भारत जैसे विकासशील देश में मौजूदा समय में हर वर्ग को विकास की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए ढ़ेरों प्रयास किये जा रहे है| फिर बात चाहे, दलितों की हो या आधी आबादी की| हर नई सरकार विकास के नये-नये एजेंडों के साथ सत्ता संभाल रही है| ऐसे में, जाने-अनजाने ही सही कई ऐसे विषय भी धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं जिसके बारे में हमारे समाज में ज्यादा बात नहीं की गयी है, जैसे – माहवारी या पीरियड|
अब इसे संयोग कहें या विडंबना कि हमारे देश में पीरियड को लेकर जानकारी से ज्यादा भ्रांतियों का फैलाव है| इस दौरान खानपान और साफ़-सफाई में किन बातों का ध्यान रखना है इसके बारे बात हो या न हो, लेकिन इस दौरान कौन-कौन से काम नहीं करने हैं इसका पाठ हमें बखूबी पढ़ाया जाता है| इन्हीं भ्रांतियों में से एक भ्रान्ति है – ‘पीरियड के खून को गंदा मानना|’ आमतौर पर लोगों में यह धारणा है कि पीरियड के दौरान निकलने वाला खून गंदा होता है, जिसकी वजह से महिलाओं को अपवित्र माना जाता है| नतीजतन उन्हें हर पवित्र काम से इस दौरान दूर रहने की हिदायत दी जाती है|
अब इसे संयोग कहें या विडंबना कि हमारे देश में पीरियड को लेकर जानकारी से ज्यादा भ्रांतियों का फैलाव है|
पीरियड के खून को अपवित्र मानकर महिलाओं को ये भी सलाह दी जाती है कि इस दौरान उन्हें पूजा-पाठ तो क्या इससे जुड़ी किसी चीज़ को नहीं छूना चाहिए| अक्सर महिलाओं को तुलसी और नीम जैसे पौधों में पानी डालने से भी मना किया जाता है, क्योंकि इन पौधों की पूजा होती है|
लेकिन बदलते वक़्त के साथ-साथ अब इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए अलग-अलग माध्यमों से प्रयास भी किये जा रहे है| इन्हीं प्रयासों में लयला की कहानी बेहद उल्लेखनीय है|
महिला जागरूकता का उठाया बीड़ा
सफर चाहे जीवन का हो या एक जगह से दूसरी जगह तक जाने का, उनमें मिले-जुले अनुभवों का होना लाजमी है| यों तो जब धरती पर किसी बच्चे के जीवन की शुरुआत होती है तो समाज उसे एक नाम-पहचान देता है, लेकिन उस लड़की ने अपने आपको खुद नाम दिया ‘लयला’ और उनका पूरा नाम – लयला फ्रीचाइल्ड|
इंजीनियरिंग की छात्रा रही लयला ने अपनी एक अलग दुनिया बसाई है, ऐसी दुनिया जहाँ वो अपने सपनों को पूरा करने में जुटी है| लयला अपनी कला को सरोकार से जोड़कर एक नया रूप देना चाहती है| उन्होंने अपनी कला के लिए एक ऐसे विषय को चुना है, जिसे आमतौर पर हमारे समाज में वर्जित माना जाता है, यानी कि मासिकधर्म या पीरियड|
आमतौर पर लोगों में यह धारणा है कि पीरियड के दौरान निकलने वाला खून गंदा होता है, जिसकी वजह से महिलाओं को अपवित्र माना जाता है|
लयला भारत में महिलाओं को पीरियड के प्रबन्धन के लिए मौजूद मेन्स्त्रुअल कप जैसे विकल्पों के बारे में जागरूकता फैलाना चाहती है, उन्होंने हाल ही में, 300 मेन्स्त्रुअल कप को जोड़कर मुम्बई में एक कलाकृति का निर्माण किया|
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तुलसी के पौधे में डालती है पीरियड का खून
इसके साथ ही, लयला हर माह पीरियड के दौरान निकलने वाले खून को तुलसी के पौधे में डालती है| उनका मानना है कि हर महीने महिला के शरीर से निकलने वाले खून को नाली में बहाकर नुक्सान क्यों किया जाए, जबकि ये पौधों के लिए बेहद अच्छा साबित हो सकता है| वह कहती है कि ‘ये खून पौधे के हरे रंग के लिए बेहद असरकारक है और वो कैसे? इसके लिए आप गूगल कर सकते हैं|’
सामाजिक बदलाव के सन्दर्भ में अक्सर कहा जाता है कि कोई भी सामाजिक बदलाव लाने के लिए हर दिशा-दशा में प्रयास होना बेहद ज़रूरी है|
लयला की ये पहल बेहद सकारात्मक और सशक्त तरीके से पीरियड के खून पर बनी भ्रान्ति (ये खून गंदा होता है) का खंडन करती है| सामाजिक बदलाव के सन्दर्भ में अक्सर कहा जाता है कि कोई भी सामाजिक बदलाव लाने के लिए हर दिशा-दशा में प्रयास होना बेहद ज़रूरी है| इसी तर्ज पर पीरियड के मुद्दे पर समाज में स्वस्थ चर्चा का माहौल बनाने के लिए बेहद ज़रूरी है सदियों से पैठ बनाई हुई इन भ्रांतियों का खंडन हो, ऐसे में लयला का प्रयास बेहद सराहनीय है, जिसके लिए वे सादर बधाई की पात्र है|
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