साल 1966 में इंदिरा गांधी के रूप में एक महिला प्रधानमंत्री को चुनने वाला भारत पहला लोकतंत्र था। हालांकि, बहुत कम लोग को यह पता है कि इसके तीन साल पहले उत्तर प्रदेश ने सुचेता कृपलानी को भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में चुना था। सुचेता कृपलानी देश के सबसे बड़े प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। 25 जून 1908 को, वह हरियाणा के अंबाला में रहने वाले एक बंगाली ब्रह्मो परिवार में सुचेता मजूमदार के रूप में पैदा हुईं। उनके पिता, जिन्होंने एक सरकारी चिकित्सक के रूप में देश की सेवा की, एक उत्साही देशभक्त थे। उन्होंने खुद को राष्ट्र की सेवा और अपनी स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया था। यह वही व्यक्ति थे जिसने सुचेता कृपलानी के मन में देशभक्ति की भावना जगाई। एक शानदार छात्र के रूप में सुचेता ने नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की, इसके बाद सेंट स्टीफन कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त। इसके बाद, वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संवैधानिक इतिहास की व्याख्याता बन गईं।
जब वह लगभग 28 साल की थी, तब वह आचार्य जे. बी. कृपलानी मिली, उनसे प्यार हो गया और आखिरकार आचार्य जे. बी.कृपलानी से शादी कर ली, जो एक प्रसिद्ध समाजवादी नेता थे। उनकी शादी का दोनों परिवारों ने विरोध किया, जिसमें मोहनदास करमचंद गांधी भी शामिल थे। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, “दोनों पति-पत्नी अलग-अलग राजनैतिक विचारों के प्रति निष्ठावान थे पर इन दोनों ने कभी एक दूसरे से सवाल नहीं किए, जो एक अलग तरह का लोकतंत्र दर्शाता है।”
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स्वाधीनता आंदोलन तथा आज़ादी में सहभागीता
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब अंग्रेजी सरकार ने सारे पुरुष नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया तब सुचेता कृपलानी ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए कहा, “बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा।” इस दौरान भूमिगत होकर उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छिपते-छिपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया। उन्होंने इसके अंतर्गत ‘अंडरग्राउंड वालंटियर फोर्स’ भी बनाई और महिलाओं और लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। इसके साथ-साथ वह राजनीतिक कैदियों के परिवार की सहायता की जिम्मेदारी भी उठाती रही। सुचेता कृपलानी एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने देश के लिए अपने सभी सपने का त्याग कर दिया।
सुचेता कृपलानी 2 अक्टूबर,1963 को उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के साथ देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी और इस पद पर 13 मार्च, 1967 तक आसीन रही।
एक कट्टर गांधीवादी, आचार्य कृपलानी ने सुचेता को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया, इसके अलावा उन्होंने स्वयं गांधी से भी परिचय किया। उसी वर्ष नोआखली (अब बांग्लादेश में) में हिंसक सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। गांधी और सुचेता कृपलानी के साथ, उन्होंने दंगा प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया और कार्निवल के पीड़ितों के लिए सेवा प्रदान की। हालांकि सुचेता अपने शुरुआती दिनों में साम्यवाद से प्रभावित थी परंतु बाद में वह गांधीवादी हो गई।
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राजनीतिक जीवन में प्रवेश
साल 1946 सुचेता के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ क्योंकि साल के अंत तक, उन्हें संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था। उनकी क्षमता के कारण, उन्हें उपसमिति में शामिल किया गया जिसे भारत के संविधान के लिए चार्टर का काम सौंपा गया था। 1949 में, सुचेता कृपलानी को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था। 1952 में, आचार्य कृपलानी ने नेहरू और कांग्रेस पार्टी से जुड़े, बाद में जाकर उन्होंने कृषक मज़दूर प्रजा पार्टी के नाम से एक नई पार्टी भी बनाई। सुचेता इस पार्टी में शामिल तो हुई लेकिन राष्ट्रीय कांग्रेस में वापस चली गई। सुचेता कृपलानी 1952 में हुए पहले आम चुनाव में नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गई। उन्होंने लघु उद्योग राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी दी गई। पांच साल बाद, उसे उसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुना गया, हालांकि कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में। अपनी शानदार बुद्धि, शानदार कौशल के साथ सुचेता एक शानदार सांसद के रूप में खुद के लिए एक जगह बनाने में कामयाब रही।
भारत की पहली महिला सीएम के रुप में सुचेता
साल 1962 में, सुचेता कृपलानी ने उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा। वह कानपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गईं और श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग के विभागों को संभालने वाली कैबिनेट मंत्री बनीं। सुचेता कृपलानी 2 अक्टूबर,1963 को उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के साथ देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी और इस पद पर 13 मार्च, 1967 तक आसीन रही। सीएम के रूप में एक कुशल प्रशासक की तरह उन्होंने अपने प्रदेश में विकास के काम करवाए और खुद को साबित किया। पद पर रहते हुए, उसने एक सक्षम प्रशासक और कुशल संगठनकर्ता के रूप में अपनी क्षमता साबित की। अपनी ईमानदारी, बुद्धिमत्ता और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने कई समस्याओं को प्रभावी ढंग से निपटाया। साल 1967 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। साल 1971 में सुचेता कृपलानी ने राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया।
सक्रिय राजनीति छोड़ने के बाद सुचेता और उनके पति स्थायी रूप से दिल्ली में बस गए। चूंकि वे निःसंतान थे, इसलिए कृपलानी ने उदारतापूर्वक अपनी संपत्ति और संसाधनों को लोककल्याण समिति को दान कर दिया, जिसे दिल्ली में आर्थिक रूप से वंचित समूहों की सहायता के लिए स्थापित किया गया था। इस समय, उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखना शुरू कर दिया, जिसके तीन भाग ‘द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया‘ पत्रिका में सिलसिलेवार ढंग से प्रकाशित हुए। जैसे-जैसे उनकी सेहत गिरने लगी, वह बीमार रहने लगी, उसका काम अधूरा रह गया । 1972 में, वह लगातार दो दिल के दौरे से तो बच गई परंतु दो साल बाद, उन्होंने तीसरे दिल के दौरा के बाद दम तोड़ दिया और 66 साल की उम्र में 1 दिसंबर 1974 को उसका निधन हो गया। भारत सरकार ने इस शानदार राजनेता के सम्मान में नई दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से जुड़े दो अस्पतालों में से एक का नाम बदलकर सुचेता कृपलानी अस्पताल कर दिया। उनके शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा,“सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थी, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।”
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