समाजख़बर ग्राउंड रिपोर्ट : जानिए क्या कहना है प्रदर्शन में शामिल महिला किसानों का

ग्राउंड रिपोर्ट : जानिए क्या कहना है प्रदर्शन में शामिल महिला किसानों का

हरियाणा से आई सावित्री मलिक कहती हैं, "हमें इस बात की चिंता है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां क्या खाएंगी? यह लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है बल्कि आने वाली पीढ़ियों की है। हम उनके लिए लड़ेंगे, मर जाएंगे लेकिन यह कानून वापस कराकर ही छोड़ेंगे। अगर आज हम नहीं लड़ेंगे तो आने वाली पीढ़ियां हमसे पूछेंगी कि तब तुम कहां थे जब यह कानून लाया गया था? इसी लिए हम यह लड़ाई लड़ रहे हैं।"

देशभर के किसान पिछले कई महीनों से मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। अब तक किसान संगठनों और सरकार के दरमियान 6 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया है। किसान क़ानून वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। भले ही सरकार किसानों की मांगे माने या नहीं लेकिन इस आंदोलन को जो चीज़ ऐतिहासिक बनाती है वह है प्रदर्शन में महिलाओं की मौजूदगी। हम जब भी किसान शब्द को सुनते हैं तो हमारे ज़हन में सबसे पहले मर्दों की ही तस्वीर उभरकर सामने आती है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि देश में 73.2%  ग्रामीण महिलाओं की कृषि क्षेत्र में भागीदारी है और उनके पास सिर्फ 12.8% ज़मीन है। नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों की किसान महिलाएं दिल्ली के टिकरी, सिंघु आदि बॉर्डर पर डटी हुई हैं। आइए जानते हैं कि आखिर इन महिलाओं का इस आंदोलन को लेकर क्या कहना है। 

हरियाणा से आई सावित्री मलिक कहती हैं, “जब तक ये कानून वापस नहीं होंगे तब हम चैन से नहीं बैठेंगे, हम अपने भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हम इस लड़ाई में इनके साथ रहेंगे। वह कहती हैं कि दिन में वह प्रदर्शन में रहती हैं और शाम को गांवों में जाकर लोगों को इस कानून के बारे में जानकारी हैं और धरना प्रदर्शन का प्रचार कर उन्हें यहां जुटाने के लिए कहती हैं।” सावित्री आगे कहती हैं, “अगर मोदी सरकार हमें हमारा हक शांति से नहीं देती है तो हम उसे छीनना जानते हैं, जिसे हम लेकर रहेंगे। मैं पीएम मोदी से कहना चाहती हूं कि वो दो दिन खेतों में काम करके दिखा दें तब उनको एहसास होगा कि किसान कितनी मेहनत से कमाता है। मोदी चाहते क्या हैं? क्या वो किसानों को खत्म कर देना चाहते हैं? पहले उन्होने सीएए-एनआरसी लागू कर लोगों को सड़कों पर बैठा दिया और अब किसान कृषि कानूनों की वजह से सड़कों पर हैं।” वह कहती हैं कि हमने अंग्रेजों से लड़कर तो आज़दी हासिल कर ली लेकिन अब देश के अंदर जो डाकू हैं उनसे कैसे लड़ें? हमें इस बात की चिंता है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां क्या खाएंगी? यह लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है बल्कि आने वाली पीढ़ियों की है। हम उनके लिए लड़ेंगे, मर जाएंगे लेकिन यह कानून वापस कराकर ही छोड़ेंगे। अगर आज हम नहीं लड़ेंगे तो आने वाली पीढ़ियां हमसे पूछेंगी कि तब तुम कहां थे जब यह कानून लाया गया था? इसी लिए हम यह लड़ाई लड़ रहे हैं।

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हरियाणा से आई सावित्री मलिक कहती हैं, “हमें इस बात की चिंता है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां क्या खाएंगी? यह लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है बल्कि आने वाली पीढ़ियों की है। हम उनके लिए लड़ेंगे, मर जाएंगे लेकिन यह कानून वापस कराकर ही छोड़ेंगे। अगर आज हम नहीं लड़ेंगे तो आने वाली पीढ़ियां हमसे पूछेंगी कि तब तुम कहां थे जब यह कानून लाया गया था? इसी लिए हम यह लड़ाई लड़ रहे हैं।”

सावित्री 100 रूपए दिहाड़ी लेकर प्रदर्शन में शामिल होने के आरोपों को गलत बताते हुए कहती हैं कि यहां कोई महिला पैसे लेकर नहीं आ रही है। यहां तो महिलाएं शाम में गली-मोहल्ले में जाकर कानून के बारे में लोगों को जानकारी देती हैं और यहां प्रदर्शन में आकर अपना समर्थन देने का आग्रह करती हैं। राजस्थान के चुरू से आई भौरी लोटासा कहती है कि इन कानूनों से हमें काफी खतरा है। हम सरकार से अपना हक मांग रहें कि आप इस कानून में एमएसपी जोड़ दीजिए। जिसे करने में इन्हें काफी तकलीफ हो रही है। यह आंदोलन हमारे बच्चों के लिए है। यहां हमारी पीढ़ियों और परिवार का सवाल है इसलिए हम महिलाएं इस लड़ाई में शामिल हुई हैं। हम यहां भीख नहीं बल्कि अपना हक मांग रहे हैं। हम तो पूरा पूरा दिन खेतों में काम करते हैं यहां सिर्फ बैठना ही तो है, हम बैठे रहेंगे, जब तक सरकार नहीं मान जाती है। यह मोदी सरकार की देन है कि उसने आज हम महिलाओं को घर से बाहर निकाल सड़कों पर बैठा दिया है। हमने उनसे सिर्फ अपना हक़ मांगा है, अगर वो दे देते तो हम आज यहां ना होते। आज हमें हमारे घर वाले अपने अधिकारों को लड़ने के लिए सड़कों पर बैठे हैं। 

पंजाब के फरीदकोट से आई छात्रा कमलदीप कौर कहती हैं कि हमें अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपने अधिकारों की भी फिक्र है। हम अपनी किताबें साथ लेकर आए हम यहीं अपनी पढ़ाई करते हैं। हम ऑनलाइन क्लास भी करते हैं। वह कहती हैं कि 15 दिसंबर से हमारी ऑनलाइन परीक्षा शुरू होनी है, प्रदर्शन में डटकर ही अपनी परीक्षा देंगे लेकिन यहां से वापस नहीं जाएंगे। सरकार को यह कृषि कानून रद्द करने ही होंगे। कमलदीप कहती हैं कि पढ़ाई पूरी करने के बाद हमारे सामने तीन रास्ते होंग सरकारी नौकरी, उद्योग और कृषि। सरकारी नौकरियां तो नहीं हैं। सरकार लगातार नौकरियां खत्म कर रही है। उद्योग में भी नौकरियां पाना मुश्किल होता जा रहा है। हमारे पास आखरी रास्ता सिर्फ खेती किसानी का ही है अगर वो भी सरकार हमसे छीन लेगी तो हम कैसे अपनी रोजी रोटी कमाएंगे? हमारे देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है इसीलिए इसे बचाना ज्यादा जरूरी हो जाता है। वो आगे बताती हैं कि कृषि कानूनों का प्रभाव महिलाओं पर भी पड़ेगा वह अपने परिवार को भूखा नहीं देख सकती है। साथ ही कृषि में महिलाओं की भागीदारी भी बहुत है। यहां सरकार सीधे हमारे मुंह का निवाला छीनने जा रही है तो हमारा इस मैदान में डटना एक बहुत ही अहम किरदार अदा करता है। हम आधी आबादी हैं इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी बन जाती है। हमें भविष्य में अपने हक के लिए लड़ने के लिए ऐसे प्रदर्शनों से काफी सीखने को मिलता है और यहीं से हमारी आज़ादी की शुरुआत होती है। 

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प्रदर्शन में शामिल एक और छात्रा किरनजीत कौर कहती हैं कि बहुत से मज़दूर किसानों पर आश्रित होते हैं। मैं खुद एक मजदूर परिवार से ताल्लुक रखती हूं। यह कृषि कानून हर एक वर्ग को प्रभावित करते हैं। अगर सरकार मंडियां खत्म कर देगी तो मजदूर वर्ग को इससे काफी नुकसान होगा। इसके बाद हमें हमारा खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाएगा। वो आगे कहती हैं कि लड़कियां जब घर से बाहर निकलती थीं तो परिवार वाले सुरक्षा के लिए किसी एक लड़के को साथ भेजते थे लेकिन इस तरह के प्रदर्शनों में महिलाओं की भागीदारी देखकर आज हम अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए दिल्ली आ गए हैं। हम इतिहास देखे तो आजादी से लेकर अब तक जितने भी आंदोलन हुए हैं उनमें महिलाओं की एक खास हिस्सेदारी रही है जो हमारी प्रेरणा हैं। आज भी इस फासीवादी सरकार के खिलाफ औरतों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया है और आगे भी लेंगी। 

पंजाब किसान यूनियन की सदस्य जसबीर कौर कहती हैं कि इन कानूनों से कृषि क्षेत्र में काम कर रहीं महिलओं को भी नुकसान होगा। घर के मर्दों के साथ-साथ उनका रोजगार भी जाएगा। उनके घरों में भी तंगी होगी। इसलिए यह औरतों की खुद के और उनके बच्चों के भविष्य को बचाने की लड़ाई है। इसी वजह से महिलाएं आंदोलन में मौजूद हैं। पंजाब से आई गुरदीप कौर कहती हैं कि हमने मोदी को गद्दी पर बैठाया लेकिन उसने हमें सड़कों पर लाकर बैठा दिया है। हमारा इन्हीं सड़को पर रहना और खाना-पीना हो रहा है। मैं मोदी से कहना चाहती हूं कि वो अपना दिल बड़ा करें। क्यों कियानों को बरबाद कर रहा है? मोदी ने हम किसानों के वास्ते क्या किया? कुछ नहीं किया है उसने। मोदी जान ले कि हम अपना हक लेने आए हैं और लेकर ही वापस जाएंगे। हम कोरोना में सब एक साथ झंडे लेकर खड़े हैं। हम सब कंधे से कंधा मिलाकर अपने भाईयों के साथ यह लड़ाई लड़ रहे हैं। मोदी को जो करना है कर ले, हम यहीं रहेंगे।  

आंदोलन में मौजूद एक और किसान महिला ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि हम यहां अपने हक़ लेने आए हैं। मोदी अपने दिमाग से निकाल दे कि यहां अकेले पंजाब के किसान हैं। कई राज्यों और विदेशों से हमें समर्थन मिल रहा है। जब तक यह कानून रद्द नहीं होते हैं तब हम यहां से नहीं जाएंगे। हम सिर पर कफन बांध कर आए हैं। हम मोदी को कहना चाहते हैं कि दिल्ली हमारे गुरुओं की है। हमें दिल्ली जाने से क्यों रोका गया है? यहां नाके क्यों लगाए गए हैं? यह पुलिस फोर्स में मौजूद जवान हमारे ही बच्चे हैं। जिस बंदे में खोट नहीं होता है वो डरता नहीं है अगर कानून हमारे हित का है तो हमें रोका क्यों हैं? तब हमें दिल्ली जाने दिया जाए। इस आंदोलन में कोई बेवकूफ़ नहीं है। यहां मोदी से भी ज्यादा सब पढ़े-लिखे हैं। हम मोदी से कहते हैं कि वो अपने मन से निकाल दे कि हम एक-दो दिन में यहां से चले जाएंगे हम अपना हक लिए बिना यहां से नहीं जाएंगे।

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तस्वीर साभार : सरफराज़ आदिल

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