इंटरसेक्शनलजेंडर ‘पुरुष’ भी करें घर का काम, क्योंकि बात बराबरी की होनी चाहिए !

‘पुरुष’ भी करें घर का काम, क्योंकि बात बराबरी की होनी चाहिए !

किस किताब में ये लिखा हुआ है की घर का काम औरत का काम है। जब एक घर का इस्तेमाल सब मिलकर कर रहे हैं तो वो काम सिर्फ उस औरत का काम क्यों है?

कोविड – 19 की वजह से हुए लॉकडाउन ने हमें हमारे भारतीय समाज का एक बहुत ही घिनौना रूप दिखाया है। बावजूद इसके कि इस दौरान मर्द और औरत दोनों ही 24*7 घर पर थे, कितने मर्दों ने अपनी माँ, बीवी , बेटी और बहन को घर के काम में बराबरी का योगदान दिया है। कितने मर्दों ने ये कहा कि तुम बर्तन कर लो, मैं झाड़ू पोछा कर देता हूँ।  कितने मर्दों ने ये कहा कि तुम खाना बना लो, मैं कपड़े धो देता हूँ। कुछ गिने-चुने मर्दों के अलावा, अधिकांशतः मर्दों ने घरों में होने के बावजूद, ऑफिस का कोई बहुत ज्यादा काम न होने के बावजूद अपने घर पर काम कर रही औरतों को कोई बहुत बड़ा सहयोग नहीं किया।  अगर आप ये कहना चाहते हैं कि हमने चाय बनाई, हमने अपने बर्तन धोए तो आपको ये बताना जरुरी है कि घर में सिर्फ ये काम नहीं होते। एक दिन ज़रा अपनी माँ, बीवी, बेटी और बहन को देखिये, तब आपको समझ आएगा कि क्यों उनके पास दिनभर सांस लेने की फुर्सत नहीं है।  

ये कह देने से बात खत्म नहीं होती कि घर में तो वाशिंग मशीन है, तुम क्या करती हो। उस वाशिंग मशीन में कपड़े अपने आप नहीं डलते, धुलने के बाद अपने आप नहीं सूखते, सूखने के बाद अपने आप आपकी अलमारी में नहीं पहुँचते। मेहनत लगती है इन सब में और ये मेहनत आपकी बीवी/ माँ/ बेटी/ बहु/ बहन हर दिन करती है। 

सिर्फ इसलिए कि आपको ये काम जरुरी नहीं लगता, इसका मतलब ये नहीं है कि ये काम जरुरी नहीं है। और अगर आपके घर की महिलाएँ माँ (बहन, बीवी, बेटी, बहु) हर दिन ये काम कर लेती है, इसका मतलब ये नहीं है कि उनके लिए अपनी जिंदगी में और कुछ जरुरी नहीं है। उन्हें कोई शौक नहीं है घर का काम करने का, दिनभर आपकी सेवा में लगे रहने का, आये दिन नए-नए पकवान बनाने का या हर समय बस आपकी ज़रूरतों को पूरा करने का। अगर वो दिनभर आपके लिए ये कर रही है इसका मतलब ये नहीं है कि वो दिन भर ये करना चाहती है। कभी उनसे पूछिए कि वो क्या चाहती हैं ? क्या वे दिनभर ये काम करके खुश है? क्या वो अपनी ज़िन्दगी से सिर्फ यही चाहती है? क्या ऐसी जिंदगी उन्होंने अपने लिए जान-बूझकर चुनी है ?

कहीं ऐसा तो नहीं कि वो हमारे समाज की पिछली चली आ रही प्रथाओं का शिकार हो गयी हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो इन सब में धकेल दी गयी हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो भी अपने दिल में अपने टूटे हुए सपनों को लेकर घूम रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो दिखती खुश है पर अंदर से खुश नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो भी अब इस घर-घर के खेल से ऊब चुकी है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अब उसे खीझ होती है जब कोई ये कहता कि तुम तो औरत हो, घर का काम क्यों नहीं कर सकती?   

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किस किताब में ये लिखा हुआ है की घर का काम औरत का काम है। जब एक घर का इस्तेमाल सब मिलकर कर रहे हैं तो वो काम सिर्फ उस औरत का काम क्यों है? जब पेट की भूख को मिटाने के लिए खाना तो सब को खाना होता है, तो एक समय का खाना पूरे परिवार के लिए पुरुष क्यों नहीं बना सकते, क्यों दोनों वक़्त औरत को ही रसोई के चक्र में घूमना जरुरी है, क्यों किसी पुरुष को ज्यादा समय हम रसोई का काम करते नहीं देख सकते। क्या गलत है इसमें। अगर हमारे रिवाज या संस्कार इस बदलाव को नहीं स्वीकारते तो हमें हमारे संस्कारो या रिवाज़ों को क्यों नहीं बदलना चाहिए?

किस किताब में ये लिखा हुआ है की घर का काम औरत का काम है। जब एक घर का इस्तेमाल सब मिलकर कर रहे हैं तो वो काम सिर्फ उस औरत का काम क्यों है?

बावजूद इसके वो अपने पूरे परिवार के साथ रह रहा हो, ये असामान्य क्यों है अगर कोई पुरुष अपने खुद के घर पर झाडू मार ले, खाना भी बना ले, सबके कपड़े भी धो ले, बर्तन भी साफ़ कर ले ? आखिर इसमें क्या गलत है? अगर पुरुष को घर में रहना आता है तो वो उस घर को सँभालने में अपना बराबर का योगदान क्यों नहीं दे सकता? आखिर घर तो उसका भी है? हम औरतें अपने जन्म के साथ तो घर को नहीं लेकर आती!

किसी काम पर किसी का नाम नहीं है। कोई भी काम कोई भी कर सकता। इसे समझना बहुत ज़रूरी है। न सिर्फ समझना बल्कि हमारे बेटों को बचपन से ही ये सीख देनी और भी जरूरी है। तभी कुछ बदलाव हो सकता है। अक्सर ये कहा जाता है की पुरुष बाहर का काम करता है, पूरे परिवार के लिए पैसा कमाता है इसलिए उसे घर के काम में छूट देनी चाहिए। इसलिए उसे घर का काम करने की ज़रूरत नहीं है। तो ये समझ लीजिये की महिलाएं भी बाहर का काम करती हैं, पैसा कमाती है और बावजूद इसके घर का काम करती है। इसलिए सिर्फ ये कह देने से कि पुरुष पैसा कमाते हैं, वो अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकते। 

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पैसे से आप वाशिंग मशीन ला सकते हो, लेकिन उस वाशिंग मशीन में कपड़े डालने के लिए एक व्यक्ति चाहिए। पैसे से आप आटा पिसवा सकते हो, लेकिन उस आटे से रोटी बनाने के लिए कोई व्यक्ति चाहिए। पैसे से आप पलंग पर लगाने वाले गद्दे ला सकते हो, लेकिन उन गद्दों पर चादर लगाने के लिए कोई व्यक्ति चाहिए। पैसे से आप वाइपर ला सकते हो, लेकिन उस वाइपर से बाथरूम साफ़ करने कि लिए कोई व्यक्ति चाहिए। पैसे से आप चमकदार टॉयलेट सीट ला सकते हो, लेकिन हर हफ्ते आपके गंद से गन्दी हुई उस टॉयलेट सीट को साफ़ करने ले लिए कोई व्यक्ति चाहिए। और ये ध्यान में रख लीजिये कि हमने हर हफ्ते आपके गंद को साफ़ करने का ठेका नहीं ले रखा। अगर उस टॉयलेट सीट में आपकी और मेरी दोनों की गंदगी जाती हैं तो उस टॉयलेट सीट को साफ़ करने की जिम्मेदारी हम दोनों की है। सिर्फ मेरी नहीं है। मैं आपकी गुलाम नहीं हो जो पूरी ज़िन्दगी हम दोनों की गंदगी को साफ़ करती रहूंगी हमारे रिश्ते की आड़ में। और सिर्फ इसलिए की हम इतने सालों और सदियों से ये करते आ रहे हैं उसका मतलब ये नहीं है कि अब हम ये और करेंगे। नहीं सहेंगे अब। बहुत झेल लिया।

और अगर इस बराबरी की कीमत हमें पूरी जिंदगी अकेले रहकर चुकानी है तो तैयार है हम उसके लिए। नहीं चाहिए हमें ऐसे रिश्ते जिसकी बुनियाद में सिर्फ आप हो, जिसकी जड़ से लेकर तना भी आप ही हो, जिसमें सिर्फ आपकी इच्छाओं और ज़रूरतों की परवाह हो, जिसमें मेरी सत्ता का मतलब सिर्फ आपकी सेवा हो। खुश हैं हम अकेले रहकर। ऐसे रिश्तों का ज़िन्दगी भर बोझ ढोने से उचित तो यही है कि ऐसे रिश्तों को खत्म कर देना चाहिए। न चाहिए आप, न आपके एक-तरफा रिश्ते। खुश है हम अकेले।


यह लेख सोनाली खत्री ने लिखा है, जो पेशे से वकील और जुनून से लेखिका है।

तस्वीर साभार : scroll

Comments:

  1. Gowardhan says:

    खुश है हम अकेले? नो, इन द लोंग रन , यू विल नॉट बी खुश, यह खुशी superficial hai alag rehne ki, समझदारी से केवल घरेलू काम को बहुत ज़्यादा बड़ा स्वरूप न देकर परिवार कैसे बचाए इस्पे ध्यान दे, चित्र मी ये दिखाकर क्या आप सारी महिलाओं को इसी परेशानी से जुंझना पड़ता है ये दिखाना चाहती है? अगर वो खाना नहीं बनाना चाहती ठीक है, तो मर्द की तरह पैसे कमाए, क्यों चाहिए ऐसी परंपरा जिसमें केवल पुरुष ही नौकरी करके राशन कमाए, घर चलाए, पत्नी भी अपना योगदान अवायश्य दे, बस उस योगदान को मुझसे ज़बरदस्ती काम करवाया गया ये केहके बादमें घरेलू हिंसचर न बताए, या फिर उस योगदान को जबरदस्ती मांगा गया ऐसा कहके फर्जी 498a ke मुकदमें न लगाए, आपने कुछ बहुत अच्छी बाते भी लिखी पर अंत में जो परिवार तोड़ने को सलाह दी, ऐसा क्यों, क्यों अकेले अच्छे है हम, परिवार जोड़ने के रखने है हमे भारत में, हा, अगर सचमे प्रताड़ित है, तब यह सलाह ठीक है, यह लेख, परंपराओं को सही मइने में समझकर आपस में प्रेम और समझौते से परिवार बचाए,

    दोनों काम करते है तो दोनों घर पे काम को योगदान दे, पर अनबन जो भी हो, रिश्ता और परिवार बचाए, क्योंकि अगली पीढ़ियां हमे सिंगल mom अँड dads की नाही बनानी, वी नीड टू प्रिसर्व अवर फॅमिली कल्चर.

    और किस किताब मे ये लिखा हैं की शादी के बाद लडके ने अगर माता पिता के साथ रहने की इच्छा बतायी तो उसे धमकिया देनी चाहिए या फर्जी केस करने चाइए, किस किताब में ये लिखा है कि अनुचित व्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर ज्वाइंट फैमिली कल्चर तोड़ना है,

    आशा है आप फर्जी कैसेस ना करने की भी सलाह देते हुए आर्टिकल लिखे और जूठे मुकदमें डालकर घर बरबाद न करनेकी अच्छी सलाह भी महिलाओं को दे

    • Sonali Khatri says:

      आपकी हर बात को जवाब देने कि कोशिश की है –
      • -“खुश है हम अकेले? नो, इन द लोंग रन , यू विल नॉट बी खुश, यह खुशी superficial hai alag rehne की”, जहाँ तक रही इसकी बात, इसका फैसला आप मुझ पर छोड़ दीजिये कि मेरी ख़ुशी किसमे हैं।

      • -“समझदारी से केवल घरेलू काम को बहुत ज़्यादा बड़ा स्वरूप न देकर परिवार कैसे बचाए इस्पे ध्यान दे,” जहाँ तक रही इसकी बात, मेरे पास कानून हक़ है खुली तरह से हर उस चीज़ के बारे में कहना जो मुझे परेशान कर रही है। और सिर्फ इसलिए कि आपको ऐसा लगता है कि मैं घरेलु काम को बहुत बड़ा स्वरुप दे रही हूँ तो आप के पास पूरा अधिकार है इस लेख को न पढ़ने का। लेकिन आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि आप मुझे ये मत बताइये कि मैंने इस चीज़ को बहुत बड़ा स्वरुप दिया है। हर समस्या हर इंसान को बड़ी नहीं लगती। मुझे बड़ी लगी इसलिए मैंने लिखी , आपको बड़ी नहीं लगती तो आप मत पढ़ो।

      • “चित्र मी ये दिखाकर क्या आप सारी महिलाओं को इसी परेशानी से जुंझना पड़ता है ये दिखाना चाहती है?”, जहाँ तक रही इसकी बात, मैं यहाँ सिर्फ अपनी परेशनियों को बता रही हूँ। जहाँ तक रही दूसरी महिलाओं कि बात तो उनसे जाकर पूछिए कि वे क्या चाहती है। और यही चीज़ मैंने अपने लेख में भी लिखी है। एक और बात इस चित्र को मैंने अपने लेख के साथ नहीं दिया था। इसलिए कृप्या बगैर सोचे समझे कुछ भी न लिखे।

      • “अगर वो खाना नहीं बनाना चाहती ठीक है, तो मर्द की तरह पैसे कमाए, क्यों चाहिए ऐसी परंपरा जिसमें केवल पुरुष ही नौकरी करके राशन कमाए, घर चलाए, पत्नी भी अपना योगदान अवायश्य दे”, जहाँ तक रही इसकी बात तो मैं आपसे सहमत हूँ। नहीं चाहिए ऐसी परंपरा जिसमें केवल पुरुष ही नौकरी करके राशन कमाए, घर चलाए। महिलांए भी अपना योगदान आएंगी, एक बार उन्हें इस घर घर के खेल से मुक्त करके तो देखिए।

      • “आपने कुछ बहुत अच्छी बाते भी लिखी पर अंत में जो परिवार तोड़ने को सलाह दी, ऐसा क्यों, क्यों अकेले अच्छे है हम, परिवार जोड़ने के रखने है हमे भारत में, हा, अगर सचमे प्रताड़ित है, तब यह सलाह ठीक है, यह लेख, परंपराओं को सही मइने में समझकर आपस में प्रेम और समझौते से परिवार बचाए,” जहाँ तक रही इसकी बात तो यह सलाह सिर्फ इसलिए दी है ताकि हम सब इस चीज़ को समझे की रिश्तों के बचाने के लिए किसी को भी अपनी मूल बहुत इच्छाओं का त्याग नहीं करना चाहिए। लड़कियों को अक्सर चुप रहने की, सहने की सलाह दी जाती है ताकि रिश्ते चलते रहे। और इसलिए पहले रिश्ते चल रहे थे। लेकिन आज की लड़की अगर इसी सीख का अनुसरण करती रहेगी तो जाने अनजाने वो अपनी इच्छाओं और सपनो का गाला घोट देगी। और इसलिए मैंने ऐसा लिखा है।
      मैं आपकी इस बात से वाकिफ रखती हुई की हमें अपने परिवार को बचाना चाहिए , लेकिन सिर्फ एक के सपनो का गला घोटकर क्यो। क्यों हम ऐसे परिवार नहीं बना सकते जिनकी बुनियाद में दोनों के सपनो को बचाने की कोशिश हो। और अगर हम ऐसे परिवार बना लेंगे तो फिर उन परिवारों को बचाना नहीं पड़ेगा, वो अपने आप बच जाएंगे।

      • “दोनों काम करते है तो दोनों घर पे काम को योगदान दे, पर अनबन जो भी हो, रिश्ता और परिवार बचाए, क्योंकि अगली पीढ़ियां हमे सिंगल mom अँड dads की नाही बनानी, वी नीड टू प्रिसर्व अवर फॅमिली कल्चर.” इस बात से मुझे कोई समस्या नहीं है की दोनों काम करें, दोनों घर के काम में योगदान दे। लेकिन एक महिला होने के नाते मैं ये नहीं कहूँगी कि हमारे फॅमिली कल्चर को बचने के लिए सिर्फ एक पिसता रहे।

      • “और किस किताब मे ये लिखा हैं की शादी के बाद लडके ने अगर माता पिता के साथ रहने की इच्छा बतायी तो उसे धमकिया देनी चाहिए या फर्जी केस करने चाइए, किस किताब में ये लिखा है कि अनुचित व्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर ज्वाइंट फैमिली कल्चर तोड़ना है,” जहाँ तक रही इसकी बात तो मैं इनमे से किसी भी एक्टिविटी का सपोर्ट नहीं करती और नहीं मेरा लेख करता है। आपकी जानकारी के लिए ये बताना चाहुगी कि मैं इस मुद्दे पर भी लेख लिख चुकी हूँ। अगर जरुरत पड़े तो पढ़ ली जियेगा। ये रहा लिंक – https://blog.ipleaders.in/what-legal-actions-can-you-take-if-you-are-a-victim-of-false-sexual-harassment-allegation/

      • “आशा है आप फर्जी कैसेस ना करने की भी सलाह देते हुए आर्टिकल लिखे और जूठे मुकदमें डालकर घर बरबाद न करनेकी अच्छी सलाह भी महिलाओं को दे”, जैसा कि मैंने बताया मैं इस मुद्दे पर लिख चुकी हूँ। दूसरी बात आप इसका फैसला लेने कि कोशिश मत कीजिये कि महिलाओं के लिए क्या अच्छी सलाह है या मुझे क्या सलाह देनी चाहिए। जो मुझे ठीक लगेगा मैं उस पर लिख लुंगी। जिसको ठीक लगे मान ले और जिसे न लगे वो न माने। बस इतनी से बात है।

      • Madhav says:

        Sonali khatri..
        Good luck.. khoob likho 💐💐💐👌👌…1000 saal jiye aap.. you are Star 🌟 of women and girls 💐💐💐⭐🍫🍫🍫🍫🍫🍫 khush rho… khoob padho..likho 💐

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