जब महिलाओं के काम और श्रम की बात होती है तो दो तरह के काम और श्रम का जिक्र होता है, एक घर का काम और उसमें लगने वाला श्रम जिसे समाज ने हमेशा से कम आंका है। अपने घर में काम और श्रम के लिए महिलाओं को कोई आय नहीं दी जाती, इस काम और श्रम को अनपेड लेबर वर्क कहा गया है। दूसरा काम है- पेड लेबर वर्क जिसके लिए श्रम करने के कारण महिलाओं को आय दी जाती है। पेड लेबर वर्क में इस बात की आशा की जाती है कि आर्गेनाइजेशन, कंपनी या मैनेजमेंट महिलाओं को उनके काम और श्रम के लिए जेंडर के आधार पर कम वेतन न दें। लेकिन जब समान काम और श्रम पर वेतन या भत्ते की बात आती है तब अधिकतर कंपनियां, संस्थान या मैनेजमेंट यह मानकर चलते हैं कि समान काम और श्रम के लिए भी महिलाओं को उतनी आय की ज़रूरत नहीं जितनी की पुरुषों को है। इस तरह एक ही स्तर और श्रम का काम करने के बावजूद महिलाओं के श्रम को कम आंका जाता है। अधिक श्रम के लिए काम आय के साथ महिलाओं को भी समाज में निचले पायदान पर पटक दिया जाता है।
कुछ दिनों से मैं भोपाल में स्थित एक कंस्ट्रक्शन साइट की महिलाओं से उनके श्रम और आय के विषय में चर्चा कर रही हूं। अभी तक जितनी मज़दूर महिलाओं से मैंने श्रम और आय के विषय में बात की है उन्होंने बताया है कि एक ही काम करने के बावजूद इन मज़दूर महिलाओं की आय उनके पति या उनके साथ काम कर रहे पुरुष मज़दूरों की आय से आधी या एक तिहाई है। कई महिलाओं को यह भी लगता है कि उनके काम कठिन हैं फिर भी उनकी आय बहुत कम है। मज़दूर महिलाओं ने यह भी कहा क्योंकि वे महिला हैं इसलिए उनकी आय कम है। महिलाओं ने कहा कि घर का पूरा काम और साइट का काम करके वे इतना थक जाती हैं कि बच्चों पर ध्यान देना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। उन्होंने यह भी जोड़ा और कहा, “बच्चों की ज़िम्मेदारी उनकी ही ज़िम्मेदारी है। पति पैसा तो देते हैं पर किसी काम में मदद नहीं करते और साइट पर तो पैसे कम ही मिलते हैं, पर कुछ नहीं से कुछ सही है बस इसलिए वे यहां काम करती हैं। अब जीना तो है ही, केवल पति की कमाई में घर का खर्च पूरा भी कहां होता है।”
अधिकतर मज़दूर महिलाएं मज़दूरी करने की वजह से बीमार हो जाती हैं और उनका कमाया पैसा उनके इलाज के लिए भी पर्याप्त नहीं होता।
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कई मज़दूर महिलाएं यह भी कह रही थी कि वे साइट पर काम नहीं करना चाहती हैं पर उनके पति और परिवारवाले जबरदस्ती उनको काम के लिए भेजते हैं। काम पर ना आने के लिए मारते हैं, पीटते हैं। कुछ महिलाओं ने यह भी कहा कि वे पैसा कमा तो लेती हैं पर अपनी पूरी कमाई उन्हें पति को देनी पड़ती है। महिलाओं ने यह भी बताया कि जब ठेकेदार या मालिक महिलाओं को कम पैसा देते हैं तो उसके लिए भी पति या घर के अन्य बड़े सदस्य उन्हें मारते हैं। मारते समय यह भी नहीं देखते कि उन्हें कितनी चोट लगी है। महिलाओं ने कहा उनको खुद अपने पति के लिए शराब खरीदने जाना पड़ता है और ऐसा न करने पर या शराब के लिए पति को पैसा नहीं देने पर उनके साथ मार-पीट की जाती है। महिलाओं ने साझा किया कि उनके लिए पैसा बचाना बहुत मुश्किल है, वे खुद का भी इलाज ठीक से नहीं करवा पाती। पति ठीक है, समझदार है तो ही सब ठीक से चल पता है। महिलाएं पुरुष और समाज द्वारा की जाने वाली हिंसा को समझ पाती हैं पर वे मानती हैं कि यह हिंसा सारी मज़दूर महिलाओं का जीवन है। महिलाएं कहती हैं “पति बस मारे, पीटे और शराब में ज्यादा पैसा न उड़ाए उससे ज्यादा वे अपने पति से कुछ नहीं चाहती।”
जब मैंने महिलाओं से साइट पर होने वाली हिंसा और सुरक्षा पर बात की तो उन्होनें सहज भाव से स्वीकारा की वे अलग-अलग साइट्स पर इतने सालों से रह रही हैं कि उन्हें कहीं डर नहीं लगता। उनकी बातों से यह पता चल रहा था कि असुरक्षा, अनिश्चितता और हिंसा उन्हें अब सामान्य लगने लगी है। पति की मार, समाज की गालियां, कम आय और जीवन की अस्थिरता उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। महिलाओं ने कहा कि वे अपने जीवन के बारे में ज्यादा कुछ सोचना नहीं चाहती और मानती हैं कि सब भगवान के भरोसे है। भगवन उनको जैसा रखा है उनका जीवन वैसा चल रहा है।
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मज़दूर महिलाओं ने यह भी कहा कि घर के काम में उनको उनकी लड़कियां ही मदद करती हैं लड़के छोटे हो या बड़े घर के किसी काम में मदद नहीं करते। अधिकतर मज़दूर महिलाएं मज़दूरी करने की वजह से बीमार हो जाती हैं और उनका कमाया पैसा उनके इलाज के लिए भी पर्याप्त नहीं होता। गरीबी और अनिश्चितता के बोझ तले मजदूर महिलाएं और उनका जीवन हिंसा और गरीबी को ‘सामान्य’ मान लेता है। गरीबी हिंसा के रूप में हर दिन जीवन से मिलती है। मजदूर औरतों की सुरक्षा, स्वास्थ्य, आय और जीवन के बारे में समाज में एक चुप्पी है क्योंकि वे महिलाएं किसी को नज़र नहीं आती। उनकी आवाज़ सुनाई भी नहीं देती, उनके साथ होने वाली हिंसा और उनके कारणों पर बातचीत या कोई एक्शन नहीं होता। इस प्रकार हमारी कोई प्रतिक्रिया न होना यह दर्शाती है कि हम सब मानव जीवन में हिंसा को लेकर ‘प्रतिक्रियाहीन’ हो गए हैं और हमारा ‘प्रतिक्रियाहीन होना’ मनुष्य और मनुष्यता के होने पर एक बड़ा सवाल है।
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तस्वीर : श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए
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