महिला-वादे कई पर उम्मीदवार नहीं
‘सुंदर महिलाएं, महिला-स्टार प्रचारक और बेटी की इज्जत|’ आगामी उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव की शुरुआत से अलग-अलग राजनीतिक दलों के अनुभवी नेताओं एवं सांसदों ने इन शब्दों के ज़रिए खूब सुर्खियाँ बटोरी| कभी अपने विवादित बयान के ज़रिए तो कभी अपनी-अपनी पार्टियों में बतौर स्टार प्रचारक महिला नेताओं को चयनित करने के ज़रिए| उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए सभी राजनीतिक दल अपने पूरे दमखम के साथ चुनावी-मैदान में उतर चुके हैं| सुधार वाले वादों को लिए, उन्हीं पुराने मुद्दों को सभी ने हाथोंहाथ लिया है| इन सबमें कुछ नया है, तो वह है इन मुद्दों के सुधार का तरीका| बात की जाए, आधी आबादी की तो कोई 1090 के सफल काम का गुणगान कर रहा है तो कोई महिला-सुरक्षा के नाम पर एंटी-रोमियो स्क्वाड लाने की बात कर रहा है| मतलब साफ़ है, पार्टी चाहे जो भी हो हर किसी के पास आधी आबादी के लिए ढ़ेरों नए वादे है| अगर कुछ नहीं है तो सिर्फ महिला उम्मीदवार!
चुनाव के लिए सभी पार्टियों के उम्मीदवारों की सूची में महिला-उम्मीदवारों की संख्या नाममात्र है| जी हाँ, चुनाव से पहले आधी आबादी से जुड़े तमाम मुद्दों पर अपनी नई नीति बताने वाले और महिला स्टार प्रचारकों के नाम पर महिला-प्रतिनिधित्व का झूठा प्रलोभन दिखाने वाले दलों की ‘राजनीतिक सोच’ उम्मीदवारों के नामों की घोषणा के साथ सामने आ चुकी है|
सपा-कांग्रेस गठबंधन में नाममात्र है आधी दुनिया
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अपने गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरकर एड़ी-चोटी लगाये हुए है| डिंपल यादव और प्रियंका गांधी इनकी स्टार-प्रचारक है| यानी की चुनाव प्रचार में आकर्षण के केंद्र पर महिलाओं को विराजित किया गया है| लेकिन उम्मीदवारों की सूची में महिला नामों की संख्या न के बराबर रखी गयी है| सपा के कुल 324 उम्मीदवारों में मात्र 24 महिला उम्मीदवारों के नाम है और कांग्रेस के 43 उम्मीदवारों में मात्र 2 महिला उम्मीदवारों के नाम है|
बहन जी की पार्टी में भी महिलाओं की अनदेखी
बहन जी यानी कि सुश्री मायावती, जो की नेतृत्व करती है बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का| एक ऐसी पार्टी जिसकी बागडोर एक महिला के हाथों में ऐसे में उनके दल से ज्यादा महिला उम्मीदवारों के नाम घोषित होने की उम्मीद बढ़ जाती है पर दुर्भाग्यवश बसपा ने अपने कुल 401 उम्मीदवारों में केवल 18 महिला उम्मीदवारों के नाम घोषित करते हुए उस उम्मीद पर पूरी तरह पानी फेर दिया है|
भाजपा के कमल में भी न के बराबर खिले महिला उम्मीदवारों के नाम
चुनावी दौर में भाजपा के पास भी आधी दुनिया के लिए योजनाओं के ढेर है पर महिला उम्मीदवारों के नामपर यह ढेर होती दिखाई पड़ी| भाजपा ने कुल 304 उम्मीदवारों में मात्र 36 महिला उम्मीदवारों को स्थान दिया है| यह संख्या अन्य पार्टियों से भले ही ज्यादा हो लेकिन आधी दुनिया के लिए यह अपर्याप्त है| उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में एक भी सीट पर महिला प्रत्याशी को नहीं उतारा गया है|
उदाहरण है ‘पूर्वांचल’ – उम्मीदवारों में महिला अनदेखी का
पूर्वांचल में सवा करोड़ से अधिक महिलाओं की आबादी है और यहां महिला उम्मीदवारों की संख्या मात्र 14 है| इसमें किसी राजनीतिक दल ने तीन फीसद तो किसी ने ढाई फीसद ही महिलाओं के लिए सीट छोड़ी है| बनारस की आठ विधानसभा सीट पर राष्ट्रीय पार्टियों ने एक भी महिला प्रत्याशी नहीं उतारा है|
पूर्वांचल के दस जिलों बनारस, चंदौली, जौनपुर, भदोही, सोनभद्र, मिर्ज़ापुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, और गाजीपुर की 61 सीटों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो भाजपा ने पांच, सपा ने चार और बसपा ने तीन महिलाओं को टिकट दिया है| जबकि संबंधित जिलों के विधानसभा सीटों के मतदातों की संख्या 2 करोड़ 13 लाख 95 हजार है| इनमें एक करोड़ चार लाख 52 हज़ार महिलाएं हैं|
महिलाओं के उठने लगे सवाल ‘क्या राजनीतिक दलों में महिलाएं केवल शो-पीस हैं?’
उम्मीदवारों की सूची आने के बाद महिलाओं ने राजनीति में आधी दुनिया के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया है| बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की सदस्य एवं नारी जागरण मंच की अध्यक्ष मीना चौबे ने प्रेस कांफ्रेंस में यह सवाल उठाया कि ‘केवल रंगोली बनाने, रजिस्ट्रेशन काउंटर पर बैठने और नेताओं को माला-फूल पहनाने के लिए पार्टी में महिलाएं हैं| पीएम की बात याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पीएम कहते हैं कि नारी सम्मान व सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है और उन्होंने 33 के बदले 50 फीसद आरक्षण देने की बात कही थी|’इससे यह साफ़ हो गया है कि आधी आबादी की वकालत सिर्फ जुमला है|
वाकई यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आधी दुनिया के नाम पर वोट बटोरने वाली राजनीतिक पार्टियों में आधी दुनिया नाममात्र है, स्पष्ट है कि सरकारें भले बदल जाए लेकिन महिलाओं के हिस्से इस राजनीति के तहत सिर्फ बदलाव के झूठे प्रलोभन ही आते रहेंगे|
संदर्भ
- हिन्दुस्तान अखबार, पृ. 06, 05 फरवरी 2017