कमला भसीन हमारे बीच नहीं रहीं। सोशल मीडिया के माध्यम से जब यह जानकारी मिली तो एक़ बार लगा कि यह सच नहीं, क्योंकि अभी तो उनसे सीखना हम लोगों ने शुरू ही किया था। भारतीय नारीवाद में कमला भसीन एक बड़ी शख़्सियत थीं जिन्होंने भारतीय नारीवाद के क्षेत्र में 50 सालों तक काम किया। उन्होंने नारीवाद और लैंगिक समानता के विचार को भारी-भरकम शब्दों के साथ किताबों तक सीमित करने की बजाय इसे सरोकार से जोड़ने की दिशा में काम किया। कभी छोटे बच्चों के लिए कविताएं लिखकर तो कभी क्रांतिकारी गीतों के माध्यम से। भारत में ऐसे नारीवादी बेहद कम ही हुए हैं जिन्होंने बड़े दायरे में आमजन तक अपनी पहुंच बनाई। कमला भसीन उनमें से एक रही हैं। मैंने खुद उनके वीडियो में उन्हें सुनकर नारीवाद, पितृसत्ता और लैंगिक समानता जैसे शब्दों का मतलब जाना और इसे गांव में किशोरियों और महिलाओं के साथ इन विषयों पर चर्चा करना सीख़ा।
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मैंने आठवीं तक पढ़ाई की है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से आगे पढ़ाई नहीं कर पाई लेकिन आगे पढ़ने का सपना ज़रूर रहा, इसलिए सीखने के लिए हमेशा आगे रहती हूं। अपनी संस्था में काम करते हुए मैं हर रोज़ सीखने की कोशिश करती हूं लेकिन जब किसी ट्रेनिंग में हिस्सा लेती हूं तो बहुत से ऐसे शब्द होते हैं जिनके बारे में जानकारी नहीं होती। ऐसे ही कुछ शब्द है ‘पितृसत्ता,’ ‘लैंगिक समानता’ और ‘नारीवाद।’ जब भी किसी ट्रेनिंग में हिस्सा लेती हूं तो ऐसे कई शब्द अक्सर सुनने को मिलते हैं पर इनके मतलब समझ में नहीं आते थे। जब इसका ज़िक्र हमने अपनी संस्था में किया तो हम लोगों के लिए ट्रेनिंग रखी गई।
ट्रेनिंग में हम लोगों को कमला भसीन का वीडियो दिखाया जाता। उनकी बातें और भाषा इतनी आसान होती कि ये भारी-भारी शब्द बेहद आसानी से समझ आने लगे। मैंने ट्रेनिंग से पहले कभी भी कमला भसीन का नाम नहीं सुना था, लेकिन ट्रेनिंग में मैं पहली बार उनसे रूबरू हुई।
ट्रेनिंग में हम लोगों को कमला भसीन का वीडियो दिखाया जाता। उनकी बातें और भाषा इतनी आसान होती कि ये भारी-भारी शब्द बेहद आसानी से समझ आने लगे। मैंने ट्रेनिंग से पहले कभी भी कमला भसीन का नाम नहीं सुना था, लेकिन ट्रेनिंग में मैं पहली बार उनसे रूबरू हुई। तकनीकी दौर में हर कोई तरक़्क़ी के पीछे है और तरक़्क़ी के मानक बेहद साफ़ शब्दों में पहले ही से तय है। ऐसे में जब आप स्कूली शिक्षा में पीछे हो, आप छोटे से गांव के दलित मज़दूर परिवार से ताल्लुक़ रखें तो कहे-अनकहे आप बहुत से अवसरों में पीछे रह जाते हैं क्योंकि आज के समय में हम इंटरनेट के माध्यम से कई ऑनलाइन ट्रेनिंग का हिस्सा तो बनते हैं लेकिन उनकी भाषा और विषय इतने कठिन होते हैं कि हम अपने आप पीछे छूटने लगते हैं।
कमला भसीन मेरी ज़िंदगी की एक ऐसी कड़ी के रूप में रहीं, जिन्होंने एक आठवीं पास दलित लड़की को लैंगिक समानता और नारीवाद का मतलब बताकर इसे आम लोगों से जोड़ना सिखाया। मैं जब भी मुसहर बच्चों को पढ़ाने जाती हूं तो कमला भसीन की कविताओं का मतलब बताना और उसे बच्चों को याद करवाने की कोशिश करती हूं, ताकि वे लैंगिक समानता को बचपन से ही सीख सकें।
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सत्यमेव जयते के घरेलू हिंसा के मुद्दे पर केंद्रित एपिसोड मेरा पसंदीदा है, क्योंकि उसमें कमला भसीन की कही बातें और उनका अंदाज़ा मुझे हमेशा याद रहता है। उस एपिसोड में उन्होंने हिंसा की मूल जड़ पितृसत्ता के बारे में बहुत सरल और सटीक से बताया। पितृसत्ता कैसे हमारी रोज़ की ज़िंदगी में काम करती है और किस तरह जाने-अनजाने में ग़ैरबराबरी का बीज हमारे मन में डालती है, ये सारी बातें सुनने के बाद जब मैंने अपने परिवार और आसपास में इसे देखना शुरू किया तो तस्वीर एकदम साफ़ दिखी। बहुत ज़्यादा तो नहीं पर जिन भी मुद्दों पर मेरी समझ बनी आज मैं उसे लेकर दलित महिलाओं और किशोरियों के साथ चर्चा करती हूं। शायद मैं कभी भी इतनी सक्षम नहीं हो पाती अगर मैं कमला भसीन से नहीं जुड़ती।
समानता और नारीवाद की बातें करने वाले हमें बहुत मिल सकते है, लेकिन इस दिशा में एक सिरे से काम करना और बिना किसी भाषा की बाध्यता से इसे सरल शब्दों में सरोकार से जोड़ने वाले बहुत कम है, कमला भसीन उन्हीं में से एक प्रमुख शख़्सियत थीं। मैंने कमला भसीन को जितना सुना और उनकी लिखी बाल कविताओं से समझा है, उनके विचारों को जानने और उसे अपने काम से जोड़ने की ललक उतनी बढ़ी है। आज वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अपनी ज़िंदगी में उन्होंने जो काम किया और जितना समाज को दिया है वह एक पूरी पीढ़ी को बदलने के लिए काफ़ी है। उनसे मिलना मेरे लिए कोई ख़्वाब ही हो सकता था पर उनके विचारों को सरोकार से जोड़ना मेरा लक्ष्य है। वह हमेशा हमारे काम में अपने विचारों के साथ ज़िंदा रहेंगीं। ज़िंदादिल भारतीय नारीवादी को सलाम।
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तस्वीर साभार : फेसबुक