नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने साल 2019 में आत्महत्या के कारण हुई मौत के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इन आंकड़ों में किसानों, खेतिहर मज़दूरों, दिहाड़ी मज़दूरों, बेरोज़गार, गृहणियों से लेकर छात्रों तक की आत्महत्या से हुई मौत के आंकड़े शामिल हैं। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा हर साल जारी होने वाले इस आंकड़े को बेहद अहम माना जाता है। खासकर किसानों की आत्महत्या से होने वाली मौत का आंकड़ा दिखाता है कि हमारे देश में कृषि क्षेत्र की हालत सुधरने की जगह बद् से बद्तर की स्थिति में जा रही है। इन भयावह आंकड़ों के जारी होने के बावजूद देश का तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया सिर्फ एक व्यक्ति की आत्महत्या के कारण हुई मौत की खबरें दिखाता रहा। जबकि नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी किए गए आंकड़ो में जिन लोगों की मौत हुई है उनमें से अधिकतर लोगों की मौत का कारण सरकारी नीतियों की असफलता है। कृषि क्षेत्र का संकट, बेरोज़गारी, दिहाड़ी मज़दूरों की समस्याएं, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा आदि नीतिगत असफलताओं की श्रेणी में ही आते हैं।
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में 1, 39,123 लोगों की मौत आत्महत्या के कारण हुई। यानी बीते साल हर चार मिनट पर एक व्यक्ति की मौत आत्महत्या के कारण हुई। यानी हर दिन औसतन 381 मौतें आत्महत्या के कारण हुई। हर 100 आत्महत्या में 70.2 पुरुष थे और 29.8 महिलाएं शामिल थी। सबसे अधिक आत्महत्या से मौत के मामले महाराष्ट्र- 18,916, उसके बाद तमिलनाडु- 13, 493 और पश्चिम बंगाल-12,665 में देखने को मिले। वहीं मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा- 12,457 और कर्नाटक में 11,288 रहा।
और पढ़ें : आत्महत्या पर मीडिया रिपोर्टिंग करते वक्त ज़रूरी है इन बातों का ख़ास ख़्याल
आत्महत्या से हुई मौत के मामले में दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या सबसे अधिक
रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या से होने वाली मौत में एक बड़ी तादाद दिहाड़ी मज़दूरों की है। साल 2019 में जिन लोगों की मौत आत्महत्या से हुई उसमें 23.4 फीसद दिहाड़ी मज़दूर शामिल थे। बीते साल कुल 32,563 दिहाड़ी मज़दूरों की मौत आत्महत्या के कारण हुई जिसमें 3467 महिला मज़दूर शामिल हैं। आसान शब्दों में कहें तो साल 2019 में हर चौथी आत्महत्या के कारण हुई मौत एक दिहाड़ी मज़दूर की हुई। इनमें 2 तिहाई ऐसे लोग शामिल थे जिनकी कमाई प्रतिदिन 278 रुपये से भी कम थी जो मनरेगा के तहत मिलने वाली न्यूनतम मज़दूरी से भी कम है। जबकि साल 2018 में यह आंकड़ा 31,132 था। हालांकि साल 2018 में भी दिहाड़ी मज़दूरों की स्थिति कोई बेहतर नहीं थी। एनसीआरबी के ही आंकड़े बताते हैं कि 2018 में हर पांच में से एक शख्स जिसकी मौत आत्महत्या के कारण हुई वह एक दिहाड़ी मज़दूर था। रिपोर्ट बताती है कि साल 2014 से 2018 के बीच दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या के मामले में बढ़त हुई है।
इस साल कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने जिस तरीके से दिहाड़ी मज़दूरों को प्रभावित किया है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि शायद अगले साल यह इन आंकड़ो की स्थिति और भी अधिक भयावह हो। लॉकडाउन के बाद जिस तरीके से हज़ारों प्रवासी मज़दूर पैदल ही अपने घरों के लिए निकल पड़े वह समस्या की गंभीरता दिखाता है। सरकार की तरफ से भी इन मज़दूरों के लिए सहायता काफी देर से जारी की गई। हालांकि कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि प्रवासी मज़दूरों के एक बड़े वर्ग को अब भी कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पाई है। एक्शन एड द्वारा किए गए एक सर्वे में जिसमें 11,530 प्रवासी मज़दूर शामिल थे। उनके मुताबिक 48 फीसद मज़दूरों ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन के बाद मेहनताना नहीं दिया गया। वहीं, सर्वे में शामिल 78 फीसद कामगार इस लॉकडाउन में बेरोज़गार हो गए। सर्वे में शामिल ज़्यादातर मज़दूरों ने यह माना कि उन्हें लॉकडाउन की अवधि में सरकार या प्रशासन की तरफ से ट्रांसपोर्ट, खाना, या रहने के संबंध में कोई मदद भी नहीं मिली।
और पढ़ें : महामारी में भारतीय मजदूर : रोज़गार के बाद अब छीने जा रहे है अधिकार !
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या से होने वाली मौत के पीछे बेरोज़गारी भी है एक बड़ी वजह। साल 2019 में 2,851 लोगों ने बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या का रास्ता चुना। वहीं 14,019 लोग जिनकी मौत आत्महत्या के कारण हुई वे बेरोज़गार थे और इसमें शामिल ज़्यादातर लोगों की उम्र उम्र 18 से 30 साल के बीच थी।
कृषि क्षेत्र में बरकरार है संकट
बात अगर हम किसानों की आत्महत्या से होने वाली मौत का करें तो एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि इस मामले में भी कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है। साल 2019 में 10,281 किसानों की मौत आत्महत्या के कारण हुई। जिसमें 5,957 किसान थे और 4,324 खेतिहर मज़दूर शामिल थे। बात अगर महिलाओं की करें तो साल 2019 में 394 महिला किसान और 597 महिला खेतीहर मज़दूरों की मौत आत्महत्या के कारण हुई।
जबकि साल 2018 में यह आंकड़ा 10,357 था। बीते साल कृषि क्षेत्र में आत्महत्या से होनेवाली मौत कुल आत्महत्या का 7.4 फीसद थी। साल 2015 तक एनसीआरबी द्वारा किसानों की आत्महत्या के कारण हुई मौत की वजह भी रिपोर्ट में शामिल की जाती थी। हालांकि इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है 2019 की रिपोर्ट में एनसीआरबी ने मौत की वजहों को शामिल नहीं किया है। आत्महत्या के कारण सबसे अधिक किसानों की मौत महाराष्ट्र (38.2 फीसद) उसके बाद कर्नाटक (19.4 फीसद) और आंध्र प्रदेश (10 फीसद) हुई।
सबसे अधिक गृहणियों की आत्महत्या के कारण मौत भारत में
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में 41,493 महिलाओं की मौत आत्महत्या के कारण हुई। इनमें सबसे अधिक 21,359 घरेलू महिलाओं की मौत आत्महत्या के कारण हुई। ऐसा पहली बार नहीं जब महिलाओं की आत्महत्या से होने वाली मौत की तादाद अधिक है। मेडिकल जर्नल लैंसट में साल 2018 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर पांच में 2 महिलाएं जिनकी मौत आत्महत्या के कारण होती है वे भारतीय होती हैं। दुनिया में महिलाओं की आत्महत्या से होने वाली मौत में करीब 37 फीसद भारतीय महिलाएं होती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 1990 से भारत में महिलाओं की आत्महत्या में कमी ज़रूर आई लेकिन दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले यह रफ्तार अभी भी बेहद धीमी है। इन मौतों के पीछे रिपोर्ट में जल्दी शादी होना, पुरुषों की हिंसा, घरेलू हिंसा, आर्थिक निर्भरता और पितृसत्तात्मक संस्कृति को ज़िम्मेदार माना गया है। एनसीआरबी की साल 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक भी हर दिन औसतन 63 घरेलू महिलाओं की मौत आत्महत्या के कारण हुई। राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 से हर साल करीब 20,000 से अधिक गृहणियों की मौत आत्महत्या के कारण होती है।
और पढ़ें : लॉकडाउन में महिलाओं पर बढ़ता अनपेड वर्क का बोझ
तस्वीर साभार : scroll