इतिहास मुग़ल शासन के दौरान पर्दे के पीछे से शासन करने वाली 4 प्रमुख महिलाएं

मुग़ल शासन के दौरान पर्दे के पीछे से शासन करने वाली 4 प्रमुख महिलाएं

ये ऐसी नामी मुग़ल महिलाएँ हैं जिन्होंने मुग़ल राजनीति में अपने अमूल्य योगदान के बावजूद वे प्रमुख शासकों की श्रेणी में शामिल नहीं हो पाई।

आधुनिक भारत के इतिहास में मुग़ल की सत्ता पर गौर करें तो प्रथम श्रेणी में बाबर, अकबर, हुमायूं जैसे महान मुग़ल शासक ही नज़र आते हैं लेकिन इन्हीं शासकों के पीछे एक द्वितीय श्रेणी के शासक भी मौजूद रहे जिनमें महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण थी। आज के इस लेख में हम आपको ऐसी नामी मुग़ल महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने मुग़ल राजनीति में अपना शानदार योगदान दिया लेकिन फिर भी वे प्रमुख शासकों की श्रेणी में शामिल नहीं हो पाई। ये महिलाएं हरम और अदालत की राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल थी। उनकी विचारधाराओं ने शासकों को बहुत प्रभावित किया और उनमें से कई ’राजा निर्माता’ थी जिन्होंने पर्दे के पीछे से मुग़ल दुनिया पर शासन किया।

1- दौलत बेगम

तस्वीर साभार: Mughalshit

दौलत बेगम बाबर की दादी थी। उन्होंने हमेशा बाबर को जीवन की हर परेशानियों से बचाया था क्योंकि बाबर का जीवन कई चुनौतियों और साजिशों से भरा था। यहां तक कि उनका बचपन भी असुरक्षा से भरा था। उमर शेख मिर्ज़ा (बाबर के पिता) की 1494 ई में मृत्यु हो गई थी। ग्यारह साल के अकेले बाबर ने शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों का सामना किया क्योंकि उनके परिवार वाले ही उनके दुश्मन थे। बाबर के परिजन उन्हें फरगना (उसके पिता की राजधानी) से उसे बेदखल करने के लिए बेताब थे। बाबर की इन मुश्किलों को देखते हुए दौलत बेगम ने जीवन के हर क्षेत्र में बाबर का मार्गदर्शन करना शुरू कर दिया। उनके सुझाव के बाद ही, बाबर ने नए अधिकारियों को नियुक्त किया और उन्हें प्रशासन के प्रभारी के रूप में रखा।  वह दौलत बेगम ही थी जिन्होंने बाबर को षड्यंत्रों से बचाया, उन्हें युद्ध और राजनयिक मामलों के गुर सिखाए। रॉयल मुग़ल लेडीज़ और उनके योगदान  नामक पुस्तक में सोमा मुखर्जी के मुताबिक बाबर ने कहा है, ‘मेरी दादी के फैसले बहुत अहम थे। वह बहुत समझदार और दूरदर्शी थी और उनकी सलाह से ही सभी फैसले लिए जाते थे।’ यह दौलत बेगम की ही दृष्टि थी जिसने बाबर की उपलब्धियों का मार्ग प्रशस्त किया।

2- माहम अंगा

तस्वीर साभार: wisemuslimwomen

माहम अंगा अकबर की मुख्य नर्स थी जिन्होंने बचपन से ही अकबर की देखभाल की थी और सभी परेशानियों में अकबर का साथ दिया। अकबर और माहम के बीच एक-दूसरे के लिए प्यार और विश्वास बहुत अधिक था। माहम बहुत महत्वाकांक्षी थी और उन्हें सत्ता से ख़ासा मोह था। यही वजह थी की उन्होंने अकबर को सियासत से जुड़े कई कठिन निर्णय लेने में सहायता की। 1556 ई. में हुमायूं का निधन हो गया। उस समय इतने बड़े विशाल मुग़ल साम्राज्य को संभालने के लिए अकबर की उम्र काफी कम थी। हालांकि, माहम पर कई तरह के गंभीर आरोप लगाए जाते हैं कि उन्होंने अकबर और बैरम खां के संबंधों को विषैला बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अकबर को पालने वाली मां कहलाने वाली माहम, अकबर के अध्यापक बैरम ख़ान के पद से हटने के बाद मुग़ल दरबार में एकमात्र शक्तिधारक बन गई। उन्होंने अकबर को आश्वस्त किया था कि बैरम खान की उपस्थिति में, वह अपनी सत्ता का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं। माहम के पास कूटनीतिक कौशल था। माहम ने हमेशा बैरम खां और अकबर के साथ नज़दीकियों पर सवाल उठाए। जितने समय तक मुग़ल सत्ता पर माहम अंगा का प्रभाव था उस समय को ‘पेटीकोट सरकार’ के नाम से जाना जाता है।

और पढ़ें : उमाबाई दाभाडे : मराठाओं की इकलौती वीर महिला सेनापति

3- माह चूचक बेगम

माह चूचक बेगम हुमायूं की विधवा और अकबर की सौतेली मां थी। जो अपने बेटे, मिर्ज़ा मोहम्मद हाकिम के राजनीतिक करियर के बारे में बहुत अधिक महत्वाकांक्षी थी। साल 1554 ई में मुनीम खान के मार्गदर्शन में हुमायूं ने उन्हें काबुल का शासक नियुक्त किया था। माह चूचक बेगम ने गनी , मुनीम खान के पोते को काबुल से बाहर निकाल दिया और शासन की कमान सीधे अपने हाथों में लेते हुए काबुल का प्रशासन संभाला। गनी खान भारत वापस आया और अकबर को पूरी कहानी बताई। अकबर ने मुनीम खान और सेना को माह चूचक के खिलाफ भेजा लेकिन उसने जलालाबाद में मुनीम की शक्तिशाली सेना को हरा दिया। उसने अपने तीन भरोसेमंद सलाहकारों की मदद से काबुल पर शासन किया, बाद में तीनों को अकबर ने मार डाला। माह चूचक ने शाह अब्दुल माली को राजनीतिक शरण दी और अपनी बेटी फ़करू-एन-निसा से उनकी शादी करा दी, जो उनके लिए राजनीतिक रूप से फायदेमंद था। अपने कूटनीतिक कौशल और बुद्धिमत्ता का उपयोग करके, उसने अपने लिए पितृसत्तात्मक समाज में अवसर पैदा किए।

4- नूर जहां

तस्वीर साभार: Dope Wope

1577 ई. में कंधार में जन्म लेने वाली मेहरुन्निसा का नाम नूर जहां भी था। उनकी शादी जब जहांगीर से होने बाद उन्हें पहले नूर महल का ख़िताब मिला फिर नूर जहां का। जब नूर जहां ने जहांगीर से शादी की, वह चौंतीस साल की थी। वह एक बेहद खूबसूरत, एक शिक्षित और बुद्धिमान महिला थी। वह कविता, संगीत और चित्रकला की भी शौकीन थी। उन्होंने फ़ारसी में कई छंद भी लिखे थे। उन्होंने एक पुस्तकालय का भी निर्माण किया, जिसमें बड़ी संख्या में मेधावी कार्य शामिल थे। वह 1613 ई. में पदशाह बेगम के पद तक पहुंचने वाली पहली महिला थी। उनके रिश्तेदारों को भी उच्च पद दिया गया था। नूर जहां के पिता इतिमाद-उद-दौला और उनका भाई आसफ खान निष्ठावान और सक्षम थे, जो अपनी योग्यता के आधार पर राज्य के उच्च पदों पर आसीन थे।

और पढ़ें : महादेवी अक्का : कर्नाटक की मशहूर लिंगायत संत

नूर जहां अपनी बुद्धिमता और कौशल के कारण सम्राट के दिल-ओ-दिमाग पर छा गई थी। इसलिए वह जल्दी ही सम्राट के झरोखा दर्शन में भी नज़र आने लगी। नूर जहां का नाम उस समय प्रयोग में लाए जा रहे सिक्कों पर भी अंकित किया गया। साथ ही आदेश पत्रों पर भी सम्राट के आदेश के अनुसार उनके द्वारा हस्ताक्षर शामिल किए गए थे। राज्य से संबंधित कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नूर जहां की सहमति के बिना नहीं लिया जा सकता था। अपनी शादी के तुरंत बाद, नूरजहां ने ‘नूरजहां के जुंटा’ नाम के एक गुट का गठन किया। इसमें उनकी मां अस्मत बेगम, उनके पिता इतिमद-उद-दौला और राजकुमार खुर्रम शामिल थे। इस समूह का प्रत्येक सदस्य राज्य के उच्च कार्यालयों में कार्यरत था। अलेक्जेंडर डॉ, जो मुग़ल दरबार के एक अवधारणात्मक पर्यवेक्षक थे, कहते हैं कि नूरजहां जनता में आगे खड़ी रही। साथ ही उन्होंने अपनी अद्भुत क्षमता के बल पर सभी जंजीरों और रीति-रिवाजों को भी तोड़ा।”

और पढ़ें : रज़िया सुल्तान : भारत की पहली महिला मुस्लिम शासिका


तस्वीर साभार : indiatoday

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content