इतिहास ऑड्रे लॉर्ड : अल्पसंख्यकों की आवाज़, नारीवादी कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता

ऑड्रे लॉर्ड : अल्पसंख्यकों की आवाज़, नारीवादी कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता

ऑड्रे लॉर्ड ने अपना जीवन और अपनी रचनात्मक प्रतिभा नसलवाद, जातिवाद, लिंगवाद, वर्गवाद, पूंजीवाद, और होमोफोबिया जैसे अन्यायों के खिलाफ लड़ने के लिए समर्पित किया था।

“आपकी चुप्पी आपकी रक्षा नहीं करेगी”, ये शब्द हैं ऑड्रे लॉर्ड के जो एक अमरीकी लेखिका, कवयित्री, नारीवादी और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता थीं। बचपन से ही शांत और अंतर्मुखी स्वभाव की रही ऑड्रे लॉर्ड संचार कौशल में कमज़ोर थी। इसलिए उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में कविताओं को चुना था। छोटी उम्र से ही उन्हें कविताओं से इतना प्यार था कि वह बड़ी-बड़ी कविताएं याद कर सुनाती थी। लॉर्ड कहती थी, “मैं कविताओं में बोलती थी। मैं कविताओं को पढ़ती थी और उन्हें याद करती। अगर लोग कहते कि आपको कल क्या हो गया था, तो मैं एक कविता का पाठ करती और उस कविता में कहीं न कहीं कोई पंक्ति या भाव होता जो मैं साझा करती। दूसरे शब्दों में, मैं सचमुच कविता के माध्यम से बातचीत करती थी। और जब मुझे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए ऐसी कविताएं नहीं मिली, जिन्हें मैं महसूस कर रही थी, तो मैंने 12 या 13 साल की उम्र में कविताएं लिखनी शुरू कर दी।”

नारीवादी लॉर्ड समाज के वर्गीकरण की प्रवृत्ति के खिलाफ थी। उन्होंने अपना जीवन और अपनी रचनात्मक प्रतिभा नसलवाद, जातिवाद, लिंगवाद, वर्गवाद, पूंजीवाद, और होमोफोबिया जैसे अन्यायों के खिलाफ लड़ने के लिए समर्पित किया था। उनकी सामाजिक गतिविधियां और कार्य व्यापक थे और उनकी लेखन शैली बेहद विविध। उन्होंने व्यक्तियों और समुदायों के बीच मतभेदों को स्वीकार किया था। ऑड्रे लॉर्ड के नारीवाद ने अंतर्विरोध को अपना आधार बनाया था। उनके अनुसार लैंगिक भेदभाव को जातिवाद, लिंगवाद, वर्गवाद, होमोफोबिया और विषमलैंगिकता जैसे उत्पीड़नों या प्रणालियों से अलग नहीं किया जा सकता। इसलिए कई बार ऑड्रे लॉर्ड को ‘वोमेनिस्ट’ के रूप में भी संबोधित किया जाता है, जो मूलभूत ‘नारीवाद’ से भिन्न है। एक सामाजिक सिद्धांत के रूप में उभरा ‘वोमेनिस्म’ का उद्देश्य ब्लैक महिलाओं, अन्य हाशिए या उत्पीड़ित अल्पसंख्यक समूहों की महिलाओं के विशेष अनुभवों को संबोधित करना था।

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नारीवादी लॉर्ड समाज के वर्गीकरण की प्रवृत्ति के खिलाफ थी। उन्होंने अपना जीवन और अपनी रचनात्मक प्रतिभा नसलवाद, जातिवाद, लिंगवाद, वर्गवाद, पूंजीवाद, और होमोफोबिया जैसे अन्यायों के खिलाफ लड़ने के लिए समर्पित किया था।

ऑड्रे लॉर्ड का जन्म साल 1934 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हुआ था। उनके पिता फ्रेडरिक बायरन लॉर्डे बारबडोस से आए प्रवासी थे और मां लिंडा गर्ट्रूड बेलमार लॉर्ड ग्रेनाडियन के कैरियाकोऊ द्वीप से थी। लॉर्ड का दाखिला हंटर कॉलेज हाई स्कूल में हुआ था, जो बौद्धिक रूप से प्रतिभाशाली छात्रों के लिए एक माध्यमिक स्कूल था। साल 1954 मेक्सिको के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में उनके लिए एक छात्र के रूप में एक महत्वपूर्ण साल रहा। यह समय उनकी नई पहचान और संकल्प के रूप में चिह्नित किया गया है। इस दौरान उन्होंने अपने व्यक्तिगत और कलात्मक जीवन में समलैंगिक होने की पुष्टि की। साल 1951 में उन्होंने अपना स्नातक पूरा किया। इसके बाद उन्होंने 1961 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पुस्तकालय विज्ञान में स्नातकोत्तर किया। वह 1960 के दशक में न्यूयॉर्क पब्लिक स्कूलों में लाइब्रेरियन रहीं।

1968 में वह मिसिसिपी के टाउगलू कॉलेज में इन-हाउस लेखिका थीं। टाउगलू कॉलेज में उनका यह समय सामाजिक रूढ़िवादी विचारों के खिलाफ़ खुलकर लड़ने की शुरुआत थी। उन्होंने अपने युवा, ब्लैक स्नातक कर रहे छात्रों के साथ कार्यशालाओं का नेतृत्व किया जो नागरिक अधिकारों के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए उत्सुक रहते। 1972 से 1987 तक लॉर्डे स्टेटन द्वीप पर रहीं। इस दौरान उन्होंने लिखने और पढ़ाने के अलावा ‘किचन टेबल: वूमेन ऑफ कलर प्रेस’ की सह-स्थापना की। 1977 में, लॉर्ड ‘विमेंस इंस्टिट्यूट फॉर फ्रीडम ऑफ़ द प्रेस’ (WIFP) की सहयोगी बनीं। यह संगठन महिलाओं के बीच संचार बढ़ाने और जनता को महिला-आधारित मीडिया के रूपों से जोड़ने का काम करता था। लॉर्ड 1969 से 1970 तक लेहमन कॉलेज के शिक्षा विभाग में पढ़ाई। फिर 1970 से 1981 तक वह जॉन जे कॉलेज ऑफ क्रिमिनल जस्टिस में अंग्रेजी की प्राध्यापिका रही। वहां उन्होंने ब्लैक अध्ययन विभाग के निर्माण के लिए संघर्ष किया।

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1984 में, लॉर्ड ने पश्चिम बर्लिन के फ्री यूनिवर्सिटी में बतौर अतिथि प्राध्यापिका काम शुरू किया। उस दौरान, वह तत्कालीन एफ्रो-जर्मन आंदोलन का हिस्सा बन गई। उन्होंने बर्लिन में ब्लैक महिला कार्यकर्ताओं के एक समूह के साथ, न सिर्फ ‘एफ्रो-जर्मन’ शब्द का इज़ात किया बल्कि जर्मनी में ब्लैक आंदोलन को जन्म दिया। लॉर्डे के शुरुआती काव्य-संग्रह में द फर्स्ट सिटीज़ (1968), केबल्स टू रेज (1970) और फ्रॉम द लैंड वेयर अदर पीपल लिव (1972) शामिल हैं, जिसे राष्ट्रीय पुस्तक पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क हेड शॉप एंड म्यूज़ियम (1974), कोल (1976), और द ब्लैक यूनिकॉर्न (1978) जैसी प्रभावशाली और सशक्त कविताएं लिखीं। लॉर्डे के अनुसार, उन्हें जैसा दिखता है, उस सच को बयान करना उनका कर्तव्य है। केवल अपनी जीत या अच्छे समय के अनुभव को बताना ही नहीं बल्कि उस तीव्र और गहरे दर्द को भी कहना आवश्यक है।

वह अकसर सार्वजनिक सभाओं में खुद के विषय में कहती कि वह एक ब्लैक, लेस्बियन, मां, योद्धा और कवि हैं। शिक्षा जगत में श्वेत शिक्षाविदों में उनका अनुभव, उनके ब्लैक क्वियर महिला के रूप में अद्वितीय है। ब्लैक वीमेन राइटर्स में योगदान देने वाले, जोन मार्टिन का मानना है कि उनकी कविताओं और सभी लेखन कार्यों से उनकी ईमानदारी, स्पष्ट धारणा, जुनून और गहराई का पता चलता है। आधुनिक समाज की लोगों के समूहों को वर्गीकृत करने की प्रवृत्ति से चिंतित लॉर्ड ने समलैंगिक और ब्लैक महिलाओं और अन्य हाशिए पर जा चुकी श्रेणियों के लिए लड़ाई लड़ी। वह कई मुक्ति आंदोलनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की केंद्र बनी रहीं, जिसमें नारीवाद की द्वितीय लहर, नागरिक अधिकार, ब्लैक सांस्कृतिक आंदोलन और एलजीबीटीक्यू समुदाय के समानता के लिए संघर्ष शामिल थे। उनकी कविताएं सामाजिक और नस्लीय न्याय के आह्वान और क्वियर समुदाय के संघर्ष की कहानी है। ऑड्रे लॉर्ड के सम्मान और पुरस्कारों में नेशनल एंडोमेंट फॉर आर्ट्स फैलोशिप शामिल है। वह 1991-1992 तक न्यूयॉर्क की ‘पोएट लोरियलेट’ थीं। लोर्डे साल 1978 से लगातार स्तन कैंसर से जूझती रहीं। पहली बार इलाज के बाद लगभग 6 साल पश्चात उनका जिगर दोबारा कैंसर से ग्रसित हुआ और 1992 में उनकी मृत्यु हो गयी।  

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तस्वीर साभार : Oprah.com

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