं। इनमें एक गीत है के बोल हैं:
“कोई उनको हब्शी कहता, कोई कहता नीच अछूत,
अबला कोई उन्हें बतलाए, कोई कहे उन्हें मजबूत।”

ऊदा देवी, एक दलित वीरांगना जिन्होंने ब्रिटिश सैनिकों को अपने साहस से ऐसी मात थी दी कि अंग्रेज़ अधिकारी और पत्रकार भी इनके बारे में बात करने से खुद को रोक नहीं पाए। लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जन्मी ऊदा देवी, ‘पासी’ जाति से संबंध रखती थी। इनके पति का नाम मक्का पासी था। कहते हैं जब ऊदा देवी के पति अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के दस्ते में शामिल हो गए, वहीं से ऊदा को सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिली और ये वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य बनी। ऊदा के साहस और जल्द निर्णय लेने की क्षमता से भारत के स्वाधीनता संग्राम की नायिकाओं में एक बेगम हजरत महल बहुत प्रभावित हुईं। नियुक्ति के कुछ दिनों बाद ही ऊदा बेगम हज़रत महल की महिला सेना की टुकड़ी की कमांडर बना दी गईं।

यूं तो उस ज़माने में एक गरीब दलित परिवार में पैदा होने के बाद एक महिला सैनिक बनना अपने आप में ही बड़ी बात थी पर ऊदा देवी से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है जिसका जितनी बार उल्लेख किया जाए उतनी ही बार ऊदा के लिए मन में सम्मान और भी बढ़ जाता है। ये किस्सा कुछ यूं है: कहा जाता है जब 10 मई 1857 को मेरठ में सिपाहियों ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह शुरू किया तब क्रांति की यह हवा पूरे उत्तर भारत में तेज़ी से फ़ैलने लगी। लखनऊ में क़स्बा चिनहट के पास इस्माईलगंज में हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज और मौलवी अहमदउल्लाह शाह की अगुआई में संगठित विद्रोही सेना के बीच ऐतिहासिक लड़ाई हुई। इसमें विद्रोही सेना की जीत हुई और हेनरी लॉरेंस की फ़ौज को मैदान छोड़ कर भागना पड़ा। ये स्वतंत्रता की लड़ाई की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी। इस सेना में ऊदा के पति मक्का पासी भी शहीद हो गए।

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कहते हैं जब ऊदा देवी के पति अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के दस्ते में शामिल हो गए, वहीं से ऊदा को सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिली और ये वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य बनी।

30 से अधिक अंग्रेज़ सैनिक ऊदा द्वारा मारे गए

अब कुछ ऐसा होने वाला था जिससे ऊदा देवी इतिहास में अमर होने वाली थी। जल्द ही ऊदा को मौका मिला चिनहट के महासंग्राम की अगली कड़ी सिकंदर बाग़ की लड़ाई में हिस्सा लेना का। अंग्रेज़ चिनहट की लड़ाई में हार से बौखलाए हुए थे। उन्हें जैसे ही ये मालूम पड़ा की दो हजार विद्रोही सैनिक लखनऊ के सिकंदर बाग़ में मौज़ूद हैं, अंग्रेजों ने वहां घेराबंदी की सोची। नवंबर 16, 1857, कहते हैं उस वक्त विद्रोही सैनिक असावधान थे। ऊदा के नेतृत्व में वाजिद शाह की स्त्री सेना भी बाग़ में मौज़ूद थी। अंग्रेज़ विद्रोही सैनिकों पर हमला करने लगे। इस दौरान कई सैनिक बेहरहमी से मारे गए। ऊदा ने जब ये सब देखा तो वह हाथों में बंदूक और कंधों पर भरपूर गोला-बारूद के साथ पीपल के एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई। वहां से उन्होंने कई अंग्रेज़ सैनिकों पर ताबड़तोड़ गोली बारूद बरसाना शुरू किया। जब तक अंग्रेज़ ऊदा को देखते तब तक वो कई सैनिकों को मौत के घाट उतार चुकी थीं। बाद में अंग्रज़ों की जब ऊदा पर नज़र पड़ी तब उन्होंने ऊदा पर गोलियां बरसाना शुरू किया। ऊदा ने ब्रिटिश सेना के 30 से अधिक अंग्रेज़ सैनिकों को मार गिराया। गोली लगने के बाद ऊदा पेड़ से गिर पड़ी। बाद में अंग्रेज़ जब बाग़ के अंदर आ पाए तो उन्होंने देखा की जो पेड़ पर चढ़कर उनके अंग्रेज़ सैनिकों पर गोली बरसा रहा था वो कोई पुरुष सैनिक नहीं बल्कि एक महिला सैनिक थी। ऊदा की स्तब्ध कर देने वाली वीरता को देखकर अंग्रेजी अफसर कैम्पबेल ने हैट उतारकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।

विदेश में ऊदा देवी के किस्से

साल 1857 के दौरान लंदन टाइम्स अखबार के वार कॉरेस्पोंडेंट विलियम हावर्ड रसेल लखनऊ में मौज़ूद थे। विलियम ने लंदन स्थित लंदन टाइम्स दफ्तर में सिकंदर बाग़ की लड़ाई की भी एक खबर भेजी थी जिसमें ऊदा देवी का ज़िक्र किया गया था। खबर में पुरुषों के कपड़ों में एक महिला द्वारा पेड़ से फायरिंग करने और कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डालने की बात कही गई थी। जर्मन दार्शनिक और इतिहासकार कार्ल मार्क्स ने भी ऊदा देवी की वीरता के बारे में चर्चा की है।

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स्रोत : फॉरवर्ड प्रेस

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