कुछ समय पहले मैं बस से कहीं जा रही थी मैंने देखा एक बच्चा काफी देर से रो रहा है, उसकी मां उसे चुप कराने में लगी है लेकिन वह चुप ही नहीं हो रहा है। बच्चे की रोने की आवाज़ के कारण सभी का ध्यान उसी तरफ था। तभी एक औरत ने पूछा कि कहीं बच्चा भूखा तो नहीं है। यह बात उसकी मां को भी पता थी लेकिन वह संकोच में थी। यह बात वह दूसरी औरत भी समझ रही थी। उसने अपनी साड़ी का पल्लू निकालते हुए बोला, “दूध पिला दो बच्चे को।” उस वक्त भी वह असमंजस में थी लेकिन उसने पल्लू लगाकर दूध पिला दिया और बच्चा शांत हो गया। जब उसने दूध पिलाना शुरू किया था तो बस में खड़े सब लोगो कि नज़रें इधर-उधर होने लगी थीं मानो कुछ ऐसा हुआ था जो उस बस में नहींं होना चाहिए था। कोई उसे घूर रहा था तो कोई असहज हो रहा था। बस में एक औरत द्वारा अपने बच्चे को दूध पिलाने जैसी बेहद सामान्य और प्राकृतिक क्रिया पर लोगों की घूरती और असहज होती नज़रें 21वीं सदी के भारत की कहानी कह रही थी।
अब आप सोचिए कि एक नवजात शिशु जिसके लिए वह दूध बेहद ज़रूरी है लेकिन उसकी मां दूध पिला नहीं सकती क्योंकि उसे डर था कि वे आखें जो हर वक्त महिलाओं के स्तन को घूरती रहती हैं, दूध पिलाते वक्त भी उसके स्तन को घूरेंगीं। जितनी देर तक बच्चा रो रहा था उतनी देर तक औरत के मन में समाज और उसके मातृत्व के बीच द्वंद चल रहा था। इसके बावजूद जब कोई महिला इन नज़रों को नज़रदांज़ करके सार्वजनिक जगहों पर अपने बच्चों को स्तनपान कराती है तो समाज उस महिला को अश्लील घोषित कर देता है। यही समाज का मानक है जहां प्राकृतिक चीज़ें अश्लील और असमान्य हो जाती हैं। जब कोई इस तरह के मानकों को तोड़ने की कोशिश करता है या तोड़ता है तो समाज उसे अपने तरीके से सज़ा देता है।
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हम यहां बात कर रहे हैं मोरल पुलिसिंग की जो समाज के तथाकथित बुनियादी मानकों का उल्लघंन करनेवालों पर कड़ी निगरानी और प्रतिबंध की तरह है। जो कई अन्य तरीकों से भी हमारे सामने आती रही है। ब्रेस्टफीडिंग के दौरान भी इसी तरह की कई घटनाएं हमारे सामने आती हैं जहां सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं के साथ मोरल पुलिसिंग की जाती है। तथाकथित संस्कृति के नाम पर नई मां को कई ऐसी बातें बताई जाती हैं जो नवजात शिशु के साथ बाहर निकलने पर उस औरत के लिए परेशानी बढ़ा देता है। साथ ही इससे जुड़े कई ऐसे मिथक होते हैं जिनको नई मां मानती चली जाती है। जैसे बाहर दूध नहीं पिलाना चाहिए, सर पर कपड़ा रखकर दूध पिलाना चाहिए या लेटकर दूध नहीं पिलाना चाहिए। पितृसत्तात्मक सोच और ऐसी धारणाओं के कारण कई मांएं घर से बाहर निकलना ही छोड़ देती हैं। यह भी कहा जाता है कि यदि मां गुस्से में रहे या दूध स्तन में ही रहे तो वह खराब हो जाता है। ब्रेस्टफीडिंग से ब्रेस्ट ढल जाता है जबकि असल में ऐसा होता नहीं है।
“अब आप सोचिए कि एक नवजात शिशु जिसके लिए वह दूध बेहद ज़रूरी है लेकिन उसकी मां दूध पिला नहीं सकती क्योंकि उसे डर था कि वे आखें जो हर वक्त महिलाओं के स्तन को घूरती रहती हैं, दूध पिलाते वक्त भी उसके स्तन को घूरेंगीं।”
द क्विंट की अप्रैल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 73 फीसद महिलाएं बच्चों को जन्म देने के बाद ही अपनी जॅाब छोड़ देती हैं। इनमें से केवल 27 फीसद महिलाएं ही वापस नौकरी करने के लिए खुद को तैयार कर पाती हैं। इससे यह पता चलता है कि सिर्फ मां पर बच्चों को संभालने की कितनी बड़ी जिम्मेदारी डाल दी जाती है। महिलाओं को अपने पार्टनर का सहयोग नाममात्र ही मिलता है। औरत या आदमी में से अगर घर के लिए या बच्चे के लिए किसी को नौकरी छोड़ना हो तो वह औरत को ही छोड़नी पड़ती है क्योंकि हमारी पितृसत्तात्मक संस्कृति के हिसाब से औरतें घर में ही रहती हैं।
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स्तनपान से जुड़ी जागरूकता के लिए वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक हर साल 1 से 7 अगस्त के बीच मनाया जाता है जो भारत के साथ-साथ 120 देशों मे आयोजित किया जाता है। हर साल किसी नई थीम के साथ इसे मनाया जाता है। हालांकि इस मुद्दे पर जानकारी भी उनको ही होती है जो विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से आते हैं। ब्रेस्टफीडिंग सप्ताह के दौरान न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपे लेख के मुताबिक एक सर्वे में बताया गया है कि 70 प्रतिशत महिलाओं को बाहर स्तनपान के दौरान चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक साल 2019 में मलप्पुरम में बाल दिवस के दिन 10 महीने के बच्चे पर हमले के की खबर सामने आई जब मोरल पोलिसिंग के तहत एक विवाहित जोड़े पर एक गिरोह ने हमला कर दिया था। उस वक्त मां अपने 10 महीने के बच्चे को स्तनपान करा रही थी। वह उस वक्त एक ऑटो रिक्शा में यात्रा कर रहे थे लेकिन बच्चे को दूध पिलाने के लिए ऑटोरिक्शा खड़ा करवाया। तभी करुठेरी इलाके के डिस्को सिद्दीकी नामक शख़्स के साथ मिलकर कुछ अन्य लोगों ने हमला करते हुए कहा था कि इन दोनों की शादी नहीं हुई। हमले में वे तीनों घायल हो गए थे। इलाके के स्थानीय निवासियों ने उनको बचाया और अस्पताल में ले गए।
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साल 2018 में मलयालम मैगज़ीन गृहलक्ष्मी की कवर फोटो पर एक्टर गिलू जोसेफ का एक फोटो छपा था जिस पर वह एक बच्चे को स्तनपान कराते हुए नज़र आ रही थीं। साथ में यह कैप्शन भी दिया गया था कि लोग बच्चे को दूध पिलाती हुए मांओं को ना घूरें। इसका अश्लीलता से कोई संबंध नहीं था। अश्लीलता का यह स्थान वही लोग तय करते हैं जिनके हिसाब से औरत की इज्ज़त सिर्फ उसकी यौनि और स्तन में होती है। ये पोस्टर लोगो को इतना बेहूदा नजर आया कि वह इसे कोर्ट तक ले गए। उन लोगों ने दावा किया कि इस कवर फोटो में जुवैनाइल जस्टिस एक्ट, प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट, इन्डीसन्ट रेप्रेजेंटेशन ऑफ वीमन एक्ट, 1986 और संविधान की कुछ धाराओं को उल्लंघन हुआ है।
हालांकि केस की सुनवाई करने वाले चीफ जस्टिस एंटनी डोमिनिक और जज दमा शेषाद्रि को इस तस्वीर और कैप्शन में भी कुछ गलत नहीं दिखा। सुनवाई के दौरान अजंता की पेंटिग्स पर भी चर्चा हुई। कोर्ट ने कहा भारतीय कला ने सदियों से मानव शरीर की खूबसूरती को दिखाया है। जजों ने कहा कि शिकायत करने वाले लोगों का पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि यह तस्वीर अश्लील है या इससे समाज की नैतिकता पर कोई असर पड़ता है, जिसके बाद इस केस को खारिज कर दिया गया।
कुछ इसी तरह का किस्सा है, जब साल 2018 में अमेरिका के मायामी में एक फैशन शो में हुआ। जब बिकनी राउंड में मॉडल मारा मार्टिन ने रैंप पर जाने से पहले अपनी पांच महीने की बेटी को साथ लिया और स्तनपान कराते हुए ही उन्होंने वॉक किया। बता दें कई महिलाएं अमेरिका में पब्लिक प्लेस पर बच्चों को दूध पिलाने के लिए लड़ रही थी। सोशल मीडिया पर इस मुहिम को ‘फ्री द निप्पल’ का नाम दिया गया था। बता दें 2012 में #freethenipples अभियान की शुरुआत द टॉप फ्रीडम मूवमेंट ने की थी।
मारा द्वारा स्तनपान के दौरान किए गए रैंपवॉक के बाद इंटरनेट भी दो भागों में बंटा हुआ दिखा था। कई लोगों और सेलेब्रिटीज़ ने समानता के मद्देनजर यह बात सामने रखी थी कि जब एक आदमी अपना शरीर दिखाता है तो वह ठीक है, लोगों को वह सेक्सी नज़र आता है लेकिन वही कोई लड़की अपने शरीर का अंग दिखा दे तो वह बॉडी शेमिंग के दायरे में आ जाता है।
नवंबर 2017 में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें मुबंई ट्रैफिक पुलिस एक गाड़ी को मशीन के ज़रिये खींचकर ले जा रही थी जिसमें एक औरत बैठी थी जो अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। विडियों में वह औरत चिल्ला रही होती है कि मैं दूध पिला रही हूं। बावजूद इसके पुलिस वाले ना कुछ बोलते हैं ना कुछ सुनते है और गाड़ी को खींचने लगते है। बाद में इस ट्रैफिक पुलिस को स्सपेंड कर दिया था। हमारा पितृसत्तात्मक समाज स्तनपान को छिपाकर किया जानेवाला काम मानता है। बहुत से देशों में सार्वजनिक स्थल पर स्तनपान कराना प्रतिबंधित है। हमारे देश में महिला का अपने शरीर पर अधिकार जताने को गलत माना जाता है क्योंकि उसके बदन के हर हिस्से को पुरुष ने कामुकता से जोड़ दिया है। ऐसे में अगर किसी औरत का स्तन किसी पुरुष को दिखेगा तो वह उसे अश्लीलता तो बताएंगे ही। ब्रेस्टफीडिंग को लेकर मोरल पोलिसिंग एक बड़ी समस्या है जिस पर चर्चा नहीं की जाती है।
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तस्वीर साभार : Belly Belly