कहा जाता है कि प्रेम में होना बहुत बड़ी व्यक्तिगत क्रांति है। प्रेम सामाजिक ढांचों को चुनौती देने की ताकत रखता है। दो लोग जब जाति, धर्म, जेंडर, या अन्य किसी अन्य बंदिशों को तोड़कर प्रेम में पड़ते हैं तो उन पर कई समाजिक प्रतिबंध लगाए जाते हैं। इन प्रतिबंधों पर राजनीति होती है। लेकिन प्रेम इन से परे है। ख़ासकर महिलाओं के लिए अपनी शर्तों पर प्रेम करने और अपना साथी चुनने की आज़ादी नहीं होती। परिवार, अन्य सामाजिक संस्थान, पितृसतात्मक परवरिश के कारण कई बार औरतों के लिए प्रेम में बने रहना असंभव हो जाता है। आज हम इस लेख के ज़रिए पढ़ेंगे प्रेम पर कुछ महिलाओं के निजी अनुभव, प्रेम पर उनके विचार और वे बातें जो प्रगतिशील हैं
1. कल्कि जो कि एक बॉलीवुड अभिनेत्री हैं, उन्होंने पिछले दिनों अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर अपने पार्टनर के साथ एक तस्वीर पोस्ट की। इस तस्वीर का कैप्शन कुछ इस तरह था, “हम डेड सी के रास्ते में एक पेट्रोल पंप पर मिले थे और वहीं से हमारी बातचीत शुरू हुई, जिसके बाद हम कई सालों तक साथ रहे और उसके बाद मैंने एक बच्चे को जन्म दिया। हम कुछ सालों तक हर महीने बॉम्बे से जेरुसलेम और जेरुसलेम से बॉम्बे आते-जाते रहे, जहां मैं भारत से फ्रेश नारियल पैक करके इज़रायल ले जाती थी और वह वहां से कई किलो संतरे और एवोकाडो भारत लाते थे। वो मुझे ब्रेकफास्ट में मिडिल-ईस्टर्न सलाद खिलाते हैं, वहीं मैं उन्हें दिन में तीन बार रेगुलर खाना खिलाती हूं। उन्होंने बिरयानी बनाना सीखी है और मैंने शकशुका (इजरायल रेसिपी) बनाना सीखा है। उन्होंने हिंदी क्लासेज ली हैं और फ्रेंच फिल्में देखी हैं, वहीं मैंने ऑनलाइन हिब्रू (यहूदी भाषा) क्लासेज शुरू की थीं और वेस्टर्न क्लासिकल संगीत सुनना भी सीखा है। वो अपनी कॉफ़ी इलायची के साथ पसंद करते हैं, और मैं अपनी चाय दूध और चीनी के साथ पसंद करती हूं”। मेरा पहला नाम हिंदू है, हमारी बेटी का नाम ग्रीक जो भारत में पली बढ़ी है जिससे हम हिंदी, हिब्रू, तमिल और फ्रेंच भाषा में बात करते हैं। हम अपने घर पर किसी धार्मिक परंपरा का पालन नहीं करते लेकिन हम अपनी संस्कृति और खान-पान आपस में साझा करते हैं।
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2. रेबेका वेस्ट द्वारा लिखे एक पत्र का हिस्सा जहां उन्होंने लिखा था, “जब भी द्वेष या शत्रुता से सामना होता है, हमेशा मेरा नुक़सान होता है क्योंकि मैं सिर्फ़ प्रेम कर सकती हूं और इसके सिवा कुछ भी नहीं।”
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3. ‘लेटर टू माय डॉटर’ में अमरीकी साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता, माया एंजेलो ने लिखा, “मैं मानती हूं कि ज्यादातर लोग समझ से बड़े नहीं हो पाते। हम शादी करते हैं, बच्चे जनने की ज़ुर्रत करते हैं लेकिन बड़े नहीं होते। मुझे लगता हम बस बूढ़े हो जाते हैं। हम शरीर में गुजरे साल जमा कर रखते हैं।”
4. दलित साहित्यकार अनिता भारती की एक कविता की कुछ पंक्तियां कुछ इस तरह हैं, “प्रिय मित्र क्रांतिकारी जय भीम जब तुम उदास होते हो तो सारी सृष्टि में उदासी भर जाती है, थके आंदोलन सी आंखें, नारे लगाने की विवशता, जोर-जोर से गीत गाने की रिवायत, नहीं तोड़ पाती तुम्हारी खामोशी।”
5. भारतीय धावक दुति चंद अपने निज़ी जीवन पर पूछे गए सवाल के जवाब में कहती हैं, “मैंने पत्रकारों से कहा कि मैं एक औरत से प्रेम करती हूं। मेरे गांव में लोगों को इस बात से सहज होने में समय लगेगा। इसका ये मतलब नहीं कि मैं अपने दिल की नहीं सुनूंगी। सभी को प्रेम की जरूरत है।”