हमारा देश प्राकृतिक संसाधनों और जैविक विविधता का खज़ाना है। हमारी जैविक संपदाएं हमारी सबसे मूल्यवान धरोहर हैं और इनके संरक्षण में हमें ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है। कई बार इन अमूल्य संपदाओं के संरक्षण के लिए हमें अपनी ही सरकारों, बड़े उद्योगपतियों और प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबला करना पड़ा है। ऐसे में प्रकृति की रक्षा के लिए हमें आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा है। यह लेख बीते कुछ सालों में ऐसे पांच आंदोलनों के बारे में है।
1. देहिंग पटकाई बचाओ आंदोलन
देहिंग पटकाई असम के डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया ज़िलों में स्थित वन्यजीव अभयारण्य है। लगभग 27,475 एकड़ ज़मीन में फैला यह जंगल ‘पूर्वी एमेजॉन’ के नाम से जाना जाता है और भारत का सबसे बड़ा वर्षावन माना जाता है। यह 300 प्रकार के पक्षियों और 40 प्रकार के सरीसृपों का घर है और यहां विविध प्रकार की वनस्पति भी पाई जाती है।
साल 2020 के अप्रैल में राष्ट्रीय वन्यजीवन बोर्ड ने ‘नॉर्थईस्ट कोल फ़ील्डस’ को इस वन के 243 एकड़ों में कोयला खनन की इजाज़त दे दी। इस निर्णय का पुरजोर विरोध हुआ क्योंकि खनन का काम वहां के वन्य जीवन के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। ऊपर से, पर्यावरण कार्यकर्ता राहुल चौधरी से की गई एक आरटीआई से पता चला कि इस जंगल में 141 एकड़ ज़मीन में खनन का काम पहले से ही चल रहा है, जिसके कारण हाथियों के निवास को बहुत नुक़सान पहुंचा है।
अखिल असम छात्र संगठन (AASU) और अखिल असम मटक युवा छात्र सम्मेलन (AAMYCS) के सदस्यों ने मई 2020 में इसका विरोध किया। तिनसुकिया में विरोध के तहत उन्होंने ‘मानव श्रृंखला’ बनाई। इंटरनेट पर भी #SaveDehingPatkai नाम का हैशटैग चलाया गया और रणदीप हुडा, आदिल हुसैन, जय बरुआ जैसे जाने-माने व्यक्तियों ने भी विरोध में भाग लिया। पर्यावरण कार्यकर्ता जादव पायेंग, जिन्हें ‘फ़ॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ नाम से जाना जाता है, ने केंद्र सरकार के सामने खनन का काम रुकवाने की अर्ज़ी पेश की। फ़िलहाल नॉर्थईस्ट कोल फ़ील्डस ने खनन का काम रोक दिया है और मामला गुवाहाटी उच्च न्यायालय में है।
2. आरे बचाओ आंदोलन
आरे कॉलोनी मुंबई के गोरेगांव में स्थित 2000 एकड़ ज़मीन पर विस्तृत वन है। यह मुंबई शहर में बचे गिने-चुने हरित क्षेत्रों में से एक है और इसे ‘मुंबई के फेंफड़े’ के नाम से जाना जाता है। आरे सिर्फ़ विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, तितलियों, सरीसृपों का आवास ही नहीं, बल्कि कम से कम 27 आदिवासी समुदायों का घर भी है। जैविक विविधता के साथ साथ यहां विविध संस्कृतियों का वास है।
साल 2019 में बंबई उच्च न्यायालय ने पर्यावरण कार्यकर्ताओं की कई याचिकाएं रद्द कर दी, जो आरे कॉलोनी को साफ़ करके वहां मुंबई मेट्रो रेल निगम के गैरेज के निर्माण के विरुद्ध थीं। अगस्त साल 2019 में जब न्यायालय ने मुंबई मेट्रो निगम को गैरेज निर्माण की अनुमति दे दी, तब पूरे शहर में ‘आरे बचाओ’ विरोध प्रदर्शन होने लगे और 1 सितंबर को प्रदर्शनकारियों ने आरे क्षेत्र में मानव श्रृंखला बनाई। 4 अक्टूबर की रात को अचानक बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने आरे में एक साथ 2000 पेड़ काट डाले। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज भी किया और 6 अक्टूबर को आरे में धारा 144 लागू कर दी गई। उम्मीद की हल्की रोशनी नज़र आई जब नवंबर में महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी। आरे को बचाने की लड़ाई अभी भी जारी है।
मौजूदा समय के इन 5 आंदोलनों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और पर्यावरण की बेहतरी के लिए अपनी तरफ़ से कोशिश करनी चाहिए।
3. सुंदरवन बचाओ अभियान
बंगाल का सुंदरवन दुनिया का सबसे विस्तृत मैंग्रोव अरण्य है। ‘मैंग्रोव’ यानी ऐसे पेड़ जिनकी जड़ें खारे पानी के अंदर होती हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र के तट पर स्थित यह जंगल 24 लाख एकड़ तक विस्तृत है और इसका 60 फ़ीसद भाग बांग्लादेश में है। यहां बाघ और मगरमच्छ भारी मात्रा में पाए जाते हैं और यह आदिवासी समुदायों का घर भी है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ता समुद्र स्तर सुंदरवन के लिए ख़तरा साबित हो रहा है। हाल ही में अम्फान चक्रवात ने भी इस क्षेत्र के एक बड़े अंश को उजाड़ दिया है। इसके कारण न सिर्फ़ यहां के प्राकृतिक जीवन को नुक़सान पहुंचा है बल्कि यहां रहनेवाले लोगों को भी शारीरिक और आर्थिक क्षति हुई है।
इन लोगों की आर्थिक सहायता और सुंदरवन की प्राकृतिक संपदाओं के बचाव के लिए सोशल मीडिया पर #SaveTheSundarbans अभियान चलाया गया। कोरोनावायरस महामारी के चलते हुए भी आंदोलनकारियों ने सुंदरवन जाकर वहां के लोगों के घरों और रोजगार के पुनर्विकास के लिए काम किया। कई कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से #SundarbansChallenge हैशटैग के तहत इस मुद्दे पर जागरूकता भी फैलाई।
और पढ़ें : बेहतर भविष्य के लिए लड़नेवाली 5 भारतीय महिला पर्यावरणविद
4. जलवायु हड़ताल
20 से 27 सितंबर 2019 तक दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई और कोलकाता में कई स्थानों पर छात्रों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन का मकसद था नारों और चित्रकला के माध्यम से ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ के बारे में जानकारी फैलाना। यह बताना कि किस तरह धरती के तापमान में 2 डिग्री की बढ़ोत्तरी भी हमारे लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है, और केंद्रीय और राज्य सरकारों का ध्यान इस ख़तरे की ओर लाना।
इस आंदोलन की प्रेरणा स्वीडेन की 13 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता, ग्रेटा थ्यूनबर्ग हैं जिन्होंने दुनियाभर के युवाओं को पर्यावरण की रक्षा के लिए आवाज़ उठाने का आह्वान किया था। भारत के अलावा जलवायु हड़ताल पूरी दुनिया में 100 से भी ज़्यादा देशों में हुए थे, जिनमें अमेरिका और कैनडा से लेकर अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश तक शामिल थे।
5. ‘सांस लेने का अधिकार’ आंदोलन
दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित शहर है। ख़ासकर सर्दी के महीनों में यहां की हवा सांस लेने लायक़ नहीं रहती। नवंबर में यहां का ‘एयर क्वॉलिटी इंडेक्स’ 494 पर पहुंच गया था, जिसका मतलब है कि प्रदूषण की मात्रा की वजह से हवा जान के लिए ख़तरनाक है। ऐसे में दिल्ली में रहकर सांस लेना भी जानलेवा साबित हो सकता था।
सोशल मीडिया पर दिल्लीवालों ने #RightToBreathe अभियान चलाया और 5 नवंबर को 15000 लोगों ने अमर जवान ज्योति के सामने सरकार का ध्यान इस तरफ़ लाने के लिए आंदोलन किया। इसका नतीजा यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को पराली जलाने के मुद्दे पर काम करने का आदेश दिया, और केंद्रीय सरकार ने वायु प्रदूषण के मुकाबले के लिए ‘ग्रीन फंड’ के पैसे का उपयोग करने का निर्णय लिया।
प्राकृतिक संपदाओं और जलवायु की रक्षा हमारे ही हाथों में है। अभियानों और ज़मीनी प्रयासों के ज़रिए हम ही अपनी जैविक संपत्ति की सुरक्षा कर सकते हैं और आनेवाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को बेहतर बना सकते हैं। इन सभी आंदोलनों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए और पर्यावरण की बेहतरी के लिए अपनी तरफ़ से कोशिश करनी चाहिए।
और पढ़ें : वंदना शिवा : जैविक खेती से सतत विकास की ‘अगुवा’
तस्वीर साभार : navbharattimes