नारीवाद नारीवादी नेतृत्व की बुनियादी समझ और सरोकार की ज़रूरत | नारीवादी चश्मा

नारीवादी नेतृत्व की बुनियादी समझ और सरोकार की ज़रूरत | नारीवादी चश्मा

नारीवादी नेतृत्व सीधेतौर पर व्यवस्थित ढंग से समानता को मानसिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर स्थापित करने की दिशा में काम करता है।

हाल ही में, मैंने क्रिया संस्था की तरफ़ से प्रकाशित एक किताब पढ़ी ‘सामाजिक परिवर्तन के लिए नारीवादी नेतृत्व’ । भारतीय लेखिका श्रीलता बाटलीवाला की लिखी ये किताब नारीवादी नेतृत्व पर बुनियादी समझ के लिए बेहद सटीक है। वो बुनियादी समझ जो किसी भी संस्था, संगठन, सरकार व परिवार में नारीवादी नेतृत्व की सूत्रधार हो सकती है। जैसा कि हम जानते है ‘नेतृत्व’ किसी भी काम, समाज या देश में विकास की दिशा और दशा तय करता है। हम अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में नेतृत्व की भूमिका देख सकते है, न केवल समाज या देश के संदर्भ में बल्कि अपने जीवन के संदर्भ में भी। पर आज हम बात करते है नारीवादी नेतृत्व की, नेतृत्व का वो स्वरूप को समाज को समानता लाने व लागू करने की दिशा में प्रभावी है।

नारीवादी नेतृत्व से पहले हम सरल शब्दों में नेतृत्व को समझते है – ‘नेतृत्व क्रियाओं और प्रक्रियाओं का एक समूह है, जो चरित्रवान, जानकार व ईमानदार व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, जिनके पास बदलाव के लिए दूरदृष्टि विकसित करने, अन्य लोगों को उसमें शामिल होने को प्रेरित व उत्साहित करने, अन्य लोगों को उस बदलाव के लिए समर्थ बनाने हेतु विचार और रणनीतियाँ विकसित करने और ऐसे ख़ास निर्णय लेने की क्षमता हो जो उस लक्ष्य की प्राप्ति को सुनिश्चित करें।‘ अक्सर हम महिला नेतृत्व को ही नारीवादी नेतृत्व समझने की भूल कर देते है। क्योंकि आमतौर पर हम नारीवाद को महिला का पर्यायवाची समझते है, पर वास्तव में ये सही नहीं है।

इस बारे में पेगी एंट्रोबस कहती हैं कि, ‘महिलाओं द्वारा नेतृत्व और नारीवादी नेतृत्व के बीच फ़र्क़ है, क्योंकि नारीवादी नेतृत्व का ख़ास राजनैतिक नज़रिया होता है। फिर भी, नेतृत्व में महिलाओं की संख्या बढ़ाने की ज़रूरत है। चाहे उनकी राजनीति कुछ भी हो अध्ययन दर्शाते हैं कि महिलाएँ जयदा समावेशी ढंग से नेतृत्व करती हैं। वे शांति कराने वाली रही हैं और उन्होंने एथनिक सीमाओं के परे हाथ बढ़ाए हैं। कुछ हद तक तो नेता पैदाइशी होते हैं, मगर नेताओं को पालना-पोसना पड़ता है, कई लोगों को नेता बनने की कोशिश से हतोत्साहित कर दिया जाता है। महिलाओं ने खूब नेतृत्व किया है मगर उनके नेतृत्व को मान्यता नहीं मिलती। नारीवादी नेतृत्व के निर्माण में मैंने दो स्तरों पर काम करने की ज़रूरत देखी : पहला, महिलाओं के नेतृत्व को सुदृण करने हेतु उनका आत्म-सम्मान विकसित करना, और दूसरा, महिलाओं को ऐसे कौशलों, संसाधनों और निर्णय प्रक्रिया तक पहुँच प्रदान करना जो उन्हें स्वयं अपने समुदाय में कुछ फ़र्क़ लाने के लिए ज़्यादा ताक़त दे सकें। दूसरे शब्दों में, परिवर्तन के लिए नेतृत्व।

और पढ़ें : ‘फेमिनिस्ट हो! फेमिनिज़म का झंडा उठाती हो!’ आखिर दिक्कत क्या है इस शब्द से

यों तो नारीवादी नेतृत्व को चंद लाइनों में परिभाषित करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन नारीवादी नेतृत्व पर अपनी समझ बनाने के लिए हम इसे इस तरह समझ सकते हैं – नारीवादी परिपेक्ष्य और सामाजिक न्याय के नज़रिए से लैस महिलाएँ जो व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से स्वयं को बदलती हैं ताकि वे अपनी सत्ता, संसाधनों और कुशलताओं का इस्तेमाल ग़ैर-अत्याचारी, समावेशी ढाँचों और प्रक्रियाओं के तहत अन्य लोगों, ख़ासकर अन्य महिलाओं को समानता व सबके लिए मानव अधिकारों को साकार करने हेतु सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनैतिक परिवर्तन के एक साझा एजेंडें के इर्द-गिर्द संगठित करने हेतु कर सकें।

नारीवादी नेतृत्व सीधेतौर पर व्यवस्थित ढंग से समानता को मानसिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर स्थापित करने की दिशा में काम करता है।

नारीवादी नेतृत्व में संगठन में हर स्तर पर एक सहभागितापूर्ण रवैया और समावेशन शामिल होना चाहिए। यह ख़ासतौर से हाशिए के समूहों के लोगों/महिलाओं को शामिल करने पर लागू होता है। नारीवादी नेतृत्व से जुड़े ये कुछ ज़रूरी पहलू है, जिनका होना ही किसी नेतृत्व को नारीवादी नेतृत्व बनाता है –

  • नारीवादी नेताओं में उन मुद्दों का व्यापाक ज्ञान होना चाहिए, जिनको वह संगठन संबोधित करता है।
  • नारीवादी नेतृत्व तभी टिकाऊ होता है जब महिलाएँ जीवन के सारे पहलुओं का संतुलन बना सकें।
  • किसी भी व्यवहारिक व जीवंत नेतृत्व के फलने-फूलने के लिए निर्णय प्रक्रिया पारदर्शी होना अनिवार्य है।
  • संगठन के सारे सदस्यों को उनकी भूमिका पता होनी चाहिए और उन्हें कुछ निर्णयों में संगठन की संरचना के विकास में शामिल होना चाहिए।
  • नारीवादी नेतृत्व को यह सुनिशचित करना चाहिए कि सब पर एक-से अधिकार लागू हों और ये अधिकार अविभाज्य होने चाहिए।
  • नारीवादी नेतृत्व का इस्तेमाल सत्ता के उन ढाँचों में हस्तक्षेप हेतु किया जाना चाहिए, जो दुनिया को अन्यायपूर्ण बनाकर रखते हैं।
  • नारीवादी संगठनों को महज़ किसी शोषण/अत्याचार पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय परिवर्तन की एक सकारात्मक दृष्टि की ज़रूरत होती है जो उसे आगे ले जाती है।
  • सारी पीढ़ियों के नेताओं के लिए जगह होनी चाहिए और हमें विविधता, समावेशिता और परस्पर सम्मान को अपनाना चाहिए।

पितृसत्तात्मक समाज में समानता को स्थापित करने के लिए नारीवादी नेतृत्व बेहद ज़रूरी है। नारीवादी नेतृत्व सीधेतौर पर व्यवस्थित ढंग से समानता को मानसिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर स्थापित करने की दिशा में काम करता है, इसलिए ज़रूरी है कि हर संगठन, संस्था, परिवार, कुनबों, सरकार और समाज में नारीवादी नेतृत्व को बढ़ावा दिया जाए।

और पढ़ें : नारीवाद : एक समावेशी विचारधारा है और हम सबको नारीवादी होना चाहिए


तस्वीर साभार : iwda.org.au

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content