समाजख़बर ज्योति बालियान : टोक्यो पैरा ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली इकलौती महिला तीरंदाज़

ज्योति बालियान : टोक्यो पैरा ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली इकलौती महिला तीरंदाज़

तीरंदाज़ी में ही कुछ करने का सपने पालने वाली ज्योति ने अपने घर की आर्थिक स्थिति को समझते हुए सीमित संसाधनों में ही कठिन परिश्रम करते हुए मंजिल तक पहुंचने की ठान ली थी।

टोक्यो ओलंपिक के बाद अब पैरा ओलंपिक टोक्यो की शुरुआत होने वाली है। पैरा ओलंपिक खेलों में केवल पैरा एथलीट खिलाड़ी ही हिस्सा लेते हैं। इस बार भारत की ओर से नौ खेलों में 54 भारतीय खिलाड़ी शिरकत करने जा रहे है। इन खेलों में यह अब तक का सबसे बड़ा दल हिस्सा ले रहा है। ऊँची कूद के महारथी व रियो गोल्ड मेडलिस्ट मरियप्पन थंगावेलु पैरा ओलंपिक टोक्यो 2020 के उद्घाटन समारोह में भारत के ध्वजवाहक होंगे। इसी खिलाड़ी दल में शामिल होने वाला एक नाम है ज्योति बालियान। अपनी प्रतिभा और कड़ी मेहनत की बदौलत वह यहां तक पहुंची। ज्योति के लिए यह सफर आसान नहीं था। इस टूर्नामेंट में भी उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है।

किसान परिवार की होनहार बेटी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िला मुज़फ्फरनगर के गांव गोयला में ज्योति का जन्म बेहद साधारण से परिवार में हुआ। इनके परिवार की आय का मुख्य ज़रिया खेती-किसानी है। ज्योति जन्म से विकलांग नहीं थी, बल्कि खराब चिकित्सा व्यवस्था के कारण उनको इसका सामना करना पड़ा। बहुत ही कम उम्र में एक गलत इंजेक्शन लगने के कारण वह पोलियो का शिकार हो गईं। ज्योति के परिवार ने संयम बनाए रखा और उनका हौसला बढ़ाते रहे। ज्योति के पिता उन्हें हमेशा से खिलाड़ी बनाना चाहते थे। पोलियो के बाद वह हर खेल नहीं खेल सकती थी इसलिए पिता का उन्हें वॉलीबाल खिलाने का सपना टूट गया। पिता के मन में हमेशा बेटी को आगे बढ़ाने की इच्छा थी और ज्योति उस राह पर चलने के लिए तैयार थीं। बाद में पिता के ही कहने पर उन्होंने तीरंदाज़ी को चुना। शुरुआत में तीरंदाज़ी की ट्रेनिंग की वजह से घर से दूर रहने के कारण इनका मन बिल्कुल भी प्रैक्टिस में नहीं लगता था और वह जल्द से जल्द अपने घर वापस लौटना चाहती थी। मात्र 16 साल की उम्र में इन्होंने तीरंदाजी सीखनी शुरू कर दी थी। पिता और कोच से केवल एक महीने का वादा करके तीरंदाज़ी की शुरुआत करने वाली ज्योति ने अपने पहले ही टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया। इस प्रतियोगिता की सफलता के बाद ज्योति एक महीने की शर्त भूल गई और तीरंदाज़ी की प्रैक्टिस में लग गई।

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अब तक की उपलब्धियां

ज्योति की कड़ी मेहनत और लगन की बदौलत ही इन्होंने साल 2014 में एशियन पैरा गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद विश्व पैरा आर्चरी चैंपियनशिप 2017 में हिस्सा लिया। धीरे-धीरे ज्योति अपने खेल और कोचिंग पर पूरा ध्यान देने लगी और उनको सफल परिणाम भी मिलने लगे। साल 2019 में होने वाली एशियन पैरा आर्चरी चैम्पियनशिप, बैकांक में उन्होंने हिस्सा लिया और टीम इवेंट में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। ज्योति ने अपने करियर का अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए ‘7वीं फैज़ा पैरा आर्चरी 2021’ में महिला कंपाउड ओपन इवेंट में रजत पदक अपने नाम किया। इसके अलावा मिक्सड टीम इवेंट में भी रजत पदक जीता।

पैरा आर्चर राकेश कुमार और ज्योति बालियान, तस्वीर साभार: Twitter

वर्तमान में पैरा ओलंपिक गेम्स टोक्यो 2020 में भारत की ओर से पांच खिलाड़ी तीरंदाजी में भाग ले रहे हैं। ज्योति इनमें से इकलौती महिला खिलाड़ी हैं। वर्तमान में ज्योति विश्वस्तर पर 22वीं रैंक मान्यता प्राप्त हैं। इससे पहले वह अक्टूबर 2019 में विश्व के सर्वश्रेष्ठ पंद्रह खिलाड़ियों में शामिल थी। यह उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग रही है। ज्योति पिछले चार सालों से ‘श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड स्पोर्टस कॉम्पलैक्स, कटरा’ में रहकर प्रशिक्षिण ले रही थीं। यहीं पर तैयारी करने के दौरान इनका टोक्यो के लिए चयन हुआ। इस बोर्ड से इनके साथी खिलाड़ी राकेश कुमार को भी टोक्यो का टिकट मिला है। इसके अलावा तीरंदाजी में भारत की ओर से हरविंद्र सिंह, विवेक चिकारा और श्याम सुंदर टोक्यो पैरालंपिक में शामिल होने वाले है। ज्योति बालियान की कड़ी मेहनत और पुराने बेहतरीन प्रदर्शनों की बदौलत उन्हें टोक्यो जाने का मौका मिला है। पैरालंपिक के लिए यूरोप में हुई क्वॉलीफाईंग प्रतियोगिता में भारतीय टीम शिरकत नहीं कर सकी थी। इसके बावजूद ज्योति को उनके बेहतरीन प्रदर्शन के चलते इसमें हिस्सा लेने का मौका मिला। साथ ही अपनी विश्व रैंकिंग के दम पर उन्हें टोक्यो का टिकट मिला है।

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पैसे की कमी को मेहनत के दम पर पूरा किया

तीरंदाज़ी एक बहुत ही मंहगा खेल है, जिसके लिए आर्थिक संसाधन की बहुत अहमियत होती है। ज्योति एक साधारण से परिवार से ताल्लुक रखती हैं जहां पर किसानी के ज़रिये ही पूरे परिवार का पालन-पोषण किया जाता है। तीरंदाज़ी में ही कुछ करने का सपने पालने वाली ज्योति ने अपने घर की आर्थिक स्थिति को समझते हुए सीमित संसाधनों में ही कठिन परिश्रम करते हुए मंजिल तक पहुंचने की ठान ली थी। ज्योति ने सारी बाधाओं को तोड़ते हुए हमेशा अपने खेल पर फोकस रखा। अपने पिता के बताए मूलमंत्र को ध्यान में रखते हुए बस खिलाड़ी बनने के सपने को साकार करने में लगी रही। एक इंटरव्यू में वह कहती हैं कि तीरंदाजी एक मंहगा खेल है। वह खेल में बड़ा मुकाम हासिल कर अपने गांव और ज़िले में खेलों के प्रोत्साहन के लिए काम करना चाहती है। अपने आसपास के सामाजिक परिवेश पर बोलते हुए उनका कहना है कि उनके यहां लड़कियों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है। उन्हें घर में ही रहने के लिए कहा जाता है। जबकि लड़कियों में बहुत प्रतिभाएं हैं, वे अपने हुनर के दम पर बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल कर सकती है। पढ़ाई-लिखाई हो या फिर खेल हर जगह वो बहुत बेहतर कर सकती है।

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तस्वीर साभार : World Archery

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