अभय खाखा एक ऐसे और शायद इकलौते आदिवासी लीडर थे, जिन्होंने आदिवासियों और दलित शोषित वर्ग के लिए मुख्यधारा के समाज के साथ पुल बनाने का काम किया।साल 2012 में अभय खाखा दलित मानवाधिकार के राष्ट्रीय अभियान से जुड़े। उन्होंने जिंदगी में कभी छोटा नहीं सोचा। हमेशा बड़ा सोचा, समाज हित में, दलित हितों के लिए उनके सशक्तिकरण के लिए कार्य किया। वे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दलितों के साथ होने वाले जातिगत भेदभावपूर्ण रवैए को लेकर हमेशा अपनी बुलंद आवाज से विरोध करते। उनके साथ रहने वाले उनके करीबी उन्हें ‘दादा‘ या ‘बाबा‘ कहकर अपनापन दिखाते। उनके अनुसार उनके दादा नए विचार और नए नजरिए वाले व्यक्ति थे। जो अपनी मुस्कान के साथ ऐसे प्रभावशाली भाषण देते।और पढ़ें : आदिवासी शहीद वीर नारायण सिंह से आज हम क्या सीख सकते हैं
आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी आवाज सुनी जाती है। अभय की प्रतिबद्धता किसी से पीछे नहीं थी। वे पहले आदिवासी थे जिन्हें विदेश जाकर पढ़ाई करने के लिए फ़ोर्ड फ़ेलोशिप मिली थी।
वे एक एक्टिविस्ट तो थे ही वो एक कवि भी थे और एक स्तंभकार भी थे। उन्होंने हमेशा अपनी कविताओं और लेखन में आदिवासी समाज के हितों को लेकर बातें करते। प्रकृति से उनका नाता और उद्योगपतियों द्वारा शोषित बताते। अभय अपने लेखन से आदिवासियों को जागरूक करते और उनके सशक्तिकरण की बातें करते। उन्हें सशक्त बनाते। वे एक ऐसे बुद्धिजीवियों में थे, जिन्होंने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल लोगों के लिए किया। अपनी बातों से, लेखन से। उनके निधन के साथ पूरे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में जो कमी आई है, उस कमी को शायद कोई पूरा नहीं कर सकता।और पढ़ें : मैं आपकी स्टीरियोटाइप जैसी नहीं फिर भी आदिवासी हूंतस्वीर साभार : indiaspend
Thank you for the basic information about this activist. However, I’m unable to find any more details about him or his work, or even his death, anywhere else on the internet. Are there any other sources to know more about him and his work please?