इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ थर्ड जेंडर से जुड़ी ये बातें बहुत कम लोग जानते हैं

थर्ड जेंडर से जुड़ी ये बातें बहुत कम लोग जानते हैं

पूरे हिजड़े समुदाय को सामाजिक संरचना की दृष्टि से सात समाज या घरानों में बांटा जा सकता है, हर घराने के मुखिया को नायक कहा जाता है|

डॉ. पुनीत बिसारिया

जब कभी किसी के परिवार में कोई खुशी का अवसर होता है, तो हम देखते हैं कि एक लैंगिक दृष्टि से विवादित समाज के लोग जो प्रायः हिजड़े (या वर्तमान में प्रचलित नाम किन्नर; हालाँकि किन्नर शब्द हिमाचल प्रदेश के किन्नौर निवासियों हेतु प्रयुक्त होता था, जिसे अब हिजड़ों के सन्दर्भ में व्यवहृत किया जाने लगा है) होते हैं, आ जाते हैं और बधाइयाँ गाकर, आशीर्वाद देकर कुछ रुपए लेकर विदा हो जाते हैं| इसके बाद हम भी अपनी सामान्य गतिविधियों में व्यस्त हो जाते हैं और दोबारा कभी इनके बारे में नहीं सोचते| हम कभी यह जानने का प्रयास नहीं करते कि ये किन्नर कौन हैं, कहाँ से आये हैं, इनकी समस्याएँ क्या हैं और वे कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से इन्हें किन्नर बनकर एक प्रकार की भिक्षावृत्ति से जीवनयापन करने को विवश होना पड़ता है|

किन्नर या हिजड़ों से अभिप्राय उन लोगों से है, जिनके जननांग पूरी तरह विकसित न हो पाए हों या पुरुष होकर भी स्त्री के स्वभाव के लोग, जिन्हें पुरुषों की जगह स्त्रियों के बीच रहने में सहजता महसूस होती है या वे लोग जो जन्म से मिले अपने लिंग के साथ अपने जेंडर को सहज नहीं पाते है| वैसे हिजड़ों को चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है,- बुचरा, नीलिमा, मनसा और हंसा| वास्तविक हिजड़े तो बुचरा ही होते हैं क्योंकि ये जन्मजात ‘न पुरुष न स्त्री’ होते हैं। ‘नीलिमा’ किसी कारणवश स्वयं को हिजड़ा बनने के लिए समर्पित कर देते हैं। ‘मनसा’ तन के जगह पर मानसिक तौर पर स्वयं को विपरीत लिंग या अक्सर स्त्रीलिंग के अधिक निकट महसूस करते हैं। और ‘हंसा’ शारीरिक कमी यथा नपुंसकता आदि यौन न्यूनताओं के कारण बने हिजड़े होते हैं| नकली हिजड़ों को अबुआ कहा जाता है जो वास्तव में पुरुष होते हैं पर धन के लोभ में हिजड़े का स्वांग रख लेते हैं| जबरन बनाए गए हिजड़े छिबरा कहलाते हैं, परिवार से रंजिश के कारण इनका लिंगोच्छेदन कर इन्हें हिजड़ा बनाया जाता है|

भारत की साल 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे भारत में लगभग 4.9 लाख किन्नर हैं, जिनमें से एक लाख 37 हजार उत्तर प्रदेश में हैं। इसी जनगणना के मुताबिक सामान्य जनसंख्या में शिक्षित लोगों की संख्या 74 फीसद है जबकि यही संख्या किन्नरों में महज़ 46 फीसद ही है। इनमें आधे से अधिक नकली स्वांग करने वाले हिजड़े हैं| आश्चर्य की बात यह है कि बाक़ी के दो लाख असली हिजड़ों में से भी सिर्फ चार सौ जन्मजात हिजड़े या बुचरा हैं। बाक़ी के हिजड़े स्त्री स्वभाव के कारण हिजड़ों में परिगणित किए जाने वाले मनसा या हंसा हिजड़े हैं  और इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह कि इन दो लाख हिजड़ों में से लगभग सत्तर हजार हिजड़े ऐसे हैं, जिन्हें एक छोटे से ऑपरेशन के बाद लिंग परिवर्तन करने के बाद पुरुष या स्त्री बनाया जा सकता है। लेकिन दुःख की बात है कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं है|

पूरे हिजड़े समुदाय को सामाजिक संरचना की दृष्टि से सात समाज या घरानों में बांटा जा सकता है,  हर घराने के मुखिया को नायक कहा जाता है| ये नायक ही अपने डेरे या आश्रम के लिए गुरु का चयन करते हैं हिजड़े जिनसे शादी करते हैं या कहें जिन्‍हें अपना पति मानते हैं उन्‍हें गिरिया कहते हैं| उनके नाम का करवाचौथ भी रखते हैं| जब किसी परिवार में बुचरा अर्थात जन्मजात हिजड़े का जन्म होता है तो परिवार के सदस्य जल्द से जल्द उसे अपने परिवार से दूर करने का प्रयास करते हैं क्योंकि पारिवारिक जन ख़ासकर परिवार के मर्द या हिजड़े का पिता यह सोचता है कि इसे जाने के बाद लोग उसके पुरुषत्व पर संदेह करेंगे और बड़ा होकर यह बच्चा परिवार की प्रतिष्ठा धूल धूसरित करेगा|

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इसलिए वे जल्द से जल्द उस बालक को या तो ‘ठिकाने लगाने’ का प्रयास करते हैं या फिर उसे हिजड़ों के बीच छोड़ देते हैं| ऐसा करते समय अक्सर वे यह नहीं सोचते कि अपनी ही सन्तान को अपने से दूर करने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह तो ले लें कि इस शिशु को पुरुष अथवा महिला के लिंग में बदला जा सकता है या नहीं!

पूरे हिजड़े समुदाय को सामाजिक संरचना की दृष्टि से सात समाज या घरानों में बांटा जा सकता है,  हर घराने के मुखिया को नायक कहा जाता है|

नीलिमा कोटि के हिजड़े किसी कारणवश स्वयं हिजड़े बन जाते हैं, मनसा मानसिक तौर पर स्वयं को हिजड़ों के निकट समझते हैं इन्हें सामान्य मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग के द्वारा वापस इनके वास्तविक लिंग में भेजा जा सकता है| और हंसा कोटि के किन्नर किसी यौन अक्षमता के कारण स्वयं की नियति को हिजड़ों के साथ जोड़ लेते हैं| इनका इलाज करने के बाद इनमें से अधिकांश को सामान्य पुरुष या स्त्री बनाया जा सकता है और ये भी सामान्य जीवन जी सकते हैं|

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अबुआ वास्तव में धन के लोभ में किन्नर बनकर किन्नरों को न्यौछावर के रूप में मिलने वाली धनराशि को लूटने का काम करते हैं| ये प्रायः सामान्य पुरुष होते हैं और ज़रूरत पड़ने पर साड़ी पहनकर किन्नर बनने का नाटक करके हिजड़ों के अधिकारों पर कुठाराघात करते हैं| ये रात में सडकों पर घूमकर ट्रक ड्राइवरों के साथ अप्राकृतिक संसर्ग कर उनकी यौन क्षुधा शांत करते हैं| असली और नकली किन्नर में फर्क यह है कि असली किन्नर स्वभावतः स्त्री होते हैं और पुरुष के प्रति इनमें नैसर्गिक आकर्षण होता है, जबकि नकली किन्नर वास्तव में पुरुष होते हैं और इनका आकर्षण स्त्रियों के प्रति होता है|

सबसे दुर्भाग्यपूर्ण और भयावह यंत्रणा से गुजरते हैं छिबरा| पारिवारिक रंजिश के कारण कुछ लोग शत्रु के परिवार के लड़के-लड़कियों को उठाकर ले जाते हैं और उनके लिंग हटवाकर उन्हें किन्नर बना देते हैं| यह जघन्य कृत्य करने वाले पिशाच एक व्यक्ति के जीवन को नरक बना देते हैं और पीड़ित बच्चे को बिना किसी अपराध के आजन्म इस यंत्रणा से गुजरना पड़ता है| इनमें से भी कुछ को वापस उनके लिंग में लाया जा सकता है लेकिन यह बड़ी ही जटिल और खर्चीली प्रक्रिया है|

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यह लेख है डॉ. पुनीत बिसारिया का, जिसे इससे पहले मेरा रंग में प्रकाशित किया जा चुका है।

तस्वीर साभार : ndtv

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