स्वास्थ्यमानसिक स्वास्थ्य विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : क्या कहते हैं भारत के आंकड़े

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : क्या कहते हैं भारत के आंकड़े

10 अक्टूबर विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका मूल उद्देश्य दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाना है।

हर साल 10 अक्टूबर विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका मूल उद्देश्य दुनियाभर में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाना है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ‘वर्ल्ड फेडरेशन फ़ॉर मेंटल हेल्थ‘ द्वारा आयोजित किया जाता है। पहली बार इसका आयोजन 1992 में हुआ था। इस दिन वे साल भर के लिए एक ‘थीम’ तय करते हैं, जिसके केंद्र में मानसिक समस्याएं, उनपर चर्चा, शोध और उनका समाधान करने का लक्ष्य निहित होता है। इस साल की थीम रखी गई है- ‘मेंटल हेल्थ फॉर ऑल’ यानी मानसिक स्वास्थ्य सबके लिए। पिछले साल यानी 2019 में इनका लक्ष्य आत्महत्या के रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम उठाना था।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य मानसिक व्याधियों के न होने से ज़्यादा है। ख़ुश रहना और जीवन में बेहतर करना भी इसके ज़रूरी भाग हैं।” दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समस्याओं में चिंताजनक बढ़ोत्तरी हुई है। विशेषकर बच्चों और युवाओं के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। विश्व बैंक द्वारा दिए गए आंकड़े के अनुसार दुनिया की लगभग 10 प्रतिशत आबादी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से ग्रस्त है। साथ ही लगभग 20 प्रतिशत बच्चे और युवा भी किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझते हैं।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अक्टूबर 2019 में दिए गए एक डेटा के मुताबिक़ भारत की कुल आबादी का लभगभ 7.5% भाग किसी न किसी तरह के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझता है। साल 2020 को लेकर लगाए गए अनुमान में कहा गया कि यह आंकड़ा बढ़कर 20 प्रतिशत हो जाएगा। यह अनुमान निश्चित तौर पर सामान्य स्थितियों को देखते हुए लगाया गया होगा। लेकिन 2020 में एक ऐसी महामारी ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में लिया, जिसके कारण दुनिया की रफ्तार लगभग थम गई। लोग घरों में कैद हो गए। कामकाज ठप हो गया। बहुत सारे लोगों को नौकरियों से निकाल दिया गया। पुरुषों के घर में होने के कारण महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा की घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से इज़ाफ़ा हुआ। सरकारों की अक्षमता के कारण भविष्य को लेकर लोगों के मन में तमाम तरह के संशय घर कर गए जिसके कारण दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य की दर में गिरावट दर्ज की गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 130 देशों में जून से लेकर अगस्त के बिच किए गए एक सर्वे के अनुसार वैश्विक महामारी कोरोना के कारन लगभग 93 प्रतिशत देशों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं ,जबकि इस दौरान इन सेवाओं की और भी अधिक ज़रूरत है।

हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनलों तक लगातार बहसें हुईं। मुंबई पुलिस द्वारा की गई जांच-पड़ताल से ये मालूम हुआ कि सुशांत मानसिक रूप से अस्वस्थ थे। ऐसा कहा गया कि वे ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ से जूझ रहे थे। हालांकि, भारतीय समाज में मानसिक बीमारी एक टैबू है। यहां लोग यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि मानसिक बीमारी या मानसिक स्वास्थ्य जैसी कोई चीज़ होती है। अक्सर यह कहा जाता है कि फलां व्यक्ति इतना कमज़ोर नहीं है कि वह मानसिक बीमारी से जूझे या यह समझा जाता है कि अगर कोई सार्वजनिक क्षेत्र में सामान्य व्यवहार कर रहा है, हंस-मुस्कुरा रहा है, आर्थिक रूप से सक्षम है तो वह मानसिक रूप से बीमार नहीं हो सकता। हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं है।

मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर मसला है। तेज़ी से विकास करते विश्व मे जहां पूंजीवाद एक ओर मिसाइल और लड़ाकू हथियार तैयार रहा है। वहीं दूसरी ओर डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियां विश्व भर में लगभग 264 मिलियन लोगों को प्रभावित कर उनकी मौत का कारण बन रही हैं।

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आज की भागती दुनिया में लोग अक्सर व्यस्त रहते हैं और आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद ,कई अलग-अलग कारणों से मानसिक रूप से बीमार हो सकते हैं साथ ही। डिप्रेशन या एंग्जायटी का होना कहीं से भी किसी का कमज़ोर होना नहीं है। ‘डायग्नोस्टिक एंड स्टैस्टिकल मैनुअल ऑफ़ मेंटल डिसऑर्डर’ (DSM-5) में क़रीब 300 मेंटल डिसऑर्डर नामांकित किए गए हैं। यह स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई श्रेणी है। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के कुछ प्रमुख समूहों में मूड डिसऑर्डर (डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर), एंग्जायटी डिसऑर्डर, पर्सनैलिटी डिसऑर्डर, साइकॉटिक डिसऑर्डर, ईटिंग डिसऑर्डर, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर और सब्सटेंस एब्यूज डिसऑर्डर आदि शामिल हैं। मानसिक बीमारी की पहचान असल में विवादास्पद है। मेडिकल समुदाय के लोगों के बीच इस पर कई बहसें होती हैं कि कौन-सा व्यवहार मानसिक बीमारी के रूप से दर्ज किया जाना चाहिए और कौन-सा नहीं। मानसिक बीमारी की परिभाषा समाज और संस्कृति के अनुसार प्रभावित हो सकती है लेकिन अधिकतर मानसिक बीमारियां सभी देशों और संस्कृतिओं में पाई जाती हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि उनके पीछे न केवल सामाजिक कारण है बल्कि जैविक और मानसिक कारण भी।

भारत की मौजूदा स्थितियों पर ग़ौर करें तो अभी यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से एक संघर्ष-भूमि है। दक्षिणपंथ की सरकार महामारी नियंत्रित करने में पूरी तरह से विफल रही है जिसके कारण मजदूरों, किसानों और नौजवानों को सीधे तौर पर हाशिए पर धकेल दिया गया है। रोज़गार न होने के कारण युवा मानसिक रूप से परेशान हैं। शिक्षा व्यवस्था में कमी और पुनः सुधार न होने के कारण बच्चों पर अत्यधिक बोझ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 5 में से 1 बच्चा व किशोर किसी न किसी मानसिक बीमारी से जूझता है। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण बचपन में होने वाला यौन शोषण भी है। भारत शिक्षा और लैंगिक संवेदनशीलता में काफ़ी पीछे है, जिसके कारण यौन हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। यहां की ख़राब मानसिक स्थिति का एक और महत्वपूर्ण कारण कुछ राज्यों में लगातार रहने वाला राजनीतिक और धार्मिक तनाव भी है जैसे – कश्मीर व पूर्वोत्तर के राज्य। अक़्सर इन राज्यों के युवाओं में सरकारी गतिविधियों के कारण निराशा और हताशा होती है। एक आंकड़े के अनुसार ऐसे विवाद वाले क्षेत्रों में 9 में से 1 लोग गंभीर किस्म की मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं। मौजूदा समय जब विश्व कोरोना से जूझ रहा है,स्थितियां और खराब हो गई हैं। इंडियन इंडियन सायकियाट्री सोसाएटी (आईपीएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार 5 में से 1 भारतीय किसी न किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहा है।

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मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर मसला है। तेज़ी से विकास करते विश्व मे जहां पूंजीवाद एक ओर मिसाइल और लड़ाकू हथियार तैयार रहा है। वहीं दूसरी ओर डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियां विश्व भर में लगभग 264 मिलियन लोगों को प्रभावित कर उनकी मौत का कारण बन रही हैं। इस बारे में लोगों को जागरूक कर समाज में इसको लेकर बने टैबू को तोड़ना ज़रूरी है। भारत, जो कि युवाओं का देश कहा जाता में मानसिक बीमारी के आधे से अधिक केस 14 साल की उम्र के पहले शुरू होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार आत्महत्या से मरने वालों में लगभग 71% लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहे होते हैं जिनकी उम्र 15 से 29 साल होती है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर दुनिया भर के देशों में अब सरकारें प्रयास कर रही हैं, नीतियां बनाई जा रही हैं और तमाम ग़ैर-सरकारी संस्थान भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं। हालांकि अभी भी 139 देशों में आधे से भी कम देशों में सुचारू स्वास्थ्य नीतियां मौजूद हैं। अमीर देशों में प्रति 100,000 आबादी पर क़रीब 70 मानसिक स्वास्थ्यकर्मी हैं। वहीं ग़रीब देशों की हालत बदतर है, जहां प्रति 100,000 आबादी के हिस्से मात्र 2 मानसिक स्वास्थ्य कर्मी हैं। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाने के पीछे यही निहित उद्देश्य है कि दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य को लेेेकर जागरूकता बढ़ाई जाए, साथ ही इस समस्या के कारणों को खत्म करने की कोशिश की जाए।

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