‘अरे! फ़्री टाइम में हमलोगों के पास बैठा करो। सबसे बातें किया करो। क्या अपने कमरे में अकेली बैठी रहती हो। ‘ नयी बहु को सास ने सलाह देते हुए कहा। क्योंकि परिवार की दूसरी बहुएँ भी काम से फ़्री होकर एकसाथ बैठा करती है। पर रूबी (बदला हुआ नाम) को ये पसंद नहीं था। कॉलेज ख़त्म होते ही उसकी शादी करवा दी गयी, रूबी नौकरी करना चाहती थी और शादी के बाद जब अपने हिस्से का काम पूरा करके वो ख़ाली समय पर पढ़ने बैठती तो सास और जेठानी हमेशा ये सलाह के साथ उसे अपने पास बुला लेती। जब तक पति नौकरी पर गया तब तक परिवार के साथ फिर पति के वापस आने के बाद पति की सेवा में लगना होता। रूबी का अपना कोई पर्सनल स्पेस नहीं रह गया था और उसका आत्मविश्वास हर दिन कम होता जा रहा था।
वहीं प्रिया (बदला हुआ नाम) की शादी के बाद भी उसे हर समय अपने ससुराल वालों के साथ बिताना पड़ता। कभी कोई तीज-त्योहार तो कभी बड़े परिवार में कोई बीमार। अपने हिस्से का काम ख़त्म करने बाद भी काम ख़त्म नहीं होता, क्योंकि बाक़ी समय सबके साथ बातों में गुज़ारना पड़ता। पर जब प्रिया अपने पति के साथ दूसरे शहर चली गयी तब परिवार वालों ने बच्चे के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया और इस दबाव के चलते न चाहते हुए भी प्रिया को माँ बनना पड़ा। फिर कहाँ का पर्सनल स्पेस। प्रिया डांस क्लास चलाना चाहती थी, पर अब उसे सिर्फ़ घर चलाना होता है।
भारत में आज भी समाज की इकाई परिवार है। बेशक एकाकी परिवार का चलन बढ़ा है, लेकिन परिवार के मूल आज भी जैसे के तैसे है। हमारी संस्कृति हमें एकसाथ मिलजुलकर रहना सिखाती है, पर कई बार ये बात पर्सनल स्पेस को अंतरिक्ष वाला स्पेस बनाती दिखाई पड़ती है। खासकर तब जब हम महिलाओं के पर्सनल स्पेस की बात करते है। रूबी और प्रिया दोनों की ज़िंदगी में पर्सनल स्पेस का स्पेस नहीं था और ये सिर्फ़ इन दो महिलाओं की नहीं अधिकतर शादीशुदा महिलाओं की ज़िंदगी में देखने को मिलता है। शादी के बाद आज भी बहुओं से ये उम्मीद की जाती है कि वो अपने काम के बाद सारा समय परिवार के साथ बिताए।
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अगर हाउस वाइफ़ है तो घर के काम के बाद और नौकरीपेशा है तो नौकरी और घर के काम के बाद। पर इसके बीच महिलाओं का अपना कोई पर्सनल स्पेस नहीं होता। उनका अपना कोई समय नहीं होता जो सिर्फ़ उनका हो। कहने को समय बदला है, शादी, परिवार और रिश्ते के स्वरूप में हम कई बदलाव देखते है। पर जब हम महिलाओं के नज़रिए से इन संस्थाओं को देखते है तो कई मूल आज भी वैसे पुराने ही दिखाई पड़ते है। शादी के बाद मानो महिला के अस्तित्व को पूरी तरह उनके साथी का परिवार (ससुराल) और कई बार मायका भी नज़रंदाज़ करने लगता है। उनके सपने, पसंद, उनके शौक़ और उनके अपने समय को कोई जगह नहीं दी जाती है। आज भी उनकी मूल ज़िम्मेदारी घर सँभालना और बच्चे पैदा करना मात्र समझा जाता है। इस बीच जब महिलाएँ अपने पर्सनल स्पेस को क्लेम करती है तो उन्हें कई तरह की मानसिक यातनाओं से भी गुजरना पड़ता है।
हमारी संस्कृति हमें एकसाथ मिलजुलकर रहना सिखाती है, पर कई बार ये बात पर्सनल स्पेस को अंतरिक्ष वाला स्पेस बनाती दिखाई पड़ती है। खासकर तब जब हम महिलाओं के पर्सनल स्पेस की बात करते है।
सोनी (बदला हुआ नाम) नए विचारों वाली पढ़ी-लिखी महिला है। उसने जब शादी के बाद घर-परिवार के सभी काम के बाद अपने लिए वक्त निकालना शुरू किया तो ये बात उसके ससुराल और उसके पति को खटकने लगी। परिवार ने धीरे-धीरे उसपर ज़िम्मेदारियों का बोझ बढ़ाया लेकिन जब सोनी तब भी अपने लिए वक्त निकालती तो पति ने उसके साथ गाली-गलौच और मारपीट करना शुरू कर दिया। इससे सोनी की मानसिक हालत पर बुरा प्रभाव पड़ा और एक समय के बाद उसे तलाक़ लेना पड़ा।
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हम अक्सर शादी के बाद महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी और आगे बढ़ने को लेकर निरसता देखते है और ये क़रीब हर वर्ग और जाति की महिलाओं में देखा जा सकता है। ग़ौरतलब है कि मैं यहाँ ‘शादी’ के संदर्भ में बात कर रही हूँ, किसी रिश्ते के संदर्भ में नहीं क्योंकि शादी के बाद किसी एक इंसान नहीं बल्कि उसके परिवार और समाज का दबाव महिलाओं को झेलना पड़ता है जो किसी इंसान के साथ रिश्ते में सीमित देखने को मिलता है। इसलिए कई बार महिलाएँ ख़ुद भी शादी के बाद नए परिवार में ख़ुद को ढालने और कई बार परिवार में पितृसत्ता के तहत महिलाओं के लिए बतायी गयी सत्ता को क्लेम करने के लिए आदर्श छवि जीने लगती है, जिसमें उनका पर्सनल स्पेस पूरी तरह ख़त्म हो जाता है। ज़ाहिर है जब अपने पास अपना कोई वक्त नहीं होगा तो आप अपने व्यक्तित्व विकास के लिए कोई काम तो क्या इसके बारे में सोच भी नहीं पाएँगें। शादी के बाद पर्सनल स्पेस की आहुति महिलाओं के आगे के भविष्य, आत्मविश्वास और कई बार उनके मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करती है। पितृसत्ता में इंसानों को अपने जेंडर के अनुसार व्यवहार और ज़िंदगी जीने की सीख इस तरह दी जाती है कि ना चाहते हुए भी कई बार हम एक निर्धारित रूप से व्यवहार करने को मजबूर हो जाते है। ऐसा ही कई बार नयी शादीशुदा महिलाओं में देखने को मिलता है, जब वे ससुराल में तथाकथित अच्छा और आदर्श बनने के लिए पर्सनल स्पेस को ख़त्म कर देती है या कई बार परिवार उन्हें ऐसा करने के लिए दबाव भी बनाता है।
अब हमें समझना होगा कि पर्सनल स्पेस हमारे विकास में अहम भूमिका अदा करता है। ये आपका पर्सनल स्पेस ही होगा जहां आप अपने लिए बेहतर सोच सकती है और कुछ बेहतर कर सकती है। ऐसे में अगर आपने अपने पर्सनल स्पेस को क्लेम करना नहीं सीख़ा तो आप और आपके परिवार की आने वाली पीढ़ियों में भी महिलाएँ अपने अस्तित्व को रसोई और आदर्श से आगे नहीं सोच पाएँगी। ‘महिलाओं का पर्सनल स्पेस’ ये हमारी संस्कृति का कभी हिस्सा नहीं रहा है क्योंकि हमारी संस्कृति ने कभी भी महिलाओं को तन के भूगोल से परे नहीं देखा। पर अब समय इस संस्कृति में बदलाव करना का है और अपने अस्तित्व को बनाने का। याद रखें ये आपके स्पेस की बात है जिसकी शुरुआत आपको करनी होगी। इसलिए अपने पर्सनल स्पेस को क्लेम करिए और दूसरों के पर्सनल स्पेस का सम्मान कीजिए।
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