इंटरसेक्शनल क्या औरतें शारीरिक सुख से दूर हो रही हैं ?

क्या औरतें शारीरिक सुख से दूर हो रही हैं ?

कॉन्डोम ब्रैंड 'ड्यूरेक्स' ने साल 2017 में 'ग्लोबल सेक्स सर्वे' के अनुसार 70 फ़ीसद भारतीय औरतें सेक्स के दौरान ऑर्गैज़म नहीं करतीं।

हाल ही में ट्विटर पर कर्नाटक के बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्य का एक ट्वीट वायरल हुआ। साल 2015 के इस ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि बीते हज़ार सालों में 95 फ़ीसद अरबी महिलाओं ने कभी चरम सुख या ऑर्गैज़म का अनुभव नहीं किया और उन सब के बच्चे सिर्फ़ सेक्स के नतीजे हैं, प्यार के नहीं। पिछले कुछ दिनों में मिडल ईस्ट के देशों में काम करनेवाले कई भारतीय हिंदुओं को अपने मुस्लिम-विरोधी और इस्लाम-द्वेषी सोशल मीडिया पोस्ट् की वजह से अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है और इन देशों के अधिकारियों ने भारत में फैलते मुस्लिम-द्वेष के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़ी चेतावनी दी है। इसी संदर्भ में तेजस्वी का ये ट्वीट फिर नज़र आया और ट्विटर पर कई अरबियों ने इस पर आपत्ति भी जताई। तेजस्वी ने बाद में कहा कि ये उनके अपने शब्द नहीं हैं और ट्वीट में उन्होंने सिर्फ़ पाकिस्तानी लेखक तारेक फ़तह को उद्धृत किया था।

ट्वीट में किया गया ये दावा शायद पूरी तरह से ग़लत न हो क्योंकि ‘ऑर्गैज़म गैप’ औरतों, ख़ासकर शादीशुदा औरतों की ज़िंदग़ी का एक सच है। इसका मतलब है कि जहां मर्दों को हर बार सेक्स करने पर ऑर्गैज़म मिलता है, औरतों को कभी कभार ही सेक्स के दौरान ऑर्गैज़म नसीब होता है या वो भी नहीं होता। साल 2016 में अमेरिका में एक शोध से पता चला कि 95 फ़ीसद मर्द सेक्स के दौरान कम से कम एक बार ऑर्गैज़म करते हैं मगर सिर्फ़ 65 फ़ीसद औरतों को मर्दों के साथ सेक्स करते समय एकबार भी ऑर्गैज़म मिलता है। इसी शोध से ये भी सामने आया कि ज़्यादातर औरतें हस्तमैथुन या लेस्बियन सेक्स से ही ऑर्गैज़म कर पाती हैं। वैसे ही मशहूर कॉन्डोम ब्रैंड ‘ड्यूरेक्स’ ने साल 2017 में ‘ग्लोबल सेक्स सर्वे’ के अनुसार 70 फ़ीसद भारतीय औरतें सेक्स के दौरान ऑर्गैज़म नहीं करतीं। यही नहीं, इन औरतों में से एक बड़ी संख्या को पता ही नहीं कि ऑर्गैज़म होता क्या है।

सेक्स की क्रिया में दो लोग बराबरी से शामिल होते हैं। अगर दो लोगों से ही सेक्स संभव होता है, तो उसका आनंद सिर्फ़ एक को क्यों मिले? क्या वजह हो सकती है कि मर्द और औरत का समान योगदान होने के बावजूद फ़ायदा मर्द को ही मिल रहा है?

एक वजह है अज्ञानता। हमारी शिक्षा व्यवस्था सेक्स पर खुलेआम चर्चा करने में विश्वास नहीं रखती और ज़्यादातर स्कूलों में सेक्स एजुकेशन नहीं पढ़ाया जाता। सेक्स एजुकेशन तो दूर की बात, कई शैक्षणिक संस्थाओं में तो लड़कों और लड़कियों को एक साथ बैठने या आपस में बात करने तक नहीं दिया जाता। इस वजह से लड़के और लड़कियां एक दूसरे को ठीक से जान नहीं पाते। एक दूसरे के अच्छे दोस्त और साथी नहीं बन पाते। और अपने और एक दूसरे के शरीर और भावनाओं को भी समझ नहीं पाते। आकृति, जो एक 18 साल की स्टूडेंट है, कहती है, “हम जब स्कूल में थे तो हमें साइंस की क्लास में यौन और प्रजनन वाला लेसन पढ़ाया ही नहीं गया। एक बार मैंने अपने टीचर से पूछा था कि सेक्स क्या और कैसे होता है, तो उन्होंने कहा कि मुझे इसके बारे में जानने की कोई ज़रूरत नहीं है। दसवीं में साइंस के टीचर ने तो हमें लंबा चौड़ा भाषण ही दे दिया था। उन्होंने कहा कि सेक्स सिर्फ़ और सिर्फ़ बच्चे पैदा करने के लिए होता है और ये शादी के बाद ही करना चाहिए।”

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कॉन्डोम ब्रैंड ‘ड्यूरेक्स’ ने साल 2017 में ‘ग्लोबल सेक्स सर्वे’ के अनुसार 70 फ़ीसद भारतीय औरतें सेक्स के दौरान ऑर्गैज़म नहीं करतीं।

इस तरह की सीख की वजह से ही लोग, ख़ासकर लड़कियां, अपनी शारीरिक ज़रूरतें पूरी करने से हिचकिचाते हैं। क्योंकि लड़कियों को सिखाया जाता है कि सेक्स सिर्फ़ बच्चे पैदा करने के लिए किया जाता है और इसमें उनकी शारीरिक संतुष्टि कोई मायने नहीं रखती। मनोवैज्ञानिक डॉ अनिंदिता चौधरी भी कहती हैं, “ज़्यादातर औरतों को सेक्स के वक़्त ऑर्गैज़म इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि वे अपनी शारीरिक इच्छाओं को पूरी करना ज़रूरी नहीं समझतीं।” वे अपनी ज़रूरतों और इच्छाओं की बलि चढ़ाकर पुरुषों को खुश करने को ही ज़्यादा ज़रूरी समझती हैं।

आशा 40 साल की हैं और पेशे से एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। उनकी शादी को 12 साल हो चुके हैं। इन 12 सालों में उन्होंने एक बार भी सेक्स अपनी इच्छा से नहीं किया और इसे वे अपनी एक ज़िम्मेदारी की तरह ही देखती हैं, जिसके कारण उन्हें आज तक कभी ऑर्गैज़म नहीं हुआ। वे कहती हैं, “मेरे परिवार ने मुझे हमेशा यही सिखाया है कि सेक्स बच्चे पैदा करने के लिए किया जाता है और एक पत्नी का फ़र्ज़ है। इसलिए मैंने हमेशा इसे एक कर्तव्य की तरह ही देखा। वैसे भी हम एक जॉइंट फ़ैमिली में रहते हैं और हमें अकेले रहना का मौक़ा ही नहीं मिलता। ज़्यादा से ज़्यादा हम तीन-चार महीने में एक बार ही सेक्स कर पाते हैं।” ये भी एक वजह है कि क्योंकि भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा संयुक्त परिवारों में रहता है और इतने बड़े परिवार की सारी ज़िम्मेदारी उसकी औरतों के सर पर होता है, वे अपने लिए वक़्त नहीं निकाल पातीं और अपनी ज़रूरतों का ख़्याल ठीक तरह से नहीं रख पातीं।

एक और बेहद दर्दनाक वजह है लड़कियों और महिलाओं का शारीरिक शोषण। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार साल 2018 में पूरे भारत में 21,401 नाबालिग लड़कियों और 204 नाबालिग लड़कों का बलात्कार हुआ था। कम उम्र में इस तरह का शोषण मानसिक तौर पर इंसान को हिला देता है और सेक्स के बारे में मन में डर पैदा कर देता है, जिसकी वजह से वे सहजता से सेक्स का आनंद नहीं उठा पाते। क्योंकि यौन हिंसा का शिकार ज़्यादातर औरतें ही होती हैं, सेक्स के प्रति ये ख़ौफ़ दिमाग़ से आसानी से निकल नहीं पाता है। 25 साल की सितारा का यौन शोषण बचपन में उनके चाचा के हाथों हुआ था, जिसका सदमा वे मन से निकाल नहीं पाई हैं। वे कहती हैं, “मैं जब भी किसी के साथ सेक्स करती हूं, मुझे अपने शोषण की बात याद आ जाती है और मैं अपना मानसिक संतुलन खो बैठती हूं।”

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कुछ औरतों का कहना है कि मर्दों के साथ सेक्स में उन्हें आनंद इसलिए नहीं आता क्योंकि मर्दों को औरत के शरीर की अच्छी समझ नहीं है। 25 साल की प्रगति पेशे से वकील हैं और एक बाईसेक्शुअल हैं। वे मर्दों और औरतों, दोनों के साथ शारीरिक संबंध बना चुकी हैं। उनका कहना है कि औरतों के साथ सेक्स के दौरान उन्हें हर बार ऑर्गैज़म हुआ है पर मर्दों के साथ वे इतना आनंद महसूस नहीं करतीं। वे कहती हैं, “मुझे लगता है एक औरत ही औरत के शरीर को समझ सकती है। शायद मर्द हमें इतने अच्छे से नहीं समझ पाते। इसलिए मुझे औरतों के साथ ही ज़्यादा आनंद आता है।” देशभर में न जाने ऐसी कितनी महिलाएं हैं जो अपने विवाह या प्रेम संबंध में संतुष्टि महसूस नहीं कर पा रहीं। इसका समाधान क्या है? कैसे ये औरतें अपनी ज़रूरतें पूरी करें और अपने रिश्ते में दरार बनी इस समस्या को सुलझाएं?

मनोवैज्ञानिकों और सेक्स विशेषज्ञों का कहना है कि इसका हल तभी होगा जब मर्द सेक्स के दौरान स्वार्थी होना बंद कर दें और इस बात का ध्यान रखें कि उनकी पार्टनर भी उतनी संतुष्ट हैं जितने वे ख़ुद हैं। अपनी पार्टनर को अच्छे से जानने में और उनकी ज़रूरतों को पूरी करने में ध्यान लगाएं। सेक्स विशेषज्ञ पल्ल्वी बरनवाल कहती हैं, “मान लीजिए आप और आपके पार्टनर ट्रेन में सफ़र कर रहे हों। अगर आपके पार्टनर एक स्टेशन पहले ही उतर जाए, तो आपको कैसा लगेगा? सेक्स भी ट्रेन के सफ़र जैसा ही है। ये सफ़र दोनों साथ में शुरू करते हैं तो साथ में ख़त्म भी करना है। दूसरे को अकेला छोड़कर एक स्टेशन पहले नहीं उतर जाना है।”

मनोवैज्ञानिक डॉ मानसी पोद्दार मर्दों से कहती हैं, “अगर आपकी पार्टनर सेक्स के दौरान ख़ुश नहीं है, तो ये ज़रूरी नहीं है कि आप में कोई कमी है। आप इसकी वजह से अपने आत्मसम्मान को आहत होने मत दीजिए। बस उन्हें मानसिक तौर पर सपोर्ट कीजिए और अपनी शारीरिक इच्छाओं के बारे में जानने और इन्हें पूरी करने में उनकी मदद कीजिए।” सेक्स एक प्रेम या विवाह संबंध का एक ज़रूरी हिस्सा है। और मर्द-औरत के रिश्ते के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी बराबरी ज़रूरी है। उम्मीद है हर औरत को यहां भी बराबरी मिले।

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तस्वीर साभार : postoast

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