इतिहास जद्दनबाई : हिंदी सिनेमा जगत की सशक्त कलाकार| #IndianWomenInHistory

जद्दनबाई : हिंदी सिनेमा जगत की सशक्त कलाकार| #IndianWomenInHistory

जद्दनबाई बहुत ही महत्वाकांक्षी महिला थी। एक सफल गायिका व अदाकारा की पहचान बनाने के बाद उन्होंने निर्माता और निर्देशक का भी काम करना शुरु कर दिया।

हिंदी सिनेमा क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व हमेशा से रहा है। शुरुआत के समय में महिलाओं के किरदार भी पुरुष ही निभाया करते थे। उस वक्त में फिल्मों में महिलाओं का काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। पितृसत्तात्मक समाज की सोच हमेशा से यही रही है कि महिलाओं को पर्दे में रहना चाहिए। ऐसे में जद्दनबाई वह नाम हैं जो फिल्मों में न केवल गाती थीं बल्कि अभिनय भी करती थीं। हिंदी सिनेमा जगत में जद्दनबाई ने रुपहले पर्दे पर कई विधाओं में काम करके अपना नाम कमाया था। वह बॉलीवुड की शुरुआती गायिका, संगीतकार, अभिनेत्री, फिल्म निर्माता और निर्देशकों में से एक थीं। बॉलीवुड की प्रसिद्ध अदाकारा नर्गिस उनकी बेटी थीं। जद्दनबाई को भारतीय फिल्म उघोग की शुरुआती महिला संगीतकारों में माना जाता हैं।

जद्दनबाई के जन्म को लेकर अलग-अलग दावे और कहानियां हैं। साल 1892 में जन्मी जद्दनबाई की परवरिश बनारस में दलीपबाई के यहां हुई थी। इनका मूल घर प्रतापगढ़ के चिलबिला में भी माना जाता है। इनके पिता की मौत बहुत पहले हो गई थी। बाद में इनकी मां ने मियांजान हुसैन से शादी कर ली। जद्दनबाई की उम्र जब पांच वर्ष की थी तब इनके सौतेले पिता का भी देहांत हो गया था। इनकी मां ने संगीत की तालीम हासिल की थी और वह कोठे पर गाना गाया करती थीं। पिता की मृत्यु जल्दी हो जाने का कारण जद्दनबाई भी अपनी माता के साथ कोठे पर गाने लगी। जद्दनबाई हुसैन छोटी सी उम्र में बिना किसी संगीत की तालीम के गाया करती थी। जद्दनबाई संगीत के ज़रिये ही अपनी जीविका चलाया करती थी। औपचारिक प्रशिक्षिण की कमी के कारण उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ा। संगीत की शिक्षा के लिए जद्दनबाई कलकत्ता चली गई जहां उन्होंने श्री गणपत राव सिंधिया उर्फ भैय्या साहेब की देखरेख में संगीत सीखना शुरु कर दिया। उनके संगीत सीखने के दौरान ही साल 1920 में भैय्या जी की मृत्यु हो गई। उसके बाद उन्होंने उस्ताद मोइनउद्दीन से संगीत सीखना शुरु कर दिया। इसके अलावा उन्होंने चद्दू खान और लाब खान से भी संगीत प्रशिक्षिण लिया।

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जद्दनबाई, तस्वीर साभार: Cinestaan

संगीत की पूरी शिक्षा लेने के बाद जद्दनबाई एक प्रशिक्षित गायिका बन गई थीं और उनको कई जगह से गाने के मौके मिलने लगे। उन्होंने अपनी ग़जल ‘कोलंबिया रिकॉर्ड कंपनी’ के साथ रिकॉर्ड करना शुरू किया। ‘लागत कजरिया में चोट’ उनकी गाई बहुत ही प्रसिद्ध कृति है जो बेहद ज्यादा पसंद की गई थी। उन्होंने अपने बहुत से राग रिकॉर्ड किए उनमें से ‘राग शंकर’ और ‘जय-जय गुरुदेव’ बहुत ही ज्यादा प्रचलित थे। वह जल्द ही कलकत्ता से बाहर भी संगीत कार्यक्रम में भाग लेने लगी थी। जल्द ही उन्होंने शाही महफिल रामपुर, इंदौर, ग्वालियर, जौधपुर, बीकानेर और कश्मीर के लिए भी गाना शुरू कर दिया था। थोड़े ही समय में जद्दनबाई अपनी प्रतिभा के बल पर कामयाबी के पायदान पर पहुंच गई। दूर-दूर तक उनकी कला की चर्चा होने लगी। इसी तरह उन्हें जल्दी ही फिल्मों में काम करने का भी मौका मिला।

जद्दनबाई बहुत ही महत्वाकांक्षी महिला थीं। एक सफल गायिका और अदाकारा की पहचान बनाने के बाद उन्होंने बतौर निर्माता और निर्देशक भी काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपना ‘संगीत फिल्म’ नाम की खुद की प्रोडक्शन कंपनी बनाई और कई फिल्मों का निर्माण किया।

लाहौर के अब्दुल राशिद ने उन्हें साल 1933 में फिल्म ‘राजा गोपीचंद’ के लिए नायिका की भूमिका के लिए चुना गया। इस फिल्म में जद्दनबाई ने अच्छा काम किया और उन्हें फिल्मों में बतौर नायिका काम मिलना शुरू हो गया। लाहौर में ही उन्हें फिल्म ‘इंसान या शैतान’ में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म को मोती बी.गिधवानी ने निर्देशित किया था। जद्दनबाई के काम की पहुंच बढ़ती जा रही थी और जल्दी ही उन्हें बंबई इंपीरियल फिल्म कंपनी के अर्देशिर ईरानी और नानूबाई वकील के साथ काम करने का मौका मिला और वह बंबई आ गई। साल 1934 में जद्दनबाई ने ईस्टर्न आर्ट के बैनर तले फिल्म ‘प्रेम परीक्षा’ में काम किया। जिसका निर्देशन जीआर शेट्टी ने किया था। इस फिल्म में जद्दनबाई ने तेरह में से चार गाने गाए थे। इसी साल जद्दनबाई ने नानूभाई वकील के साथ ‘बाज़ार-ए-हुस्न’ नाम की फिल्म की थी। यह फिल्म हिंदी के महान साहित्यकार प्रेमचंद के उपन्यास ‘सेवा सदन’ पर आधारित थी। इस फिल्म में भी जद्दनबाई ने अदाकारी के साथ-साथ गीत भी खुद गाए थे।

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जद्दनबाई का निजी जीवन बहुत उठापठक वाला रहा था। उनकी पहली शादी एक गुजराती व्यापारी नरोत्तमदास खत्री से हुई थी जिन्होंने बाद में इस्लाम धर्म अपनाकर अपना नाम बच्ची बाबू कर लिया था। उस शादी से उन्हें एक पुत्र अख्तर हुसैन हुआ। इसके बाद दूसरी शादी हारमोनियम वादक उस्ताद इरशाद मीर खान के साथ हुई थी। जद्दनबाई ने तीसरी शादी मोहनचंद्र उत्तमचंद्र त्यागी के साथ हुई थी। उत्तमचंद्र कलकत्ता के रहने वाले थे। एक बार वह जद्दनबाई का गाना सुनने आए थे, और उसके तुरंत उन्होंने इनसे शादी का प्रस्ताव रख दिया। जद्दनबाई यह प्रस्ताव सुनकर बहुत ही आश्चर्य मे पड़ गई थी। वह अपनी दो शादी की असफलता के बाद शादी करने से कतरा रही थी। इस प्रस्ताव पर उन्होंने उत्तमचंद्र से कहा कि मैं एक मुस्लिम और तवायफ़ हूं, क्या यह जानकर तुम्हारें घर वाले तुम्हें मुझसे शादी करने देंगे। इस सवाल के चार साल बाद उत्तमचंद्र अपने घर से रिश्ता खत्म कर जद्दनबाई से शादी करने के लिए वापस आए। इसके बाद वह उत्तमचंद्र से शादी करने के लिए तैयार हो गयी थी। उत्तमचंद्र ने शादी के बाद इस्लाम कबूल कर अब्दुल राशिद बन गए थे। इसके एक साल बाद 1929 इनके घर एक बेटी ने जन्म लिया था। जिसका नाम इन्होंने फातिमा राशिद रखा था जो आगे चलकर नर्गिस के नाम से मशहूर हुईं।

जद्दनबाई बहुत ही महत्वाकांक्षी महिला थीं। एक सफल गायिका और अदाकारा की पहचान बनाने के बाद उन्होंने बतौर निर्माता और निर्देशक भी काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपना ‘संगीत फिल्म’ नाम की खुद की प्रोडक्शन कंपनी बनाई और कई फिल्मों का निर्माण किया। उनकी कंपनी की पहली फिल्म 1935 में ‘तलाश-ए-हक’ थी, जिसमें उन्होंने अभिनय के साथ संगीत भी खुद ही दिया था। इस फिल्म के निर्देशक सी.एम. लाहौर थे। इसी फिल्म में उन्होंने पहली बार अपनी बेटी नर्गिस से बाल कलाकार के रूप में काम कराया था। इस फिल्म के गाने ‘घोर-घोर बरसात मिहरवा’, ‘दिल में जब से किसी का ठिकाना हुआ,’ ‘झूलो-झूलो मोरी प्यारी दुलारी’ गाने खुद गाये थे। जद्दनबाई निर्मित दूसरी फिल्म ‘काया का पिंजरा डोले रे’ नाम से थी। जद्दनबाई बहुत सी फिल्में बनाई। वह फिल्म निर्माण, निर्देशन व संगीत देने का काम अपनी फिल्मों में खुद करती थी। 1937 में उन्होंने ‘मोती के हार’ नाम से फिल्म बनाई।

फिल्मों में वह बेटी नर्गिस के साथ बेटे अख्तर हुसैन के साथ भी काम करने लगीं। ‘नर्गिस आर्ट कन्सर्न’ के नाम से उनके बेटे अख्तर हुसैन फिल्म निर्देशन काम करना शुरू किया। उनकी फिल्म दरोगाजी (1949) मे जद्दनबाई ने कहानी और संवाद भी लिखे थे। यह उनका अंतिम काम था। फिल्म की रिलीज के बाद 8 अप्रैल 1949 को जद्दनबाई ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। हिंदी सिनेमा जगत में उनके अतुलनीय योगदान की वजह से उनकी मृत्यु के समय उनके सम्मान में फिल्मों की शूटिंग रोककर स्टूडियो कुछ दिन के लिए बंद कर दिए गए थे। जद्दनबाई हिंदी सिनेमा का वो नाम रही जो कभी ठहरी नहीं। उन्होंने अपने सपनों को तवज्जों दी और अपने हुनर को तलाश कर उसके दम पर कामयाबी हासिल की। फिल्म निर्माण के हर विधा में खुद को साबित किया। जद्दनबाई ने न केवल खुद शोहरत कमाई बल्कि अपनी बेटी नर्गिस को भी पुरुषवादी फिल्म जगत में काम करने के लिए आगे बढ़ाया। उनकी ही इस पहल के कारण न केवल वो सिनेमा जगत का बड़ा नाम बनी बल्कि उनकी बेटी ने भी सिनेमा जगत में दुनियाभर में नाम कमाया।      

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