इंटरसेक्शनल रेप कल्चर और दलित महिलाओं का संघर्ष

रेप कल्चर और दलित महिलाओं का संघर्ष

जिस रेप कल्चर को पिछड़ी जातियों और दलित या आदिवासी समुदाय की महिलाओं के लिए उनके शोषण और दमन करने के लिए एक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया गया आज उसका एक विकराल रूप हमारे सामने है।

‘बलात्कार संस्कृति’ या ‘रेप कल्चर’ एक ऐसी संस्कृति है जिसमें यौन हिंसा को आदर्श के रूप में देखा जाता है और इसके सर्वाइवर्स को ही उनके साथ हुए अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है। इस संस्कृति के तहत ऐसी मानसिकता को अलग-अलग माध्यमों के ज़रिये सींचा जाता है। इस संस्कृति का संबंध केवल यौन हिंसा से नहीं है, बल्कि उन सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों के भी बारे में है जो बलात्कारियों की रक्षा करते हैं। यह संस्कृति मांग करती है कि महिलाएं सुरक्षित रहने के लिए अपनी स्वतंत्रता और अवसरों को त्याग दें। इस व्यवस्था के तहत महिलाओं के कंधों पर ही सुरक्षा का बोझ डाल दिया जाता है और अगर ऐसा नहीं होता है, या उनके साथ कोई हिंसा या अपराध होता है तो दोष सीधा उन्हें ही दे दिया जाता है। नतीजतन, सुरक्षा के नाम पर महिलाओं को ही कैद कर दिया जाता है और आर्थिक, सामाजिक विकास के अवसर जो पुरुषों के लिए उपलब्ध होते हैं उनके लिए नहीं होते। बलात्कार संस्कृति यानि रेप कल्चर शब्द मूल रूप से 1970 के दशक में गढ़ा गया था। हालांकि बलात्कार संस्कृति की जड़ें लंबे समय से चली आ रही। पितृसत्ता भारतीय सामाजिक संरचनाओं में हमेशा से मौजूद रही है जो पुरुषों को लाभ पहुंचाने के लिए ही तैयार की गई है।

जब हम संस्कृति शब्द सुनते हैं तो हमें एक सकारात्मकता का बोध होता है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि हर तरह की संस्कृति स्वयं में सकारात्मकता को समटे हुए हो। कुछ संस्कृति न केवल समाज के लिए बल्कि अपने परिवार और स्वयं के लिए भी खतरनाक सिद्ध हो सकती है, ख़ासकर तब जब उसकी नींव ब्राह्मवादी पितृसत्ता पर टिकी हो। इसी तरह की एक संस्कृति है जो भारतीय समाज में बहुत समय से मौजूद है और आज अपने विकसित रूप में है वह है, बलात्कार संस्कृति या रेप कल्चर जिसने महिलाओं के जीवन को खासकर पिछड़ी जाति से आ रहे महिलाओं के जीवन को दूभर बना दिया है, बहुत अधिक कष्टदायक बना दिया है।

और पढ़ें : मज़ाक़ के रिश्ते से बढ़ती बलात्कार की संस्कृति| नारीवादी चश्मा

भारतीय समाज की बनावट ही बड़ी जटिल है जो जाति, धर्म, रंग, उम्र, जेंडर, क्षेत्र, भाषा, यौनिकता तथा विकलांगता इत्यादि पर टिकी है। इनकी उपेक्षा करके हम भारतीय समाज की कल्पना या सामाजिक न्याय की बात भी नहीं कर सकते। बहुत बार इन्हीं आधारों पर तमाम तरह के भेदभाव भी देखे जाते हैं। इससे अलग हमें एक और बात नहीं भूलनी चाहिए कि भारतीय सामाजिक ढांचा पितृसत्तात्मक भी है। जो समाज की अन्य सत्ता संरचनाओं के साथ जुड़कर ऐसी कॉकटेल शक्ति संबंधों का निर्माण करता है जिससे न केवल दलित, आदिवासी या मुस्लिम महिलाएं प्रभावित होती हैं बल्कि तथाकथित उच्च जाति और उच्च वर्ग की महिलाओं के लिए भी एक अत्याचारी ढांचे का निर्माण होता है।

जिस रेप कल्चर को पिछड़ी जातियों और दलित या आदिवासी समुदाय की महिलाओं के लिए उनके शोषण और दमन करने के लिए एक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया गया आज उसका एक विकराल रूप हमारे सामने है।

बलात्कार संस्कृति या रेप कल्चर को हम दो अलग-अलग घटनाओं से समझ सकते हैं। पहली घटना बीते साल हुई हाथरस गैंगरेप की है, जहां एक दलित लड़की के साथ तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने बलात्कार किया। लेकिन यह अपने-आप में कोई पहली घटना नहीं थी, इस तरह की घटनाएं देश के कोने-कोने से लगभग रोज़ आती रहती हैं और हम सभी बाकी अन्य खबरों की तरह इन्हें पढ़कर भी भूल जाते हैं क्योंकि अब हमने इस तरह की घटनाओं पर प्रतिक्रिया देना या कुछ महसूस करना छोड़ दिया है। यहां हमें कुछ अन्य घटनाओं का भी जिक्र करना चाहूंगी जैसे भंवरी देवी केस, फूलन देवी केस इन सभी बलात्कार की घटनाओं में एक सामान्य समानता है कि सर्वाइवर दलित जाति की महिला है। दलित जाति से आने वाली महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण के मामले में या तो न्याय मिलता ही नहीं है या न्याय मिलने में बहुत देरी हो जाती है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है किस तरह की घटनाएं मात्र कुछ खास जाति या धर्म की महिलाओं के साथ होती हैं लेकिन जब सर्वाइवर दलित जाति, अल्पसंख्यक या अन्य वंचित समुदाय से आती है तो उसके लिए चुनौतियां अपने-आप बढ़ जाती हैं। जब समाज में एक बार रेप कल्चर बन जाए चाहे वह किसी भी जाति या धर्म की महिलाओं के लिए बनाया गया हो लेकिन इस तरह का अत्याचारी ढांचा या रेप कल्चर का माहौल अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार ज़रूर करता है जिसकी छीटें उच्च वर्ग और जाति तक भी पहुंच जाती हैं।

और पढ़ें : भारत में उभरती रेप संस्कृति के लिए ब्राह्मणवादी मानसिकता है जिम्मेदार

सवाल यहा यह खड़ा होता है कि जिस रेप कल्चर को पिछड़ी जातियों और दलित या आदिवासी समुदाय की महिलाओं के लिए उनके शोषण और दमन करने के लिए एक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया गया आज उसका एक विकराल रूप हमारे सामने है। साल 2012 की दिल्ली गैंगरेप घटना जहां सर्वाइवर पिछड़ी जाति से नहीं थी लेकिन उसके साथ भी जो हिंसा हुई उसकी क्रूरता की कोई सीमा नहीं रही। लेकिन इस घटना के बाद पूरे देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा, अपराधों के खिलाफ़ एक आंदोलन खड़ा हो गया। लेकिन हमें बारीकी से समझना होगा कि जहां एक तरफ दलित महिला के साथ बलात्कार होता है न्याय तो बहुत दूर की बात है एफआईआर तक दर्ज नही की जाती, न ही बलात्कार हुआ है इस की बात को माना जाता है। हमारे सामने कई ऐसे मामले आए हैं जहां बलात्कारियों तक को बचाने की पूरी कोशिश की जाती है। हाथरस घटना में तो हद ही पार कर दी गई जब पीड़िता का पार्थिव शरीर भी पुलिस द्वारा जला दिया गया। जबकि साल 2012 की दिल्ली गैंगरेप घटना में व्यवस्था अलग तरीके से व्यवहार करती नजर आई थी। भारत में महिलाओं को पहले ही दूसरी श्रेणी का नागरिक समझा जाता है और अगर वह दलित और अल्पसंख्यक हो तो उसकी जाति और धर्म से यह श्रेणी और नीचे की चली जाती है। रेप कल्चर से परिस्थितियां ज्यादा प्रतिकूल हो जाती हैं।

और पढ़ें : हाथरस : क्या पीड़ितों के परिवार के पास अब अंतिम संस्कार का भी अधिकार नहीं है ?


तस्वीर : श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content