हमारा देश एक धार्मिक देश है। भारत का हर दूसरा इंसान सैकड़ों परंपराओं और प्रथाओं में लीन है। यहां सालभर किसी न किसी रूप में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है। इनदिनों देश में साल के ऐसे ही एक हिंदु त्यौहार का समय चल रहा है – ‘नवरात्रि’।
हर साल नवरात्रि पर जगह-जगह चाहे वह गांव हो या शहर, देवी के पंडाल सजाए जाते हैं। विशाल और सुंदर तरीके से माता का स्वागत किया जाता है। उनकी स्थापना के लिए खूबसूरत पंडाल सजाए जाते हैं और शानदार माहौल के चलते धूमधाम से लोग इस त्यौहार का आनंद लेते हैं। देवी दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण कर राक्षसों का वध किया था इसलिए पूरे नौ दिन दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है।
समय आ गया है कि औरत को भी महाकाली का रूप धारण कर समाज में व्याप्त इन दानव रूपी कुप्रथाओं का संहार करे।
लेकिन क्या सच में इस समाज ने औरत को भगवान का दर्जा दिया है? उसे असली शक्ति के रूप में स्वीकार किया है? है ना आश्चर्य की बात! क्योंकि वास्तव में हमारे समाज में भगवान तो छोड़िए महिलाओं को इंसान का दर्जा भी नहीं मिल पाता है। जिस देश में औरत को मां और देवी का प्रतिरूप मानकर पूजा जाता है, उसी देश में दूसरी ओर नारी को पूज्य नहीं बल्कि एक वस्तु की तरह समझा जाता है। जिसका जब चाहा तब तिरस्कार कर दिया जाता है। एक ओर जहां उसकी वंदना की जाती है, वहीं दूसरी ओर उसे दहेज रूपी हवन कुंड में जिंदा जला दिया जाता है। एक ओर उसको मिट्टी की मूर्ति बनाकर साकार किया जाता है, वहीं दूसरी ओर पैदा होने से पहले ही उसकी हत्या गर्भ में कर दी जाती है।
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एक ओर जहां उस शक्ति को हजारों भजन समर्पित किए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उसे अपने विचारों को बोलने की आज़ादी नहीं दी जाती। जहां ‘जय माता दी’ जैसे जयकारे लगाए जाते हैं, वहां ‘माल’, ‘कड़क’, ‘छमिया’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। खेलने की उम्र में मासूम बच्चियों को खिलौना समझकर उनसे खेला जाता है। कहने को तो यह सारी बातें पुरानी और भद्दी लगती हैं पर दुर्भाग्यवश आज भी इनके उदाहरण हम अपने आस-पास और घर-परिवार में देख सकते हैं।
देश में औरत को मां और देवी का प्रतिरूप मानकर पूजा जाता है, उसी देश में दूसरी ओर नारी को पूज्य नहीं बल्कि एक वस्तु की तरह समझा जाता है।
सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि त्यौहार के इन नौ-दस दिनों में भी औरतों की इज्ज़त नहीं की जाती, जो लोग पंडालों में बैठकर दिन रात देवी की आराधना करते हैं, असल जिंदगी में ये नौ दिन भी अपने घर की औरतों को महत्व नहीं दे पाते। शुरू से ही ऐसा देखा जाता है कि युवा लड़कों को इन त्यौहारों की पूजा-पाठ में बहुत रूचि होती है। मां दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित करने से लेकर उनके विसर्जन तक पूजा, आरती, भजन, गरबा, भंडारे इन सभी चीजों में भी बढ़-चढ़कर वे हिस्सा लेते हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर वही लोग हैं जो अपनी मर्यादा लांघकर लड़कियों का पीछा करते हैं, उन्हें परेशान करते हैं और राह चलते छेड़खानी करते हैं। शायद इसी दोगली सोच का नतीजा है कि भगवान की भक्ति के भजन अब बॉलीवुड फिल्म के आइटम गानों में परिवर्तित हो चुके हैं।
आखिर ऐसा क्यों है और कब तक चलेगा? यह सवाल तो सबके मन में आता है पर इसका जवाब शायद ही कोई सही से दे पाता है। इसका असली हल अब औरत को ही सोचना पड़ेगा और निडर होकर अपना कदम आगे बढ़ाना पड़ेगा। अब बचाव करने का समय बीत चुका है। हमें वास्तव में अपनी गरिमा और हक के लिए ऐसी पितृसत्तात्मक, निचली, रूढ़ीवादी और स्त्री द्वेषी मानसिकता पर वार करना होगा। अब समय आ गया है कि औरत को भी महाकाली का रूप धारण कर समाज में व्याप्त इन दानव रूपी कुप्रथाओं का संहार करे। तभी वह सही अर्थों में दुर्गा कहलाएगी।
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