समाजख़बर EIA ड्राफ्ट 2020 : आखिर क्यों इस ड्राफ्ट के खिलाफ हैं प्रकृति प्रेमी ?

EIA ड्राफ्ट 2020 : आखिर क्यों इस ड्राफ्ट के खिलाफ हैं प्रकृति प्रेमी ?

EIA ड्राफ्ट 2020 साल 2006 के EIA की जगह लेगा। इस नए ड्राफ्ट के खिलाफ खड़े लोग इसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला ड्राफ्ट बता रहे हैं।

हाल ही में केंद्र सरकार ने पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम के तहत पर्यावरण प्रभाव आकलन मसौदा यानी EIA ड्राफ्ट 2020 तैयार किया है। यह ड्राफ्ट जो इन दिनों काफी विवादों में है और विशेषज्ञ, पर्यावरणविद और प्रकृति प्रेमी इस मसौदे का कड़ा विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वालों का कहना है कि इस ड्राफ्ट में शामिल कई बातें ऐसी हैं जो पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों का उल्लंघन कर रही हैं। EIA ड्राफ्ट 2020 के खिलाफ पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के आवास के बाहर लोगों ने विरोध-प्रदर्शन भी किया था। EIA ड्राफ्ट 2020 के खिलाफ जारी विरोध के बीच यह जान लेना बेहद जरूरी है कि आखिर पर्यावरण प्रभाव आकलन होता क्या है?

क्या है पर्यावरण प्रभाव आकलन ?

आपको बता दें कि देश में औद्योगिक क्षेत्र में हर परियोजना को पर्यावरण प्रभाव आकलन से होकर गुज़रना ही पड़ता है। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है पर्यावरण से जुड़ा आकलन यानी यह किसी भी परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का आकलन करने का काम करता है। यूनाइटेड नेशन इनवर्मेंट प्रोग्राम सयुंक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने EIA को एक उपकरण के रूप में परिभाषित किया है जिसका उपयोग कोई भी निर्णय लेने से पहले एक योजना के पर्यावरणीय सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पहचान करने के लिए किया जाता है। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का मकसद किसी योजना के डिज़ाइन और नियोजन के शुरुआती चरण में प्रकृति पर पड़ने वाले प्रभावों की भविष्यवाणी करना है। कुल मिलाकर इसके जरिए ही तय होता है कि कोई परियोजना शुरू होगी या नहीं।

अमेरिका को देखकर ही भारत ने भी EIA की शुरुआत की थी। साल 1970 में अमेरिकी सरकार ने तय किया था कि कोई भी ऐसी परियोजना शुरू करने से पहले, जिसका पर्यावरण से संबंध हो। ये देखा जाएगा कि कहीं उस परियोजना से पर्यावरण का कोई नुकसान तो नहीं हो रहा। इसी आधार पर परियोजना को मंजूरी प्रदान की जाएगी। यही सब देखते हुए भारत ने अपने देश में पर्यावरण रखरखाव के लिए ये नीति लागू की थी।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का मकसद किसी योजना के डिज़ाइन और नियोजन के शुरुआती चरण में प्रकृति पर पड़ने वाले प्रभावों की भविष्यवाणी करना है। कुल मिलाकर इसके जरिए ही तय होता है कि कोई परियोजना शुरू होगी या नहीं।

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क्या है EIA ड्राफ्ट 2020 से जुड़ा विवाद ?

कुछ समय पहले जारी किया EIA ड्राफ्ट 2020 साल 2006 के EIA की जगह लेगा। इस नए ड्राफ्ट के खिलाफ खड़े लोग इसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला ड्राफ्ट बता रहे हैं। बता दें कि EIA ड्राफ्ट 2020 में बी1 और बी2 श्रेणी में आने वाली परियोजनाओं के लिए आम लोगों की राय लेने से जुड़े नियम काफी लचीले कर दिए गए हैं। बी2 की श्रेणी में खनन जैसे मिट्टी और रेत की खुदाई और सड़क से जुड़ी परियोजनाएं आती हैं, जिन्हें EIA से बाहर कर दिया गया है। इस तरह से लगभग 40 परियोजनाओं को इस मसौदे से बाहर रखा गया है यानी इनके लिए आम लोगों की राय की जरूरत नहीं होगी। माना जा रहा है कि इससे ऐसी परियोजनाएं चलती रहेंगी जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं।

EIA ड्राफ्ट 2020 पर्यावरण के लिए बने सरंक्षण अधिनियम का साफ़ तौर पर उल्लंघन करता है क्योंकि ये पोस्ट फैक्ट क्लीयरेंस को वैधता प्रदान करता है जिसका मतलब है कि ऐसे किसी मामले में जिसमें कोई परियोजना बिना पर्यावरण क्लीयरेंस के सामने आती है तो उसे मंजूरी दे दी जाएगी। इस तरह से यह ड्राफ्ट अधिनियम के नियमों का उल्लंघन कर रहा है। पोस्ट फैक्ट क्लीयरेंस में डिफ़ॉल्ट परियोजना के प्रस्तावक के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने और उस परियोजना को बंद करने का नियम है।

इसी के साथ इसमें एक और बड़ी परेशानी यह है कि नए मसौदे में आम लोगों की भागीदारी कम होती दिखाई पड़ रही है क्योंकि इसमें जन सुनवाई के लिए नोटिस का वक्त 30 दिन से घटाकर 20 दिन कर दिया गया है। साथ ही इसके एक नियम के तहत अगर किसी परियोजना में ऐसी कोई खामी दिखे कि उसके कारण पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, तो भी उसपर संज्ञान सिर्फ सरकार ले सकती है और या फिर खुद परियोजना चलाने वाला ले सकता है, जिस कारण यह नया ड्राफ्ट विवादों में घिरा हुआ है। दक्षिण भारत में तो पर्यावरणविद् इस ड्राफ्ट का विरोध करते हुए रंगोली बनाकर सरकार के ख़िलाफ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर चुके हैं।

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इस ड्राफ्ट से जुड़ा एक और मुद्दा काफी गरमाया हुआ है। दरअसल ड्राफ्ट से जुड़ी अधिसूचना को केवल 2 भाषा हिंदी और अंग्रेज़ी में ही जारी किया गया है। बाकी भाषाओं में इसका अनुवाद नहीं किया गया जबकि 2011 के जनगणना आंकड़ो की बात करें तो भारत की मात्र 43 फीसद जनसंख्या ही हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा बोलती है बाकी जनता क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग करती है। इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसमें इस ड्राफ्ट को 31 दिसंबर तक विस्तारित करने के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद करने की भी अपील की गई जिससे सभी तक EIA अधिसूचना की जानकारी पहुंच सके। मामले की दूसरी सुनवाई में केंद्र की ओर से कोर्ट को जवाब में ये जानकारी दी गई कि सरकार ने राज्य पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्राधिकरणों (SEIAAs) को स्थानीय भाषाओं में EIA अधिसूचना को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था।


फिलहाल अब देखना ये होगा केंद्र सरकार द्वारा इस विरोध पर क्या प्रतिक्रिया दी जाती है क्योंकि हमारे देश की एक बड़ी आबादी, खासकर यहां की जनजाति अपनी आजीविका के लिए पर्यावरण पर निर्भर है। वहीं, इस ड्राफ्ट से पर्यावरण पर पड़ने प्रभावों से वैश्विक ताप में वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी समस्या विकराल हो सकती है। वैश्वीकरण को बढ़ावा और विकास की आड़ में किया जा रहा औद्योगीकरण साफ़ तौर पर एक पर्यावरणीय क्षति है जिसका भविष्य में भारी खामियाज़ा उठाना पड़ सकता है इसलिए जरूरी है कि पहले से ही ऐसे नियम बनाये जाए जाएं जिससे अपने पर्यावरण को बचाया जा सके न कि पहले से मौजूद नियमों को कमज़ोर कर पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य को नुकसान पहुंचाया जाए।

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तस्वीर साभार : फेसबुक

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