कैलाश पुरी- पंजाब की पहली ‘सेक्सोलॉजिस्ट’। शायद ही यह नाम आप सब ने सुना हो तो आइए आज अपने इस लेख में हम आपको बताते हैं पंजाब की कैलाश पुरी के बारे में जिन्होंने महिलाओं की सेक्स समस्याएं सुलझाने की ज़िम्मेदारी और जोखिम उस दौर में उठाई जब महिलाओं के लिए सेक्स का नाम भी लेना गलत माना जाता था। कैलाश पुरी का जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में सोहन सिंह पुरी और प्रेम के घर हुआ था। उनके लड़की होने के कारण उनके जन्म पर कोई ख़ुशी नहीं मनाई गई थी। उस समय तक एक लड़की को बोझ के रूप में ही देखा जाता था हालांकि चीजें अभी भी बहुत नहीं बदली हैं। 14 साल की कम उम्र में स्कूल छोड़ने के बाद, साल 1944 में कैलाश की शादी एक 26 साल के युवक गोपाल सिंह पुरी से करवा दी गई। गोपाल सिंह उम्र और शिक्षा दोनों में ही कैलाश से काफी बड़े थे और पेशे से वनस्पति वैज्ञानिक थे। शादी के दो साल बाद ही साल 1946 में, वह अपने पति के साथ लंदन चली गई। उस वक्त गोपाल सिंह लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज से अपनी दूसरी पीएचडी कर रहे थे।
कैलाश पुरी अंग्रेजी बोलने में असमर्थ थी जिसके कारण वह किसी भी विश्वविद्यालय में कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकी। भारत से आई एक प्रवासी के कारण उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में भी अनेक समस्याओं और असुरक्षाओं का सामना किया। जब उनके पति अपने घर में किसी मेहमान को आमंत्रित करते थे तो कैलाश उनके साथ बातचीत करने में असमर्थ होती थी। इस वजह से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई जब कैलाश के आत्मसम्मान पर चोट पहुंच रही थी। वह एक जागरूक पंजाबी महिला थी, जो दूसरे देश में अपनी एक व्यक्तिगत पहचान की तलाश में थी। शुरुआती दौर में उनका वैवाहिक जीवन बिल्कुल भी अच्छा नहीं बीता। यहीं से उनका यौन शिक्षक बनने का सफर शुरू हुआ जो कि उनके अपने खुद के जीवन से ही प्रेरित था। हालांकि, उनका पूरा परिवार साल 1950 में पुणे, महाराष्ट्र वापस चला गया। यहां गोपाल पुरी बोटैनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के निदेशक के रूप में कार्य कर रहे थे।
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यह काफी स्पष्ट है एक महिला होकर जब उन्होंने सेक्स जैसे विषय के बारे में लिखा और इस बारे में खुलकर चर्चा करनी शुरू की तो समाज के रुढ़ीवादी लोगों ने उन्हें अश्लीलता का प्रचारक समझना शुरू कर दिया।
उनका एक यौन लेखक बनने का रास्ता पुणे में शुरू हुआ जब उन्होंने अपनी पहली पत्रिका ‘सुभागवती’ शुरू की। इस पत्रिका के लिए उन्होंने जो नाम चुना वह काफी अर्थपूर्ण और सार्थक था। यह पत्रिका काफी चर्चा में रही और इसने काफी बड़ी सफलता हासिल की जिसके बाद लोगों ने कैलाश पुरी को अपनी सेक्स से जुड़ी और अन्य समस्याएं लिखनी शुरू कर दी। सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि कुछ पुरुष भी अपनी समस्याओं के साथ सामने आए। वह अक्सर कहती थी कि हम एक ऐसे समाज में रहते थे जहां महिलाओं को खुलकर सेक्स से जुड़ी अपनी समस्याओं पर चर्चा करने और अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से संबंधित शिकायतों को साझा करने की अनुमति नहीं होती।सुभागवती ऐसी सभी महिलाओं के लिए अपनी समस्याएं साझा करने का एक चैनल बन चुका था। उनके पति ने उनका हर क्षेत्र में काफी मार्गदर्शन किया और उन्हें अंग्रेजी भाषा भी पढ़ाई, और साथ ही उन्हें जूलॉजी की किताबें भी ला कर दी और चूंकि वह खुद एक वनस्पति वैज्ञानिक थे इसलिए उन्होंने कैलाश पुरी की हरसंभव मदद की।
साल 1968 में गोपाल मानव पारिस्थितिकीविद् के रूप में लिवरपूल विश्वविद्यालय से जुड़ गए और उनका पूरा परिवार वापस ब्रिटेन चला गए। यह कहना गलत नहीं होगा कि कैलाश पुरी के पति की विशेषज्ञता उन्हें महिलाओं के शरीर और सेक्स के बारे में शिक्षित करने में बहुत मददगार साबित हुई। कैलाश ने यहां ‘रूपवती’ नाम की एक और पत्रिका शुरू की और ‘देस-परदेस’ नाम से एक कॉलम भी सक्रिय रूप से लिखा। धीरे-धीरे वह रेडियो और टेलीविजन पर दिखाई देने लगी। उन्होंने महिलाओं को पत्र, टेलीफोन आदि के ज़रिये से अपनी समस्याओं को उनके सामने रखने का रास्ता खोल दिया था। उन्होंने आगे चलकर 5 उपन्यास भी प्रकाशित किए। हालांकि कैलाश पुरी को अपनी मातृभाषा पंजाबी में ही लिखना पसंद था।
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यह काफी स्पष्ट है एक महिला होकर जब उन्होंने सेक्स जैसे विषय के बारे में लिखा और इस बारे में खुलकर चर्चा करनी शुरू की तो समाज के रुढ़ीवादी लोगों ने उन्हें अश्लीलता का प्रचारक समझना शुरू कर दिया। लोगों को अक्सर यह भ्रम होता था कि कैलाश पुरी अश्लील साहित्य को बढ़ावा देती हैं। हालांकि एक इंटरव्यू में उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वह अश्लील साहित्य के खिलाफ रही है। उन्होंने कहा कि लोगों ने पॉर्न और सेक्सोलॉजी के बीच के अर्थ को गलत समझा है लेकिन उनकी लेखनी और समझ संस्कृत के पाठ, कामसूत्र का परिणाम थी। उनकी पहली पुस्तक “Sej Uljhana” के बारे में बहुत सारे मुद्दे उठे जो चर्चा के विषय रहे क्योंकि उनके कई आलोचकों ने उन पर अपवित्रता और गंदगी फैलाने का आरोप लगाया था पर वह उन मुद्दों के बारे में बोलने से हिचकिचाती नहीं थी। वह कहती थी, “अमीर महिलाएं जो बड़ी पत्रिकाएं चलाती हैं, गांव में अपनी बहनों के बारे में नहीं सोचती हैं। कैलाश पुरी को उस शर्म के बारे में भी दुख था जो पंजाबियों को अपनी मातृभाषा में लिखने और बोलने में है। द गार्डियन के साथ साल 2007 में एक इंटरव्यू में कैलाश पुरी ने कहा, “एक युवा महिला होते हुए, उन्होंने अपनी खुशियों के साथ समझौता कर शांत रहना चुना था, जो उन्हें लगा कि रिश्तों को बचाने का एक तरीका है क्योंकि महिलाओं को वैसे भी समझौता करना पड़ता था।”
कैलाश पुरी का साल 2017 मे लंदन में निधन हो गया। उनके तीन बच्चे और आठ पोते-पोतियां है। उनकी आत्मकथा, ” पूल ऑफ़ लाइफ: पंजाबी एगोनी आंटी की आत्मकथा” 2013 में प्रकाशित की गयी थी। वह यूके में पंजाबी प्रवासियों की आवाज़ थी। उनके द्वारा दी गई मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं और सेक्स सलाह एक ऐसा तरीका थी जिसमें उन्होंने उन बड़ी समस्याओं को उजागर किया, जिनका सामना अक्सर महिलाओं को करना पड़ता था। पुरी ने लड़कियों की जबरन शादी जैसे मुद्दों पर भी लिखा। कैलाश पुरी को उस वक़्त पर महिलाओं की सेक्स से जुड़ी समस्याओं के ऊपर खुलकर बात करने के लिए पंजाब समाज ने स्वीकार नहीं किया। कई बार उनपर गलत आरोप भी लगाए गए पर वे रुकी नहीं और आगे बढ़ती रही।
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