समाजकानून और नीति हमें ज़रूरत है आज किसानों के साथ उनकी इस लड़ाई में साथ खड़े होने की

हमें ज़रूरत है आज किसानों के साथ उनकी इस लड़ाई में साथ खड़े होने की

किसान आज सड़क पर बैठने में मजबूर हैं। हम हर चीज़ के बिना रह सकते हैं लेकिन खाने के बिना नहीं रह सकते तो हमे आज ज़रूरत है किसानों के साथ बैठने की और उनके साथ यह लड़ाई लड़ने की।

केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान दिल्ली में धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं और ‘दिल्‍ली चलो’ मार्च निकाल रहे हैं। केंद्र सरकार के जिन तीन कानूनों का विरोध किया जा रहा है उनमें से पहला कानून है कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक, 2020, दूसरा है कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक और तीसरा है कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020। यह तीनों ही विधेयक संसद में पारित किए जा चुके हैं। केंद्र सरकार यह दावा कर रही है कि ये तीनों बिल किसानों के भले के लिए लाया गया है लेकिन इसके बावजूद हजारों के तादाद में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। 

पहले बिल में सरकार ने एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है। एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है। इसके ज़रिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं। इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाज़त देना है। किसानों का कहना है कि फसल की कीमत तय करने और विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी। छोटे किसानों को इस कानून से सबसे ज्यादा नुकसान होगा। यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है। यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इसके बाद युद्ध और प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी।

प्रदर्शन में शामिल एक किसान

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सिंधू बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि यह कानून केवल कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए लाया गया है। इससे केवल अडानी और अंबानी की आय में इज़ाफा होगा। किसानों के प्रदर्शन में मेरी मुलाकात सुरजीत सिंह फूल से हुई जो भारतीय किसान यूनियन पंजाब के लीडर हैं। उनका कहना है कि यह लड़ाई तब तक चलेगी जब तक तीनों कानून वापस नहीं ले लिए जाते। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने हमसे बातचीत करना भी ज़रूरी नहीं समझा। उन्होंने आगे यह भी कहा कि हिंदी मीडिया हमें खालिस्तानी बता रहा है लेकिन मैं उनसे कहना चाहूंगा कि हम केवल अपने मुद्दों पर बात करने आए हैं। मैं मोदी जी से भी कहूंगा कि वह गुरुपुर्व की बधाई बाद में दें और हमारे साथ बैठें और बात करें। सुरजीत सिंह फूल ने जेल में बंद एक्टिविस्ट और पत्रकारों पर भी अपनी चिंता जताई। उनका कहना है कि यह सरकार हर व्यक्ति की आवाज़ को दबा देना चाहती है। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को सड़क पर बैठने का कोई शौक नहीं है। ये तीनों कानून लोकतांत्रिक तरीके से पास भी नहीं किया गया।

किसान आज सड़क पर बैठने में मजबूर हैं। हम हर चीज़ के बिना रह सकते हैं लेकिन खाने के बिना नहीं रह सकते तो हमे आज ज़रूरत है किसानों के साथ बैठने की और उनके साथ यह लड़ाई लड़ने की। 

इसके बाद मेरी बात हरपाल सिंह संघा से हुई जो आज़ाद किसान कमिटी के लीडर हैं। उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी खत्म करने प्रयास जा रहा है। हमें पहले ही फसलों का काम दाम मिलता है। मंडी सिस्टम को भी ख़त्म कर दिया जाएगा। मोदी जी केवल कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए यह सब कर रहे हैं। राइट विंग ट्रोल्स जिस तरीके से बात कर रहे हैं कि एक किसान कैसे अंग्रेज़ी में बात कर सकता है? इस पर उन्होंने कहा कि मेरे घर में सभी पढ़े-लिखे किसान हैं। हम पढ़े-लिखे हैं और वे लोग हमसे सवाल कर रहे हैं जिन्हें यह तक नहीं पता कि कौन सा बीज कहां पड़ता है और वे हमारा मज़ाक बना रहे हैं। वहीं, सुरजीत सिंह फूल कहते हैं कि किसी का ज्ञान ऐसे नापा जाता है कि उसे सामाजिक ज्ञान है कि नहीं, केवल अंग्रेज़ी भाषा जानने से किसी का ज्ञान नहीं नापा जा सकता।

प्रदर्शन की एक तस्वीर

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मेरी बात संदीप से भी हुई जो पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने कहा कि ये तीनों कानून किसानों, मेहनतकश मजदूरों,  छोटे किसानों और सभी के लिए गलत हैं तभी हम प्रदर्शन कर रहे हैं। वह आगे कहती हैं कि अगर सरकार को लगता है ये बिल किसानों के फायदे के लिए है तो हमसे बात करे। अमित शाह और मोदी जी आए और हमारे साथ बैठें और बात करें। उन्होंने मीडिया पर भी टिप्पणी की और कहा कि पूरा मीडिया मोदी भक्त है। उन्होंने कहा कि हमारे प्रदर्शन को अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी कवर कर रहा है लेकिन हिंदी मीडिया हमारे मुद्दे को नहीं उठा रह है। वे आगे कहती हैं कि पहले से ही किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिलता है और इन कानूनों के लागू होने के बाद और किसानों की दिक्कतें और भी अधिक बढ़ जाएंगी। सरकार अपने आधिकारिक बयान में एमएसपी जारी रखने और मंडियां बंद न होने का वादा कर रही है, पार्टी भी यही कह रही है, लेकिन यही बात एक्ट में नहीं लिख रही। इसलिए किसानों के मन में शंका और भ्रम है।

वहीं, कानून की पढ़ाई कर रही एक और छात्रा निष्ठा ने कहा कि देश के अधिकतर किसान गरीबी रेखा से नीचे हैं। हमेशा किसान की यह छवि बनाई जाती है कि वे संपन्न परिवारों से आते हैं जो कि पूरी तरह से गलत है। किसानों को उनकी सही आमदनी से वंचित किया जा रहा है। उन्हें उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल पा रहा है लेकिन सवाल यही है कि क्या सरकार उनके हितों के लिए कुछ करेगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब विपक्ष में थे तब किसानों के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे लेकिन अब उनकी चुप्पी खल रही है। वे हमेशा मन की बात करते हैं लेकिन किसानों की मन की बात नहीं सुन रहे हैं। किसान आज सड़क पर बैठने में मजबूर हैं। हम हर चीज़ के बिना रह सकते हैं लेकिन खाने के बिना नहीं रह सकते तो हमे आज ज़रूरत है किसानों के साथ बैठने की और उनके साथ यह लड़ाई लड़ने की। 

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तस्वीर साभार : सभी तस्वीरें जगीशा अरोड़ा द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं

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