स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य क्या होता है सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन और क्यों महिलाएं कर रही हैं इसका रुख़

क्या होता है सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन और क्यों महिलाएं कर रही हैं इसका रुख़

अबॉर्शन यानि गर्भसमापन, प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य से जुड़ा वह मुद्दा है जिसके सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी ही नहीं बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पहलू भी महत्वपूर्ण हैं। अबॉर्शन लोगों के स्वास्थ्य से संबंधित वह मुद्दा है जिस पर सबसे अधिक कठोर कानून वैश्विक स्तर पर मौजूद हैं। नारीवादी आंदोलन के तीन चरणों के बाद भी आज भी दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां लोगों को सुरक्षित अबॉर्शन से जुड़े अधिकार नहीं मिले हैं। यह सिर्फ विकालशील देशों की स्थिति नहीं है बल्कि विकसित देशों में भी अबॉर्शन को लेकर आज भी रूढ़िवादी कानून और मानसिकता मौजूद है। ऐसा इसलिए क्योंकि अबॉर्शन को सिर्फ स्वास्थ्य या लोगों के अधिकार की नज़र से नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक गेज़ से देखा जाता है। अबॉर्शन करवाने वाले लोगों को हमारा समाज आज भी एक ‘अपराधी’ की नज़र से देखता है। अजन्मे भ्रूण को एक जीवित बच्चे की तरह देखा जाना भी इसकी एक मुख्य वजह है। 

हम अक्सर सुनते आए हैं कि एक औरत का जीवन तभी सफल होता है जब वह मां बनती है। इसी दकियानूसी सोच के कारण महिलाओं और उनके शरीर को सिर्फ प्रजनन तक सीमित कर दिया जाता है। मातृत्व की पितृसत्तात्मक परिभाषा के अंतर्गत अबॉर्शन एक बच्चे की ‘हत्या’ मानी जाती है, जबकि वैज्ञानिक और मेडिकल आधार पर सही शब्द फीटस यानि भ्रूण होता है। शब्दों और भावनाओं को एक ज़रिया बनाकर अबॉर्शन का चयन करनेवाले लोगों को अपराधबोध महसूस करवाया जाता है। पितृसत्ता अबॉर्शन को न सिर्फ लोगों के लिए शारीरिक रूप से चूनौतीपूर्ण बनाती है बल्कि उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से भी प्रभावित करती है।

अबॉर्शन से जुड़ी पितृसत्तात्मक, रूढ़िवादी सोच अबॉर्शन संबंधित सेवाओं तक की पहुंच में एक बड़ी बाधा है। न सिर्फ हमारा समाज, बल्कि अबॉर्शन पर बनने वाले कानून और नीतियां भी मेल गेज़ से ही बनाई जाती हैं। अबॉर्शन को एक कलंक और अपराध की तरह देखे जाने के कारण, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, आर्थिक और सामाजिक बाधाएं मुख्य वजहें है, जिसके आज सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन पर बात किया जाना ज़रूरी है।

सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन क्या है?

यह वीडियो  Médecins Sans Frontières और www.HowToUseAbortionPill.org. की साझेदारी के तहत बनाया गया है। यह वीडियो सीरीज़ ये समझने में मददगार साबित होगी कि अबॉर्शन पिल्स सुरक्षित और आपकी पहुंच में हैं। पूरी वीडियो सीरीज़ देखने के लिए यहां क्लिक करें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सेल्फ मैनेज्ड मेडिकल अबॉर्शन वह प्रक्रिया है जिसमें माइफप्रिस्टॉन और मिसोप्रॉस्टल (mifepristone and misoprostol) या सिर्फ मिसोप्रॉस्टल नामक दवाइयों का सेवन किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसी मेडिकल प्रोफेशनल की ज़रूरत नहीं होती है। संस्था हाउ टू यूज़ अबॉर्शन पिल के मुताबिक माइफप्रिस्टॉन और मिसोप्रॉस्टल की गोलियां गर्भधारण के पहले 13 हफ्तों में ली जा सकती हैं। वहीं, सिर्फ मिसोप्रॉस्टल अकेले भी पहले 13 हफ्तों की प्रेग्नेंसी में कारगर साबित होता है। भारत में इन दवाओं का इस्तेमाल 9 हफ्तों तक के भ्रूण के अबॉर्शन के लिए किया जा सकता है।  

इन गोलियों का सेवन एकदम सुरक्षित माना जाता है। इन गोलियों के ज़रिये होनेवाले अबॉर्शन के लक्षण भी अचानक हुए गर्भपात से मिलते-जुलते होते हैं। HTU के मुताबिक मिसोप्रॉस्टल का पहला कोर्स लिए जाने के 1-2 घंटे के अंदर ही दर्द और ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। इन गोलियों से अबॉर्शन अक्सर 24 घंटे के अंदर हो जाता है। कई बार यह 24 घंटों से पहले भी हो सकता है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंटरनैशनल वीमनंस हेल्थ कोलिशन के मुताबिक अबॉर्शन की गोली मिसोप्रॉस्टल का सेवन निम्नलिखित तरीके से किया जाना चाहिए:

  • एक गर्भवती औरत को 12 200 mcg की मिसोप्रॉस्टल गोलियां लेनी होती हैं।
  • पहले चरण में चार मिसोप्रॉस्टल (200 mcg) की गोलियां अपनी जीभ या गाल में 30 मिनट तक दबाकर रखें ताकि वे अच्छे से घुल जाएं। बाकी बचे अवशेष को निगल जाएं।
  • तीन घंटे के बाद चार और गोलियों को इसी तरह अपनी जीभ या गाल में 30 मिनट तक दबाकर रखें। बाकी बची गोलियों के अवशेष को निगल जाएं।
  • इसके बाद बाकी बची चार गोलियों के साथ भी यही प्रक्रिया अपनाएं।

गोलियों के सेवन के बाद आप निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव कर सकती हैं:

  • भारी मात्रा में ब्लीडिंग होना
  • दवाई लेने के 24 घंटे बाद ठंड लगना या बुखार आना
  • पेट में अत्यधिक दर्द होना/ क्रैंप्स होना
  • जी मचलना या उबकाई आना

वेबसाइट रिप्रोडक्टिव हेल्थ के मुताबिक भारत में साल 2002 में अबॉर्शन के लिए माइफप्रिस्टॉन और मिसोप्रॉस्टल के इस्तेमाल को मंज़ूरी दी गई थी। हालांकि इन दवाओं का आसानी से पहुंच में न होना, भारत में सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन की दिशा में एक बड़ी रुकावट है। 

साल 2020 में आई फाउंडेशन ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज़ इन इंडिया ने भारत के छह राज्यों पर एक सर्वे किया। इस सर्वे का लक्ष्य इन राज्यों में मेडिकल अबॉर्शन से जुड़ी दवाओं की मौजूदगी का पता लगाना था। सर्वे के मुताबिक करीब 79 फ़ीसद दवा दुकानदारों के पास ये दवाएं थी ही नहीं। वहीं, 54.8 फ़ीसद केमिस्ट्स के मुताबिक इन दवाओं पर प्रिस्क्रिप्शन दिखाकर मिलनेवाली अन्य दवाओं के मुकाबले अधिक नियम लागू हैं। रिपोर्ट की मानें तो अलग-अलग राज्यों के नियम, कानूनी बाधाएं इन दवाओं के स्टॉक में न होने के पीछे की बड़ी वजहों में शामिल हैं। 

भारत में असुरक्षित अबॉर्शन

वैसे तो भारत में अबॉर्शन को साल 1972 से ही कानूनी मान्यता मिल गई थी लेकिन इसे लेकर चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। आकंड़े और कई रिसर्च यह बताते हैं कि असुरक्षित अबॉर्शन भारत में मातृक मृत्यू (मैटरनल डेथ्स) की एक बड़ी वजह है। असुरक्षित अबॉर्शन वह प्रक्रिया है जहां गर्भसमापन उन लोगों के द्वारा किया जाता है जिनके पास इससे संबंधित प्रशिक्षण नहीं होता है या ऐसे हालात में किया गया अबॉर्शन जहां मूलभूत मेडिकल सुविधाएं भी मौजूद नहीं होती हैं। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक हर आठ मिनट पर विकासशील देश की एक महिला असुरक्षित अबॉर्शन के दौरान होनेवाली कठिनाइयों के कारण अपनी जान गंवाती है।इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दिन लगभग 13 महिलाओं की मौत असुरक्षित तरीके से किए गए अबॉर्शन के कारण होती है। वहीं, मेडिकल जर्नल लैंसेट की एक स्टडी के मुताबिक साल 2015 में भारत में एक करोड़ 56 लाख अबॉर्शन हुए। इसमें से 1 करोड़ 15 लाख अबॉर्शन यानि लगभग 73% अबॉर्शन स्वास्थ्य केंद्रों के बाहर हुए। 

क्यों ज़रूरी है सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन पर चर्चा

अबॉर्शन से जुड़ी मानसिकता, जागरूकता की कमी, इससे जुड़ी शर्म, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और उनका पहुंच से दूर होना आदि कारण सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन की अहमियत पर और अधिक ज़ोर डालते हैं। ऐसा कई अलग-अलग कारणों से ज़रूरी है। उदाहरण के तौर पर इपस डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा 12 राज्यों में किए गए सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान करीब 18.5 लाख महिलाएं अपना सुरक्षित गर्भपात नहीं करवा पाई। अधिकतर महिलाओं का गर्भसमापन तय समय से देर से हुआ और कुछ महिलाओं को मजबूरन बच्चे को जन्म देना पड़ा। अगर सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन या अबॉर्शन से जुड़ी अन्य सुविधाएं इन महिलाओं की पहुंच में होती तो स्थिति इससे बेहतर होती। 

हालांकि हमें यह भी समझने की ज़रूरत है कि बड़ी संख्या में लोग असुरक्षित अबॉर्शन या सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन का रुख इसीलिए करते हैं क्योंकि उनके पास मेडिकल अबॉर्शन से जुड़ी अन्य सुरक्षित और सस्ती सुविधाएं नहीं मिल पातीं। अबॉर्शन की ये गोलियां सस्ती और आसानी से लोगों की पहुंच में आ सकती हैं। इससे अबॉर्शन की सुविधा का इस्तेमाल अधिक से अधिक लोग कर सकते हैं। अबॉर्शन के लिए अस्पतालों का रुख़ न कर पाने लोगों के लिए सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन एक सुरक्षित विकल्प है। इससे उनकी निजता कायम रहती है, साथ ही उन्हें इससे संबंधित पूर्वाग्रहों का सामना भी कम करना पड़ता है।  हालांकि यह तभी संभव होता है जब सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन से जुड़ी सारी सुविधाएं उनकी पहुंच में हो। इन दवाओं से जुड़े कठोर नियमों को आसान बनाया जाए। इन पर अधिक से अधिक जागरूकता फैलाई जाई। इनके इस्तेमाल के तरीकों से जुड़ी जानकारियां आमजन तक पहुंचाई जाए।


(यह लेख HowToUse Abortion Pill और फेमिनिज़म इन इंडिया की पार्टनशिप के तहत लिखा गया है।  HTU अबॉर्शन पिल्स से जुड़े तथ्य, रिसोर्स जैसे अबॉर्शन पिल्स लेने से पहले किन बातों का ख्याल रखना चाहिए, ये पिल्स कहां उपलब्ध हो सकती हैं, इनका इस्तेमाल कैसे किया जाए और कब चिकित्सक की ज़रूरत पड़ सकती है, जैसी जानकारियां साझा करने का काम करता है। HTU का सेफ़ अबॉर्शन असिस्टेंट Ally अबॉर्शन पिल्स से जुड़ी सभी जानकारियों पर आपकी मदद के लिए 24/7 उपलब्ध है। आप Ally से हिंदी और अंग्रेज़ी दो भाषाओं में बात कर सकते हैं। साथ ही फ्री वॉट्सऐप  नंबर +1 (833) 221-255 और  http://www.howtouseabortionpill.org/ के ज़रिये भी आप मदद ले सकते हैं।)

तस्वीर साभार : AWID

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