दामोदरम संजीवैया, इस नाम से शायद आप में से चुनिंदा लोग ही वाक़िफ होंगे। दामोदरम संजीवैया आज़ाद भारत के पहले दलित मुख्यमंत्री थे। वह 11 जनवरी 1960 से 12 मार्च 1962 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यंत्री रहे। दामोदरम का जन्म 14 फरवरी 1921 में आंध्र प्रदेश के एक मला (दलित) परिवार में कुरनूल ज़िले के कल्लुर मंडल के गांव में हुआ था। उनके पिता खेतों में मज़दूर थे। दामोदरम ने छोटी उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था। पिता की मौत के बाद पूरे परिवार की देखरेख की ज़िम्मेदारी बड़े भाइयों पर आ गई। यह हर भारतीय परिवार की कहानी है। पिता के बाद बड़ा हो या छोटा मां की बजाय घर की सारी ज़िम्मेदारियों का कर्ता-धर्ता, अपना आदेश चलाने वाला भाई को ही बना दिया जाता है। ये इसी पितृसत्तात्मक समाज की देन है।
दामोदरम संजीवैया बारहवीं तक अपने ज़िले के सरकारी स्कूल में पढ़े। इसके बाद उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक किया। कॉलेज के छात्र रहते वक़्त ही आज़ादी की लड़ाई के लिए चल रहे आंदोलन में दामोदरम सक्रिय हो गए और कांग्रेस से जुड़ गए। उनके राजनीतिक करियर की बात करें तो वह प्रोविजनल पार्लियामेंट में 1950 से लेकर 1952 तक सदस्य रहे। इस बीच 1960 में कुरनूल से चुनाव जीतकर वह आंध्र प्रदेश के साथ-साथ भारत के पहले सबसे युवा और पहले दलित मुख्यमंत्री बनते हैं।
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दामोदरम का कार्यकाल भ्रष्टाचार मुक्त कार्यकाल के रूप में पहचाना जाता है। अपने पहले दो साल के कार्यकाल में संजीवैया ने तमाम ऐसे काम किए जिनके बारे में लोग सिर्फ सोचते थे और वे तमाम मिथक तोड़ कर रख दिए जहां सिर्फ ये सोचा जाता था कि दलित दूसरे वर्गों की सेवा करने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते। संजीवैया ने एंटी करेप्शन ब्यूरो सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार पहचानने के लिए बनाया ताकि गरीब परेशान ना हों। साथ ही उन्होंने विधवाओं और बुज़ुर्गों के लिए पेंशन का शुरुआत की।
इसके अलावा क्योंकि दामोदरम संजीवैया संस्कृति, साहित्य से जुड़ाव रखने वाले व्यक्ति थे इसीलिए उन्होंने ललिता कला अकादमी, संगीत अकादमी की स्थापना भी की। उन्होंने ‘लेबर प्रॉबल्मस एंड इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट इन इंडिया’ नाम से एक किताब लिखी जो ऑक्सफर्ड और आईबीएच पब्लिकेशन से साल 1970 में छपकर आई। दो साल के अपने कार्यकाल में भी उन्होंने ठीक-ठाक रूप से सिंचाई प्रोजेक्ट भी पूरे करवाए जिनमें कुरनूल जिला में गजुलादिने, वामसाधरा, पुलिचिंतला और वरादराजुला स्वामी प्रोजेक्ट शामिल हैं। 1962 में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के पहले दलित अध्यक्ष नियुक्त हुए जहां इन्होंने दो साल तक काम संभाला। इसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री की कैबिनेट में यह साल 1964 से साल 1966 तक श्रम और रोज़गार मंत्री भी रहे। दामोदरम का निधन हार्ट अटैक की वजह से 8 मई 1972 को 51 साल की उम्र में हो गया था। आंध्र प्रदेश में इनके सम्मान में दामोदरम संजीवैया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, विशाखापट्टनम में बनाई गई है। नामपल्ली हैदराबाद में पब्लिक गार्डेन्स में इनकी एक मूर्ति स्थापित है। साथ ही इनके नाम पर भारत सरकार ने साल 2008 में डाक टिकट भी जारी किया।
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